जेठ बैसााख की लू से आम के नन्हे-नन्हें फल पेड़ पर अध जले से लटके हुए थे । उन्हे देखकर ऐसा लग रहा था कि उन्हे आग में जलाकर टांग दिये गये हो । दरवाजा खोलो तो मुंह झुलसा देने वाली लपटें । दीनू के बच्चे जमीन को पानी से तर कर बोरे के उपर बिस्तर लगाकर कोने वाले घर मे दुबके हुए थे । बुधिया पना बनाकर पीला रही थी । लू से बचने का देषी और कारगर इलाज जो था । लू ना जाने कितने गरीबो को लील चुकी थी। गांव में बिजली तो पहुंच चुकी थी पर गरीब मजदूरो की बस्ती से अभी भी दूर थी आजादी की तरह से दूर थी। नजदीक थी तो बस गरीबी भूखमरी,अषिक्षा,दरिद्रता और सामाजिक बुराई के कहर से उपजे रिसते जख्म का चुभता दर्द । ऐसे में आधुनिक सुख सुविधाये कूलर पंखे तो सपने मात्र थे । बुधिया बडे़ बेटे महगुंवा के हाथ में पने का गिलास पकड़ायी ही थी कि दीनु ने बड़े जोर की आवाज दी जैसे घर के सबके सब बहरे हो गये हो। जल्दी दरवाजा नही खुला तो वह झल्लाकर बोला अरे भागवान दुल्हनिया की तरह घर में मेहदी लगाये घर में छिपी रहेगी या बाहर भी निकलेगी । हमें भी लू के थपेड़े लग रहे है । षाम होने को आ गयी पर सबके सब घर में ही घुसे है ।
तब तक महंगुआ अपनी मां बुधिया से बोला मां दादा को तलब लग रही है । चैखट पर पांव रखे नही देखो चिल्लाने लगे । मां घड़ी में अभी दो तो बजे है कह रहे है षाम हो गयी । ना जाने कब नषे की लत छूटेगी । चुपकर सुन लेगे तो आफत आ जायेगी । जीभ निकाल कर मारेगे । हां मां ठीक कह रही हो रात होने लगी है, जा दादा को चिलम चढाकर दो ।इससे भी पेट ना भर तो गांजा चिलम में भर देना । यही फरमान होगा ।
महंगुवा आधा दर्जन बच्चों में सबसे बड़ा था ।पांच साल की उम्र में हुए व्याह में मिली घड़ी को हाथ में बाधे रहता था । वह चलती फिरती घड़ी बन गया था । बुधिया की डांट फटकार से स्कूल जाने लगा था ।
बुधिया-बेटा तू ठीक कह रहा है। तलब में बड़बडा रहे है ।
महंगुवा-अरे मां दादा को हुक्का चिलम की जरूरत नही है । गांजा के गाल भर धुआं की दरकार है । गुड़ पानी छोड़ो ।
दीनु-अरे इतनी देर हो गयी बाहर निकलने में ।
बुधिया दरवाजा खोली । हड़बड़ायी हुई अन्दर गयी और गुड़ पानी लेकर आयी ।
गुड़ पानी देखकर दीनु का पारा सातवें आसमान पर वह बोला भागवान गुड़ पानी मांगा हूं क्या ?
