Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कन्यादान

 

मिस्टर रामअधार बाबू डूबते सूरज को निहार निहारकर जैसे कोई सम्भावना तलाश रहे थे । इसी बीच उनके दरवाजे पर सफेद रंग की चमचमाती कार रूकी । रामअधार बाबू बेखबर थे । कार में से उनके पुराने परिचित गिरधर बाबू अकेले निकले और कमरे में आ गये । इसके बाद भी रामअधार बाबू के कानों को भनक न पडी । मिस्टर गिरधर बाबू मिस्टर रामअधार बाबू के पास खडे होकर बोले क्या भाई साहब जब देखो तब सोच में डूबे रहते हो । जागते हुए सपना देख रहे हो। पुष्पा भाभी से मन भर गया क्या ?
मिस्टर रामअधार बाबू चैक कर बोले कौन ?
मिस्टर गिरधर बाबू- मैं भाई साहब ?
रामअधार बाबू-आप.....बड़ भाग्य हमारे आपके दर्शन तो हो गये ।
मिस्टर गिरधर बाबू- हां .....भाई साहब डूबते सूरज में क्या तलाश रहे थे । कहते हैं डूबते सूरज को नही देखना चाहिये आप तो घुर घुर कर देख रहे थे । ये तो मैं था कही चोर घर में घुस गया होता तो ..........
रामअधार- सम्भावना तलाश रहा था । हमारे घर में चोर को कागज के अलावा और क्या मिलेगा ।
गिरधरबाबू-डूबते सूरज में सम्भावना तलाश रहे थे ।
मिस्टर रामअधार बाबू- हां भाई साहब खैर छोडिये कहां से आ रहे हैं वह भी अकेले बच्चे कहां हैं । बरखा बीटिया भी इंजीनियर हो गयी हैं अपने पांव पर खडी हो गयी है । भाई साहब आपकी चिन्ता तो दूर हो गयी। उसको भी लाना था ।
मिस्टर गिरधरबाबू- चिन्ता तो कन्यादान के बाद खत्म होगी ।
रामअधार-हां बडा बोझ तो उतरना बाकी है ।खैर ये भी उतर जायेगा । भाई साहब आप तो कह रहे थे सपरिवार आये है । कहां हैं बाकी लोग ।
मिस्टर गिरधर बाबू-हां भाई साहब........बरखा बीटिया बेटा उदय,उनकी मां और पंडितजी कार में है ।
मिस्टर रामअधार-पंडितजी को लेकर कहीं जा रहे हैं क्या ?
मिस्टर गिरधरबाबू-यहीं तक आये हैं और कहीं नही जाना है ।
मिस्टर रामअधार-कर्मकाण्ड में तो मेरा विश्वास नही है । हम तो बस भगवान को मानते है । खैर आप लेकर आये है तो मैं बुलाकर लाता हूं । आप तो बैठिये ।पंडितजी तो हमारे घर का पानी तो पीयेगे नहीं ।
मिस्टर गिरधरबाबू- क्यों नही पीयेगे जमाना बदल गया है । भाई साहब आपका बेटा विजय बडा इंजीनियर बन गया है,बेटी खुशबू भी नाम रोशन कर रही है । सबसे छोटा बेटा स्वतन्त्र भी उूंची पढाई कर रहा है । भाईसाहब अब तो अब बडे हैं । आपके सामने तो हम छोटे है । भाई साहब रूढिवादी व्यवस्था ने तथाकथित जातीय छोटे लोगों की जिन्दगी में मुट्ठी भर आग रूप बदल बदल कर भरी है । जाति से आदमी बडा नही बनता कर्म से बडा बनता है ।
