अनु जब सुसज्जित कार से उतरी थी तो ऐसा लगा था जैसे भीमशरण के परिवार के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जुड़ जाएगा। अनु से जब कुलभूषण के माता-पिता लक्ष्मी -भीमशरण और अनु के माता-पिता कपिल और कांता की उपस्थिति में पहली बार जब अनु से बातचीत हुई थी तो लक्ष्मी को अनु के व्यवहार से ऐसा ही लगा था।लक्ष्मी और भीमशरण को लगा कि अब बहू की तलाश पूरी हो गयी भले ही अनु को अन्तर्जाल की एहसासी दुनिया से तलाशा गया है।अन्तर्जाल का ही तो युग है। खैर जान पहचान के रिश्ते अच्छे होते है, इस मुददे पर शक की गुंजाइश नहीं।रोजी रोटी के लिए बाहर निकल जाने पर शादी ब्याह में बहुत दिक्कतें आती हैं। अपने लोग भी रिश्ते तय करवाने से बचते हैं,अपयश का लोगों को डर रहता है, इसलिए परदेसियों के मामले में लोग हाथ खींच लेते हैं,
शहर प्रदेश का मामला जो होता है।अनु के माँ बाप भी अच्छे लगे।मन में उतर कर किसी को जांचा परखा तो नहीं जा सकता, इंसान कब शैतान बन जाये कहा नहीं जा सकता,मन की गिरहें खुलने पर ही पता चलता है।इसमें समय भी लगता है,आदमी की सही पहचान करने मे उम्र कम पड़ सकती है।इंसान चेहरा बदलने में गिरगिट से कई गुना तेज है।बेटा के ब्याह के लिए एक अदद लड़की की दरकार थी, बाकी दान दहेज़ से कोई सरोकार था नहीं।पढ़ाई लिखाई के मामले में लड़का तकनीकी में स्नातकोत्तर था लड़की विज्ञान में।रंग रूप दोनों का साफ सुथरा और मेल खा रहा था।अहम बात ये थी कि लड़की के माँ बाप लड़की यानि अनु को लेकर भीमशरण के घर बीस घण्टे की बस यात्रा कर आये।लक्ष्मी ने रात विश्राम का आमंत्रण दे दिया, वे लोग सहर्ष स्वीकार भी कर लिये थे,इससे आत्मीयता और बढ गई।
भीमा शरण के सामने संकट खड़ा हो गया,ना करना पाप होगा ऐसा विचार उसके मन में आने लगा, वह अपना विचार लक्ष्मी से साझा किया, लक्ष्मी बोली महादेव प्रसन्न हो जाओ, अनु अपने परिवार में रम जाएगी।मुझे भी भली लगती है,अनु और कुलभूषण की जोड़ी खूब जमेगी। हाँ बोल दो, कुलभूषण को भी पसन्द आ जायेगी, हाँ बोल दो जी बड़ी उम्मीद से लड़की को लेकर बेचारे आपके कहने पर आ गए है, अगर ना हो गयी तो लड़की की जग हंसाई हो जाएगी।भीमशरण की सबसे बड़ी कमजोरी थी वह हर लड़की को अपनी बेटी की निगाह से देखते थे, आदमी के मन की गिरहों के बारे में नहीं सोचते थे।अनु और उसके माँ बाप ने मीठा मीठा बोलकर सम्मोहित कर लिया, लक्ष्मी और भीमशरण ने हामी तो भर लिया,साथ मे यह भी कह दिया कि लड़के और लड़की दोनों की मुलाकात और सहमति के बाद रिश्ता तय होगा।अनु के माँ बाप को भी भीमशरण की बात जंच गयी।