बुधिया- नही जी मांगे तो नही । पी लो बहुत गरमी है । पना भी देती हूं एक गिलास वह भी पी लो बच्चों को पना ही पिला रही थी ।
दीनु-कहां गरमी है । कल से तो आज बहुत कम है ।
बुधिया-महंगुवा तो कह रहा हैं माई गला सूख रहा है । चक्क्र सा लग रहा है । बहुत गरमी लग रही है । वह हांफ रहा है तुम कह रहे हो गरमी है ही नही । हां बेटा जो कहेगा वह सही है ना । मेरी बातों पर भला तुमको कब से विष्वास होने लगा ।
बुधिया-क्या कह रहे हो बिना विष्वास के आधा दर्जन बच्चे हो गये ।
दीनु-अरे हम तो ऐसा कुछ नही कह रहे है ना । हम तो यही कह रहे है कि बेटवा की बात के आगे अब हमारी कौन सुनेगा ।
बुधिया-हां बेटवा समझदार है । बस्ती के सभी बच्चों से पढने में तेज है । तुमने अपनी तरह उसे भी आंख खुली नही षादी के बंधन में बांध दिये ।
दीनु-अरे हमने कौन सी पढायी की है । हमारा घर नही चल रहा है क्या ? वैसे ही उसका भी चलेगा ।
बुधिया-ना बाबा ना । मेरा बेटा अफसर बनेगा । जमींदारों के खेत में बेटवा का जीवन नरक नही होने दूंगी । हमारी जैसी उसकी जिन्दगी ना हो भगवान । कौन सा सुख मिल रहा है । आदमी होकर भी आदमी के सुख से वंचित है । घर में खाने को नही । दाने दाने को मोहताज है । कपड़े लते को नस्तवान है । आधा दर्जन बच्चे उपर से गजेड़ी मरद ना बाबा ना भगवान ऐसा नसीब मेरे बच्चों का ना लिखना ।
दीनु- अच्छा बक-बक अब मत कर । मैं बुरा हो गया हूं तो छोड़ दे मेरी हालत पर ।
बुधिया- कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो । बोलेा क्या चाहिये तन से कपड़ा उतार दूं या गांजा के लिये पैसा । कहो तो दो किलो गेहूं है दे दूं । बेंचकर गाल भर धुआं उड़ा लेना ।
दीनु-अभी तो कुछ नही चाहिये ।
बुधिया-आओ कोने वाले घर में वही बच्चे लू से बचने का इन्तजाम किये हुए है । जो कुछ कहना है वही कह लेना । बच्चों को भी तो पता चले ।
दीनु-नहीं ।
बुधिया-अन्दर तो आओ की सब बात डयोढी पर ही कर लोगो ।
दीनु-आज बहुत प्यार दिखा रही हो ।
बुधिया-क्या पहले ना करती थी । जब पहली बार तुम्हारे घर में आयी थी ना पूरी बस्ती में मेरी खूबसूरती के चर्चे थे । ये मेरा हाल तुम्हारा बनाया हुआ है। मेरी खूबसूरती को तुम्हारी ही नजर लगी है।
दीनु-नाराज ना हो । तुम चलो मैं आता हूं ।
बुधिया-कहां जा रहे हो ।
दीनु- ठेके गया और आया । वहां रूकूंगा नहीं ।
बुधिया- देखो मत जाओ चमड़ी जला देने वाली लू है ।
बुधिया की बात कहां सुनने वाला था दीनु । वह कंधे पर लाठी रखा । गमछा मुंह पर लपेट कर चल पड़ा गांजे के ठेके की ओर । बुधिया चैखट पर खड़ी कभी खुद की किस्मत को तो कभी बच्चों के भविश्य पर भगवान को कोसती रही ।
इतने में महंगुवा आ गया मां को चिन्तित मुद्रा में देखकर बोला मां दादा तो गये जाने दो। उन्हे जीवन की नहीं गाल भर धुआं की चिन्ता है ।
बुधिया-हां बेटवा । भगवान ना जाने ऐसी तकदीर क्यों बना दी है कि जीवन भर आसूं पीती रहूं । पेट के लिये रोटी नही उन्हे गाल भर भर धुआं उड़ाने से फुर्सत नही हैं।
