आधी रात बीत चुकी थी पर मुट्ठीराम घर नही आया । अधिकतर वह बच्चों के सो जाने के बाद ही घर पहुंचता था । बाप के आने की इन्तजार कर बच्चे सो चुके थे । आधी रात हो जाने के बाद भी मुट्ठीराम घर नहीं पहुंचा । सुखिया मुट्ठीराम की अंधी मां डयोढी पर बैठे बाट जोह रही थी । आने जाने की आहट से वह चैक कर पूछती कौन है-बेटा मुट्ठीराम तू आ गया क्या ? तनिक देर में फिर खटखट की आवाज आयी । आवाज सुनकर सूखिया से नही रहा गया वह पोते से बोली देख रामू बेटवा तेरा बाबू आ गया क्या ? किसी के आने की आहट तो लग रही है ।
रामू-अरे आजी काहे को बार बार टोंका टांकी करती हो । भैस पूछ पटकी है । पढ रहा हूं पढ लेने दो । वैसे भी डिबरी में कुछ सूझ तो रहा नही है । आजी तुम हो कि बार बार टोंका टांकी कर रही हो ।
सूखिया-मै क्या देखू अंधी कि तुम कैसे पढ रहा है ।बेटा पढ तू चाहे जैसे पढ । तू पढलिख जाता तो तेरे बाप का उध्दार हो जाता । तेरा बाप मुश्किल में हमेशा रहता है । बेचारा किरीन फूटने से पहले चला जाता है । आधी रात तक खून पसीना करता है बदले में क्या मिलता है ? बस दो किलो अनाज की मजदूरी । भगवान इतना गरीब क्यों बना दिया हम मजदूरों को ।
मुट्ठीराम के घर आठ प्राणी थे । दो बकरी और एक अधिया की भैस सहित चार छ- मुर्गिया भी थी । भाईयो ने पहले ही किनारा खींच लिया बूढी और अधी मां को मुट्ठीराम के हवाले कर ।रामू डेबरी की रोशनी में क ख ग जोर जोर से पढ रहा था । रामरती रोटी और आलू का चोखा लालमिर्च नमक तनिक कड़ुवा तेल डालकर बनाकर रामू के पास बैठ गयी । रामू स्लेट पर लिखे ‘ाब्द दिखाते हुए कहने लगा मां पढो देखो सही लिखा है ?
रामरती-बेटा तू तो जानता है मैं ही नही तेरा पूरा खानदान अभी तक निरक्षर है । काश तू पढ लिख जाता । बेटा तू ही पढकर सुनाओ ना ।
रामू-सुनो मां क से कबूतर ख से खरगोश तेज आवाज में बोलकर सुनाने लगा ।
रामरती- अच्छा लगता है तेरे मुंह से सुनना बेटवा । ध्यान से पढ ।
सुखिया-रामरती मुट्ठीराम नही आया ना । सुनो जागते रहो की आवाज आने लगे । गांव वाले पहरा देने लगे ।
रामरती-हां माई आ तो रही है । आधी रात बित गयी पर वे अभी तक नही आये ।
रामू मां और दादी का बात सुनकर चुप हो गया । अनमने मन से उठा और मुंह धोने लगा ।
रामरती-बेटवा तू खा ले और सो जा । अब अपने बाप की राह ना ताक उनका तो यही हाल है । बंधुवा मजदूर जो ठहरे ।
रामू-आखों के आसूं छिपाते हुए बोला मां भूख नही लगी है । बापू जब तक नही आते है तब तक मैं पढता हूं । तू भी मां मेरे पास आकर बैठ जा ना ।
रामरती-हां बेटवा आती हूं ।
सुखिया-रामू...
रामू-हां दादी ।
सुखिया-नींद नही लग रही है ?
रामू-नही दादी ।
सुखिया-तू अपने बाप पर गया है । अपने बाप जैसा मेहनती है । खूब ध्यान से पढना अपने बाप का नाम रोशन करना । तेरे दादा जब कलकत्ता कमाने गये थे तब तेरा बाप मुट्ठीराम तुमसे भी छोटा था ।
रामू- जब दादा वापस आये तब मेरे बापू कितने बड़े हो गये ।
सुखिया-तेरा बापू कितना बड़ा हो गया है तेरे सामने है ।
रामू-मतलब दादा नही लौटे ?
