Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हमारी उम्मीदें

 

हमारी उम्मीदे  कुनबे की.जीवनधारा
मत चटकाओ ना छिनो जीने का सहारा
खंजर छिपा आस्तीन मे,तुमने हाथ बढाया
पगला ना समझा मै अनीति,गले लगााया
तुम कातिल कुनबे की उम्मीद है चुराया
हमारे आंसू पर खडा ठगी का मीनार तेरा
गिर जाएगा मीनार बेनकाब होगा रूप तेरा
एक दिन अपनी जहां का परचम फहराएगा
अरे कातिल, तुम कालाचेहरा छिपाएगा ।

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हमारी उम्मीदें ही जिन्दगी है
हमारे कर्म ही हमारी पहचान है
ये न होते जिन्दगी ना होती
हर मोढ पर मौत के सौदागर
जाल बिछाये तैयार है
ताजुब नहीं इसमे अपने भी
बराबर के हिस्सेदार हैं ।
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हमारी आंखों से झरते आंसू
गैरों के दिये घाव नहीं
ये अपने तन का खून रिस रहा है
अपनों का दिया घाव बह रहा है
गिला शिकवा करूँ किससे
अपना ही तो जिगर ये
घाव दे रहा है
तड़पना जिगर को आता है
दिमाग है कि कोई मरहम ढूंढ
लाता है
तेजाब के दरिया मे तैरना
अपनो ने सीखा दिया है
गवाहे वक्त हमने भी समय को
सौंप दिया है।
डां नन्द लाल भारती
10/10/2019


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