Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गिरे हुए लोग

 

रो रही थी क्या भाग्यवान,ऐसी क्या खता हो गयी निर्मल बाबू पत्नी गीतेष्वरी से पूछे बैठे ?
नही रो तो नही रही थी गीतेष्वरी बोली।
अभी अभी तुमने आसूं पोछें है। बताओ न क्या बात है ?
लंच कर लो दफतर जाना है,देर हो जायेगी।
बात बदलना तुमसे कोई सीखे।
यहां अच्छा नहीं लग रहा है। भाग्यवान मुझे भी नही लग रहा है। अहिल्या नगरी जैसे षहर में पच्चीस साल बीताये उसको छोडना पड़ा तकलीफ की बात है। उस षहर में अपने जीवन भर की पूंजी लगाकर एक आषियना बना लिया था। सच बताउूं षिखा की मम्मी मुझे तो रोना आता है।
बसन्त के पापा अपनी जन्मभूमि छूट गयी पापी पेट के लिये।नाते-रिष्ते छूट गये हम परदेसी हो गये। अहिल्या नगरी में आसपडोस कितना खास था। कुछ लोग तो सगे जैसे हो गये थे। बेचारी आचार्य आण्टी षिखा के ब्याह में कन्यादान किया था।व्रत भी रखी थी सगे से भी जैसे अच्छे हैं । अपने परिवार के लोग तो जैसे भूल गये थे कि बेटी के ब्याह में कन्यादान भी दिया जाता है।
चिन्ता ना कर पगली यहां भी वैसे ही हो जायेगे।
नामुमकीन लगता है।
कैसी बात कर रही हो ।अधिकारियों का कलस्टर है।सरकारी टानदषिप है,अपना विभाग तो दुनिया के बेहतरीन विभागों में से एक है। अपने विभाग में लोग अच्छे नही होगे तो कहां होगे? सभी अच्छे लोग है,उच्चषिक्षित लोग है।लाखों रूपये तो तनख्वाह वाले लोग भी है। देखो हर-घर के सामने दो-दो गाडियां खड़ी है,साथ में दो पहिया वाहन भी है।हम लोग नये है,किसी से जान पहचान नही है। इसलिये ऐसा लग रहा होगा।
बसन्त के पापा कुछ भी कहो,अपने मुंह मियां मीटठू बनो पर अपने पास गिरे हुए लोग है,हां मैं यह नही कहती हूं कि सभी एक जैसे होगे,कई लोग बहुत अच्छे होगे,कई तो देवतुल्य होगें।जैसे एक सड़ी मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है,वैसे अपने पास ही गिरे हुए लाोग है।
भाग्यवान अभी तुम कल आयी हो । कितने लोगो से मिल आयी। मैं तो किसी से नही मिला और ना लोग मुझसे मिले,हां मैंने कुछ लोगो से मिलने की कोषिष किया था पर वे मुझे घास ही नही डाले।
यही है स्त्री-पुरूश में अन्तर अगल-बगल गृहणियों से मिल आयी,कुछ अपने घर भी आयी,अगल बगल तो अच्छे लोग है पर जिसे पहले अच्छा होना था वही गिरे हुए लोग हैे।
बसन्त के पापा जल्दी खाना खाओ एक बज गया।दवाई भी खानी है याद से । दफतर जाने में देर हो जायेगी।अब बिल्कुल बात नही। बाकी बात षाम को भी तो हो सकती है।अभी तो मैं तुम्हारे साथ हूं । अहिल्या नगरी भी तो नही छोड़ सकते।मौसम पक्षघर रहा तो महीना दो महीना में आना जाना लगा रहेगा। आपन बदकिस्मत है।
क्यों नही जब साथ की जरत है तो दूर-दूर हो रहे है,नौकरी की वजह से,वरना ऐसी दैहकि पीड़ा में साथ छोड़ते क्या ?
ठीक कह रही हो पर अपने हाथ में तो नहीं,प्रबन्धन के आगे घुटने भी तो टेक लिये पर कहां सुनवाई ।
पड़ोसी अच्छे होने चाहिये पर यहां मायूसी हाथ लगने वाली है।
अगल-बगल और सामने वाले कलस्टर से अच्छे लोग मिल जायेंगे तुम चिन्ता ना करनाएअचनी सेहत का ख्याल रखना। समय हो गया बसन्त की मम्मी दफतर के लिसे निकला हूं ,ध्यान से रहना।
हां आप तो वक्त के पाबन्द है सूरज भले देर से उगे पर आप अपने समय से पहले।ठीक है जाइये।हाईूम बहुत ध्यान से पार करना बहुत डर लगता है।
