धनिया दादी मर गयी । यह खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गयी।वही तो थी एक धनिया दादी जो किसी के घर नातहित आने या परदेसी के आने की खबर सुनकर तुरन्त पहुंच जाती थी भले ही बहु बेटे भला बुरा कहे । इससे वे बेखबर रहती थी क्योंकि बेटे बहुओं का भला बुरा सुनने की आदत जो पड़ गयी थी । घर में उनकी कोइध््र सुनने वाला भी तो न था । जगु दादा साल भर पहले ही तो धनिया दादी को छोड़कर भगवान के पास चले गये । जगु दादा के मरते ही धनिया दादी के इतने बुरे दिन आ गये थे कि भर पेट रोटी के लिये तरसने लगी थी दो दो जवान कमासुत बेटे के रहने के बाद भी कभी कभी तो फांके में दिन बिताने पड़ते थे पर धनिया किसी से कुछ न कहती । औलादें सुख की रोटी देने बजाय बेचारी विधवा धनिया दादी हाथों पर जैसे आग परसती हो । बेचारी चुपचाप औलादों का जुल्म सहती रहती । तन्दुरूस्त और खुश रहने वाली धनिया दादी पर जगुदादा के मरते ही मुसीबतों का पहाड़ गिर पड़ा ।बेटे बहुये एकदम से नजर फेर लिये ।इन्ही बेटों के लिये धनिया दादी संयुक्तपरिवार से अलग हुई थी । दुनिया की सभी सुविधाये अपने बेटो को उपलब्ध कराती थी ।बेटों की नादानी को जगुदादा क नही पहुंचने देती थी । जगुदादा ‘ाहर में अच्छी नौकरी करते थे । धनिया दादी बेटों के आगे बढने के लिये हर सम्भव प्रयास करती दोनो बेटों को बड़ा अफसर बनाना चाहती थी ।दो बेटे ही तो थे बेटी एक भी न थी दहेज का भय भी न था । बस यही उद्देश्य था कि बेटे पढ़लिखकर बडे अफसर बन जाये। जगुदादा भी बेटों की हर फरमाईश पूरा करने के लिये एक पांव पर खडे रहते थे ।धनिया दादी भी तनिक कम ना थी बेटों के खाने की भर थाली में तैरता घी उन्हे सकून देता था । वही बेटे जुल्म पर उतर गये हट्ठी कट्ठी धनिया दादी भूख से मर गयी ।
जगुदादा रिटायरमेण्ट के बाद गांव आकर खेती करने लगे थे । बंजर भूमि में भी अनाज पैदा करने लगे थे । रूपया बेटों पर खर्च करते रहे पर कोई उम्मीद पर खरा नही उतरा । धीरे धीरे सारा रूपया सरक गया ।जगु दादा की आंखे ने धोखा देनेलगी और घुटने भी भार उठाने में थकने लगे ।इसके बावजूद भी जगुदादा खेती के कामों में लगे रहते । धनिया दादी बार बार समझाती पर वे नही मानते कहते जब तक हाथ पांव चल सकता है तब तक चलाउूंगा । जगुदादा से दूसरों का बुरा नही देखा जाता था । जहां बुराई देखे झट उठ खड़े हो गये । सुबह ‘ााम हुक्का खूब गुड़गुड़ाते थे हां खाली समय में भी तनिक परहेज नही करते थे ।कभी कभी धनिया दादी से नोकझोंक हो जाती थी तो वे बोलना बन्द कर देते थे पर धनिया दादी जहां खाने की थाली आगे रखे गुस्सा दूर कहते क्या तू आज मुझे खुश करने के लिये व्यंजन बनायी है । बहुत खुशबू आ रही है भले ही चटनी रोटी ही क्यों न हो ।
धनियादादी कहती अरे पहली बार तो नहीं बनायी हूं । तुम्हारी रोटी बनाते बनाते आंख भी जबाब दे रही है ।
जगुदादा- अरे हमे कहां अंधेरे में दिखता है ।
धनियादादी- खाना खाओ । हमें तो दिखता है ।देखो अब ना आंख दिखाना । मैं लड़ने की मूड़ में तनिक भी नही हूं ।
जगुदादा-भागवान हमेंे क्या सींघ जमी है कि लड़ूगा वह भी तुमसे कल से रोटी बन्द कर दी तो।किसके सामने हाथ फैलाउूंगा । अब तो खाना खिला दी एक और उपकार कर दे ।
धनियादादी-वह क्या.....?
जगुदादा-हुक्का भागवान और क्या..........?