सुखिया-हां वे कलकत्ता से नही लौटे । पखण्डी लाला की मार खाकर गये फिर मुंह नही दिखाये । ना जाने धरती निगल गयी या आकाश खा गया । सुखिया की अंधी आंखों से आंसूओ धार फूट पड़ी।
रामू- दादी के आंसू पोछते हुए बोला दादी लाला से झगड़ा क्यों हो गया था दादा से ।
सुखिया-बेटा आजादी के पहले की बात है । तेरे दादा कलकत्ता में चटकल में काम करते थे । साफ सुथरे कपड़े पहनते थे । रंग रूप भी काफी अच्छा था । उनको देखकर कोई कह नही सकता था कि कोई छोटी जाति का होगा । नीम की छांव में खटिया ज्ञल के लेटे हुए थे । पाख्ण्डी लाला उनको देखकर बोले क्यों रे कोइरी का दुल्हा बनकर बैठा रहेगा कि मेरा भूसा भी ढोयेगा । तेरे दादा कुछ बोलते उसे पहले पाखण्डी लाला गाली देने लगा गन्दी गन्दी । तेरे दादा बोली लालाजी गाली क्यो दे रहे हो ?
इतना सुनते ही पाखण्डी लाला लाल हो गया । तेरे दादा पर हाथ छोड़ दिया । तेरे दादा ने पाखण्डी लाला का हाथ पकड़ लिया। बस क्या पूरे गांव में ‘ाोर मच गया कि एक चमार ने पाखण्डी लाला पर हाथ छोड़ दिया । गांव के दबंगो ने उनका जीना मुश्किल कर दिया । वही गये फिर लौटकर नही आये । पाखण्डी लाला ने गांव के दबंगो से सांठगांठकर खसरा खतौनी से तेरे दादा का नाम काट दिया । एकड़ों जमीन के मालिक को पाखण्डी लाला उसका नाश हो भूमिहीन बना दिया । तेरा बाप दर-दर की ठोंकरे खा रहा है । भूमिहीन बंधुआ मजदूर हो गया है जब से बेचारे की आंख खुली । बेटा तू पढ लिखकी अफसर बन जाता तो तेरे बाप को चैन नसीब हो जाता ।बेटा मेरी बात गांठ बांधकर रखना पाखण्डी लाला जैसा अन्याय कभी ना करना ।
रामू-दादी ना अन्याय करूंगा और ना ही करने दूंगा ।
दादी- पोते की बात चल ही रही थी कि इसी बीच रामरती अरे अम्मा अब तो खा लेती रामू के बाबू आ जायेगे।किसी काम में उलझ गये होगे। बंधुआ मजदूर का क्या जीवन ?
सुखिया- बहू तेरे दर्द को समझ रही हूं । मुट्ठीराम के कंधे से कंधा मिलाकर गृहस्ती की गाड़ी खींच रही हो पर जरूरते नही पूरी हो रही है । खेतिहर भूमिहीन उपर से बंधुवा मजदूर क्या उन्नति कर पायेग सेर भर की मजदूरी में । रामरती बेचैन थी अन्दर बाह कर रही थी । उसे कोई आंशका घेर रही थी । मुट्ठीराम की प्रतीक्षा में सुखिया की अंधी आंखों में भी रह रह कर नींद का झोंका आ जा रहा था । रामू भी बाप को आने में हो रही देरी से बहुत परेशान था । वह घर से कुछ दूर तक राह ताक आता फिर किताब उल्टने पलटने लगता । बस्ती मे पूरी तरह सन्नाटा पसर चुका था । रह रह कर कुत्ते सन्नाटे को तोड़ रहे थे पर मुट्ठीराम के घर में सभी इन्तजार में बैठे हुए थे । रामू नीद में डेबरी के उपर गिरते गिरत बचा ।
रामरती-रामू तुमको नींद आ रही है खाकर सो जा ।
रामू-हा मां बाबू की इन्तजार तो बहुत कर ली पर बाबू अभी तक तो नही आये । ला मां खाना दे खाकर सो जाता हूं । मां बाबू आये तो जगा देना नही तो कल भी बाबू को नहीं देख पाउूंगा कई दिनों से तो ऐसे ही हो रहा है ।
रामरती-रामू तू खा मै तेरे बाबू को महुवा तक देख आती हूं ।
रामू-ठीक है मां ।
रामरती बाहर निकली उसे कुछ दूर मुट्ठीराम आता हुआ दिखाई दिया । वह दौड़ लगाकर मुट्ठीराम के पास पहुंच गयी । उसका हाथ पकड़कर रोने लगी ।
मुट्ठीराम डर गया । वह हिम्मत करके बोला भागवान क्यो रो रही हो ? क्या हो गया ? बच्चे तो ठीक है ।
रामरती-इतनी देर क्यों कर दिये । अंधी मां इन्तजार में बैठी है । बच्चे तुम्हारी इन्तजार में बिना खाये बैठे बैठे सो गये ।
मुट्ठीराम- भागवान मैं ठहरा बंधुवा मजदूर कोई दफतर में तो काम करता नही कि आने जाने का समय निश्चित है । अरे इतनी रात में भी जमीदार बोले है सुबह जल्दी आ जाना । आजकल तुम्हारा मन काम में नही लग रहा है ।
रामरती-आग लगे ऐसी हवेली में जहां आदमी को आदमी नही समझा जाता । अरे रात बितने को आ गयी ख्ेात से हवेली तक खून को पसीना करते फिर भी जल्दी आ जाना । कैसे निर्मोही है ये खून चूसने वाले जमीदार लोग ।
मुट्ठीराम-ये बाल्टी लो घर चलो ।
रामरती-बाल्टी में क्या है ? अंधेरे में कुछ सूझ नही है ।
मुट्ठीराम- रस है ।
रामरती-कैसा रस ?
