कर दिया फरियाद ,
भरे जहां में ,
आदमी को आदमी समझकर ,
दे दिया घाव ,
मतलब के तराजू पर तौलकर।
दर्द तो बहुत है ,
मतलबी दुनिया में यारो ,
जाति -धर्म, मतलब कर रहा चट ,
अरमान हजारो।
तभी तो पसीने में नहाया,
आंसू में रोटी गीला कर रहा ,
कमजोर आदमी
दूसरी और अभिमान की ,
शिखा पर बैठा
आदमी का खून चूस रहा ,
दबंग आदमी।
घाव सहलाते हुए,
अपना मानने की लत मगर,
ना मिला सुनने वाला ,
पीते राह गए जहर।
लोभियों को नहीं रहा
फ़र्ज़ अब याद,
मतलब भरे जहा में,
शोषित कहाँ करे फ़रियाद…?
डॉ नन्द लाल भारती
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