धनियादादी-रोटी पेट में गयी नही हुक्का की तलब ।
जगुदादा-खाने के बाद हमे ही नही तुमको भी लगती है । जरा जल्दी ला दे खेत देखकर आता हूं ।
धनियादादी-हुक्का पी लो थोड़ी आराम करो क्यों बूढी हड्डियों को थूर रहे हो ।बहू बेटो ने ठुकरा दिया जीवन की आखिरी बेला में । अपनी तन्दुरूस्ती का भी तनिक ख्याल रखा करो । खटिया पर पड़ गये तो कौन पूछेगा। दो रोटी के लिये नस्तवान हो जायेगे ।आंख से वैसे ही कम दिखाई देने लगा है ।बुढौती की गाड़ी खुद को खींचना है कोई सहारा देने वाला नही है ।बेटवा पतोहूं तो जैसे सिर में जू निकाल कर फेंके वैसे ही फेंक चुके है ।
जगुदादा-अरेे क्यो कल की सोच कर आज परेशान हो रही है ।इतने बुरे तो अपने कर्म नही रहे कि खटिया पर पड़े पड़े रिरकेगे । भगवान की मर्जी के सिवाय कुछ नही होने वाला है । वही जैसा चाहेगा वैसा करेगा । हमने बेटों के पालन पोषण शिक्षादीक्षा में कोई कमी तो नही छोड़ी वही दुत्कार दिये तो और किसका भरोसा करे भगवान के अलावा ।जब तक हाथपांव चल रहा है तब तक को चलाते रहना होगा पेट परदा चलाने के लिये। आखिरकार धनियादादी को जगुदादा की बात माननी ही पड़ती जगुदादा भी तो ततर्कसंगत बात करते थे । धनियादादी ही क्या पूरे गांव के लोग उनकी बात मानते थे ।
धनियादादी- तन्दुरूस्ती देखकर काम किया करो ।शरीर को आराम तनिक दिया करो ।
जगुदादा-आराम अपनी किस्मत में लिखा होता तो बेटे दगा देते कहकर हुक्का का धुंआ हवा में उड़ा देते और धनिया देती से कहते भागवान गम को कम करने के लिये दिल दुखाने वाली बातों को ऐसे ही उड़ा दिया करो ।
जगुदादा की आखे बुढौती के सहारा की रकम अपनी तन्दुरूस्ती पर खर्च करवाकर तनिक रोशनी देने लगी थी । आंखों के आपरेशन के बाद जगुदादा और धनिया दादी की गृहस्ती की गाड़ी खींच रही थी कि जगुदादा के पेट में अचानक जानलेवा दर्द ‘ाुरू हो गया । गांव के नीमहकीमों की दवा बहुत दिनों तक खायें कोई आराम नही हुआ । थक हारकर मेहनगर के पास एक डांक्टर से इलाज ‘ाुरू करवाया । महीनों के इलाज के बाद कोई आराम नही हुआ तब डांक्टर ने आपरेशन की सलाह दी दर्द में तड़प रहे जगुदादा आपरेशन करवाने को तैयार हो गये । आपरेशन हो गया पर क्या घाव सुखने की बजाय पकना ‘ुारू हो गया । देखते ही देखते कीड़े पड़ गये पूरा पेट सडं़ने लगा ।जगु दादा नीम हकीम के चक्कर में फंसकर एक दिन दुनिया को अलविदा कर गये भरा पूरा परिवार होने के बाद भी धनियादादी लावारिस हो गयी ।
बेचारी धनिया दादी के उपर मुसीबतों का पहाड़ गिर पड़ा। जगुदादा के कमाये अन्न धन से धनियादादी जगुदादा का क्रियाकर्म पूरा की। जगुदादा के मरते ही धनियादादी बीमार रहने लगी । रोटी बनाये तो खाये कोई ण्क गिलास पानी तक देने वाला नही था जबकि बेटे बहूं सब एक ही हवेली घर में रहते थे । पहली पितृविसर्जन के दिन बेटे बहुओ की राह ताकते ताकते थक गयी तो खुद दौड़धूप कर बाजार हाट से सरसमान लाकर जगुदादा के पसन्द की व्यंजन बनाकर दोनी निकाली थी जबकि यह विधान बेटेां को सम्पन्न कराना था । बेटो ने तो एक घूंट पानी भी नही गिराया बाप के नाम पर ।
