कम्पनी की आधारशिला रखने के साथ स्थापना दिवस मनाने का प्रचलन ‘ाुरू हो गया था । जश्न देश के हर छोट बड़े दफतरो में मनाया जाने लगा था बकायदा कम्पनी इसके लिये बजट देती थी । एक विशेषता तो यह भी थी कि कम्पनी में कर्मचारियों और अधिकारियों में बिना भेद के प्रति व्यक्ति बजट का प्रावधान होता था। इस जश्न में कर्मचारी ,अधिकारी और उनका परिवार बढ-चढ कर भाग लेता था । यह जश्न तो कम्पनी के सभी कर्मचारियों के लिये एक त्यौहार हो गया था । बच्चे तो जलसे के महीने भर पहले से ही तैयारी में लग जाते थे । छोटे कर्मचारियों के बच्चों के लिये तो यह जलसे जैसा होता था । पूरा पारिवारिक माहौल बन जाता था । सभी लोग बिना किसी भेदभाव के आनन्द उठातेे थे । कर्मचारी और उनके परिवार के लोग सांस्कृतिक में बढ-चढकर भाग लेते थे । इस उत्सव में ऐसा लगता था कि मानो साल भर की भागमभाग के फारीक होकर सभी कर्मचारी पारिवारिक माहौल में छुट्टी मना रहे हो । कम्पनी का यह जलसा किसी प्रसिध्द पिकनिक स्पांट अथवा अच्छे होटल में आयोजित होता था । इस जलसे को विभाग प्रमुख हंसमुख साहब और अधिक पारिवारिक बना देते थे । जब तक वे कम्पनी के ‘ााखा प्रमुख रहे तब तक छोटे कर्मचारियों के परिवार को घर से लाने और जलसा की समााप्ति के बाद घर तक छोड़ने का जिम्मा बड़ी जिम्मेदारी के साथ निभाते थे । कई बरसो बाद हंसमुख साहब का स्थानान्तरण हो गया । उनकी जगह पर लाभचन्द साहब आ गये । लाभचन्द साहब के ज्वाइन करते ही कम्पनी के स्थापना दिवस आ गया । लाभचन्द साहब गुमचुप जलसे की घोषणा ‘ाुक्रवार को ‘ााम को देर से कर तो कर दी पर छोटे कर्मचारियों को भनक तक नही पड़ने दी ।यह खबर किसी तरह चपरासी बहकुदीन तक पहुंच गयी । वह सन्तोषबाबू
से बोला-बडे़ बाबू आज के बाद दो दिन की छुट्टी पड़ रही है ।
सन्तोषबाबू- हां ‘ानिवार रविवार की छुट्टी तो पहले से होती आ रही है ।इसमें नई बात क्या है ।
बहकुदीन- है ना ....
सन्तोष-तुम इंसीडेण्टल की बात कर रहे हो । अरे भाई इंसीडेण्टल और ओवर टाइम तो खास लोगों के लिये होता है । हंसमुख साहब ने काम तो खूब करवाये पर इंसीडेण्टल और ओवर टाइम चहेतो को दिये । हम तो पहले से पेट पर पट्टी बांधे हुए है । आंख में आंसू भरे हुए है और मेरी योग्यता पर वज्रपात हो रहा है । मैं नये साहब से भी कोई उम्मीद नही करता । बस अपना काम ईमानदारी से करता रहूंगा ।
बहुदीन- सोमवार को कम्पनी का वार्षिक जलसा मनने वाला है । आप तो जानते ही हो कि साहब लोग इकत्तीस मार्च के पहले कभी भी मना सकते है । बजट को उपभोग करना जो होता है ।
सन्तोष- सब बात तुमको कैसे मालूम पड़ जाती है ।
बहकुदीन- ड्राइवर,चपरासी और घर में काम करने वाली बाई से कुछ नही छिप सकता लाख कोई छिपाये बड़े बाबू।
सन्तोष-वार्षिक जलसे में छिपाने जैसी क्या बात है ।
बहकुदीन- है तभी तो किसी छोटे कर्मचारी को मालूम नही है । चिट्ठी भी नही जायेगी सभी फील्उ अफसरों को फोन पर खबर पहुंचेगी । छोटे कर्मचारियों को दूर रखे जाने की साजिश रची जा रही है ।
सन्तोष- तुमको कोई गलतफहमी हो गयी है बहकुदीन ।
बहकुदीन-नही बड़े बाबू । कोई गलतफहमी नही है । लाभचन्दसाहब सिर्फ अफसरों को बुलाना चाहते है । छोटे कर्मचारियों को दूर रखना चाहते है । गैप मेनटेन जो करना है ।
सन्तोष-क्या ? कह रहे हो मेरी तो कुछ भी समझ में नही आ रहा है ।
बहकुदीन-सोमवार को समझ में आ जायेगा आफिस आने पर ....