बाकी बातें दफतर से आने के बाद निर्मल बाबू बोले।
जी बात करने के लिये तो पूरी रात है,आप अभी काम पर जाइये। बसन्त के पापा मेरी चिन्ता ना करो कहते हुए गीतेष्वरी ने अन्दर से दरवाजा लगा लिया। षाम को छः बजे निर्मलबाबू दफतर से वापस लौटे तो गीतेष्वरी चैखट पर खड़ी मिली।
इन्तजार जब करना था तब तो की नही निर्मलबाबू मुस्कराते हुए बोले ।
इन्तजार तो इन्तजार होता है।समय कटता नहीं गीतेष्वरी बोली।
भाग्यवान मेरे बारे में तो सोचो मैं अकेले कैसे रहता हूं और कैसे रह सकूंगा पर रहना पड़ेगा ,इस आधुनिक माहौल में । रहना भी पड़ेगा और नौकरी भीे करनी पड़ेगी,पापी पेट का सवाल जो ठहरा।
समझती हूं करूं तो क्या करूं इस षहर की आहोहवा मेरी जान की दुष्मन बन बैठी हैं।एक घोसले के दो पंक्षी पापी पेट के सवाल की वजह से दूर-दूर हो गये हैं। मैं पगली तो बातों में उलझ गयी।आप बैठो चाय लाती हूं मेरा भी मन कर रहा था पर अकेले पीने की इच्छा नही हो रही थी।
ठीक है बना लो चाय पीते पीते बाकी की बाते भी कर लेते है।
कौन सी बात गीतेष्वरी बोली ।
पड़ोस वाली बात निर्मलबाबू बोले।
चाय पीओ, दोपहर की बात भूल जाओ।तरह तरह के लोग है,सबसे मन मिलना मुष्किल है।
किसी ने कुछ कहा क्या ?
अरे बसन्त के पापा असल में कच्चे आम देखकर लालच आ गया छत पर से गिनकर पांच आम तोड़ ली। अपने पास तो काटने की व्यवस्था नही है,मैं नीचे चली गयी हंसियां मांगने ।मेन गेट खटखटायी मीनी हाथी जैसी महिला प्रगट हुई। मैंने भाभीजी नमस्ते बोली थी।
नमस्ते का जबाब न देकर,उसने तो ऐसे बोला जैसे कोई भीखारी अरे कौन हो तुम पड़ोसन बोली ।
भाभीजी हम लोग पहले माले पर रहने आये है।मि.ट्रास्फर होकर आये है।मुझे हंसिया चाहिये था। आम काटने के लिये पांच आम है,हम दो जन तो अभी है,दो जनों के लिये पांच आम की खटमिठियां काफी होगी मैंने पूरे अनुरोध के साथ कहा था।
पड़ोसन पूछी बेचने वाला आया था क्या ?
नही भाभी अपने छत पर तो बहुत आम है,हाथ से मिल रहे है पांच आम तोड ली हूं।
छत पर से तोड़ी वह आग बबूला होते हुए बोली।
क्या कोई गुनाह हो गया भाभीजी।
आम की चोरी कर रही हो और पूछ रही हो क्या गुनाह हो गया।
आपके पेड है क्या?
फिर क्या तुम्हारे है, पड़ोसन झलाते हुए बोली। हमने ये सारे पेड लगाये है।हमारे है। बेटा बाहर गया है,उसके आने के बाद आम तोड़वाना था,इसके पहले तुमने तोड लिये,कहते हुए मीनी हाथीनुमा पडो़सन दनदनाते हुए अन्दर घुस आयी और पूरे घर की तलाषी ले डाली जैसे डकैती का और माल बरामद हो जायेगा।
मैंने पूछा भाभीजी कितने सालो से इस मकान में रह रही है।
मीनी हाथीनुमा पड़ोसन बोली पन्द्रह।
भाभीजी सफेद झूठ बोल रही है,पन्दह साल से रह रही है ये पेड कम से कम चालीस साल पुराने है।
देखो ज्यदा होषियारी मत दिखाओं किसी की हिम्मत नही होती कि पेड़ से गिरा आम उठा ले और तुमने तोड़ है।
भाभी सरकारी टाउनषिप है,सरकारी पेड़ है,जितना आपका हक है उतना ही आसपास रहने वालों का है। ए बंगले और ये आम के पेड़ किसी की पैतृक सम्पति नही है। इंसानियत का तकाजा तो यही है कि सभी मिल बांट कर खाये।
क्या बोली ............? हम तुमको इंसान नही दिखते क्या .................पडा़ेसन बोली।
