Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ख्वाहिश

 

सन्तोषीदेवी-बेटा गोपाल तू क्या कर रहा है । देख रहा है घर में कितना काम फैला है ।उपर से मजदूरन खोजने का झमेला अपने ही माथे पर है । मालूम पड़ता है कि अपनी जमीदारी के खेत में धान रोपवाने जा रही हूं । गोपाल मेरी बात तो सुन ले कहा है ? क्या कर रहा है ?
गोपाल-मां तुम सवाल पर सवाल क्यों दागे जा रही हो । किताब लेकर बैठा भी नही कि तुम चिल्लाने लगी ।
सन्तोषीदेवी- बेटा मैं कहां तुमको पढने से मना कर रही हूं । तू पढलिख जाता तो अपनी उजाड़ सी बगिया में रौनक आ जाती ।
गोपाल- क्यो बुला रही थी मां ?
सन्तोषीदेवी-रोटी तरकारी बना दी हूं । खाकर स्कूल चले जाना ।
गोपाल-हां मां । स्कूल जाने से पहले बकरी को खाली खेत में खूंटा गाड़कर बांध देना । चारा काट लेना । हौदी धोकर पानी भर देना । स्कूल से आकर बकरी हांक लाना और सारे काम कर लेना । समय निकाल कर पढ भी लेना और कोई काम हो तो बोलो मां । आज कोई खास दिन है क्या ? खुद जल्दी में हो और मुझे भी हांकने में लगी हो । कीं जाना तो नही है ।
सन्तोषी-मजदूरन खोजने जाना है । जमीदार के यहंा आज वनगड्डी है ना बेटा । मजदूरनों का तो कल की ही बोल आयी हूं पर जल्दी निकलना पड़ेगा । धान की नर्सरी उखाड़ने के लिये । सभी को साथ लेकर जाना होगा । सूरजदेवता उगने वाले है । घर का भी बहुत काम है ।
गोपाल-नर्सरी उखाड़ना और रोपाई दोनेां काम कीफी तकलीफ भरा हो जाता है तुम अैर बापू के लिये । हाथ पैर तो सड़ कर भात हो जाते है । निर्दयी जमीदार लोग घाव पर नून डालते रहते है । काम करवाने के लिये तो अपना कहते है चैखट चढ गये तो डण्डा लेकर मारने दौडते है । ये कैसे अपने हो सकते है मां ।मजदूर लोग है कि एक पैर पर खड़े रहते है पेट में भूख लिये । तुम जाओ मां जमीदार उदयनाथ की वनगड्डी करवाओं घर का काम तो हम नन्हे-नन्हे भाइ-बहन कर ही लेगे ।वनगड्डी के दिन तो भोज भी होता है ।
सन्तोषीदेवी- हां बेटा कढी भात तुम्हारे लिये भी रखूंगी ।
गोपाल-मां ब्लैकमेल ना करो कढी भात की लालच दिखाकर घर का काम हम पहले जैसे कर लेगे । घर की चिन्ता छोड़ो वनगड्डी की सोचो । तुम तो ऐसे खुश हो रही हो जैसे अपने खेत में धान रोपने जा रही हो । खाना क्या मिलता है वनगड्डी के दिन पानी जैसे कढी सडे़ गले चावल का भात । रोटी उसी गेहू का जो सड़ गया हो ।दाल तो वही मिलती है लतरी की जिसे जानवरों खरी-भूसी के साथ खिलाते है । गलती से ऐसा खाना लेने से जमीदारबाबू को तो अस्पताल में भर्ती होना पड़ जाये । बेचारे मजदूरो को एक दिन भी भर पेट अच्छा खाना नही दे सकते । पूरे साल भर दिन रात जानवरों की तरह हांकते रहते है । मजदूरों की मेहनत का ही तो नतीजा होता है अपरम्पार उपज । खेत मालिको की हर मुराद पूरी हो जाती है पर मजदूरों की नही । इतना ही होता है कि मजदूरों की सुबह मालिकों के साथ होती है बस ।
सन्तोषीदेवी-हां बेटा ना जाने कब अपनी मुराद पूरी होगी ।ना जाने कब तक हाड़फोडते रहेगे और इस हाड़फोड़ मेहनत मजदूरी के बदले दो किलो सड़ेगले अनाज की मजदूरी पर बसर करेगे ।
गोपाल-हां मां मजूदरों का जीवन तो जमीदारों के खेत खलिहान और चैखट सें बंधे बधे ही बित जाता है ।क्या नारकीय जीवन है हम मजदूरों और उनके आश्रिताों का ?