मिस्टर रामअधार-भाई साहब कथनी करनी में अन्तर होता है ।
मिस्टर गिरधर बाबू- होता होगा पर मैं नही मानता ।
मिसेज पुष्पा-क्यों बहस करने लगे विजय के पापा ।भाई साहब तो अतिथि है। अतिथि तो भगवान होता है ।
मिस्टर रामअधार-भागवान कहां बहस हो रही है । कोई कोर्ट कचहरी तो नही हैं यहां । बहस तो वकीलों के बीच जज साहब के सामने होती हैं ।
मिसेज पुष्पा-जातिवाद की बीमारी एक दिन में तो खत्म होने वाली नही हैं । जातीय अभिमान में लोग खत्म करने के लिये जाति तोडो अभियान भी तो नहीं छेड रहे है ।
रामअधार-वाह रे भागवान तुम तो उपदेश देने लगी ।
मिस्टर गिरधरबाबू-भाई साहब भाभीजी ठीक कह रही है । भाभीजी जाति तोडो आन्दोलन छिडे या ना छिडे पर जातिवाद की बीमारी तो खत्म होकर रहेगी धीरे धीरे । एक दो पीढी के बाद जाति बिरादरी को नामोनिशान नही होगा । रिश्ते भी जाति के आधार पर नही कर्म और ‘ौक्षणिक योग्यताओं को देखकर तय होगंे ।
मिसेज पुष्पा-भाई साहब आप बैठिये मैं कामिनी भाभी और बच्चेा को लेकर आती हूं ।
मिस्टर गिरधर बाबू-पंडितजी भी साथ है । उन्हे नही भूलना ।
मिसेज पुष्पा- पंडित जी क्यों............
मिस्टर गिरधरबाबू-काम है.........
मिसेज पुष्पा-विजय के पापा तो कभी हाथ नही दिखाये आज तक अब बुढौती में क्या दिखायेगे ?
मिस्टर रामअधार-देखो दुनिया भले बुढा कह दे पर तुम ना कहना ।
मिस्टर गिरधरबाबू-भाई सीब को भले ही पंडित का काम न हो पर मुझे तो है।
मिसेज पुष्पा- अच्छा तो आप कोई नया काम करने जा रहे हैं ।
गिरधरबाबू-वही समझ लीजिये ।
मिसेज पुष्पा-ठीक हैं पंडितजी को भी लेकर आती हूं । पुष्पा सभी को आदर के साथ लेकर अन्दर आयी और बैठने का आग्रह करते हुए बीटिया खुशबू को आवाज देने लगी ।
मिसेज कामिनी-भाभीजी विजय नही दिखायी पड रहा है ।
मिसेज पुष्पा-कम्प्यूटर पर कुछ कर रहा होगा ।
मिसेज कामिनी-विजय बेटा बरखा के बचपन का दोस्त है । देखो कितने जल्दी सयाने हो गये । ब्याह गौने की उम्र के हो गये ।
मिसेजपुष्पा-समय को नही बांधा जा सकता भाभी जी .......
मिसेजकामिनी- ठीक कह रही हो भाभीजी । बरखा ओर उदय नन्हे नन्हे थे तो भाई साहब नहलाकर खूब तेल मालिश करते थे दोनो की धूप में बिठाकर ।
मिसेजकामिनी-याद है ।वही बच्चे अब कितने बडे हो गये । बरखा और विजय इंजीनियर बन गये । दोनो को साथ देकर मन बहुत खुश हो जाता है ।
मिस्टर रामअधार-अरे विजय देखो अंकल आण्टी आये है साथ में बरखा और उदय भी हैं । बाद में काम कर लेना । सचमुच कोई काम कर रहे हो या गेम खेल रहे हो । बाहर आ जाओ । अंकल आण्टी का पैर तो छू लो........