महंगुआ-मां अन्दर चलो घण्टा भर से लू में क्यो खड़ी हो । दादा तो अब आने में होगे ।
बुधिया-अरे इतनी जल्दी कहां आने वाले है । नटई तक चढायेंगे । भोले भण्डारी का परसाद कह कह कर खूब गाल भर धुआं उडायेगे तब ना आयेगे ।
महंगुआ-अरे मां वो देख दादा कैसे चमक रहे है आग सरीखे ।
बुधिया- बेटा जा कुयें से एक बाल्टी पानी ले आ । आते ही पियक्कड़ों को न्यौता देगे । इतना कहना था कि दीनु आ धमका । पसीना पोछते हुये बोला कही जाओ तो काली बिल्ली जैसे रास्ता काट देगी । जा तनिक गुड़ और ठण्डा पानी ला । महंगु बेटा तू घासी दादा को बुला ला ।
बुधिया-नही बेटवा नही जायेगा । तुम यही से आवाज मार दो सारे पियक्कड़ इक्ट्ठा हो जायेगे ।
दीनु-घासी भईया की आवाज दिया । इतने में घासी गमछा कंधे पर रखकर दीनु के घर की ओर दौड़ पडें । दरवाजे पर पहुंचतेे ही बोले भरी दोपहरी में चले गये थे क्या । कौन सी लाये हो भइया ।
दीनु-षाम होने का इन्तजार करता तो ये माल नही मिलता । ठेके पर बड़ी भीड़ लगी है ।
घासी-कौन सी लाये हो ।
दीनु-आजकल तो मिरचहिया का जमाना है । असली है या नकली पता तो पीने पर लगेगा कहते हुए दीनु महंगुवा को बुलाने लगा ।
बुधिया-महंगु भैसं लेकर गया । बोरसी में तुम्हारे पास आग रखी है । बैठकर गाल भर धुआं उड़ाओं । मुझे भी काम करना है ।
घासी-नरकुल की रस्सी नही है ।
दीनु-भइया खटिया में से तनिक सी काट लो ।
घासी जल्दी जल्दी रस्सी गोल मटोल कर आगे के हवाले कर दिया । दीनु गांजा में से बीज बिनने लगा । घासी दीनु आग और चिलम तो तैयार है ।
दीनु-माल भी तैयार है । लो चिलम भर गयी रख दो आग ।
घासी- लो भोग लगाओ दीनु ।
दीनु-भइया तुम्ही लगाओ ।
इतने में गांजा की महक नन्हूवा,करमुवा,छनुवा,रमुवा घोड़न,किषोर,बरखू, सरखू,सन्तु सारे के सारे गजेड़ी इक्टठा हो गये । सब मिलकर खूब धुआ उडा़ने में जुट गये ।
रमुवा बोला - एक चिलम और चढ जाती तो मजा आ जाता ।
छनुवा- अरे दीनु भइया के राज में कहा कमी है । खूब छानो ।
छीनु फुलकर कुप्पा हो गये । एक चिलम ठण्डी ना हो पाती तब तक दूसरी चढ जाती । गजेड़ियों को पता ही नही चला कब रात हो गयी । दीनु का गांजा खत्म होते ही सब अपने अपने घर चल पडे़ । दीनु दुनिया से बेखबर वही पसरे पसरे गाजा पीया राजा पीये गांजा लड़खड़ाती जबान से गाता रहा है । बीच में रह रह कर बोलता क्या भोले बाबा ने चीज बनायी है । दुनिया के सारे दुख-दर्द भूल जाओ । तनिक सा गाल धुये से भरा नही कि अच्छे अच्छे विचार आने लगते है जैसे भोले बाबा की जटा से गंगा ।
बुधिया-हां तुमको देखकर मुझे भी ऐसे ही लगने लगा है ।
दीनु-महंगुवा की मां गांजा भोले भण्डारी का परसाद है । मजाक ना कर भोले बाबा नाराज हो जायेगे। गांजा कभी नुकषान नही करता ।
बुधिया-अरे वाह रे हकीम । गांजा नुकषान नहीं करता । याद है तुम्हारे लंगोटिया यार की मौत जो भूक भ्ूाक कर मरा था । आंते सड़ गयी थी । बेचारे बच्चे अनाथ हो गये घरवाली विधवा हो गयी । करे कोई भरे कोई वही हुआ तुम्हारा दोस्त पतवार तो दांत चिआर कर मर गया । दण्ड घरवाली और बच्चों को मिल रहा है ।नन्हे नन्हे बच्चों भूख से बिलख रहे है । स्कूल जाना बन्द हो गया है । तुम्हारे लियेे गांजा अमृत हो गया है ।
