जीने के लिए
मैं टूट या बिखर रहा हूँ
नहीं....नहीं.....बिल्कुल नहीं
टूटकर या बिखरकर
जीने के लिए नहीं पैदा हुआ हूँ
ना ही मेरे माता-पिता का था
ना ही मेरा कोई ऐसा इरादा है
मेरा सुख अपनो का था
अपनो के सपने अपने थे
और आज भी जीवित हैं
मैं अपनो की धड़कन था
और अपने अपनी
लगता है
मतलब की आंधी मे
मैं छूटता जा रहा हूँ
पीछे......पीछे और पीछे
कहां किसी को फिक्र है
पीछे छूटने वाले की
शायद
मंशा भी दायें-बायें करने की ही है
मैं भी कहां हार मानने वाला
पीछे छूटते हुए भी
सपनों की गठरी सिर पर लादे
सम्बंधों की ढीली होती बुनाई को
सीये जा रहा हूँ
वही लोग हैं जिनके लिए
रिस रहा था और आज भी
पैर जमे क्या तनिक
दायें-बायें करने लगे हैं आजकल
पुरानी अनुपयोगी समान की तरह
मैं टूट जाऊंगा बिखर जाऊंगा
नाजुक कांच की तरह
इतना कमजोर तो नहीं
मां बाप की सांस
बसती है मुझमें
नई जहां रच लूंगा
अपनो के लिए सीये
सपनों की गठरी सिर पर लादे
जीने के लिए
हो सकता है दिल पर
पत्थर रखकर
मुझे ही मारने हो
हिम्मत के साथ
मरते हुए अपने सपने
सम्मान के साथ
जीने के लिए..... ।
डां नन्द लाल भारती
24/11/2021
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