मिसेजपुष्पा- अपने बचपन में तो ऐसी कोई सुविधा थी ही नही । बेटा बच्चा तो है नही । समझदार है । बडा़ा इंजीनियर है ।
मिस्टर रामअधार- बच्चा कितना बड़ा क्यों न बन जाये मां बाप के लिये बच्चा ही होता है । बच्चे की तरक्की ही तो हर मां बाप का सपना होता है ।
विजय और खुशबू भाई बहन साथ साथ आये सभी के पांव छुये । विजय एक तरफ कुर्सी लेकर बैठ गया । खुशबू मिस्टर गिरधर से मुखातिब होते हुए बोली क्या अंकल आप भी हम बच्चों को भूल जाते हो ।
मिस्टर गिरधर-कैसे भूल जाता हूं । देखो न पूरा कुनबा लेकर तो आया हूं । साथ में पंडितजी भी है ।
खुशबू-बरखा के भी दर्शन दुर्लभ हो गये है। बचपन ही ठीक था । ना कोई चिन्ता ना फिकर । महीने में तो एकाध बार हम बच्चे भी मिल जाते थे । अब तो सब अपनी अपनी जिम्मेदारी सम्भालने में लगे है । बरखा भी इंजीनियर बन गयी । इयको भी फुर्सत नही रही अब ..........
बरखा- हां दीदी ठीक कह रही हो । अब जिम्मेदारी का एहसास होने लगा है ।
मिसेज कामिनी - असली जिम्म्ेादरी तो अभी आनी बाकी है ।
बरखा- तुम भी मम्मी कहते हुए मुस्करा कर चेहरा घुमा ली......
मिसेजपुष्पा-अरे अभी तो बरखा के साल दो साल में दर्शन भी हो जातेेेेेे हैं । ब्याह होने के बाद विदेश बस गयी तो सपना हो जायेगी । कामिनी भाभी बरखा का ब्याह ऐसी जगह करना की मुलाकात तो आसानी से होती रहे ना वीजा का झंझट हो ना दूसरे अन्य खुशबू के लिये भी ऐसे ही सोच रही हूं ।
मिस्टर गिरधर-बरखा तो कभी सपना नही होगी । इसकी तो गारण्टी मैं लेता हूं ।
मिसेजपुष्पा- काफी देर हो गयी चाय नाश्ता तो कुछ बना लें...
खुशबूं- मम्मी मै भी आपका हाथ बंटाती हूं .........
बरखा- दीदी मै। आपका हाथ बंटाती हूं ......
खुशबू- तुम बैठो बरखा मैं कर लूंगी । तुम मेहमान हो । बडी इंजीनियर हो चूल्ह चैके का काम तुमसे नही होगा ।
बरखा- दीदी मुझे भी तो कुछ सीखाओं .......
विजय-अरे वाह इंजीनियर साहिबा को अभी सीखना बाकी है । चार साल की इंजीनियरिंग की पढाई दो साल की पक्की नौकरी इसके बाद भी सीखना है ।
मिसेजकामिनी- बेटी गृहस्ती के गुण तो सीखने ही पडते है । चाहे कितनी ही पढाई कोई क्यो न कर ले ।
बरखा-सुने इंजीनियर साहब मम्भी क्या कह रही है कहते हुए बरखा खुशबू के साथ में कीचन में चली गयी ।
पंडितजी-गिरधर बाबू हम चाय नाश्ता नही करने आये है ।
मिस्टर गिरधर-पंडितजी इस घर में अतिथि देवता होता है । यह परम्परा अभी यहां तो कायम है । भले ही आपको दूसरी जगह नही देखने को मिलती हो ।
पंडितजी-हमे तो नहीपीना है ।
मिस्टर गिरधर- पीना होगा पंडितजी........
पंडितजी-यजमान हमें जातिपांति में अब विश्वास नही है । हम तो सम्मान के भूखे हो गये है ।इतिहास में कुछ गलतियां हुई हैं उसी पा्रयश्चित कर रहा हूं । पुरखों की गलतियों के लिये क्षमा मांगता फिरता हूं । यजमान हम किसी काम से यहां आये हुए है । काम की बात क्यो नही करते ।
मिस्टरगिरधर-पंडितजी सब तो देख रहे है । क्या ये सब काम नही हो रहा है ।
पंडितजी-सब तो मंगल ही मंगल है यहां.....देखो बरखा केसे घुलमिल गयी आण्टी और अपनी खुशबू दीदी के साथ । विजय भी बरखा को अच्छी तरह से जानता है । भाई साहब और हमारे परिवार की जान पहचान हुए पच्चीस साल हो गये है ।
मिसेज कामिनी-देखो बरखा कीचन सम्भालना अभी से सीखने लगी है ।
मिसटररामअधार- क्या......? बरखा से काम करवा रही हो खुशबू बीटिया अतिथि से कोई काम करवाता है क्या ?