सन्तोषीेदेवी-बेटा घर के कामकाज के साथ पढाई का भी ध्यान रखना।हम तो जमीदार उदयनाथ के बंधुवा मजदूर है । उनकी गुलामगीरी से अपने को कहां फर्सत ।अपना जीव तो जमीदारों का गोबर फेंकते फेंकते बितने वाला है । हमारी तो बस इतनी सी ख्वाहिश है कि तू पढ लिखकर हमें बंधुवामजदूरी के दलदल से निकाल ले बेटा । भैस बकरी का ध्यान रखना और सूरज डूबने से पहले मुर्गियों को दरबे में बन्द कर देना । आज से रोपाई ‘ाुरू हो गयी है । महीने भर सूरज उगने से पहले रोपने जाने होगा और देर रात तक घर आना होगा । ‘ााम को स्कूल से आने के भैंस को तनिक चरा लाना इसके बाद चारा पानी कर लिया करना ।रोटी पानी तो नन्हकी अब बनाने लेगी ।
गोपाल- मां मैं सब जानता हूं । इतना तिखार क्यों रही हो ? घर के काम की चिन्ता ना करो सब काम कर लूंगा । भैस ,बकरी और मुर्गियों को कोई तकलीफ नही होने दूंगा।
सन्तोषीदेवी-बेटा ये जानवर भले ही हमसे बाते नही कर पाते पर दुख दर्द और भूख का एहसास तो होता है ।
गोपाल- हां मां हम इनके एहसास को समझते है तभी तो ये हम पर विश्वास करते है । आवाज लगाते ही पहचान जाते है ।
सन्तोषीदेवी-बेटा तुम लोगों के भरोसे तो ये जानवर पल रहे है । हमारे और तुम्हारे बाप के भरोसे तो एक मुर्गी भी नही पल पाते क्योंकि जमींदार की गुलामी जो किस्मत बन गयी है । दिन रात हाड़ फोड़ने के बाद भी बच्चों को न भर पेट रोटी मिल पा रही है ना ही तन ढंकने को अच्छे कपड़े । बेटा तुम भाई बहनों की अभी काम करने की उम्र तो नही है पर मजबूरी सब करवा रही है ।
गोपाल- मां क्यों खुद को कोसती रहती हो । तुम्हारा तनिक दोष नही है । तुम अपनी औकात से ज्यादा कर रही हो । अरे गुनाहगार तो वे लोग है जो हमारी धरती से हमें ही बेदखल कर खुद राजा बन बैठे है और हम रंक हो गये है । ना जाने और कितनें युगों तक इन गुनाहगारों की मुट्ठी भर बिछायी आग में झुलसना होगा । सरकार कम से कम गांव समाज की जमीन के अबैध कब्जे को मुक्त करवा की भूमिहीनों में बंटवा देती तो अपनी भी मुराद पूरी हो जाती । मां तब हम भी अपनी पहली रोपाई के दिन रजगज से वनगड्डी करते ।
सन्तोषी-बेटा कितनी सरकारी आयी गयी । क्या हुआ ? ‘ाोषितों का उत्पीड़न कम ही नही हुआ तो आवण्टन तो सपने की बात है । दबंगों से सरकार भी घबराती है । खैर सरकार में वही लोग तो ‘ाामिल होते है । गरीबों का भला कैसे हो सकता है । अपनी किस्मत तो कुआं खोदो तो पानी पीओ ही दंबगों जातिवाद के पोषक ‘ाोषक समाज ने लिख दिया है । इस लिखावट को सरकार तो बदल सकती है पर अभी तक तो निराशा के अलावा कुछ नही मिला है । कब तक हम गरीब हाड़ निचोड़ कर रोटी आंसू में डूबो कर जीवन बसर करेगे ?