लडकी पसंद आ गई, अनु और उसके माता पिता कपिल -कान्ता हंसी खुशी बेटी के साथ अपने शहर कानापुरम को प्रस्थान कर गये।अपने शहर पहुँचने के सप्ताह भर बाद से लडका लडकी कि पसंद जानकर जल्दी ब्याह कराना सुनिश्चित करें।दिन प्रतिदिन लडकी के पिता दबाव बनाने लगे।आखिरकार लडकी के बाप के अनुरोध पर देश के आखिरी कोने से कुलभूषण को बुलाना पडा। छुट्टी की कमी होने के कुलभूषण को हवाई यात्रा करनी पडी जो काफी महंगी पडी।भीमशरण को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पडा था।नोटबन्दी का समय था, रेल टिकट तो आनलाईन ले लिए गए थे इसके बाद के खर्च के लिये बडी मस्सकत हुई थी।
भीमशरण,कुलभूषण,और बेटी के साथ कानापुरम गए थे।लक्ष्मी और भीमशरण को तो अनु पहले से ही पसंद थी। बहन भाई को अनु अच्छी लगीं ।कपिल जबाब जानने को उत्सुक थे।कुलभूषण अपनी माँ से राय मशविरा कर जबाब देना चाहता था।लडकी के माँ बाप दबाव बनाने लगे ।वे बोले कई लडके के माँ बाप देख गए पर किसी ने जबाब नही दिया।
भीमाशरण बोले भाई साहब आपको तीन दिन के अन्दर खबर मिल जाएगी ।इसी बीच चाय नाश्ता आ गया । कुलभूषण चाय का कप उठाने लगा, तभी तपाक से अनु बोली आपके लिए मै अपने हाथो से काफी बनाकर ला रही हू। काफी पीते ही कुलभूषण बहन से बोला अनु सबको पसंद है तो हाँ क्यों नहीं हाँ बोल देते है। ना जाने काफी में अनु ने क्या मिला दिया कि कुलभूषण खुद आगे बढ़ बढ़ कर बातें करने लगा, आखिरकार तुरंत छेका भी हो गया ।ग्यारह सौ रूपया लडकी के बाप ने कुलभूषण के हाथ पर रख दिया ।कुलभूषण बोला डैडीजी एक रूपया से काम हो जाता ।पैसे की जरूरत नहीं है ।
बेटा रस्म है निभाना तो पडेगा कहते हुए कपिल ने कुलभूषण के हाथ पर ग्यारह सौ रूपया रख दिया था ।कुलभूषण सास ससुर और अनु के पर्ति अधिक वफादारी दिखाने लगा।भीमशरण को डर सताने लगा। कूलभूषण को जाल मे फसता हुआ कपिल के परिवार मे चौगुनी खुशी मिल रही थी ।उधर भीमशरण ने बिना दहेज़ के बेटे की शादी करने की शपथ ले लिया था।भीमशरण गिरहबाज कपिल परिवार की साजिशों से अनभिज्ञ था।वह तो नेक नियति से उच्च शिक्षित सुशील कुलबधू चाहता था जो घर परिवार को एकता के धागे मे पिरोकर उन्नति के रास्ते ले जा सके बस इतनी सी.ख्वाहिश थी पर इस पर भी ग्रहण लगता नजर आ रहा था ।धीरे धीरे कपिल का छल सामने आने लगा था ।निश्छल भीमशरण का परिवार आश्वस्त था अनु ब्याह के बाद गृहस्थ जीवन की बारीकियों और अपने उत्तरदायित्वों को समझ जाएगी । ज्यादा उदारता भीमशरण परिवार के लिये काल बनने लगी।कपिल परिवार अपनी ही जबान का विरोधी हो गया।अनु को जितना सुलक्षणा बताया था उतना ही कुलक्षणा निकली।
