Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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घरोही

 

कुतरीदेवी-बेटा सुर्तीलाल तुम्हारी घरोही सांप बिच्छू की स्थायी निवास हो गयी है । कुछ लोग तो भूतहाघर कहने लगे है ।आसपास वाले का तो अतिक्रमण भी ‘शुरू हो गया है ।
सुर्तीलाल-काकी ज्रगह की तंगी की वजह स दूर बस झोपड़ी डालकर रहले लगा कि भाईयों को घर बनाने की जगह बनी रहे । पिताजी ना जाने कौन से परदेस चले गये कि लौट कर आये । दंबगो ने छल बल के भरोसे सारी खेती की जमीन हड़प लिये ।बीसा भर घरोही थी उस पर भी नजर आ टिकी है ।क्या करूं काकी ।
कुतरीदेवी-तेरा दद्र समझती हूं । तेरा बाप को दबंगो ने देश निकाला दे दिया। मुर्दाखोर पखण्डी लेखपाल ने सारी जमीन लिप पोत दी । पखण्डी ने तुम्हारे बाप का जीना मुश्किल कर दिया था ।बेचारे अत्याचारियों के खैंाफ से गांव छोड़ दिये फिर कभी ना लौटे ।
सुर्तीलाल-काकी पुराने घाव ना खुरच । घरोही के बारे में कुछ कह रही थी ।
कुतरीदेवी-बेटा तू कहता तो तुम्हारी घरोही की खाली जमीन पर गोबर पाथ लिया करती । परिवार की जमीन पर दूसरे कब्जा कर रहे है । देखा नही जाता । तुम्हारी घरोी की चिन्ता मुझे सता रही है । बेटा मैं नही चाहती की कोई कब्जा करे । अगर मेरी बात अच्छी लगे तो मुझे गोबर पाथने भर की जगह दे दो ।
सुर्तीलाल-काका घरोही तो मां बाप की निशानी है । जन्मभूमि तो जान से प्यारी होती है कैसे दे दूं ।
कुतरीदेवी-मैं एकदम से थोड़े ही मांग रही हूं । बस गोबर पाथने भर को मांग रही हूं इससे तुम्हारी घरोही की रखवाली हो जायेगी । अगर ऐसा ही रहा तो एक दिन सब आसपास वाले कब्जा कर लेगे हाथ मलते रह जाओगे ।
सुर्तीलाल-कैसे कोई हड़प लेगा चार नीम के पेड़ मां बाप की यादे है ।
कुतरीदेवी-बेटा देख तेरे भले की सोच रही हूं घरोही का तेरे पास कोई कागज तो नही है ।मैं पूरी देखभाल करूंगी तनिका चिन्ता ना करना । किसी को भर आंख देखने तक नहीं दूंगी ।बस मुझे गोबर पाथने और गोरू चउवा बांधने की इजाजत दे दो बेटा सुर्तीलाल । मान जा मेरी बात ।बाप दादा की इतनी बड़ी खेतीबारी चली गयी बीसा भर घरोही है वह भी कोई किसी दिन हड़प लेगा ।
सुर्तीलाल-काका डर लग रही है । मां बाप आत्मा उसी घरोही में बसी होगी । कैसे तुमको सौंप दूं ।
कुतरीदेवी-बेटा तेरी घरोही तेरी रहेगी । हमें कब्जा नही करना है । मैं तो बस इतना चाहती हूं कि तुम्हारे बापदादा की निशानी बची रहे ।
सुर्तीलाल-काकी गोबर पाथने में गोरूचउवा बांधने में कोई दिक्कत नही है पर तेरे बेटो ं की नियति में खोट आ गयी तो ।काकी चार बीसा जीमन है घरोही की ।
कुतरीदेवी-ना बेटा ना मेरे बेटे मेरी जबान कभी नही काटेगे ।
सुर्तीलाल-काकी खून के रिश्ते की हो देखना विश्वास नही तोड़ना ।