भाभीजी हमने तो ऐसा कुछ नही कहा। हाथीनुमा पड़ोसन ने गिरे हुए लोगों की तरह हंगामा मचा दिया था।हमने कहा भाभीजी हमने कोई चोरी नही की है।हमारा भी हक बनता है।हमने सिर्फ पांच केरी तोड़े हैं आपने देखा भी है मेरे घर में घुसकर जैसे हमने डकैती का माल छिपा रखा हो।
पड़ोसन बोली तुम्हारा हक नही बनता है,मेेरे आम है,चीकू है कोई हाथ नही लगा सकता,तुमने पांच आम तोड़ने की हिम्मत कैसे कर ली?
भाभीजी आगे पीछे मिलाकर सात आम के पेड़ हैं,सब आपके है।एक आम के पेड पर कम से कम कुन्टल भर आम तो लगा है,सब खा जाओगे अकेले क्या ?
मेरे बहू है बेटे है,नात हित है।हमारे लिये तो कम पड़ता है।पांच से दस हजार का आम हम लोग सीजन खरीद कर भी खाते है पड़ोसन बोली।
भाभीजी ये पेड़ -पौधे,इनकी पैदावार और सरकारी आवास,रहां हजारों कर्मचारी रह रहे है, सरकारी सम्पति है । आप ऐसे बात कर रही है जैसे बावन बीघा पुदीना के खेती की मालकिन है।
वह तो है पड़ोसन बोली।
आप तो होगी पर हम लोग तो नही है। अगर हम होते तो नौकरी नही करने आते कहते हुए उपर आ गयी।
अच्छा किया भाग्यवान।हाथीनुमा पड़ोसन के भालूनुमा पति से आमना-सामना नही है,जिनके दंात सांप के फन की तरह लपलचाते है। वे भी कम नही है। पिछले सीजन में गाड़ी भी चीकू लगे होगे। अपने छत पर लटकी डालो पर फल लदे हुए थे, ना जाने तस्करों ने कैसे एक एक चीकू छत पर से तोड़ लिया था ।मैं सोच रखा था कि छत पर का तोड़ूंगा नही बच्चे आएंगे तो उनको दिखाउंगा देखो हमारी सरकारी टाउनषिप में चीकू के पेड़ों पर कितने बड़े बड़े फल लगते है पर गिरे हुए लोगों ने सब तोड़ लिये एक निषानी नही छोड़े थे ये तो आम है वह भी एक एक आम पांव पांव भर के है।
बसन्त के पापा कुछ गोलमाल तो है गीतेष्वरी बोली।
तस्करी होती होगी और क्या ?
आम की तस्करी बसन्त के पापा ?
गिरे हुए लोग कुछ भी कर सकते है,ताबूत,मिषाइल,चारा,टेलीफोन और ना जाने कितने घोटाले किये है,भाग्यवान ये तो आम चीकू की बात है निर्मल बाबू बोला।
जिम्मेदार सरकारी नुमाइन्दों की नजर इतनी आम की पैदावार पर नही पड़ती होगी क्या गीतेष्वरी बोली ?
पड़ क्यों नही रही होगी, जिस दिन पूरी कालोनी के आम और चीकू के फलों की सरकार नीलामी करना षुरू कर देगी,उस दिन से सरकारी खजाने में हर सीजन लाखों की आवक होने लगेगी और गिरे हुए लोग हाथ मलते रह जायेगे,जैसे तस्कर,भ्रश्ट्राचारी और गिरे हुए लोग पछताते है जेल जाकर निर्मल बाबू बोले।
ऐसे ही लोग निरकंुष हो जाते है,माहौल खराब करते है। कालोनी बदनाम होती है,एरिया बदनाम होती है,विभाग बदनाम होता है पर इनको क्या फर्क पड़ता है ये तो गिरे हुए लोग है।
कलोनी में एक से बढकर एक बड़े लोग है,हर तरह से सम्पन्न भी लोग भी देखे हैं पर ऐसे बदमिजाज और गिरे हुए नहीं ।
ये गिरे हुए लोग तो तालाब की सड़ी मछली के समान है,गीतेष्वरी बोली।
गिरे हुए लोग कहीं रहें अपनी छाप तो छोड़ ही देते है निर्मल बाबू बोले।
बसन्त के पापा गिरे हुए लोग तालाब की सड़ी हुई मछली की तरह जब बजबजाने लगते है,षरीफ लोग बाहर फेक देते है, जिन्हें कौवे और चील्ह नोंचने लगते है।
गिरे हुए लोगों की आखिरी दास्तान तो यही है निर्मल बाबू बोले।

 

 

 

डां.नन्दलाल भारती

 

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