गोपाल- दुनिया का पेट भरने वाला खेतिहर मजदूर खुद पेट में भूख और बदन पर चिथड़े लपेटे जी रहा है । ये कैसी नाइंसाफी है । उपेक्षितों, ‘ाोषितों के हाड़ में इतनी मजबूती और दिल में जीने का जज्बा न होता तो भूखे मर जाते ।
सन्तोषीदेवी-हम गरीबो की दौलत तो बस हाड़फोड़ मेहनत ही है । बेटा तुम मन लगाकर पढाई करना भगवान जरूर मुराद पूरी करेगा देर सबेर । पढ लिख कर कलेटर बन जाना ढेर सारा खेत लिखवा लेना । एक दिन आयेगा ये खून चूसने वाले जो हमारे दादा पर-दादा से जर्बदस्ती अगूंठा लगवा कर खेत जमीन जासदाद हड़प लिये है वही एक दिन बेचेगें । गोपाल तुम्हारे जैसे अपनी कमाई के पैसों से खरीदेगे ।
गोपाल- मां पहले तो कमाने लायक हो तो जाये ।
सन्तोषीदेवी- जरूर होगे मेरे लाल । मेरी तपस्या बेकार नही जायेगी । बेटा जीमदार के खेत की रोपाई के लिये मुझे जल्दी जाना होगा । मजदूरनों को भी बुलाना है ।पहली रोपाई है और वनगड्डी भी है । सारी मग्गजमारी अपने को करनी है बंधुवा मजदूर जो ठहरे तेरे बापू तो झलफलाहे में चले गये । खेत जोतेगे इसके बाद धान की नर्सरी उखाड़ेगे । सूतज उगने से पहले से लेकर आधी रात तक जमीदार के काम से फुर्सत नही ।हम गुलामेां की जिन्दगी तो नरक हो गयी है । हम गरीब लोग इन मालिकों का अपना मानकर ईमानदारी से काम करते है पर ये खून चूसकर तरक्की करने वाले लोग हमें आदमी ही नही समझते ।
गोपाल- हां मां आम बिनने की सजा का रिसता जख्म कलेजे में सालता रहता है। ऐसा घूसा मारा हैवान चरिन्द्र जमीदार ने की पंजरियां हिल गयी । दस साल हो गये पर दर्द खत्म नही हुआ पूरवा हवा चलती है तो दर्द बढ जाता है । काश इन खून चूसने वालों के दिलों में आदमियत के प्रति समर्पण का भाव जाग जाता तो जो उत्पीड़न और छूआछूत का घिनौना रूप देखने को मिल रहा है नही मिलता ।
सन्तोषीदेवी- बेटा सब याद है पर कर भी क्या कर सकते है । कहते है ना जबरा मारै रोवै ना देय ।
गोपाल-हां मां हम तो गुलामों जैसा जीचन जीने को मजबूर है । ना बीसा भर खेत है, ना घर ना रोटी कपड़े का ठिकाना । बस भरोसा सूखे गन्ने जैसी काया को निचोड़कर पेट की आग बुझाना यही नसीब हो गया है । ना जाने कब तक रूढीवादियों द्वारा बोयी गयी मुट्ठी भर आग हमारी ख्वाहिशों के दमन करती रहेगी ।
सन्तोषीदेवी-हम गरीब लोग मालिको के गोदाम भरने के लिये और खुद की आंसू में डूब कर मरने को पैदा हुए है । बेटा घर का काम तो तुम बच्चों के कंधे पर पहले से ही है । हमें और तुम्हारे बाप को जमींदार के काम से फुर्सत कहां मिल पाती है । कोल्हू के बैल जैसे खेत से हवेली तक घूमते रहना है । बेटा पढाई का ध्यान रखना ।काम के कारण पढाई मत भाूल जाना । तुम्हारी पढाई से ही तो हमारे जीवन की तमन्नाये पूरी हो सकती है ।
गोपाल-मां फिक्र ना कर सब काम हो जायेगा । आज तो जमीदार उदयनाथ की पहली रोपाई है । बड़ा भोज भी होगा ।