सन्तोष- क्या मालूम पड़ जायेगा?
बहकुदीन- सच्चाई .....
सन्तोष-यार साहब ने मुझे बताया तो है नहीं । ऐसे कैसे जलसा आयोजित हो जायेगा । बच्चे तो सबुह स्कूल चले जायेगे । पत्नी की तबियत खराब है तुम सभी जानते हो चलना फिरना बड़ी मुश्किल से हो पाता है । कैसे बच्चे आयेगे ।
बहकुदीन-लाभचन्द साहब और उनके चममचे यही चाहते है कि छोटे कर्मचारी और न उनके बच्चे जलसे में ‘ाामिल हो पाये । सोमवार को आफिस खुलने पर सूचित तो करेगे ताकि छोटे कर्मचारी अछूतों की तरह जलसे से दूर रहे , जानते है ना बड़े बाबू ?
सन्तोष- क्या?
बहकुदीन-इल्जाम भी आपके सिर आने वाला है ।
सन्तोष-यार तुम मुझे क्यों भड़का रहा है ।
बहकुदीन-भड़का नही सही कह रहा हूं अपने जासूसी कानों की कसम । गाज तो बड़े बाबू तुम पर गिरने वाली है । सावधान रहना ।
सन्तोष- क्या गाज गिरेगी । हमें ओवर टाइम और इंसीडेण्टल से कोई लगाव नही है । जरूरत पड़ेगी तो आकर काम कर दूंगा कम्पनी के लिये बस ।
बहकुदीन-यही वफादरी तो गाज का कारण बनने वाली है ।वैसे भी ये साहब अपने वालों को ज्यादा तवज्जो देते है । जब से आये है तब से दारू के कुये में कूद-कूद कर जश्न ही तो मना रहे है।यह जश्न रूतबेदार तभी होगा जब छोटे लोग जी हजुरी करे चम्मचों की तरह । जो कुछ कह रहा हूं सुनी सुनाई ही नही खंजांचीबाबू भी विक्रय अधिकारी से बतिया रहे थे इसी बारे में। सोमवार को आफिसियली छोटे लोगो को सूचित किया जायेगा ताकि छोटे लोग सपरिवार नही पहुंच पाये । देखना सोमवार को यही होगा ।
सन्तोष-अरे नही बहकुदीन इतने बड़े बड़े साहब लोग भला ऐसा सोच सकते है क्या ? तुमको कोई गलतफहमी हुई है ।
बहकुदीन-क्यों इतने भोले बन रहे हो बडे बाबू सबसे ज्यादा तो आपके साथ भेदभाव होता है । देखना मैं जो कह रहा हूं वही होने वाला है ।हमारे और आपके बच्चे जलसे में नही जा पायेगे ।दफतर की गाड़ी में तो साहब और उनका परिवार जायेगा । दफतर की गाडी साहब के लिये चैबीस घण्टे के लिये रिजर्व है । हम जैसे छोटे लोग तो भर आंख देख भी नही सकते । बाकी लोगों का इन्टाइटलमेण्ट है ट्रवेल से कार बुला लेगे हम और आप साइकिल से जायेगे क्या ? पूरा परिवार लेकर वह भी ‘ाहर से पच्चीस किलोमीटर दूर ।
सन्तोष- चिन्ता मत करो साहब सबके लिये व्यवस्था करेंगे । ऐसा भेदभाव नही करेगें । अरे हमारे नाम का भी पैसा तो कम्पनी ने दिया है सिर्फ साहब लोगेां के लिये थोडे ही स्थापना दिवस का जलसा आयोजित होता है ।
बहकुदीन- मुझे जहां तक जानकारी है लाभचन्दसाहब सिर्फ अधिकारी वर्ग को जलसे में ‘ाामिल करना चाहते है । हंसमुखसाहब जैसे छोटे बड़े सबको साथ में लेकर नये साहब नही लेकर चलने वाले । पुराने ख्यालात के लगते है । पुराने ख्यालात के लोग कितने खतरनाक होते है वंचितों के लिये।बड़े बाबू ये क्यो भूल जाते हो आप भी उसी वंचित समाज से आते हो । आपके खिलाफ कितने “ाणयन्त्र रचे गये और रचे जा रहे है निरन्तर यहां क्या आप भूल गये ।
