सपने में हो क्या नेकचंद ?
जी कुछ ऐसा ही समझ लीजिए ।
मुंगेरीलाल के सपने तो नही ?
ऐसा भी कह सकते हैं क्योंकि मैं आज़ादपुर की एक दुकान में डिस्प्ले हो रहे कपड़े को देखकर ललचाया था, मन उसी विचार में डूबा था काश उस वक़्तमेरे पास पैसा होता तो यह शूट बेटा के लिए खरीद लेता, तब मैं बेरोजगारी के बुरे दौर से गुजर रहा था।
अब तो सब कुछ पा लिए, फिर कैसा अफसोस ?
बेटा की निगाहों में अब गंवार कैसे हो गया, उसी सोच में डूबा हूँ ।
आज की माडर्न जनरेशन है, आप गांव में दुख -दर्द अभाव में पले बढ़े पढ़े,खुद दुख उठाये बेटे को सर्वसुविधा दिए टाई शूट पहनाकर स्कूल-कालेज भेजें, ऊंची शिक्षा दिए।
सच है पर वही बेटा गंवार समझ रहा है, जो फैसले मुझे लेने चाहिए खुद लेने लगा है, मुझे धकिया कर।
वक़्त के साथ चलो नेकचंद,ये है पाश्चात्य दुनिया का प्रभाव।
बेटे में ऐसे बदलाव का तो कभी सपने में भी ख्याल नहीं आया था।
आ गया ना, इसे कहते है मॉडर्न जनरेशन गैप नेकचंद सिद्धार्थ बाबू सांस थामते हुए बोले।
सहारे की लाठी वक़्त से पहले टूट गई चिंताग्रस्त नेकचंद गहरी सांस लेते हुए बोले।
डॉ नन्दलाल भारती
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY