गिर-गिर कर चलने की जिद ने
सीखा दिया है चलना ,
सिखने की जिद ने सीखा दिया ,
ज़मीन पर पाँव टिकाना।
पाँव टिकाते-टिकाते ,
शुरू कर दिया
सपने भी देखना ,
देखते-देखते कर दिया है ,
साकार।
बिटिया के सपने ,
अब हरने लगे है ,
दर्द भी,
जीवन रक्षक दवाई की तरह।
कामयाबी की मिशाले तो अब ,
बदलने लगी है पुरानी सोच ,
पाने लगे है आकार,
बेटा -बेटी एक सामान के विचार।
जाग चुका है जज्बा
कल्पनालोक रोशन करने का
बिटिया की उड़ान को देखकर ,
अब तो मन होता है कि ,
हर बेटी से कहूं
आ थाम लू तेरी अंगुली
और
चलना सीखाऊ जीवन पथ पर
जगा दूं
जीवन के कैनवास पर
रंग भरने का जज्बा
क्योंकि
तुम हो तो रोशन है ,
ये दुनिया।
डॉ नन्द लाल भारती
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