अनु सुसज्जित कार से उतरी थी तब भीमशरण का पूरा कुनबा झूम उठा था ।अनु के स्वागत सत्कार मे बडे भोज का आयोजन हुआ था।हजारों लोग शामिल हुए थे।दूल्हा दूल्हन के लिये स्टेज बना था।बेटे कलभूषण की शादी पर भीमशरण ने कोई कंजूसी नहीं किया था। भीमशरण को दुख था कपिल द्वारा अपने परिवार की उपेक्षा और अपमान का। सबसे बडे दुख की बात यह थी कि कुलभूषण भी ससुराल वालो मे शामिल हो गया था।ब्याह के समय भी कलभूषण को नहीं पूछा गया। फोटो और विडियों शूटिंग के समय तो अनु के बाप ने भीमशरण और उसके परिवार की परछाईं से परहेज़ किया ।कुलभूषण को बहन,भाई,पिता,एवं उन रिश्तेदारों तक की याद नहीं आई जो परछाई बने हुए थे।वह साले, सालियों के बाद अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ फिल्मी तर्ज पर नाच नाच कर शूटिंग करवाने मे खोया हुआ था। बारातियों ने तो खा लिया, पर कुलभूषण के बहन,जीजा,भाई,पिता,एवं उन सगे रिश्तेदारों को तो इज्ज़त का खाना भी नहीं मिला ।अपने ही बेटे की शादी मे इतनी तौहीनी, कोई सोच भी नहीं सकता।गिरहबाज कुलभूषण को घेरे हुए थे और वह बेहद खुश थे, भीमशरण अपमान का विष पीयें जा रहा था, इस उम्मीद मे कि कुलभूषण को याद आ जाए।कुलभूषण पर ना जाने लडकी वालों ने कौन सा जादू कर दिया था कि वह पिता, भाई और सगे रिश्तेदारों के खिलाफ बकबकाने लगा।भीमशरण को दाल मे काला दिखाई देने लगा।
ब्याह होने तक भीमशरण छोटे बेटे कुलदीप और खास रिश्तेदारों के साथ बैठा रहा।शादी की रस्म पूरी होते ही भीमशरण और साथ बैठे उसके रिश्तेदारों को खाने पर बुला लिया गया।घंटा भर बैठे रहने के बाद खाना तो दूर पानी भी नहीं मिला। जैसाकि अक्सर होता है कि शादी के बाद वर बधु के सगे एक साथ भोजन करते हैं परन्तु गिरहबाज लडकी के बाप कपिल ने लडके के इंसानियत पसंद बाप को हाशिये पर शादी होते ही पटक दिया।
आखिरकार आर्केस्ट्रा खत्म होने के बाद गिरहबाज कपिल को औपचारिकता निभाने के लिए वर के पिता और रिश्तेदारों को बुलाया गया।
भीमशरण बोला हम लोगों ने खा लिया है।
कुछ देर बाद कपिल कांख मे बैग दबाये अवतरित हुआ,भीमशरण की उसके साथ पहली मुलाकात थी जब बारात शाम चार बजे आयी थी और अब सुबह के पांच बज रहे थे। आते ही बोला चलो भाई साहब खाना खा लो।
भीमशरण बोला खा लिया है।
सांरी कोई गलती हो होतो माफ कर दो ,चलो खा लो कपिल बोला।