दीनु-गांजा दारू खाने को मांगते है । मांस मछली,घी दूध समझी ।
बुधिया-अरे वाह राजाओं महाराजाओं के षौक फरमा रहे है जनाब । सोने की थाली में मांस मदिरा का भक्षण करेगें । चांदी के लोटे में पानी पीयेगे । अरे रोटी का ठिकाना भी है । मेहनत मजदूरी ना करे तो रोटी नसीब न हो । चले है राजाओं के षौक में मरने । आग लगे ऐसी षौक में। ऐसा षौक तो घर परिवार के लिये मुट्ठी भर आग साबित होता है । कहते हो गांजा पीने के बाद अच्छे विचार आते है जरा पीकर सोचना बच्चों के लालन पालन पढाई लिखाई और अच्छे कल के बारे में । दिन भर तो हाड़फोड़ी हूं रात भर तुम्हारी टहल में बिता दूं । मैं बहुत थक गयी हूं सोने जा रही हूूं । बच्चे सो गये है।तुम भी बड़बडाना बन्द करो पटाकर सो जाओ । सुबह बाबूसाहेब के खेत में खून पसीना करना है । कल की षाम की रोटी का इन्तजाम नही है ।याद है ना । पहले ही बता देती हूं ।
सुबह हो गयी । बुधिया गोबर पानी कर,दूसरे काम निपटाने में लग गयी । दीनु टस से मस नही नहीं । जहां पसरा था वही पसरा रहा सूरज की तेज रोषनी में नहाये हुए । बुधिया जगाकर थक गयी । दीनु नषेे में बड़बडाता रहा पर उठकर बैठा नहीं । बुधिया झल्लाकर घास काटने चली गयी । घास सिर पर लादकर आयी और दरवाजे पर पटक दी । तब तक दीनु बोला अरे बाप रे नीम का पेड़ उपर गिर रहा क्या ?
बुधिया-अरे कहां नीम का पेड़ गिर रहा है ।उठो दोपहर होने को आ गयी ।
दीुन-अरे सो लेने दे बहुत दिनों के बाद तो आज नींद आयी है । तू भी सो जा रोज तो हाड़फोड़ते ही है एक दिन नही फोड़ेगे तो कौन सा पहाड़ टूट पडेगा ।
बुधिया- अच्छा बच्चों को बिलखता हुआ छोड़ दूं । भैंस,बकरी चिल्ला रही है सब छोड़ दूूं तुम्हारे बगल में सो जाउूं। तुम्हारा दिन रंगीन करूं । हे भगवान किस गुनाह की सजा दे रहे हो कहते हुए बुधिया रोने लगी ।
दीनु- अरे भागवान क्यो आसमान सिर पर ले रही हो । एक दिन नही खायेगे तो मर तो नही जायेगे । गम तो भूला लेने देती कुछ देर के लिये । जब से आंख खुली है गम में तो जी रहा हूं ।
कनुवा -दीनु का नन्हका बेटा बोला मां दादा को चढ गयी है क्या । दही गुड़ नन्दु काका के घर से मांग लाउूं क्या ?
बुधिया- तू रहने दे बेटा मैं ही जाती हूं । बुधिया नन्दु के घर गयी थोड़ी दही मांगी लायी और गुड़ के कुण्डे से थोड़ा गुड निकाल लायी और दीनु को देते हुए बोली लो दही गुड़ खा लो तुम्हारे गाल भर धुयें का असर कम हो जायेगा । नही भैंस के गोबर की तरह तुम्हारी टट््टी भी हमें फेंकनी पड़ेगी ।
इतने में महंगुवा आ गया । दीनु को गुड़ दही चाटते हुए देखकर बोला मां अभी नही उतरी दादा की नषा क्या ?
बुधिया-कैसे उरतरेगी । एक बैठे सात चिलम चट कर गए उपर से एक पूरी पन्नी भी डकार गये । पेट में रोटी नही बस गांजा दारू तो भरा है । नषा नही तो और क्या करेगा ?