कुतरीदेवी-यकीन कर बेटा ।खून के रिश्ते की छाती में भाला घोपकर क्या चैन से मर सकूगी ।बेटा मुझे नरक जाने का कोइ्र्र इरादा नही है नही तुम्हारी घरोही हड़पने को । परिवार को इसलिये तुमसे अपने मन की बात कह दी । देना ना देना तुम्हारी मर्जी घरोही तो तुम्हारी है ।
सुर्तीलाल-तेरी जबान का विश्वास तो मैं कर लूंगा पर तेरे बेटे तेरी जबान काट दिये तो ।
कुतरीदेवी-बेटी ऐसी नौबत नही आयेगी ।मैतुम्हारी मुट्ठी में आग नही भरूंगी नेकी के बदले ।
सुर्तीलाल-पाथ ले गोबर बांध ले गोरू चउवा पर काकी नियति खराब नही करना । अगर नियति खराब की तो मेरी घरोही पर कोई सुख से नही रह सकेगा । एक गरीब का ब्रहम मुहुर्त में कहा गया वाक्य खाली नही जायेगा ।
कुतरीदेवी-हां बेटा जानती हूं आजकल तुम्हारी जबान पर ब्रहमा बैठते है । तुम्हारी विश्वास नही टूटेगा ।
सुर्तीलाल-विश्वास तोड़ने वाले हमेश तकलीफ में रहते है । यहां तक की दीया बत्ती करने वाले नही बचते काकी तू तो जानती है इतिहास भी गवाह है । जा तुमको गोबर पाथने भर के लिये घरोही का उपयोग कर काकी ।
कुतरीदेवी-सुखी रह बेटवा कहते हुए घर गयी । आसपास वालों को सुनाते हुए दूर से आवाज लगाते हुए बोला ला धोखू बेटा फरसा सुर्तीलाल की घरोही के सामने का घासफूस सांफ कर दे कल से यही गोबर पाथना है । गोरूचउवा भी यही बांधेगे ।
धोखू- क्या कह रही हो माई सुर्तीलाल भईया गोबर पाथने देगे क्या ?
कुतरीदेवी-हां क्येां नही घण्टा भर से तो सिफारिस कर रही थी सुर्तीलाल की । मानता नही तो क्या करता ।ऐसी घड़ियाली आंसू रोयी हूं कि उसका दिल पसीज गया है ।एक दिन ये घरोही अपनी होगी धोखू ।ीाले ही खून बहाना पड़े ।
धोख-माई भइया की घरोही अपनी कैसे होगी ।
कुतरीदेवी-चुपकर मूरख कोइ्र्र सुन लेगा । घासफूस काटकर साफ कर और कचरा सुर्तीलाल की बंसवारी में डाल दे। बंसवारी को भी कब्जे में एक दिन लेना है ।
धोखू-मां तू तो अपनी मोहरे चलती रहना हमे तो झाूला डालने के लिये नीम का पेड़ मिल गया । नागपंचमी के दिन यही झूला डालूंगा । सुर्तीलाल भइया के बच्चेां को भी लाकर झूलाउूंगा ।
कुतरीदेवी-जो करना दिल खोलकर करना ।अब तो तुमको करना बाकी है । मुझे जो करना था कर दी ।अभी तो मेरा हाथ बंटाओ । फरसा से जमीन जमीन छिल कर बरोबर कर दो । मैं खटिया डालने के लिये गोबर डाल देती हूं । दो घण्टे भर में तो कुतरीदेवी ने बिल्कुल साफ कर दी ।
मां का हाथ मशीन की तरह चलता देखकर धोखू बोला सब काम आज कर डालोगी क्या माई । कुछ कल के लिये भी तो छोड दे । मैं तो थक गया हूं ।
कुतरीदेवी-कल सुर्तीलाल बदल गया तो । साफ सफाई हो गयी चार खांची घूर में से गोबर उठाकर ला बेटा आज कुछ उपले बनाकर खड़ा कर देती हूं ।
धोखू-ठीक है माई जैसा कहो वैसा करूंगा ।
कुतरीदेवी ने ‘ााम होते होते गोबर पाथकर उपले भी खड़े कर लिये ।दूसरे दिन से तो आसपास वालों का आनाजाना बन्द करने लगी जैसे सुतीध््रलाल की घरोही उसने खरीद ली हो ।आसपास वालो को कुतरीदेवी का नियति में खामी दिखी ।हर आदमी कुतरीदेवी से पूछता क्या सुर्तीलाल ने घरोही तुमको दे दी ।