मुसीबत की मारने धनियादादी को लाचार कर दिया । बेटे बहुओ का जुल्म बढने लगा उसी धनियादादी पर जिसने सारी पूंजी बेटों को राजा बनाने के लिये स्वाहा कर दी थी आज वो रोटी के लिये तरसने लगी थी ।जगुदादा की चोरी बेटों को एक रूपये की जरूरत होने पर दो दे देती ।आज वही धनिया पेट की भूख से तड़पने को विवश थी । धनिया दादी की दुर्दशा देखकर बस्ती वालों ने दोनो बेटो किशन और बिहारी को खूब लताड़ा । किशन और बिहारी दोनों अपने साथ धनियादादी को अपने साथ रखने को तैयार न थे ।आखिरकार धनियादादी के बंटवारा हो गया हफते हफते भर के लिये दोनो के बेटों के बीच पर धनियादादी को दो चार दिन तो फांके करने ही पड़ जाते थे । बासी-तिवासी रोटी धनियादादी को मिलती । धनियादादी को लगता कटोरी में रोटी नही मुट्ठी भर आग परोसी हो पर क्या करे पानी में गीली कर पेट में डाल लेती पर किसी को भनक तक नही लगने देती थी । हुक्की तम्बाकू की ‘ाौक आसपड़ोस में बैठकर पूरा कर लेती थी ।
धनियादादी महीने भर बीमार रही । कोई दवादारू का इन्तजाम नही किया बेटो ने न ही उनके खानपान पर ध्यान दिया । बेचारी पेट में भूख लिये मर गयी ।
दोनेां बहुये गुणगान कर रो रही थी । दोनो बेटे दो तरफ मुंह करक बैठे थे । धनियादादी का मृत ‘ारीर धूप में सूख रहा था । आकाश में चील कौवे मड़रा रहे थे । दोनो बेटा दाहसंस्कार के जिम्मा एक दूसरे पर थोप रहे थे । कफन दफन के खर्चे से बचने की कोशिश कर रहे थे । गावं वालेां की किशन और बिहारी की नियति का पता लग गये वे धनियादादी के कफनदफन के लिये चन्दा इक्ट्ठा करने में जुट गये । इसी बीच सुरतीनाथ ने कन्हैया को भेजकर धनियादादी के मरने की खबर उसके भाई छमरू तक पहुंचा दी । खबर लगते ही छमरू चार आदमी के साथ आ गये । भांजांे की बेरूखी और बेगानापन देखकर दंग रह गये ।गांव वाले धनियादादी के मृतदेह का अन्तिम संस्कार बनारस ले जाकर करने की पूरी तैयारी कर चुके थे । छमरू गंाव वालेां के प्रति आभार प्रगट करते हुए बोले मेरी बहन मरी है । मैं सारा खर्च वहन करूंगा । भांजों ने तो लाश को गिध्द कौवों को देने का इन्तजाम कर लिया था ।
कुछ ही देर में गाड़ी आ गयी । धनियादादी के मृतदेह का अन्तिम संस्कार बनारस में हुआ । भाई छमरू ने मुखाग्नि दी ।
बस्ती वालों एक दूसरे से कह रहे थे क्या जमाना आ गया है अपनी औलाद जीते भूख से तड़पातड़पाकर मार रही है और मरने पर गज भर कफन तक देने को राजी नहीं हो रही है । कैसे बुढौती कटेगी भगवान ......?
मां बाप औलाद से यही उम्मीद करते है कि उनकी लाश पुत्र के कंधो पर ‘मशान तक जाये । इसी दिन के लिये तो खुद तकलीफ सहते है औलाद तक दुख की परछाई भी नही पहुंचने देते है । औलादे खुद को बचाकर बूढे ,लाचार मां बाप के कांपते हाथों में मुट्ठी भर भर आग परोस रही है ।
गांव वालों की बाते सुनकर पहलू काका बोले मां बाप धरती के भगवान होते है उन्हे दुख देने वाला कभी भी सुखी नही रह सकता । भगवान के घर देर है अंधेर नही भगवान सब कुछ देखता है । जुल्म करने वाला खुद गवाह होता है जैसी करनी वैसी भरनी । एक ना एक दिन किये का फल मिलेगा । किशन और बिहारी ने जो किया है उसको देखकर कफन भी कराह उठा होगा । ऐसी औलादे रहने से बेहतर है कि आदमी बेऔलाद रहे। औलाद के गज भर कफन के लिये मां की लाश तरस गयी । भगवान ऐसी मुर्दाखोर औलादें किसी को न देना कहते हुए पहलू काका बाढ़ रोकने के लिये आंखों पर गमछा डाल लिये।
। डां.नन्दलाल भारती
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