भीमशरण बोला गलती तो हमसे हुई जो बारह घंटे की यात्रा कर बेटे का ब्याह करने चले आए।जहां डर के साये मे अपने ही बेटे की शादी में बेगाना कर दिया ।
लाजु मुयैं ढीठु जीयैं खुद को कोसते हुए उठा और खाने की टेबल तक गया काफी देर तक घूंट घूंट पानी पीता रहा । वर पक्ष के सामने एक एक लिफाफा रखा था ,भीमशरण के छोटे भाई देवशरण ने खोलकर देखा तो पता चला कि एक सौ एक रूपए लिफाफे मे हैं सभी ने बैरों को दे दिया परन्तु भीम शरण साथ लाया।
अन्ततः दूल्हन विदा हो गई।भीमशरण अपने घर से ही पेट भर खाना खाया था घर जाकर आत्मतृप्ति होने की उम्मीद था।कानापुरम मे कपिल के अलावा कोई जान पहचान का न था।कपिल ठग जैसा साबित हुआ ,उसके खुद के भाई बहनों ने उसे त्याग दिया था किसी का मान सम्मान करना जैसे उसने सीखा ही नहीं था, उसके आधा दर्जन बच्चे भी उसी के नक्शे कदम थे, सभी की निगाहें कुलभूषण पर थी। बावला कुलभूषण गैर इन्सानियत पसन्द के चंगुल मे फंसा जा रहा था।कुलभूषण शादी के पहले से ही अनु ,उसके आधा दर्जन भाई बहनों और उसके माता पिता के सम्मोहन मे बुरी तरह फंस चुका था माँ बाप के बारे मे सोचने की बजाय सास ससुर और उनके बच्चों की चिन्ता उसे अधिक थी। कुलदीप और उसके भविष्य से कोई सरोकार न था बस ससुराल और ससुराल के लोगों कि फिक्र।सास ससुर की मदद करना भी शादी के पहले ही शुरू कर दिया था शायद यह सब किसी जादू का असर था। तभी माँ बाप दुश्मन लग रहे थे जबकि कानापुरम जाने से पहले घर परिवार माँ बाप भाई बहन सबसे लगाव था अब वही कुलभूषण सास ससुर और अनु का वफादार हो गया था माँ बाप घर परिवार के लिये कटप्पा सिर्फ गिरहबाज कपिल और
उसके जादूगर परिवार कि बदनियति के कारण। बारात पहुंचने से विदाई तक अनु का बाप भीमशरण से एक बार मिला था वह भी बेनूर होकर खाने की कुर्सी से उठने के बाद।सच कहा है किसी. नेः
कहते है, हो जाता है
संगत का असर....पर
काँटों को आज तक नहीं आया
महकने का सलीका
दुल्हन दस घंटे की लम्बी सुसज्जित कार यात्रा के बाद सुसज्जित घर के सुसज्जित कमरे मे पहुंच चुकी थी।लक्ष्मी उसकी देवरानी,ननदें, घर परिवार की बहन बेटियां नाच गाकर थक चुकी।लक्ष्मी कुलर चालू करते हुये बोली बेटी थोडी देर आराम कर लो।कुछ देर मे तुम्हे देखने वाली महिलाओंं का तांता लग जायेगा ।गांव का रिवाज है, दो दिन की बात है, फिर शहर ही चलना है,चाचा चाची और हम मे कोई भेद नहीं करना, चाचा हमारे लिए कुलभूषण जैसा है, जब मै तुम्हारे जैसे आई थी तो.वह बच्चा ही था अब भले ही दो बच्चे का बाप है पर उसकी छवि वैसी ही मन मे बसी हुई है।
