लघुकथा : इंतजार
दामोदर कुछ अच्छा हुआ क्या ? मुसकिया रहे हो ।
द्वारिका मेरी तनिक मुस्कान तुमसे नहीं देखी जा रही ?
गलत ना समझो दामोदर ।
तुम सही कब थे द्वारिका ?
बेटा-बहू के साथ है क्या नहीं ना ?
तुम्हारे तो तुम्हारे साथ है ना द्वारिका ।
हां बिल्कुल हमारी बहू घर की लक्ष्मी है।
हमारी भी द्वारिका ?
सात साल पहले तुम्हारे बेटा-बहू ने तुम्हारे घर मंदिर का त्याग कर दिया था पर अकड़ गई नहीं ।
यह साजिश है ।हमारे घर मे श्रम का सोधापन है, बेईमानी की मिलावट नहीं, हमारा घर आज भी मंदिर है।मंदिर के पुजारी और पुजारिन मंदिर की मर्यादा को बनाए हुये हैं।
हमारी बहू शरीफ परिवार की बेटी है संस्कारवान है, तुम्हारी जादूगर मां गैगस्टार बाप की हाफब्लाइण-हाफमाइण बेटी ।
हमारी बहू का अपमान न करो द्वारिका।एक दिन वही हाफमाइण-हाफब्लाइण बहू घर मंदिर की चौखट पर माथा पटकेगी,उसके मां-बाप हमारे परिवार के खिलाफ किए गये अपने गुनाहों को कबूलेगे और माफी मांगेंगे दामोदर बोले ।
दामोदर तुमने तो घर एक मंदिर की पूरी कहानी दोहरा दिए जगमोहन बोले।जगमोहन की बात सुनकर द्वारिका कंस के वध का इंतजार करो कहते हुए अपना रुख मोड़ लिए ।
डां नन्द लाल भारती
12/08/2020
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