दीनु को ऐसी चढी है कि उतर नही रही है बस्ती के घर घर तक बात पहुंच गयी । देखते ही देखते पूरी बस्ती़ इक्ट्ठा हो गयी । सभी लोग अलग अलग तरह से नषा उतारने के नुस्खे बताने लगे । इतने में छनुवा आ गया आव देखा ना ताव भैंस की हौंद का सानी पानी बाल्टी भर कर लाया और उड़ेल दिया दीनु के कपार पर । दीनु जोर जोर से गाली देने लगा और इक्ट्ठा भीड़ खिलखिलाकर हंस पड़ी ।
दीनु-अरे अक्ल के दुष्मन क्यों मेरा सपना भंग कर दिया ।
बुधिया-सपने में तुम राजा थे और ये सारे लोग तुम्हारी प्रजा । चारो ओर तुम्हारी जय जयकार हो रही थी ।
दीनु-हां ऐसा ही सपना था तुम भी तो मेरे साथ सिंहासन पर बैठी थी ।
बुधिया-तब तो खजाने की चाभी तुम्हारे हाथ लग गयी होगी । तुम दौलत अपने आधा दर्जन बच्चों में बांट भी रहे होगे । पढने के लिये विदेष भेजने की योजना बना रहे होगे । प्रजा के सुख के लिये चिन्तित थे ।
दीनु- तुम तो एक एक बात सही सही बयान कर रही हो ।
बुधिया-क्यो ना चक्रवर्ती महाराज ये चिथड़ा लपेटे महारानी तुम्हारे बगल में जो बैठी थी । अरे सपने देखने से कुछ नही होता । असलियत तो ये है कि बच्चों के तन के कपड़े तार तार हो हो रहे है। भूख से बिलबिला रहे है तुम हो कि नषे में डूबे राजा बन रहे हो , कहते हुए वह फफक फफक रोने लगी ।
दीनु-चुपकर क्यों मेरी इज्जत का जनाजा निकाल रही है । मेरा नषा पानी तुमको इतना ही खराब लगता है तो छोड़ दूंगा ।
बुधिया-रोटी गले से नीचे नही उतरती। कहते है पेट में गैस हो रही है । घोडे़ का मूत दारू मिल जाये तो कई ड्रम खाली कर दें। गांजे का गाल भर भर धुआं मिल जाये तो सोने पर सुहागा । इतने में घासी आ गया । दीनु बुधिया क्यों बरस रही है । काम पर नही गये इसलिये क्या?
दीनु-कुछ नही बस योहिं बरस रही है । खैर उसका हक है । अभी तो बाढ के पानी के माफिक है। कुछ देर में गंगाजल हो जायेगी ।
दीनु और घासी की बात को अनसुना करते हुए बुधिया साड़ी के पल्लू में मुंह छिपाकर अन्दर चली गयी ।
घासी -कुछ माल बचा है क्या दीनु ?
दीनु-तनिक सा तो है बड़े भइया पर देख रहे हो बुधिया आग बबूला हो रही है । मैं तुम्हारी बात को कैसे टाल सकता हूं ।
दीनु और घासी हंसी ठिठोली कर खूब गाल भर भर धुआं उड़ाये । घासी धंुआं उगने में ऐसे खासने लगे जैसे उसकी आंत बाहर आ जायेगी । घासी धुयें के साथ घोड़न की घरवाली की बुराई करने से भी नही चूक रहा था । जोरदार कस्स लेते हुए बोला भगवान घोड़न की घरवाली जैसी झगड़ालू घरवाली किसी जन्म में मत देना भले ही कुंआरा मर जाउूं । घासी और दीनु जी भर कर धुआं उड़ाये । गांजा खत्म हो जाने पर घासी ने चिलम और गिटक को खूब रगड़-रगड़ कर चमकाया । चिलम और गिटक को रगड़ कर साफ करते हुए घासी को देखकर बुधिया बोली जेठजी घर में गिलास भर तक नही लेकर पीते देखो चिलम कैसे साफ कर रहे है । अरे इतनी सेवा जेठानी की करते ।
घासी -उडा ले मजाक बुधिया ना जाने किस मोड़ पर कब खो जाउूं ।
बुधिया-जेठजी जितने दीवाने गजेड़ी गाल भर धुआं के होते है उतने दीवाने घर परिवार के होते तो कितना अच्छा होता ?
