Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जनून

 

 

मुरली-क्यों मुंषी भईया माथे पर चिन्तित बैठे हो,मुर्दाखोरों ने मुट्ठी भर आग का दहकता दर्द दे दिया क्या ? लगता है कोई नई मुष्किल आन पड़ी ।
मुंषी-मुरली जमान में तो मुर्दाखोरां की तूती बोल रही है। क्या करेंगे मुर्दाखोर नसीब में विशमताओं के कलछुले से आग ही भरेगें जीवन तबाह करने के लिये। इस मुट्ठी आग को फेंकना कठिन हो गया । यह आग तो पहचान बन गयी है जबकि कर्म से आदमी की पहचान बनती है परन्तु यहां तो आंख खुली नही आग मुट्ठी में भर दी जाती है । मुट्ठी भर आग ठण्डी नही हो पा रही है । यही चिन्ता है और अषान्ति का कारण भी ।
मुरली-माथे पर चिन्ता और जमाने की दी हुई मुट्ठी भर भर आग ठण्डी करते हुए तुम तो कलयुग के कर्ण बन गये हो ।
मुंषी- क्यों मजाक बना रहे हो मेरी दीनता और मुट्टी भर आग मे मर रहे सपनो का । आदमी की मदद कर देना कोई गलत तो नही । मुझसे जो हो जाता हे कर देता है । किसी से उम्मीद नही करता की बदले में मेरा कोई काम करें । अरे नेकी कर दरिया में डाल । इस कहावत में रहस्य है मुरली ।
मुरली-देखो आखिरकार सच्चाई जबान पर आ गयी । किसी ने नेकी के बदले बदनेकी की है ना । अरे भईया लोग बहुत जालिम हो गये है । काम निकल जाने पर पहचानते ही नही । तुम्हारे पड़ोस सुनील खड़ुस की तरह । किस किस का भला करोगे खुद तकलीफ उठा कर । परमाथ्र का राही बनने से बेहत्तर है कि खुद का घर रोषन करो ।
मुषी-कुछ लोगों को आदमियत के विरोध की लत पड़ चुकी है तो कुछ लोगों को आदमियत और परमार्थ के राह चलने की । हमे आदमियत और परमार्थ काम में आत्मिक सुख मिलता है ।
मुरली-क्यों न बच्चों के मुंह का निवाला छिन जाये ।धूपानन्द का तुमने कितना उपकार किया । आखिरकार उसने तुमकों ठेंगा दिखा दिया ।यही परमार्थ का प्रतिफल है ।
मुंषी-परमार्थ प्रतिफल की चाह में नही किया जाता ।परमार्थ के लिये तो बुघ्द ने राजपाट तक छोड़ दिया । यदि आज का आदमी अपने सुखों में तनिक कटौती कर किसी का हित साधे दे तो बड़े पुण्य का काम होगा । आदमी होने के नाते फर्ज बनता है कि हम दीनषोशित वंचित दुखी के काम आये ।
मुरली-खूब करो । धूपानन्द को कितने साल अपने घर में रखे खानखर्च उठाये नौकरी लगवाये जबकि तुम्हारे उससे कोई खून का रिष्ता भी न था । उसके परिवार तुम अपयष लगाये ।धूपानन्द के दिन तुम्हारी वजह से बदले । वही तुमको आंख दिखा रहा है । उसके घर वाले तुमको बेईमान साबित करने में जुटे रहे । नेकी के बदले क्या मिला दुनिया भले ही न कहे पर धूपानन्द के चाचा चाची,भाई भौजाई ने तो कह दिया ना कि भला आज के जमाने में बिना किसी फायदे को कोई किसी को एक वक्त की रोटी नही देता मुंषी चार चार साल फोकट में धूपानन्द का खानखर्च कैसे उठा सकता है । मुरली भाई तुम्हारी नेकी तो सांप को दूध पीलाने वाली बात हुई ।
मुंषी-हमने अपनी समझ से अच्छा किया है । मै खुष हूं एक लाचार की मदद करके । यदि कोई मेरे नि-स्वार्थ भाव को स्वार्थ के तराजू पर तौलता है तो तौलने दो । सच्चाई तो भगवान जानता है । परमार्थ तो नि-स्वार्थ भाव से होता है । स्वार्थ आ गया तो परमार्थ कहां रहा । दुर्भाग्यवस किसी की मुट्ठी आग से भर जाये तो आदमी होने के कारण जलन का एहसास कर षीतलता प्रदान करना चाहिये की नहीं ।वैसे भी रूढिवादी व्यवस्था ने तो हर मुट्ठी में आग भर दिया है ।