मुट्ठीराम- सारी बाते यही कर लोगी कि घर भी चलोगी । गुड़़ बना रहा था ना । जिस कड़ाह में गुड़ बनाया हूं उसी का धोवन है । बच्चे गरम गरम एक एक गिलास पी लेगे ।
मुट्ठीराम के घर में कदम रखते ही सुखिया बोली आ गया बेटा तू ?
मुट्ठीराम- आ तो गया मां ।
रामू आंख मसलते हुण् डठा और लोटा में पानी भर लाया । अपने बाबू को लोटे का पानी थमाते हुए बोला लो बाबू हाथ पांव धो लो । बहुत थक गये होगे ।
मुट्ठीराम-हां बेटा । मुझे आराम तो तब मिलेगा जब तू पढलिखकर बड़ा आदमी बनेगा । बेटा बाल्ठी में गरम रस है पी लो कहते हुए धम्म से टूटी खटिया पर पसर गया पीड़ा के अनगिनत भाव लिये ।
सुखिया-मुटठीराम बेटवा तू बहुत थक गया है ला तेरा सिर दबा देती हूं ।
मुट्ठीराम- नही मां तू आराम कर ।
सुखिया-बेटा दो रोटी खा ले । तू आराम कर । मै तो दिन रात आराम करती रहती हूं । बेटा इतनी रात तक दूसरों के पसीने पर अय्यासी करने वाला जमींदार किस काम में लगा कर रखा था ।
मुट्ठीराम- जमींदार खाना खाकर हाथ धोने बाहर निकले । मैं इतने मे खेत से हवेली पहुंच गया इतने में बिजली आ गयी बस क्या गन्ना काटकर रखा हुआ था । जमींदार बोले मुट्ठीराम घण्टे भर का काम है गन्ना पेर कर गुड़ बना लो फिर चले जाना। अरे घर जाकर सोना ही तो है । ये ले ण्क चिलम गांजा तलब लगे तो पी लेना । मरता क्या ना करता ? मना भी तो नही कर सकता था ना । गन्ना पेरा गुड़ बनाया । गोदाम में रखा और भागे भागे आ रहा हूं दो लोटा कडाह का धोवन लेकर ।
सुखिया-तू कितनी तकलीफें उठा रहा है । तेरी तकलीफ को जानकर मेरा दिल रो उठता है । एक तेरे बाप था ना जाने कहां गुम हो गये । चालीस साल हो गया । तू तकलीफें के पहाड़ तले दबा कराह कराह कर हमारा बोझ ढो रहा है । बेटा कोशिश किया करो घर जल्छी आने की ।
मुट्ठीराम-मां करता तो हूं पर जमींदार के गुलाम जो ठहरे ।
सुखिया-बेटा जा सो जा सुबह काम पर जाना है। रामरती डेबरी बुझा दे तू भी सेा जा दिन भर खटती रहती है ।
रामरती-हां अम्मा डेबरी बुझा दी हूं सब सो गये तुम भी सो जाओ।
मुट्ठीराम का पूरा परिवार नींद के आगोश में चला गया । कुछ ही देर में मुर्गा बोलने लगा । रामरती करवट बदलती रही । कुछ ही देर में चिडिया चांचाव करने लगी । वह झटपट उठी रात मे मुट्ठीराम जो रस लाया था चूल्हे पर गरम करने के लिये चढा । मुट्ठीराम कुछ ही देर में उठ गया । दातून किया । इतने में रामरती लोटे मे रस और एक गिलास मुट्ठीराम को देते हुए बोली लो गरम गरम पी लो । मैं गोबर घूरे में डाल आती हूं ।
मुट्ठीराम-ठीक है कह कर वह गिलास मुंह को लगाया ही था कि बड़े जमींदार का बदमाश चचेरा भाई ओ मुट्ठिया ....ओ मुट्ठिया कहां मर गया । सूरज सिर पर चढ आया । इसकी सुबह ही नही हुई ?