सन्तोष-ऐसी बाते मत करो बहकुदीन । पढे लिखे हो उच्च विचार रखो । कांटे बोने वालों के लिये फूल बोओ बाकी सब भूल जाओ। अच्छाई के बारे मे सोचे बुरी त्यागो बहकुदीन । अभी जलसे की कोई चर्चा नही है । सोमवार को जश्न कैसे मन पायेगा । मुझे तो नही लगता । बहकुदीन जब भी जलसा आयोजित होगा हमारे तुम्हारे और सभी के बच्चे ‘ाामिल होगे कम्पनी के जलसे में । यदि तुम्हारी बात सही हुई तो सचमुच में छोटे कर्मचारियों के साथ अन्याय होगा ।
बहकुदीन-अन्याय तो होकर रहेगी क्योकि हवा लाभचन्द साहब के ज्वाइन करते ही विपरीत चलने लगी है खासकर छोटे और ‘ाोषित कर्मचारियों के सन्तोषबाबू । आप मेरी बात मान भी तो नही सकते क्योंकि आपका दर्जा मुझसे थोड़ा उुंचा जो है ।
सन्तोष-बहकुदीन तुम भी कर्मचारी हो मैं भी । ठीक है मैं बाबू हूं तुम चपरासी हो बस इतना सा फर्क है ।
बहकुदीन- साहब लोग तो इससे उपर सोच रहे है ना ।कर्मचारियों और अधिकारियों में गैप मेन्टेन करना चाहते है । ‘ाुरूआत तो बहुत पहले से हो गयी है । आप तो भेद की तलवार हर चहरे पर तनी दिखने लगी है । खैर बहुत बात हो गयी । इस बारे में किसी से कुछ कहना नही । नही तो मैं तारगेट हो जाउूंगा ।जश्न तो सोमवार को ही मनेगा यह भी नोट कर लेना ।
सन्तोष-इतना अन्याय तो नही होगा बहकुदीन ।
बहकुदीन-होगा मेरी बात क्येां नही मानते । पुराने सारे अन्याय भूल गये क्या ?
सन्तोष-हां । कल का सूरज खुशी लेकर आयेगा ।
बहकुदीन-सोचने और हकीकत में अन्तर है ।अपने दफतर में यह अन्तर सिर चढ़क बोलने लगा है ।
सन्तोष-देखते है सोमवार को क्या होता है? अब मुझे काम कर लेने दो ।बहुत काम है । देखो इतनी सारी रिर्पोट बनानी है और टाइप भी करनी होगी ।
बहकुदीन-करो बाबू अरमानों की बलि चढाकर । इन लोगों को खुश नहीं कर पाओगे कितनों रात दिन एक कर दो । ‘ानिवार और रविार की छुटटी है । असलियत से तो सोमवार को रूबरू हो पाओगे सन्तोष बाबू ।
सन्तोष-इन्तजार करूंगा और भगवान से प्रार्थना भी कि सब कुछ अच्छा हो ।
‘ानिवार और रविवार की छुट्टियां खत्म हो गयी । सोमवार के दिन सन्तोष दफतर पहुंचा दोपहर के खाने की टिफिन लेकर । ग्यारह बजे तक सन्तोष को भनक तक नही लगने पायी पर अन्दर -अन्दर सारी तैयारियंा चल रही थी । ‘ानिवार और रविार की छुट्टियों मेंे बच्चों के खेल खिलौने एवं गिफट् आदि के नाम पर अच्छी खरीदारी और कमाई भी लाभचन्दसाहब के चम्मचों ने की । दो दिन की छुट्टी का इंसीडेण्टल भी लिये । खैर ओवरटाइम और दूसरे अन्य फायदों से सन्तोंष को पहले से ही दूर रखे जाने का “ाणयन्त्र था पर काम तो करना ही पड़ता था आंखों में आसू छिपा कर । सन्तोष काम में लगा हुआ था इतने में बहकुदीन पानी का गिलास टेबल पर पटकते हुए बोला लो बड़ेबाबू पानी पी लो ।
सन्तोष-पानी पिला रहे हो या टेबल तोड़ रहे हो ।
बहकुदीन-बडे़बाबू दिमाग बहुत खराब है अभी ।
सन्तोष-क्यों ।
बहकुदीन-कम्पनी की स्थापना के जलसे का आयोजन आज हो रहा है ना । मेरे बच्चे कैसे जायेगे । सब स्कूल गये है । मैं खुद टिफिन लेकर आया हूं ।होटल चांद ‘ाहर से बीस किलोमीटर दूर है । कैसे पहुंच सकता हूं ।
सन्तोष-क्या....? मैं भी टिफिन लेकर आया हूं ।मेरे बच्चे भी स्कूल गये है । ये कैसा जलसा है । इतने में लाभचन्द साहब कालबेल पर जैसे बैठ गये बहकुदीन भागा भागा गया ।
साहब-बहकुदीन होटल चांद में आ जाना कुछ देर में । टाइपिस्ट क्या नाम है उसका ?