सन्तोषीदेवी- यही तो वनगड्डी होती है ।
गोपाल- मालूम है । वनगड्डी के दिन बंधुवा मजदूरों को दोपहर को खाना तो मिलता है साथ ही बच्चों को भी मिलता है ।
सन्तोषीदेवी- हां बेटा वनगड्डी के दिन दोपहर में खाना मिलेगा बाकी रोपाई के दिनों में तो वही पानी जैसा रस और मुट्ठी भरभुजैना ।
गोपाल को हिदायत देकर सन्तोषी जमीदार उदयनाथ की रोपाई के लिये मजदूरनों को घर घर से बुलाकर रोपाई के लिये चली गयी । गोपाल का बाप मुसाफिर तो सूरज उगने से पहले ही हवेली पहुंच गया था बेचारा बंधुवा मजदूर जो ठहरा ।बंधुवा मजदूरों की जिन्दगी तो सचमुच नरक के जीवन से कम नही । ऐसी गुलामी किसी को भी पसन्द नही हो सकती । मुसाफिर और सन्तोषीदेवी बेटे को अपना उध्दारक मान बैठे थे । लाख दुख उठा कर बेटा गोपाल को पढाने के लिये द्ढ प्रतिज्ञ थे । बेटवा की पढाई से ही उनकी ख्वाहिश पूरी होने का जीवित सपना जो था ।
गोपाल के मां बाप जमीदार उदयनाथ की धान की रोपाई में ख्ूान पसीना एक करने चले गये । गोपाल घर को काम करके स्कूल गया । लंच की छुट्टी में वह भागा भागा घर आया। भैंस की हौंद धोया पानी डाला इसके बाद चारा डालकर भैंस हौंद में लगा कर खुद जमीदार की हवेली से आये वनगड्डी के कढी भात को पेट में उतारकर स्कूल की तरफ भागा । ‘ााम को स्कूल की छुट्टी होते ही वह घर की ओर दौडं लगा दिया । घर पहुंचते ही बस्ता छोटी बहन को थमाकर भै।स चराने चला गया। गोपाल अंधेरा होने से पहले भैैैंस चराकर आया । इसके बाद फिर हौद साफ किया पानी भरा घास-भूया मिलाकर हौंद में डालकर भैंस खूंटे सें बांध दिया । भैंस चारा खाने लगी ।दोटी बहन दुर्गेश और छोटी बहन राधा बकरी चराकर आयी । वे बकरियांे को मडई में बांध कर चूल्हा गरम करने में जुट गयी । गोपाल तनिक फुर्सत पाकर स्कूल के काम में जुट गया ।
बरसात का दिन था । इसी बीच हल्की सी फुहार आ गयी । फुहार पाकर मेंढक जोर जोर से गीत गाने लगे ।गोपाल पढने में व्यस्त था इसी बीच छोटी बहन राधा आंसू बहाते हुए उसके पास खड़ी हो गयी । राधा की आखों में आसूं देखकर वह घबरा गया । राधा के आंसू पोंछते हुए बोला क्या हुआ राधा ? क्यों रो रही हो बिछू तो नही मारी ना ?
राधा- नहीं भइया । मुझे डर लग रही है ।
गोपाल- डरने की क्या बात है । हम भूमिहीन बंधुआ मजदूर की औलादें है । ऐसे डरेगे तो जीयेगे कैसे ? मां की याद आ रही है ना ।
राधा-हां भइया । मां कब आयेगी ।
गोपाल-काम खत्म होते ही आ जायेगी । बापू भी तो नही आये है । बापू और मां एक साथ आ जायेगे । तू खटिया पर बैठ देख बिच्छू निकल रहे हैं । पलटूआ को बिच्छू मार दी है । बरसात में सांप बिच्छू बहुत निकलते है । नीचे देखकर पांव रखना । डेबरी लेकर ही इधर उधर जाना ।इतनें में नीम के पेड़ से धम से आंगन में बिल्ली कूद पड़ी ।
दुर्गेश कूदने की आवाज सुनकर जोर से चिल्लायी । गोपाल दौड़कर गया और पूछा क्या हुआ बहन क्यों चिल्लायी हो ?