जमीदार की आवाज कान में पड़ते ही मुट्ठीराम चिल्लाया आया बाब.......... कह कर वह गिलास का रस रखकर दौड़ लगा दिया । रामरती फंटी आंख देखती रह गयी । तकलीफों के भ्ंावर में डूबे उतिरियाते मुट्ठीराम गृहस्ती की गाड़ी खींच रहा था । खुद निरक्षर रामू कीे पढाई के प्रति बहुत सजगत था । जबकि जमीदार के काकाश्री ने कई बार कहा मुट्ठी क्यों रामू को प्ढाने की चिन्ता तुमको लगी है । अरे हर पढने वाले को सरकारी नौकरी थोड़े ही मिल जाता है । तू कहां तक पढा पायेगा । प्राइमरी पास करवा ले बहुत है । आगे की पढाई के लिये पैसा लगेगा तू कहां से लायेगा । अरे अपने साथ उसे मेरे खेत के काम में लगा ले । वह भी जी खा लेगा तेरे जैसे ।
मुट्ठीराम-बाबूजी मेरा सपना ना उजड़ों कहकर गिडगिड़ाने लगता ।
मुट्ठीराम के पसीने के सोधेपन की खुश्बू पूरे गांव मंे फेलने लगी । रामू पढने में तेज तो था ही पांचवी की परीक्षा अव्वल दर्जे से पास हो गया ।इस खुशी के मौके पर मुट्ठीराम ने पंचों का हाथ भी धुलवाया ।सुखिया की खुशी का ठिकाना न था । इस खुशी को दूना करने के लिये वह रामू की ब्याह की जिद पर अड़ गयी । अपनी जिद पूरी करवाकर खुदा के पास चली गयी । रामू लाख अभावों के बाद भी पढाई में आगे रहा । अपने हौशले के बदौलत गांव से चैदह कोस दूर कालेज की दूरी रोज राज साइकिल से नापकर ग्रेजुएट की पढाई पूरी कर लिया सामाजिक और आर्थिक मुसीबतों हरा घाव लिये ।
रामू के बी.ए.की परीक्षा पास होने की खबर ने पूरी मजदूर बस्ती में नया उजियारा ला दिया । मुट्ठीराम का हौशला अधिक बढ गया वह रामू को और आगे तक पढाने की जिद करने लगा पर रामू घर परिवार की दयनीय दशा को देखकर ‘ाहर जाकर दो पैसा कमाना बेहत्तर समझा । वह सेर भर आटा और कुछ दाना भुज्ैाना लेकर ‘ाहर की ओर चल पड़ा । बूढे गांव की तरह नये ‘ाहर में भी उसे पग-पग पर जाति भेद की की मुट्ठी भर आग झुलसाती रहती । हौशले का धनी रामू पग-पग आग पर बिछी होने के बाद भी पढाई जारी रखा और उूंची उूंची डिग्रियां हासिल कर लिया एक मामूली सी क्लर्क की नौकरी करते हुए । कम्पनी में भी उसे मुर्दाखोर जातिभेद का अजगर डराता रहता था । अन्ततः रामू की भविष्य मुर्दाखोर जातिभेद का अजगर निगल ही गया । रामू को बड़े अफसर के रूप में देखने का सपना सजोये मां रामरती भी दुनिया छोड़ चली । दृढ प्रतिज्ञ सम्भावनावादी रामू,रूढीवादी व्यवस्था के अभिशाप से मुक्त पाने की अभिलाषा में रामू गिर-गिर कर भी बढ रहा था धीरे धीरे दिल में हरा घाव लिये ।
डां.नन्दलाल भारती
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