बहुकदीन-बड़े बाबू का नाम ।
साहब-हां वही तुम्हारे बड़े बाबू ।
बहकुदीन-सन्तोष बाबू.....
साहब- हां । सन्तोष..... उसको भी बोल देना । लंच तुम लोग वही कर लेना ।
बहकुदीन- कोई प्रोग्राम है होटल चांद में साहब ?
साहब-हां कम्पनी के स्थापना दिवस का जलसा मन रहा है ना आज ।
बहकुदीन-क्या ?
साहब-मुंह क्यों फाड़ रहे हो । जाओ बड़े बाबू को बुलाकर लाओ ।
बहकुदीन- साहब के हुक्म का तामिल किया ।
सन्तोष साहब के सामने हाजिर हुआ । साहब उसको देखकर बोले क्यों सन्तोषबाबू जलसे में नही चल रहे हो क्या ?
सन्तोष- कैसा जलसा सर....
साहब-क्यों खंजाची साहब ने तुमको नही बताया था ? क्या तुमको ये भी पता नही सभी कर्मचारी सपरिवार इस जलसे में ‘ाामिल होते है ।
सन्तोष- सभी सपरिवार ‘ाामिल होते है यह तो मालूम है पर ये तो नही मालूम था कि अभी ग्यारह बजे जलसे का आयोजन हो रहा है । वह भी ‘ाहर बीस किलोमीटर दूर पहाड़ो के बीच में ।
साहब-अब तो मालूम हो गया ना ? आने का मन बने तो जाना नही तो दफतर का काम देखो कहते हुए लाभचन्द साहब सुसज्जित कार में बैठ गये कार पहाड़ों के बीच स्थित चांद होटल की और दौड़ पड़ी और उसके पीछे दूसरे अफसरों के कारों का काफिला भी । अब सन्तोष बाबू के सामने सिर धुनने के सिवाय और कोई रास्ता न था ।
बहकुदीन- बड़े बाबू क्यों सिर पर हाथ रखकर बैठे हो। ‘ााम छ- बजे तक काम निपटाओ और घर जाओ साहब यही कहकर गये है ना । वाह रे साहब छोटे कर्मचारियों का हक मार कर बोतले तोड़ेगे,ठुमका लगायेगे । ये कैसे साहब लोग है जो भ्रष्टाचार को पोष रहे है ? कमजोर कर्मचारियों के हित दबोच रहे है । ‘ोाषित @ कमजोर कर्मचारियों के हितों की रक्षा सामन्तवादी सोच के साहब लोग कैसे होने देगे ? देखो सन्तोष बाबू मैं तो अब जा रहा हूं । लंच करने का मन नही हो रहा है,मुझे निकाह में जाना है । चाभी रखों । बन्द कर देना । तकलीफ तो होगी पर सुबह थोड़ा जल्दी आ जाना । झाडू वाली नौ बजे आती है ना ।
सन्तोष-ठीक है । मुझे तो बैठना ही होगा वरना कोई इल्जाम सिर आ जायेगा ।
बेचारे सन्तोषबाबू सायं साढे छ- बजे तक दफतर में काम करते रहे । साढे सात बजे घर पहुंचे । पापा के आने की आहट से बडी बीटिया बाहर आयी । सन्तोषबाबू के हाथ से टिफिन थामते हुए बोली पापा आपकी कम्पनी का सालाना जलसा कब होगा ? सन्तोषबाबू की जीभ तलवे से चिपक गयी इतना बोल पाया कि कब तक जलना होगा मुर्दाखोर भेदभाव की आग में और अचेत होकर खटिया पर गिर पड़ा धड़ाम से ।
डां.नन्दलाल भारती
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