हे काल तू ही ,गाल बजा दे ,
कब आएगी बहार ,
अदने की ज़िन्दगी में।
आह अपने बेगाने हो रहे है ,
माया से रिश्ते-नाते जुड़ रहे है।
अरमान वंचित-दीन के दफ़न हो रहे ,
मर रहे सपने दिल में घाव बन रहे।
भाग्य -दुर्भाग्य में बदल रहा ,
आदमी -आदमी की तकदीर कैद कर रहा।
कर बंद तरक्की के रास्ते आदमी ने आंसू दिए,
अपराध खुद का तकदीर के माथे मढ दिए।
उम्मीदों को ग्रहण, थकता जा रहा
हिस्से आया पसीना नयन बरस रहा।
हे काल तू बता क्या से क्या हो गया ,
निचोड़ रहा हाड, सपना ताबा ह हो गया।
कैसी खता कमेरी दुनिया का आदमी ,
बहार से बिछुड़ गया ,
हे काल अब तो तू ही बता दे ,
कब आएगी बहार दीन वंचित ही ज़िन्दगी में।
डॉ नन्द लाल भारती
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