बेटी तू अब इस परिवार की इज्ज़त है, बहू है,बेटी है, कुलभूषण के पापा ने तो तुम्हे पहले ही बेटी जैसी मान लिया है।उनके विश्वास को बिल्कुल नहीं तोडना,कुलभूषण के पापा बहुत जज्बाती हैं।तुम शहर की हो,कुलभूषण जैसे । हमारी जडे तो इसी गाँव से जुडी है, बेटी हमारे परिवार ने तुम्हें सिर माथे बिठाया है यह घर परिवार अब तुम्हारा है। घंटे भर बाद दुल्हन देखने वाली महिलाओ की भीड लगने लगी। दुल्हन देखने के बाद हर महिला कुछ न कुछ देती कोई पच्चीस कोई पचास कोई सौ कोई पांच सौ,परिवार और रिश्तेदार महिलाओं ने तो नगदी के साथ सोने चाँदी के आभूषण भी दिये। यह सिलसिला कई दिनो तक चला।शादी मे मिले नेग से ज्यादा तो मुँँह देखाई मिली थी।
लक्ष्मी ,कुलभूषण के पापा को अलग थलग पडा देखकर भागती हुई गई। भीमशरण का हाथ पकड़कर बोली अरे हमारे भाग्य विधाता समधियाने मे इतना क्या खा लिया की अपच हो गया।
भाग्यवान बस जहर खाना बाकी रह गया अपमान पग पग पर मिला, हर मौके पर जलील होना पडा।घर का ही खाना पेट मे गया है।गिरहबाज समधी तो एक बार मिलना भी उचित नहीं समझा। खाना, चाय,नाश्ता पूछना तो बहुत दूर की बात है।मुझे चक्कर आ रहा है।
लगता है शुगर बढ गई है । एक दो रोटी लाओ रोटी खाकर दवाई खा लेता हूँ।लक्ष्मी छोटी ननद सुभद्रा को बुलाई और जल्दी दो बनाकर अपने भाई साहब को देने को बोली ताकि रोटी. खाकर कुलभूषण के पापा रोटी खा कर शुगर की दवाई खा ले ।लक्ष्मी सुभद्रा को रोटी बनाने का.कहकर आँँसू पोछते हुए उठकर दुल्हन वाले कमरे मे पहुंची।
रामकली दादी बोली दुल्हन बहुत सुंदर है।
लक्ष्मी हाँ दादीसा।
इतने मे उर्मिला बोली हाँ लक्ष्मी भाभी जितनी सुन्दर बहू उतनी ही गुणगान हुई तो तुम्हारी और भैया की तपस्या मानो सफल हो गई।
यही सोचकर तो कलभूषण के पापा इतनी दूर उच्च शिक्षित बेटा के लिये शिक्षित बहू लाए है ।बेचारे
अचेत पडे हैं।
लक्ष्मी बहू लायी क्या क्या है,रामकली पूछ बैठी।तुम ना दिखा रही हो ना किसी को बता रही हो।
धन दौलत, वैभव सब बहू है, हम धन के लोभी नही है।अनु घर परिवार को साथ लेकर चले, यही तमन्ना है । धन दौलत तो हाथ की मैल है लक्ष्मी बोली।
इतनी उदारता अच्छी बात नहीं।देखो घसीटा का लडका आठवीं पास है। दिल्ली किसी फैक्टरी मे काम करता है।इक्कावन हजार तिलक, अस्सी हजार की मोटर साइकिल,टीवी, फि्र्ज,कुलर और.न जाने क्या पूरा घर भरा पडा है।कुलभूषण खूब पढा लिखा है.सुना है जहाज से आता जाता है। कुलभूषण को तो बहुत कुछ मिलना था।
उर्मिला बोली गरीब घर की होगी,भीमशरण को दया आ गई होगी बना लिया बहू।
हमें भी मिलेगा अनु बोली।
कब उर्मिला पूछी ?
