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जनसमूह

 
 जनसमूह

ये जनसमूह 

सिर्फ 

लोगों की भीड़ नहीं 

नहीं ये कोई मामूली लोग

नहीं

धरती के भार

नहीं अन्न जल के दुश्मन

ये श्रम के देवता

चमत्कारी उत्पादक भी

भीड़ के नाम से

इनकी पहचान नहीं

अवसर की तलाश है

भीड़ को भी

अपनी जहाँ के

स्वार्थी प्रदूषण ने

अनाम कर दिया है

सपने दिखाने वाले

बस दिखाकर

उत्पाद समूह के 

हाथ बांध देते है

भीड़ के रूप मे खड़ा कर देते है

अतिक्रमण बचा रहे

खुली आंखों से पड़ताल कर लो

जल जंगल जमीन से आसमान तक

किसके कब्जे में हैं

वो भूमिपति है जिसने 

कभी खेत मे पांव नहीं रखा

पीढियां गल रही जिसकी

मांटी मे लथपथ

ये अत्याचार सब जगह

खेत से दरबार तक

हाथ को काम मिलता तो

ये नहीं होती

काम दिलाने वाले 

सपने दिखाकर बस

व्यापार कर निकल जाते हैं

जनसमूह ताकता रह जाता है

रास्ता

ये खेल है भीड़ दिखाने का

भीड़ जिस दिन अपने हक पर

उतर जायेगी

हिल जायेगा सिंहासन

आश्वासन से पेट नहीं भरता

जनसमूह को हक चाहिए

जमीन से आसमान तक

मिल गया हक तो

फिर देखना 

यही जनसमूह

दूह लेगा सोना जमीन 

और

आसमान से.........

डां नन्द लाल भारती

28/09/2021


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