मिस्टरगिरधर-भाई साहब अपने से क्यो अलग करते हो ।
बरखा-अंकल मुझे भी तो कुछ समझना चाहिये ना......लो अंकल मेरे हाथ की चाय पीओ......‘ाकर बहुत मामूली सी पड गयी है गलती से ।
मिस्टर रामअधार-बरखा तुम चाय बनाकर लायी हो ....
बरखा-हां अंकल कहते हुए ओढनी से सिर ढंकने लगी ।
मिस्टरगिरधर-बरखा अंकल नही अंकल नही डैडी कहो ।
बरखा-ठभ्क है डैडी डैडी ही कहूंगी । बरखा मिस्टररामअधार को डैडी कहते हुए उनका चरण स्पर्श कर मिसेज पुष्पा का भी पैर छूने को लटकी,इतने में मिसेज पुष्पा ने बरखा को गले से लगाते हुए बोली बेटी तुत खूब तरक्की कर । अपने मां बाप का नाम रोशन कर जिस घर में जा उस घर को मंदिर बना देना । मेरी दुआयें तुम्हारे साथ है।
खुशबू-अरे वाह क्या बात है । बरखा तो सिर ढंक कर है ।
बरखा-खुशबू की तरफ देखकर मुस्करा पडी ।
मिस्टरगिरघर-भाई साहब स्वीकार करो ।
मिस्टररामअधार-किसको.......
मिसेजपुष्पा- चाय और किसको ।चाय पीओ....
मिस्टर राअधार-चाय तो पीउूंगा चाहे जितनी मीठी क्यों न हो । बरखा बीटिया ने जो बनायी हैं पहली बार ।
पंडितजी-रामअधारबाबू गिरधर बाबू बीटिया को स्वीकार करने की बात कर रहे है ।
मिस्टररामअधार-क्या.........?
मिस्टरगिरधर-हां भाई साहब मेरी बीटिया को अपने घर की बहू बना लीजिये ।
मिस्टररामअधार-नहीं यह नही हो सकता..........
मिस्टर गिरधरमेरे पास धन दौलत की कमी नही है । जितना धन चाहे मांग लो पर मेरी बरखा को अपने घर की बहूं बना लो ।
मिस्टररामअधार-जो ब्यवस्था समाज को जहर परोस रही हो उसका पोषण मैं कैसे कर सकता हूं । मुझे दहेज एक रूपया भी नही चाहिये । मुझे तो विषमतावादी समाज का डर है । पिछले साल की ही तो बात है हत्या हो गयी थी लडके कि अन्र्तजातीय ब्याह को लेकर । जबकि लडका लडकी दोनो खुश थे । लडकी पक्ष के लोग ही लडकी की हत्या कर लडकी को विधवा बना दिये ना......गिरधरबाबू ना..............ये ब्याह तो नही हो सकता ।
मिस्टरगिरधर- जाति और बूढे समाज की सारी दीवारे तोड दूंगा । हम बेटी के मां बाप रिश्ता लेकर आये है । पंडितजी गवाह है । हम कन्यादान करने के लिये तैयार है । आप क्यों विरोध कर रहे हैं भाई साहब.......