जब हम और कुलभूषणजी नैलूर मे सेटल्ड होगें तब पापा ने बोला है।
सारा गुड गोबर हो गया।बहू के माँ बाप कितने गिरहबाज है, घर बसाने के लिये ब्याह किये है कि उजाडऩे के लिए।लक्ष्मी तुम्हारे समधी समाज मे नहीं रहते, क्या कहाँ गन्दगी मे फंस गए। कैसे तुम लोगों की मति मारी गई थी रामकली बोली।
लक्ष्मी की जबान जैसे तालु से चिपक गई।
रामकली बोली जब तक अनु तुम्हारे पापा नैलूर मे बंगला नहीं बनवा देते हैं गाडी नहीं खरीद देते तब तक सास ससुर को रोटी बनाकर खिलाओ।
मैं किसी को रोटी बनाकर खिलाने नहीं आई हूँ,अपने हस्बैंड को बना कर खिलाऊंगी अनु बोली।
भीखारी की बेटी को ना जाने क्या देखकर भीमशरण ने बहू बना लिया।इसको तो एहसानमंद होना चाहिए था।ये तो आते ही नागिन जैसे फुफकारने लगी। परिवार मे क्लेष पैदा कर दी । अभी ना जाने और कितनी गिरहें होगी बाप बेटी के दिल मे।
अनु की बातें सुनकर लक्ष्मी के होश उड गए, वह सब दास्तान भीमशरण से कह सुनायी। भाग्यवान हम तुम क्या कर सकते हैं, जब अपना ही सिक्का खोटा निकल तो क्या करें।अब सास ससुर और पत्नी के मोहफांस मे फंसा कुलभूषण कभी भी छाती मे तलवार उतार सकता है।अनु खुले आम कहने लगी दहेज़ नहीं मिलने से नाक कट गई है तो नाक पर एफिल टावर लगा ले।खुद कि बेटी को जीन्स पैण्ट पहनने पर रोक नहीं है,बहू पर रोक है।सास ससुर कभी मां बाप नहीँ हो सकते।खूद की अर्धनग्न तस्वीरे सोशल मीडिया पर साझा करने लगी।यह सब इज्जतदार लोगों के चुल्लूभर पानी डूब मरने लायक था।
लक्ष्मी ठीक कह रहे अब अनु को कोई समझाइस की बात कहने पर कुलभूषण तमतमा जाता है, मेरे उपर अपने ही बेटे ने गिरहबाजो का वशीभूत होकर लांछन लगा दिया।
भाग्यवान मेरे माँ बाप कुटुम्ब के लोगों ने तो तुम्हें गृह लक्ष्मी ही तो माना,कुलभूषण अभी जोश मे होश खो रहा है, असली गुनाहगार अनु का गिरहबाज बाप है।
भीमशरण ,लक्ष्मी बेटा बहू सहित गांव से शहर आ गए।कुलभूषण नैलूर चला गया ।भीमशरण अपनी पोस्टिंग पर। सास बहू और कुलदीप शहर के घर पर थे। बेचारी लक्ष्मी बहू की नौकरानी बनकर रह गई थी।कुलभूषण और अनु की बात दिन रात मे कई बार होती।एक दिन कैकेयी बन गई,वह फोन पर घडियाली आंसू बहाते हुए मर जाने की धमकी दे दी।कुछ ही देर
मे कुलभूषण का फोन लक्ष्मी के पास आ गया। वह बोला मम्मी अनु को कानापुरम जाना है, डैडीजी सुबह पहुंच जायेगे।यही हुआ सुबह कपिल आया और अनु को लेकर चला गया।भीमशरण से बात नहीं किया।
जब यह खबर भीमशरण को लगी तो वह साफ साफ कपिल और कुलभूषण से कह दिया कि अनु बिना मेरी इजाजत के कानापुरम गई है, अब वह तब तक मेरे घर नही आएगी और न नैलूर जायेगी जब तक उसके माता पिता और परिवार के मुखिया आमने सामने बैठकर बात नहीं कर लेते हैं।गिरबाज कपिल कुलभूषण से किराया भाडा और खानखर्च लेकर अनु को कुलभूषण के पास हवाई जहाज से पहुंचा दिया।ठीक कहा है किसी ने ,जो कपिल और उसके परिवार पर सटीक बैठता है।
कहते है, हो जाता है
संगत का असर....पर
काँटों को आज तक नहीं आया
महकने का सलीका ।।।।।
अन्ततःकुल खानदान और परिवार से बहिष्कृत गिरहबाज कपिल ने कमासूत कुलभूषण यानि बूढ़े माँ बाप की लाठी को छिन ही लिया।गिरहबाज कपिल की और न खुले गिरहें इसलिए मरता क्या न करता भीमशरण और लक्ष्मी ने कुलभूषण को कानूनी तौर पर कर दिया बेदखल अपनी चल अचल सम्पति और जिन्दगी से।
डॉ नन्दलाल भारती
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