कुतरीदेवी- हंसहंसकर हां में जबाब देती ।
कुतरीदेवी आसपास वालों का सवालो से वह तंग आकर रात के अंधियारे में हैरान परेशान का स्वांग रचकर सुर्तीलाल के पास पहुंची ।
सुर्तीलाल बोला क्या हुआ काकी किसी से झगड़ा करके आ रही हो ।
कुतरीदेवी-हां बेटा देखो हरहिया और उसके परिवार के लोग मारने के लिये दौड़ा रहे है बीच घरोही से रास्ता मांग रहे है ।
सुर्तीलाल-काकी बीच घरोही से रास्ता कैसे दे सकते है ।बाप दादा की निशानी किसी को कैसे हड़पने दूंगा ।
कुतरीदेवी- बेटा तू चिन्ता ना कर किसी की दाल नही गलने दूंगी तू तो बस चार छ- बासं मुझे दे दे। बांस का पैसा भले ही ले लेना । मैं दे दूंगी फोकट में नही मांग रही हूं सुर्तीलाल ।बाउण्डरी बना देती हूं। हरमजादो का रास्ता बन्द कर देती हूं ।देखती हूं कौन क्या करता है । अरे राहजनी तो नही मची है कि कोइ्र्र किसी की घरोही पर जर्बदस्ती कब्जा कर लेगा ।
सुर्तीलाल-काकी ऐसे कैसे हो सकता है कि मैं बीच घरोही में से रास्ता दे दूं ।
कुतरीदेवी-बेटा तू चिन्ता ना कर तेरी घरोही की ओर कोइ्र आंख उठाकर मेरे जीते जी देख भी नही सकता है ।
सुर्तीलाल-चल देखता हूं कौन मेरी घरोही के बीच से रास्ता मांगता है ।
कुतरीदेवी-ना बेटा तू ना चल तू तो वेसे ही मुसीबत का मारा है । मैं देख लूंगी । तू तो बस कुछ बांस दे दे ।
सुर्तीलाल-जा काकी बंसवारी से जितना बांस लगे बाउण्डरी में काट ले । काकी अकेला आदमी किस किस से झगड़ा करूंगा ।
कुतरीदेवी-बेटा झगड़ा लड़ाई से कुछ मिला है । किसी के बाप की जमीन तो है नही कि जो मुंह उठाकर आये तुम उसे दे दो ।
सुर्तीलाल-जा काकी मेरी बंसवारी से बांस काटकर कर लो बाउण्डरी । कुछ नीम के पौधे लगाकर आया हूं े भी बंच जायेगे ।बकरी नही खायेगी बाउण्डरी हो जाने से ।
कुतरीदेवी-बाउण्डरी हो जाने से उपले भी उधमी बच्चे नही तोडे़गे । ओसाई मड़ाई का काम भी कर लिया करूंगी ।
सुर्तीलाल-ठीक है काकी कर लेना ।
धीरे धीरे दस साल बित गये । कुतरीदेवी का बेटा धोखू बालबच्चेदार हो गया । कुतरीदेवी के मन में पाप घर कर गया वह एक दिन गोधूलि बेला में रोनी सूरत बनाकर सुर्तीलाल के घर गयी और बोली बेटा एक मंड़ई डालने की इजाजत दे दो जब तुमको जरूरत होगी तो हटा लूंगी ।
सुर्तीलाल -काकी मेरे भी बाल बच्चे है चार भाईयों का परिवार है आज बाहर हे कल आयेगे तो उनको भी तो जरूरत होगी घरद्वार की । कैसे मंड़ई रखने दूं । ना काकी ना मंड़ई तो रखने की बात ना करो ।
कुतरीदेवी गरज कर बोली मंड़ई तो डालकर रहूंगी ।देखती हूं कैसे रोकता है ।
सुर्तीलाल-काकी तू क्या कह रही है मेरे बाप दादा की विरासत तो यही घरोही बची है । उस पर भी तुम जबरिया कब्जा करने की कह रही हो ।काकी घरोही तो हमारे लिये देवस्थान के बराबर है । तू हड़पना चाह रही हो । इसके लिये तो मेरी लाश पर से तुमको गुजरना होगा ।