मिसेजकामिनी-मान जाइये भाईसाहब अब जातिपांति की लडाई कहां रही । स्वधर्मी के घर रिश्ते नही होगे तो कहां होगे ।हमारा तो बस धर्म में विश्वास है जाति में नही । विजय से बढिया दमाद हमें और कहीं नही मिल सकता । बच्चे भी इस विवाह से खुश होगे । भाई साहब जिद ना करिये मान जाइये । तभी तो जाति टूटेगी । किसी न किसी को तो आगे आना होगा ।
मिसेजपुष्पा-भाभीजी अभी जातिवाद खत्म तो नही हुआ हैं । आपके समाज के लोग जीवन नरक बना देगे । यदि बच्चों ने गलत कदम उठा लिया या आपके समाज के लिये बच्चों की जान लेने पर उतर आये तो हम बर्बाद हो जायेगे ।
मिसेजकामिनी- भाभीजी ऐसा नही होगा । हम बच्चों की ‘ाादी कोट्र में करेगे और रिश्पेसन आलीशान होटल में देगे । आप तो तनिक भी चिन्ता मत करो । आप तो ब्याह की हामी भर दो बस........
मिस्टर गिरधर- हां भाभी कुछ नही होगा ।सभी अपनी बेटी योग लडके को सौपना चाहते हैं । यदि मैं सौंप रहा हूं तो कोई गुनाह तो नही कर रहा । मै बडी जाति का हूं मैं आपके पास आया हूं । आपका बेटा मेरी बेटी को तो भगाकर नही ले गया है ना कि कोइ्र विरोध करेगा । यदि कोइ्र करता भी हैं मैं हूं ना मुंहतोड जबाव देने के लिये । छोटी बडी जाति के भेद को मन से निकाल दीजिये । ब्याह पर अपनी हां की मुंहर लगाइये बसभाई साहब जानता हूं वंचितों को बस मुट्ठी भर भर आग ही मिली है जिससे उनका मान सम्मान और विकास सब कुछ सुलगा है । समय बदल गया है। दूरियां कम हो चुकी है । आपकी हां के बाद बच्चों की मर्जी जानेगें........अपने बच्चे कुसंस्कारित नही है कि मां बाप का कहना नही मानेगे ?हम तो उनके भले के लिये सोच रहे है ।
मिस्टररामअधार-पहले बच्चों की राय जान लो ।
मिस्टरगिरधर-ठीक है।उनकी राय जान लेते हैं ।
मिसेजकामिनी-बरखा बेटी इधर आओ ।कुछ देर हमारे पास बैठो ।
मिस्टरगिरधर-विजय को बुलाने के लिये खुशबू को भेजे ।
विजय- खुशबू दीदी के साथ अपना काम रोक कर आ गया ।
मिस्टरगिरधर-विजय बेटा आप बरखा के सामने बैठो...........
विजय-क्या........?
मिस्टरगिरधर- बैठो तो सही.......
विजय-अंकल थोडा जल्दी बोलिये क्या बात है । मैं काम बीच में छोडकर आया हूं । इन्टरनेट चालू है ।
मिस्टरगिरधर-जिस काम के लिये मै आप ओर बरख को बैठाया हूं उससे बड़ा तो कोई काम हो ही नही सकता ।
विजय-कौन सा काम है अंकल ऐसा ?
मिस्टर गिरधर- बरखा से ब्याह करोगे ना । बेटा नही ना करना....
विजय-बरखा से ब्याह के बारे में तो कभी सोचा ही न था। खैर बरखा से पहले पूछ लीजिये । वह क्या चाहती है ।
मिसेज कामिनी- विजय बेटा बरखा तुम्हारे सामने है तुम पूछ लो ।
विजय-इंजीनियर मैडम आर यू एग्री टु मैरी विथ मी ....
बरखा- एस इंजीनियर सर ।
पंडितजी-सुन लिया यजमानों लडकी लडका दोनो राजी है।अब तो समधि-समधि और समधन-समधन गले मिल लो ।
सारे गुण मिल गये है बस एक गुण छोडकर । ब्याह बहुत सफल होगा । वर-बधू जीवन में बहुत तरक्की करेगे । अब देर किस बात की चट मंगनी पट ब्याह कर दो ।ऐसे आज्ञाकारी बच्चे तो हमने देखे ही नही थे । आज मेरा भी जीवन धन्य होगा ।अभी फेरे दिलवा देता हूं पर दक्षिणा पूरा लूंगा........