घासी -कह ले बुधिया जो कहना चाह रही हो। कल किसने देखा है । कल रहूं या ना रहूं।
बुधिया- जेठ जी ऐसी बात क्यो कर रहे है ? आप तो जीओ हजारो साल ।
घासी -बुधिया जिन्दगी कब धोखा दे दे कोई कुछ नही कह सकता । दीनु अब मैं घर चलता हूं । अंधेरा पसर गया तुम भी रूखा सूखा खाकर अराम कर । कल काम पर जरूर जाना । अरे अपने पास सरकारी नौकरी तो है नही यही सेर भर मजदूरी का भरोसा है । इतना भी गम भूलाने के लिये मत पीया करो कि काम बन्द हो जाये ।
दीनु-याद रखूंगा भइया आपकी नसीहत । भइया घर तक छोड़ आउूं ।
घासी -नही रे पहुंच जाउूंगा । तू तो बुधिया का ख्याल रख । बहुत दुखी लग रही है ना जाने क्यूं ?
घासी दीनु के साथ गांजा पीकर गया फिर ऐसा पलंग पर पड़ा कि कभी नही उठ सका । लकवा ने उसके तन पर ऐसा घातक प्रहार किया कि खटिया पर ही टट्टी पेषाब सब कुछ साल भर किया और अन्तत- सड़कर मर गया ।
बुधिया घासी की दर्दनाक मौत देखकर टूट गयी । उसे बुरे बुरे सपने आने लगे । उसने तय कर लिया कि वह दीनु का गांजा पीना छुड़वाकर रहेगी । लाख समझाने के बाद भी दीनु गांजा नही छोड़ने को तैयार था ।
दीनु-गांजा के अलावा और कुछ तुमको नही सूझता क्या?
बुधिया-मेरी बात मान जाओ गांजे की मुटठी भर आग में ना तुम सुलगो और ना घर परिवार को सुलगाओ। जेठ जी की मौत से कुछ तो सीख लेते । मेरी बात नही माने तो एक दिन बहुत पछताओगे ।
दीनु-तुम मुझे श्राप दे रही हो ?
बुधिया-कोई पत्नी अपने पति को श्राप दे सकती है क्या ? नषे की मुट्ठी भर आग ने बहुत कुछ सुलगा दिया है तुमने अभी तक। जो खर्चा गांजा दारू पर कर रहे हो वही खुद की सेहत पर करते । बच्चों को पढाने लिखाने पर करते । अरे हम छोटे लोग गरीब,षोशित, भूमिहीन लोग है न रहने का ठिकाना है ना खाने का । खेत मालिको के खेत में हाड़फोड़कर जो सेर भर कमाकर लाते है उसी में सब कुछ देखना है कपड़ा,लता दुख दर्द । तुम हो कि कल की सोच नही रहे हो मेहनत की कमाई गाल भर धुयें में उड़ाते जा रहे हो । मैं मर गयी तो तुम्हारा ख्याल कौन रखेगा । बेटिया अपने घर परिवार में रम जायेगी । बेटा पढ लिखकर कही परदेसी हो गया तो ।
दीनु-अच्छा ही होगा इस नरक से तो बच्चों को छुट्टी मिल जायेगी ।
बुधिया- मैं भी यही चाहती हूं पर तुम्हारे बारे में सोचकर डर जाती हूं । मैं मर गयी और तुम ऐसे ही गांजा दारू के दीवाने रहे ,अगर जेठ जी जैसे तुम को कुछ हो गया तो तुम्हारा क्या होगा कहते हुए बुधिया की आंखे डबडबा गयीं ।
दीनु-क्यो मन छोटा कर रही है । तुमको कुछ नही होगा ।
बुधिया- महंगु के दादा मैं ज्यादा दिन नही रह पाउूंगी ।
दीनु-ऐसा क्यो बोल रही हो ?