मुरली-वाह रे हरिष्चन्द्र वाह करते जा नेकी । खाते जा दिल पर चोट । दर्द पीकर मुस्कराता रह और करता रह परमार्थ ।अब तो चेत जा ।
मुषी-कोई गुनाह तो नही किया हूं कि प्ष्चाताप करूं । आदमी का नही भगवान का सहारा है मुझे । आदमी को परमात्मा का प्रतिरूप् मानकर सम्मान करता है।यही मेरी कमजोरी है । यही कारण है कि आग बोने वाले मतलबियों की महफिलों में बेगाना हो जाता हूं ।हमारी नइया का खेवनहार तो भगवान है । मुट्ठी ही नही तकदीर में आग भरने वाले तो बहुत है ।
मुरली-मुंषी भइया ऐरे गैरों के लिये अपनों का पेट काटते रहते हो,खुद को तकलीफ देते हो इसके बदले तुमको क्या मिला ।अरे धूपानन्द के परिवार वालो का देखो एक भी आदमी तुम्हारी बीमारी की अवस्था में हालचाल पूछने तक नही आया ।धूपानन्द ने कौन सा अच्छा सलूक किया तुम्हारे बच्चों को अपषब्द बककर गया ।तुम्हारे पडंोसियों को देखो जिनके दुख मे रात दिन एक कर दिये वही तुम्हें बदनाम कर रहे है ।तुम्हारे दुष्मन बन रहे है ।ऐसी नेकी किस काम की भइया मुंषी ।
मुंषी-यकीन कोई दौलत तो नही मिली पर आत्मिक सुख तो बहुत मिला है ।यह सुख रूपये से खरीदा भी नही जा सकता ।परमार्थ के राह में रोड़े तो आते है वह भी हम जैसे गरीब के लिये जिसे रूढिवादी समाज ने मुट्ठी भर आग के सिवाय और कुछ न दिया हो ।नेकी की जड़े पाताल तक जाती हैं ओर गूंजे परमात्मा के कानों को अच्छी लगती है । स्वार्थ की दौड़ में षामिल न होकर मानवकल्याण के लिये दौड़ना चाहिये। इस दौड़ में षामिल होने वाला परमात्मा का सच्चा सेवक होता है ।
मुरली-दौड़ो भइया नेकी की राह पर मुट्टी भर आग लिये । अरे पहने अपनी मुट्ठी की आग को षान्त तो करो । जिस आग ने सामाजिक आर्थिक पतन की ओर ढकेले है ।
मुंषी-परहित से बड़ा कोइ्र धर्म नही है । यह बात ज्ञानियों ने कही है । मुट्टी में आग भरने वालो ने नही ।आज का आदमी इस महामन्त्र को आत्मसात् कर ले तो धरती पर बुध्द का सपना फलीभूत हो जाये ।
मुरली-मुंषी भइया अपने परिवार के हक को मारकर परमार्थ करना कहां तक उचित है ।चलो तुम परमार्थ की राह । यह राह तुमको मुबारका हो पर भइया अपने घर के दीये में तेल पहले डालो ।
मुंषी-परमात्मा की कृपा से मेरे दीये का तेल खत्म नही होने वाला है । मेरी राह में मेरा परिवार भी सहभागी है । उन्हे भी हमारे उद्देष्य पर गुमान है । हां तंगी में भी मेरा परिवार आत्मिक सुख का खूब रसास्वादन कर रहा है । सच कहूं मेरा परिवार ही मेरा प्रेरणास््राोत है ।
मुरली-अपने दिल से पूछों कितना दर्द पी रहे हो । घर परिवार पर ध्यान दो ।
मंुषी- पारिवारिक जिम्मेदारी अच्छी तरह निभा रहा हूं । इसके साथ परमार्थ का आत्मिक सुख उठा लेता हूं कोई बुराई तो नहीं ।
मुरली-मुर्दाखोरों का मुंह बन्द करते रहो,खूब करो अच्छाई के काम अपनी लेखनी से । बने रहे परमार्थ के राही । मुझे अब इजाजत दो ।मुर्दाखोरों से भगवान तुम्हारी रक्षा करें। तुम्हारे जनून को सलाम.........
मुंषी-याद रखना परमार्थ प्रभु की पूजा है ।

 

 

। डां.नन्दलाल भारती

 

 

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