दुर्गेश- कोई आंगन में कूदा है ।
इतने में बिल्ली म्याउूं म्याउूं करने लगी । बिल्ली की आवाज सुनकर गोपाल बोला ये ‘ौतानी कर रही है ।
दुर्गेश-अरे राधा मुर्गियों को दरबे में बन्द तो कर दी है ना ।
राधा-हां बन्द है सब मुर्गी मुर्गे ।
दुर्गेश-गोपाल तुम स्कूल का काम पूरा कर लो ।
गोपाल- हां करता हूं कहते हुए बोला दीदी देखो बहुत मच्छर बोल रहे है । भैंस को भी काट रहे होगे पहले भैंस को मड़ई में बांधकर धुआं कर दूं ।
दुर्गेश-ठीक है तुमको स्कूल का काम करना है जब चाहो तब करो । बाद में ये मत कहना की दीदी ने काम में फंसा दिया स्कूल का काू पूरा नही कर पाया ।
गोपाल-नहीं कहूंगा भैंस मड़ई में बांधकर धुआं किया फिर चूल्हे के पास जहां दुर्गेश रोटी बना रही थी वही वह भी डेबरी की रोशनी में पढने बैठ गया । इतने में राधा छोटी बहन गोपाल के कंधे पर हाथ रखकर कहने लगी भइया बहुत डर लग रही है । रात हो गयी मां और बापू नही आये । चारो ओर मेंढक टर्र-टर्र कर रहे है । बरसात बन्द नही हो रही है । कोटिया पर वाला सांप बिजली जैसे कड़कडा कर बोला है ।
दुर्गेश-क्या ? कोटिया वाला सांप बोला है ?
राधा-हां दीदी ।
दुर्गेश-भयंकर बरसात होने वाली है ।
गोपाल-तुम क्यों डर रही हो । मेरे पास उजाले में बैठो । मां बापू आ जायेगे । आज जमीदार की वनगड्डी है ।
राधा-रोपने वाली सारी मजदूरनें तो आ गयी।मेरी मां और बापू ही नही आये अभी तक ।
गोपाल-बापू बंधुवा मजदूर है ।
राधा- दूसरे मजदूरों से अलग है ।
गोपाल- हां कहने को तो घर के सदस्य जैसे होते है पर जमींदार लोग खून चूस लेते है और पूरी मजदूरी भी नही देते । देते है तो घाव । मां और बापू की हाड़फोड़ मेहनत पर तो हम पल बढ रहे है । तुम बैठो । फिक्र मत करो ।
दुर्गेश-गोपाल पढना है तो मन लगा कर पढ । बाते बाद में कर लेना ।
गोपाल-दीदी राधा को समझा रहा हूं ना ?
दुर्गेश - तू रहने दे समझाने को पहले खुद समझ । तुम्हारे उपर कुनबे को नाज है । अरे अच्छे से पढेगा नही तो मां बाप की उम्मीदे कैसे पूरी कर पायेगा ?
गोपाल-दीदी पढ ही तो रहा हूं । राधा का आंसू पोंछना भी तो मेरा ही काम है ना ?
दुर्गेश-अरे वाह रे मेरे भइया । अभी से तू राखी की लाज रखने मेें जुट गया ?
गोपाल-हां दीदी । मजदूरों के बच्चे अपनी उम्र से पहले जिम्मेदार हो जाते है तभी तो मेहनत मजदूरी में लग जाते है । मैं तो बंधुवा मजदूर को बेटा हूं ।
दुर्गेश- तू तो स्कूल जाता है ।
गोपाल-यह तो मेरे मां बाप का एहसान है । काश मैं उनके सपनेां को पूरा कर पाता ।
इतने में बरसात में भींगी सन्तोषीदेवी आ गयी । वह बाहर मड़ई के आगे वाले हिस्से में अंधेरा देख बोली गोपाल तू कहा है । बाहर अंधेरा पसरा है । डेेबरी जलाकर पढ़ लिया होता । मां का आवाज सुनकर राधा मां आ गयी मां आ गयी कहते हुए दौड़ी पड़ी । राधा सन्तोषी की तरफ दोनो हाथ फेला दी ।वह बोली बीटिया मैं पूरी तरह से भींगी हूं कैसे गोद मंे लू तू गीली हो जायेगी । इतने में गोपाल आ गया । दुर्गेश भी कहां मानने वाली थी वह भी तवा पर रोटी रखकर मां के पास दौंडकर आ गयी । सन्तोषी देवी ने तीनों का लाड किया । बापू को न देखकर गोपाल बोला मां बापू नही आये ?