मिस्टररामअधार-लड़का -लड़की दोनो राजी है तो मुझे भी अब कोई आपत्ति नही हैं । बरखा बीटिया की मर्जी जानना बहुत जरूरी था । बच्चों को तो जीवन साथ साथ बिताना है ।
पंडितजी-ये बच्चे जिन्दगी के हर सफर में सफल होगे । कुण्डली मिलाने की कोई्र जरूरत नही है अब । बहुत अच्छा मुर्हुत है चाहो तो अभी फेरे दिलवा सकते है ।
मिस्टरगिरधर-पंडितजी फेरे तो बाद में होगे पहले रिंग सेरेमनी का कार्यक्रम ‘ाुभ मुर्हुत में सम्पन्न करा दीजिये ।
मिसेजकामिनी-हां पंडितजी ........
मिस्टरगिरधर-दो अंगूठी निकाले और पंडितजी के हाथ पर रखते हुए बोले पंडितजी इन्हें मन्त्रोचारित कर रिंग सेरेमनी का कार्यक्रम विधिवत् सम्पन्न कराइये ।
पंडितजी के घण्टे भर के मन्त्रोचारण के बाद पंडित विजय और बरखा को एक एक अंूगठी दिये और मन्त्रोचारण के साथ एक दूसरे को पहनाने के लिये बोले । विजय और बरखा एक दूसरे को अूंगूठी पहनाये ।
मिस्टरगिरधर-विजय बेटा अब ये बरखारानी तुम्हारी महारानी बन गयी हैं । मुझे यकीन है की इनके जीवन के साथ हमारा भी जीवन धन्य हो गया तुम जैसे दमाद पाकर । बेटा ये बरखारानी बहुत सयानी है । मुट्ठी में रखना । अपने बाप को बहुत चकमा देती थी ।रोटी मैं अपने हाथ से खिलाता था । बेटा बडे लाड़ प्यार से पली है । खैर आप लोग तो सब कुछ जानते है । फिर भी बाप होने के नाते इतना तो कहूंगा ही की मेरी बरखा के आखों में आसूं कभी न आने पाये । होठ पर हमेशा मुस्कान बनी रहे ।
मिसेजपुष्पा-भाई साहब और भाभीजी बरखा की तनिक चिन्ता ना करना ।हमारे परिवार का चिराग हो गयी है । विजय और बरखा देखना दोनो परिवार के नाम को रोशन कर देगें । दुनिया मिशाल दे देकर ना थकेगी ।
मिस्टर-हां समधनजी.................
बरखा-पापा अब बस करो ।क्यों रूलाना चाहते हैं ।
मिस्टरगिरधर-बेटी तू विजय की अमानत थी । उसकी हो गयी । सच मेरा जीवन सफल हो गया ।अब तो मैं चैन से मर सकता हूं । कहते हुए आखें मसलने लगे ।
मिसेजकामिनी- हां बेटी मेरी बरसो की तपस्या सफल हो गयी । तू सदा खुश रहे यही दुआ है । तू तो परायी थी ही तेरे पापा ठीक कह रहे है । हर लड़की परायी होती है । उसका बाप एक दिन कन्यादान करता हैं । डोली उठती है ।
मिस्टरगिरधर-कन्यादान और डोली उठने में सप्ताह भर और लगेगा। सप्ताह भर के अन्दर जातिपांति की मुर्दाखोर व्यवस्था से उपर उठकर विजय और बरखा का अन्र्तजातीय विवाह विधिवत् सम्पन्न हो गया । मिस्टरगिरधर बेटी का कन्यादान कर समधि मि.रामअधार और समधन मिसेज पुष्पा और खुद पति-पत्नि यात्रा पर निकल पडे ।

 


डां.नन्दलाल भारती

 

 

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