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कसम एवं सीये जा रहे

 


कसम एवं सीये जा रहे ...

कसम है तुम्हें

दगाबाजों, अत्याचारियों,
शहीदों के अरमानों पर
पानी फेरने वालों
वक्त है, अभी भी चेत जाओ.....
अरे कायनात के दुश्मनों
भविष्य लूटने,धर्म-जाति के
दलदल में ढकेल कर
मतलब साधने वालों
देश के लिए जीओ,
देश के लिए मर जाओ
जमीर जगाओ,
वक्त है अभी चेत जाओ.......
भाषा और क्षेत्र के नाम पर
तलवारें क्यों
भारत को भारत रहने दो
राष्ट्र हित में  कुछ तो त्याग करो
देश के प्रति अपना फर्ज निभाओ.....
ना हो अब कोई भेदभाव, अत्याचार,
भ्रष्टाचार,ना भ्रष्णहत्या, ना चीरहरण
ना बलात्कार
राष्ट्रीय पर्व अस्मिता दिवस
तुम आज कसम खाओ......
ना अशिक्षा, ना गरीबी, 
ना धर्म ना जातिवाद
ना कोई भूखा सोये, ना कोई
बूढ़ा अनाथ आश्रम जाये
देश विकास के पथ पर हो आगे
ऐसी सामाजिक क्रांति तुम लाओ......
अपनी कायनात धरती का स्वर्ग
देश को धर्म, संविधान को
धर्मग्रंथ बना लो
राष्ट्र गौरव, आत्मसम्मान की
तुम अब अलख जगाओ
अब तो चेत जाओ...........
डां नन्द लाल भारती
25/01/2021
 
कविता :सीये जा रहे

दर्द आसूओ के शक्ल मे जब 
झरने लगता है
दुनिया से मोह भंग होने लगता है,
सपनों की दुनिया मे रंग भरने मे
उम्र गुजर जाती है,
नजरअंदाज कर जरूरतों को खुद की
जीया जिनके लिए
उन्हीं लोगों ने इल्जाम मढ दिये
घायल पंछी जैसा तड़पता
आंसू भी छिपा लिए
जिन्दगी मे बडे अरमान 
जिन्दा हैं अपने भी यारों
गुजार दी जिन्दगी जिनके लिए
लोग वही बेमुरव्वत हो गए
दिल पर घाव ही घाव
जमते नहीं हैं अब पांव
अपनी जहां मे सांस घुटेगी
ऐसा सोचा भी न था
होने लगा है वही जो सोचा न था
दर्द का सुलगता बोझ जीने नहीं देता
अपना अपनी ओर हाथ नहीं देता
जीने की तमन्ना लिए मरे जा रहे हैं
होगे अपने साथ बस उम्मीद मे,
आंसू निचोड निचोड जीये
जा रहे हैं
रिश्ते सीये जा रहे है.......
डां नन्द लाल भारती
01/02/2021




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