हे प्रभो तुम्हारे इंसान को ,
क्या हो गया ,
संवेदना से बहुत दूर ,
पंहुच गया।
बहा रहा खून आदमी का ,
कह रहा कोइ हिन्दू तो ,
कोइ मुसलमान का।
झकझोर रहा आदमियत ,
नफ़रत बो रहा ,
विद्रोह का ऐलान ,
बेगुनाह तड़प रहा।
ऐ नफ़रत बोने वालो ,
बुराईयो की खिलाफ छेड़ दो
आरपार की लड़ाई ,
हो जाएगा का स्वर्ग ,
चमक उठेगी तुम्हारी खुदाई।
डॉ नन्द लाल भारती
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