सन्तोषीदेवी- मालिक ने पुआल हटाने में लगा दिया है।
गोपाल-बाप रे इतने खतरनाक काम में जमीदार ने लगा दिया । मां बरसात में सांप बिच्छू पुआल के ढेरों में पनाह लेते है । कोई जहरीला जानवर काट लिया तो । जमींदार उदयनाथ दवाई भी नही करवायेगे । देखना नही मशीन में अंगुली पीस गयी थी।क्या मदद किये । बापू महीनों तक कराहते रहे । देशी दवा के अलावा कोई चारा भी तो नही था । बापू का दर्द याद है ना मां ?
सन्तोषीदेवी- बेटा वो दिन कैसे भूल सकती हूं । खेत मालिक का काम करते समय तेरे बापू की अंगूली पीस गयी था । महीनों तक काम नही कर पाये थे कैसे-कैसे मैने तुम लोगों का पेट भरी थी । उपर से दवाई का खर्चा । इतने बरसों के बाद भी वे दुर्दिन याद आते ही आंखों में आसू भर आते है । जमीदार ने रत्ती भर मदद नही की थी । बेटा बंधुवा मजदूरों का जीवन तो नरक बना दिया है खेत मालिकों ने ।
गोपाल- मां बापू को आने में कितनी देर लगेगी अभी ।
सन्तोषीदेवी- घण्टा भर तो लग ही जायेगा ।
गोपाल-मतलब हम लोगों के सो जाने के बाद आयेगे । सुबह हम सो रहे थे तभी चलेगे गये थे लगता है बापू के दीदार रोपाई भर नही होने वाला । वैसे तो कभी कभी हो जाते थे पर अब कोई गुंजाइस नही । बताओ बरसात की रात में बापू से पुआल ढोवा रहे है जमीदार उदयनाथ बाबू । कहीं पुआल में सांप निकल गया तो क्या होगा । यह तो बापू के मारने की साजिश लगती है ।
सन्तोषीदेवी- मालिक ने काम करने को कहा है तो मजूदर को करना ही होगा । रात हो या दिन धूप हो या बरसात । बेटा तू घबरा नही । तेरे बापू काम पूरा करके आ जायेगे । खैर ये सब छोड़ बेटवा तू तो ये बता कि जमीदार की वनगड्डी का खाना कैसा था ।
गोपाल-मां तुम्हारे और बापू के परिश्रम का दर्द था खाने में । खैर खाया हूं मां ।
इतने में दुर्गेश बोली मां वनगड्डी का खाना तो खत्म हो गया था तनिक सी दाल बचभ् थी उसमें पानी डाल कर गरम कर दी हूं । रोटी भी बना ली हूं मां ।
सन्तोषीदेवी-दुर्गेश के सिर पर हाथ फिराते हुए बोली हे भगवान और कितनी परीक्षा लेगा ? अरे मजदूरों की भी ख्वाहिशेें पूरी कर देता । तुम्हारे खजाने का मुंह हमेशा हवेलियों के गोदामों में ही खुला रहता है और मजदूरों की चैखटों पर मुसीबतो की बाढ़ । ये अन्या कब तक चलेगा प्रभु ? हम मजदूरों की ख्वाहिशें कभी पूरी होगी क्या ?
गोपाल-हमारे घर भी वनगड्डी का जश्न मनेगा,कब तक सामाजिक-आर्थिक बुराईयां हम हाशिये के लोगों के जीवन में मुटठी भर-भर आग कब तक भरती रहेगी।मां मुर्दाखोरों का आतंक जरूर खत्म होगा,देश के धर्मग्रंथ संविधान से हाशिये के लोगांे का उद्धार होगा। तुम्हारी ख्वाहिशें मैं पूरी करूंगा मां बड़ा होकर।

 

 

डां.नन्दलाल भारती

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