कुतरीदेवी-सुर्तिया जरूरत पड़ी तो वह भी कर सकती हूं ।घरोही पर मेरा कब्जा है पूरी बस्ती जानती है जोर जोर से चिल्ला चिल्लाकर कहने लगी ।
सुर्तीलाल- काकी मेरे बाप दादा की आखिरी निशानी पर तेरी गिध्द नजर पड़ गयी ।काकी मेरी यकीन को ना तोड़ मैने तेरे उपर विश्वास किया तू धोखा दे रही है ।
सुर्तीलाल की बात सुनते ही कुतरीदेवी झूठमूठ में जोर जोर से रोरोकर कहने लगी देखो बस्ती वालो सुर्तीलाल मुझे बेइज्जत कर रहा है । मेरी साड़ी फाड़ रहा है । झूठमूठ में बखेड़ा खड़ाकर रोते हुये अपने घर की ओर भागने लगी ।बस्ती वालो कुतरीदेवी की करतूत पर थू-थू कर रहे थे । दूसरे दिन सुबह अच्छे,कच्छे,सन्पति,जीवा,घिसुन जैसे और कुछ बदमाश किस्म को लेकर सुर्तीलाल की बांस की खूंटी से ढेर सारे बांस काटी और सुर्तीलाल की घरोही पर मड़ई रखकर जबरिया कब्जे की तैयारी कर ली ।कुतरीदेवी की करतूत की भनक सुर्तीलाल को लगी वह घरोही पर गया । कुतरीदेवी उसे देखते ही हंसिया लेकर मारने दौड़ पडी । कुतरीदेवी के आदमी लाठी डण्डा लेकर मारने के लिये दौड़ पड़े । बेचारा सुर्तीलाल जान बचाकर भागने लगा । इतने में एक बड़ा से ईंट का टुकड़ा उसके सिर पर लगा और सिर से खून की धार फूट पड़ी । वह बड़ी मुश्किल से जानबचाकर घर पहुंचा। खून में लथपथ देखकर सुर्तीलाल की घरवाली और उसके बच्चे रोने लगे ।उधर कुतरीदेवी अपना ब्लाउज साड़ी फाड़कर थाने पहुंच गयी । बेचारा सुर्तीलाल गांव के प्रधान और अन्य बाबू लोागेां के सामने अपने बापदादा की आखिरी निशानी पर कुतरीदेवी के जबरिया कब्जा हटवाने की गुहार लगाया पर गरीब की किसी ने न सुनी । कुतरी देवी सुर्तीलाल के खिलाफ छेड़छाड़ का केस कायम करवा दी । पुलिस भी सक्रीय हो गयी । कुतरीदेवी का कब्जा हो गया । सुर्तीलाल की घरोही पर जबरिया कब्जा करके कुतरीदेवी मददगारों और असामाजिक तत्वों को भोज भी दे दी ।
सुर्तीलाल के सारे प्रयास विफल हो गये । प्रधान और बड़े लोग सुर्तीलाल को डांटते कहते तुम छोटे लोग तनिक तनिक बातों में लड़ने मरने लगते हो । भुगते कौन भुगतेगा । सुर्तीलाल कहता मैंने तो कुतरीकाकी को खून के रिश्ते की वजह से उसकी मदद किया था पर काकी ने तो मेरी घरोही छिनकर बेईमान के चिमटे से मुझे मुट्ठी भर आग दिया है । क्या यही न्याय है । बाबू लोग कहते जैसा किये हो भरो जब कुतरीदेवी को गोबर पाथने की इजाजत दिया था तो किसी से पूछा था । आज फंसी है तो बाबू लोग याद आये है । सुर्तीलाल कुतरीदेवी के बुने जाल में एकदम फंस गया । उसका टट्टी पेशाब के लिये भी घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया । कुतरीदेवी जान से मारने तक साजिश रच चुकी थी । एक दिन सुर्तीलाल हत्थे चढ़ गया । कुतरीदेवी के गुण्डे पीछे पड़ गये । वह आगे पीछे मौत को देखकर हिम्मत करके खड़ा हो गया । कुतरीदेवी सादा कागज लेकर आयी बोली ले सुर्तीलाल अंगूठा लगा नही तो जान से जायेगा या जेल में सडे़गा पुलिस भी आती होगी ।
