वर्तमान युग औद्योगिक और सूचना क्रांति का युग मे नित दुनिया छोटी होती जा रही है| बाजारीकरण का दौर बेखौफ जारी है |इस बाजारीकरण को विज्ञापन और अधिक लुभावने बनाते जा रहे है| ऋण लेकर घी पीने का प्रचलन दुर्तगति से बढ़ा है| हर छोटी बड़ी चीज की पैकिंग,प्रदर्शन से लेकर ही नहीं दैनिक जीवन उपयोगी वस्तुये भी प्लास्टिक आने लगी है| आज का आदमी कितना निष्ठुर हो गया है कि खाद्य पदार्थों मे बड़ी बेशर्मी से प्लास्टिक तक कि वस्तुओं का मिलावट करने लगा है,बतौर उदाहरण प्लास्टिक के चावल को ले सकते है,फलोको चमकाने के लिए फलो के ऊपर हो रही पालिश भी इसका उदाहरण है,सुनने मे आ रहा है कि बाजार मे प्लास्टिक कि सब्जियाँ बिकने लगी है,इसके अलावा और कहाँकहाँ प्लास्टिक का उपयोग कर स्व-हित केलिए जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है|ये जानलेवा हमले मिलावटखोरो/मुर्दाखोरों द्वारा चोरी-छिपे किया जा रहा है,इन मिलवटों की शिनाख्त भी होने लगी है|प्लास्टिक संस्कृति का अंधाधुंध विकास विनाश का न्यौता साबित तो होने लगा है परंतु जो प्लास्टिक परोक्ष रूप सेजीवन,पर्यावरण,जल और जमीन के लिए घातक साबित हो रहा है और किसी से छिपा भी नहीं है |इसके बाद भी प्लास्टिक थैली उपयोग संस्कृति पर पूर्णतः लगाम नहीं लग रही है| प्लास्टिक की थैलियो के उपयोग के खतरे को देखते हुये झोला संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए | झोला संस्कृति का प्रचलन पर्यावरण सुरक्षा मे मील का पत्थर साबित हो सकता है, बशर्तेशासन-प्रशासन कठोर फैसले ले तब न,यहाँ तो ढुल-मूल रवैया जारी है,अपनी-अपनीढफली अपना अपना राग| देश हित मे फैसले लेने की दृढ़ इच्छा शक्ति भी तो होनी चाहिए| जी एस टी और नोटबंदी पूरे देश मे एक साथ लागू हो सकता है तो प्लास्टिक की थैलियो के उपयोग पर प्रतिबंध पूरे देश मे एक साथ क्यों नहीं हो सकता ?प्लास्टिक के प्रतिबन्ध से महगाई जैसी अवैध संतान पैदा होने का खतरा भी तो नहीं है|
महानगर हो या टाउन एरिया या गाँव का हाट आर्थिक उदारीकरण और उपभोकतवाद की संस्कृति ने चारो ओर अपशिष्ट के ढेर खड़े करने शुरू कर दिये है जिसमे प्लास्टिक के कचरे की अधिकता होती है| ये कचरे के ढेर जीवन के लिए खतरा सिध्द हो रहे है|भागदौड़ के इस दौर मे झोला प्रवृति तो खत्म सी हो गई है| एक समय था गाँवो मे प्लास्टिक की थैलियो का दूर दूर तक कोई नामो निशान नहीं था|बाजार जाते थे तो घर से झोला ले जाते थे,मिट्टी का तेल लेने के लिए डिब्बा ले जाते थे,कम मात्रा मे खाने वाले तेल के लिए शीशी ले जाते थे जो अक्सर काँच की होतीथी| दुकानदार भी किलो भर सामानकागज मे ऐसे बांध कर दे देता था कीसामान के बिखरने की गुंजाइश नहीं होती थी| आज सब कुछ बदल गया है| गरम चाय भी प्लास्टिक के कप मे मिलती है,जैसाकि गरम पदार्थ का प्लास्टिक के साथ संसर्ग होने से रासायनिक क्रिया होती है जिससे जहरीला रसायन पैदा होता है,जो स्वास्थ के लिए बहुत हानिकारक होता है,इसके बाद भी बेधड़क सब कुछ चल रहा है| लोगो का जीवन भाग्य भरोसे चल रहाहै |गाँव टीके प्लास्टिक कि घुसपैठ हो गयी है| कुटीर उद्योगो पर ग्रहण लग चुके है|मिट्टी के पुरवा,बर्तन,बरगद,महुवा के पत्तों सेबनाने वाले दोने पतलो का तो नामो निशाननहीं,चहुओर प्लास्टिक के गिलास दोने पतल ही मिलते है| प्लास्टिक के कचरे तो सदियो तक नहीं सड़ते जबकि प्रकृतिकसंसाधनो से बने अर्थात मिट्टी के पुरवा,बर्तन,बरगद,महुवा के पत्तों से बनेदोने पतल जल्दी सड़कर कम्पोस्ट खाद के रूप मे परिवर्तित हो जाते है, जो