बुधिया-महंगु के दादा मालूम है एक दिन मैं सपने में जोर की चिल्लायी थी । नन्हका मेरी चिल्लाने की आवाज से रोने लगा था ।
दीनु-वह तो तुम सपने में चिल्लायी थी ।
बुधिया-वही सपना अब बार बार आने लगा है ।
दीनु-कैसा सपना ?
बुधिया- एक काला कलूटा राक्षसनुमा आदमी भैसे पर सवार होकर आता है और अपने साथ चलने को कहता है ।
दीनु-क्या ?
बुधिया-हां ।
दीनु-पगली सपने सच थोड़े ही होते है ।उल्टा ही होता है। मैं सपने में राजा बन जाता हूं । अगर सपने मे सच्चाई होती तो हम राजा यानि आज के मन्त्री ना बन गये होते कब के ? मन्त्री सन्त्री किसी राजा से कम होते है क्या ? पर देख ना पेट भरने का इन्तजाम नही है ।
अचानाक एक दिन बुधिया बेहोष होकर गिर पड़ा । दीनु और बस्ती वाले गांव से बहुत दूर सरकारी अस्पताल लेकर गये । उपचार के बाद तनिक होष तेा आया पर फिर बेहोष हो गयी । डाक्टरो ने कहा बीमारी बहुत पुरानी है । अस्पताल आने में बहुत देर हो गया है । अब कुछ नही हो सकता । डाक्टरों ने घर ले जाकर सेवासुश्रुशा करने की हिदायत देकर अस्पताल से छुट्टी दे दी । बुधिया को मरणासन्न अवस्था में घर लाया गया । जामुन के पेड़ की छांव में लेटा दिया गया । जहां आधी रात होते होते बुधिया का तन एकदम बरफ हो गया । बुधिया का क्रिया कर्म रजगज से हुआ । मरणोपरान्त बस्ती वालों ने बुधिया को देवी की उपाधि दे डाली । दीनु को बुधिया के कहे गये एक षब्द याद आने लगे । वह बच्चों से चोरी छिपे आंसू बहा लेता । कभी-कभी तो दीनु को ऐसा लगने लगता कि बुधिया चिलम छिन रही हो ।
एक दिन सुबह घोड़न,किषोर,बरखू, सरखू,सन्तु रोज की भांति गांल भर भर धुआं उडा़ने के लिये दीनु के दरवाजे पर इक्ट्ठा हुए । दीनु मड़ई में खोसी गांजे की पोटली निकालने गया पर क्या उसे लगा कि बुधिया उसके सामने खड़ी है और पोटली छुने से मना कर रही है । गांजा की पोटली लेने में बुधिया से दीनु की हाथापांई तक हो गयी । वह मड़ई में से पसीने से तरबतर निकला गांजा की पोटली और घोड़न के हाथ से चिलम छिन कर जोर से दूर फेक दिया ।
घोड़न- भइया ये क्या कर दिये इतना सारा माल फेंक दिये ?
दीनु-यह बहुत पहले करना था । देवी समान घरवाली को मेरी वजह से बहुत तकलीफ हुई । गाल भर धुआं के चक्कर में उसकी तकलीफ पर ध्यान नही गया । आज से गांजा दारू ही नही हर तरह की नषा का त्याग करता हूं । आज बुधिया की आत्मा को जरूर सकून मिलेगा । अब नहीं गाल भर धुयें में उडाउूंगा जीवन और न दूसरों को उड़ाने दूंगा। नषा चाहे कोई हो दारू चरस, बीड़ी ,सिगरेट, तम्बाकू या गांजे का गाल भर धुआं सब देते है बर्बादी लेते है जीवन । मुर्दाखोर नषा के औजार घर परिवार के सुख में तबाही की भरते हैं घोड़न । लगा लिया ।
डां.नन्दलाल भारती
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