सुर्तीलाल बोला-काकी कैसे अपने पुरखों से गद्दारी कर दूं ।
कुतरीदेवी- पुलिस को आता देखकर जोर से बोली बदमाश एक तो बुरी नजर डालता है दूसरे काकी कहता है । देखो कैसे भींगी बिल्ली सरीखे बोल रहा है । इतने में पुलिस के दो जवान आ गये । कुतरीदेवी बोली लो हवलदारसाहब मुजरिम आ गया है पकड़ में । यही बलात्कार की कोशिश करने वाला सुर्तीलाल ।साहब मेरे साथ बहुत बुरा सलूक किया मेरा ब्लाउज फाड़ दिया मैं इज्जत बचाकर भागी थी ।
सुर्तीलाल-साहब ये काकी मेरी घरोही हड़पने के लिये साजिश रची है । मां समान काकी को बुरी नजर से देख सकता हूं ।
हवलदार-क्यों बे तू सही कह रहा है ।
सुर्तीलाल-हां साहब बिल्कुल सही कह रहा हूं । कुतरीकाकी मेरी ही घरेाही पर मेरी ही बंसवारी से बांस काटकर जबरिया कब्जा कर रही है ।
हवलदार-क्या ?
सुर्तीलाल-हां साहब ।
कुतरीदेवी-साहब सुर्तिया झूठ बोल रहा है । मै अपनी जमीन पर मड़ई डाली हूं । ये सारे लोग है पूछ लो साहब.....
हवलदार-वहां हाजिर एक एक से पूछे सभी ने कहां कुतरीदेवी की घरोही है ।
कुतरीदेवी- और गवाही तो नही चाहिये साहब......
हवलदार-देखो सुर्तीलाल सुलहा कर लो । क्यो जेल में सड़ना चाहते हो बलात्कार का केस है । कागज पर अंगूठा लगा दो ।
सुर्तीलाल की कोई सुनना वाला न था वह आगे खाई पीछे मौत देखकर रोते हुए अंगूठा लगाते हुये बोला कुतरीकाकी हमारी घरोही तुमको आंसू के अलावा और कुछ न देगी । बाप दादा की विरासत में छोड़ी गयी घरोही पर कुतरीदेवी का जबरिया कब्जा हो गया । हवलदार बोला कुतरीदेवी मालिकाना हक भी तुम्हारे पास है । हमे साहब के सामने हाजिर होना है । समझ गयी ।
कुतरीदेवी न हवलदार को साहब के सामने हाजिर होने की ‘ाक्ति जेब में भर मुट्ठी डाल दी । हवलदार लोग मूछ पर हाथ फेरते हुए थाने की ओर चल पड़े । तनिक भर में भीड़ छंट गयी ।
कुतरीदेवी के उपर दैवीय प्रकोप ‘शुरू हो गये । कुतरीदेवी के बेटे धोखू की बुढौती की लाठी टूट गयी। बेटा धोखू पागल सा हो गया । कुतरीदेवी को जीते जी कीड़े पड़ गये । बहुत दुख भोगकर मरी । सुर्तीलाल भर भर अंजुरी यश बटोर रहा था । कुतरीदेवी की साजिश में ‘ाामिल वही लोग जो सुर्तीलाल के उपर लांछने लगवाये थे घरोही पर कुतरीदेवी का कब्जा करवाये थे वही लोग यह कहते नही थक रहे थे कि बेईमानी नरक के द्वार खोलती है । देखो सुर्तीलाल का ब्रहममुहर्त में कहा गया ब्रहम वाक्य खाली नही गया । नेक और सच्चे आदमी की मदद ईश्वर करते है, मर्दाखोर आदमी भले ही बद्नियति के चिमटे से क्यों न ईमानदार,सच्चे और कर्मठ आदमी मेहनत की कमाई में आग आग लगायें,एक दिन श्रम कनक की तरह चमक जाता है,और मुर्दाखोर चारो खाने चित।

 

 

डाँ नन्द लाल ’ भारती ’

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