स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है प्राकृत के लिए फायदेमंद है और कृषि के लिए भी उपयोगी है, इस कम्पोस्ट से खेत मे मित्र कीट भीपैदा होते है| वर्तमान बाजारीकरण के इसदौर मे गृह उद्योग/कुटीर उद्योग अथवाग्रामीण उत्पाद तो बंद ही हो गए है,इसके लिए शासन-प्रशासन ही जिम्मेदार तो है ही समाज भी काफी हद तक जिम्मेदार है |सामाजिक ठेकेदार मिट्टी के पुरवा,बर्तन,बरगद,महुवा के पत्तों से बनेदोने पतल,जूते चप्पल बनानेवालों,बढ़ईगीरी,लोहारगीरी करने वालॉ कोनींच समझते थे,अछूत समझते थे, इन्ही भेदभाव के कारण कुटीर उद्योग तो बंद ही हो गए| सामाजिक ठेकेदारो ने तो हतोत्साहित किया ही परंतु सरकार ने भी इन गृह उद्योगो की तरफ उलट कर नहीं देखा| नतीजन चारो तरफ प्लास्टिक के कचरे का ढेर खड़ा होने लगा है |जान लेवा प्रदूषण होने लगा है| देश की राजधानी को तो गैस का चैंबर तक कहा गया है |
दुनिया के प्रदूषित महानगरो मे से एक है|दिल्ली मे कचरे के पहाड़ के गिरने की वजह से कई जाने चली गई थी } कितना अजूबा है,अभी तक बरसात के मौसम मे भूस्खलन पहाड़ो के खिसकने के समाचार आते थे |अब कचरे के पहाडॉ से कचरे गिरने से मौत की खबर आने लगी है| इस कचरे के पहाड़ मे अधिक से अधिक प्लास्टिक का कचरा ही होता है|दिल्ली दुनिया के देशो मे प्रदूषण के मामले मे आगे तो था ही अब तो देश के दूसरों नगरो महानगरो को स्थिति भी बाद से बदत्तर होती जा रही है|प्लास्टिक का दिनप्रतिदिन बढ़ता उपयोग और खड़े होते अपशिष्टों के पहाड़ इंसानी सभ्यता कोनिगलने खत्म करने की राह पर अग्रसर है |प्लास्टिक के कचरो और दूसरे अपशिष्टों के निस्तारण के लिए सार्थक प्रयास नहीं किए गए तो कही ऐसा न हो कि जिस तरह गिध्द लुप्तप्राय हो गए है वही स्थिति इंसानो की नहो जाए| ऐसी परिस्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि भारतीय कुटीर उद्योगो कोऔर झोला संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए |
आधुनिक जीवन शैली फास्टफूड, यूज एण्ड थ्रो को बढ़ावा दे रही है जिससे कचरा संस्कृति तीव्रगति से बढ़ रही है| कचरे के पहाड़ निर्मित हो रहे है|ये प्लास्टिक के कचरे गायों के पेट मे भंडारित हो रहे है,जिससे गली-कूचे मे मारी मारी फिरने वाली गायों का जीवन संकट मे है| इनगायों के पालक भी बेशर्मी की हदे पार कर रहे है,दूध निकाल कर गायों को गली मोहल्ले मे छोड़ देते है| ये गायें कचरे प्लास्टिक के कचरे से अपनी उदरपूर्तिकरती है,इन गायों की कोई खबर न तो पालक लेता है न तो गौ रक्षा के नाम पर रोटियाँ सेंकने वाले लोग| वर्तमान कचरा संस्कृति का फैलाव इतनी तीव्रगती से हो रहा है की समुद्र और समुद्रीजीव प्लास्टिक कचरा की लपेट मे आ गए है | झोला संस्कृति को अपनाकर प्लास्टिक कचरा संस्कृति पर विराम लगाया जा सकता है|दुनिया के देशो मे प्लास्टिक के उपयोग को न्यूनतम करने के लिए प्लास्टिक के प्रयोग को हततोत्साहित करने के लिए टैक्स बढ़ाया गया| इस राशि को सरकार ने पर्यावरण कोश मे लगा दिया| टैक्स के बढ़ते बोझ से दुकानदारो ने प्लास्टिक को छोड़कर दूसरे तरह के थैलो का उपयोगशुरू कर दिया|इस नीति मे आयरलैंड कामयाब रहा | केन्या गरीब देश है इसके बाद भी उसने प्लास्टिक थैलो से हो रहे पर्यवारणीय नुकशन को समझा और प्लास्टिक को पूर्णरूपेण प्रतिबंधित कर दिया है | केन्या मे प्लास्टिक के बैग के उपयोग और बढ़ावा देने के लिए आर्थिक दंड ही नहीं जेल की सजा का भी प्रावधान है |चीन,इटली,फ्रांस,रवांडा जैसे देशो मे भी प्लास्टिक पीआर प्रतिबंध है|अमेरिका जो पूर्ण विकसित देश है वहाँ कागज के बैग लोकप्रिय है| हमारे देश मे कानून कायदो की खुल्लेयाम धज्जिया उड़ाई जाती है,कानून कायदे तोड़ने की जैसे लोगो ने कसमखा रखी है,प्लास्टिक के थैली पर पूर्णतःप्रतिबंध लग रहा है| इस दृष्टि से सरकार का रवैया ढुलमुल ही बना हुआ है| ना जाने क्यों सरकार कड़े फैसले नहीं ले पा रही है|प्लास्टिक की थैली पर पूर्णतः प्रतिबंद लग जाने से, जीएसटी और नोटबंदी के संसर्ग जैसे महंगाई की मर बढ़ गयी है वैसे अवैध संतान के पैदा होने का डर तो नहीं ? झोला संस्कृति को बढ़ावा देने से तो कुटीर उद्योग से संबन्धित रोजगारो के सृजन की संभावना और बढ़ जाने वाली है |
आज कचरा,प्लास्टिक कचरा बड़ी समस्या बन चुका है|जल थल वायु एसबी जगह प्रदूषण है|पवित्र नदियों का पनि इतना गंदा हो चुका है कि स्नान करने लायक भी नहीं बचा है|बेतहासा चार पहिया वाहनों कि बढ़ती संख्या से प्रदूषण को बढ़ावा मिल रहा है| ग्रामीण आवागमन के परंपरागत साधनबंद /समाप्त हो चुके हैं सब ओरआधुनिकता का बोलबाला है| फास्टफूड का प्रचालन बढ़ चुका जो अक्सर प्लास्टिक कि पैकिंग मे आता है|फास्टफूड स्वास्थ कि दृष्टि से भी उपयुक्त नहीं है,कई बीमारियों को जन्म देता है,कचरा तो बढ़ता ही है|इसी कचरे को रोकना है,ताकि कचरे के पहाड़ नही खड़े हो सके,कचरा संस्कृति को रोकना जीवन के लिए हितकर होगा| प्लास्टिक के ककचरे कि चपेट मे समुन्द्र भी आ चुके है|अधिक समय तक ये प्लास्टिक समुद्र मे रहते है तो अतिसूक्ष्म आकार मे परिवर्तित हो सकते है जो समुंद्री जीवो के लिए ही नहीं पर्यावरण और मानव सभ्यता के लिए विनाशकरी हो सकते है| प्लास्टिक निर्माण से लेकर उपयोग तक खतरनाक होता है,इसके निर्माण मे पेट्रोलियम से प्राप्त रसायन का उपयोग होता है, जो किसी भी दृष्टि से न तो पर्यावरण के लिए लाभकारी है न जल जमीन,जंगल के लिए | जीवन के लिए मीठे विष जैसा है| प्लास्टिक का उत्पादन प्रायः लघु उद्योग मे होता है, जहां गुणवत्ता से संबन्धित मानकों का पालन भी नहीं होता होगा|
आज उपभोक्तावाद अर्थात कचरा संस्कृति ने महानगरो,नगरो,टाउनएरिया से लेकर सुदूर गावों तक को अपनी चपेट मे ले लिया है|मानव सभाया के लिए यह कचरा संस्कृति जानलेवा है| इस प्लास्टिक कचरा और दूसरे कचरे कि संस्कृति से निपटने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे है|प्लास्टिक का उपयोग ऐसे बेखौफ होता रहा तो एक दिन मानव सभ्यता को निगल लेगा| इस कचरे संस्कृति पर आम से लेकर खास आदमी को प्रयास करना होगा| इंदौर जैसे शहर मे कचरा संस्कृति पर काफी हद तक विराम लग चुका है,झोला संस्कृति भी अस्तित्व मे आ चुकी है| भविष्य मे प्लास्टिक कचरा अथवा दूसरे कचरो के पहाड़ न खड़े हो,और न इन पहाड़ो के खिसकने से लोग मरे,जल,जमीन और पर्यावरण प्रदूषित न हो,सांस लेने के लिए उपयुक्त आक्सीजन मिल सके,जीवन कचरे/प्लास्टिक के कचरे से उत्पन्न होने वाली महामारियों से सुरक्षित बना रहे,जरूरी होगा कि जब हम ख़रीदारी के लिए निकले झोला लेकर ही निकाले|वर्तमान मे प्लास्टिक कचरे,दूसरे तरह के कचरे और पर्यावरण केप्रदूषण को देखते हुये आवश्यक हो गया है कि हम झोला संस्कृति विकसित करे,जो जल,जमीन,पर्यावरण और मानव सभ्यता के लिए हितकारी होगा|पर्यावरण और मानव सभ्यता कि सुरक्षा के झोला संस्कृति का विकास हमारा नैतिक नायित्व होगा है| अब हम झोला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए दृढ़ संकल्पित हो जाते है | झोला संस्कृति मे ही मानव सभ्यता का भला निहित है |
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