गौतम क्यंू चिन्तित हो क्या हुआ पिताजी अभी भी अस्वस्थ है इतनी चिन्ता में रहोंगे तो जीवन कैसे चलेगा ?
किशुन काका तुम्ही तो कहते हो समरथ का दोष कैसा ?
हां बेटा ये तो पहले भी था आज भी है,इसका रिरकता हुआ उदाहरण कन्नू काका है,जो बिस्तर पर पड़े-पड़े आज भी जमींदारी के ताण्डव की कहानी सुनाते है,सुनकर रोयें खड़े हो जाते है। वे भी तो इंसान थे जो असहनीय कष्ट सह कर धरती से सोना उपजाते थे और नरपिषाच के गोदाम भर रहे थे,खुद भूखे नंगे थे।यही नरपिशाच अंग्रेजों के पिषुन बन बैठे थे।
काका ऐसा ही जुल्म मेरे साथ भी हो रहा है। फर्क इतना सा है तब के अपराधी गुलाम भारत के थे अब आजाद यानि काले अंग्रेज का । हर जगह उनकी ही तो तूती बोल रही है। खेत खलिहान से लेकर छोटे-बड़े सरकारी हो या गैर सरकारी संस्थान उनकी ही घुसपैठ है। हाषिये के आदमी को तो हर युग में पीसा गया है,आज भी पीस रहा है। राम ने संभुख ऋशि का वध किया, कहते है राम के राज में षेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते थे,जव राम महर्शि सम्भुख का वध सिर्फ इसलिये किया कि वे चैथे वर्ण का होकर उपदेष दे रहे थे ।संभुख ऋशि के वध से अन्दाजा लग सकता है कि क्या सच हो सकता है,कि राम के राज में सभी सुखी थेकभी नहीं ना। द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा छल से दान में ले लिया,उसी द्रोणाचार्य के नाम पर खेल पुरस्कार सरकार देती है,ये क्या सिद्ध करता है ? षासक अपने हित को साधते है।द्रोणाचार्य के नाम पर पुरस्कार तो दमन को बढ़ावा दे रहा है।
बेटा गौतम ठीक कह रहे हो । समरथ का दोश कैसा यानि जिसके हाथ में सत्ता है,कुछ भी कर सकता है,आदमी के आदमी होने का सुख भी छिन सकता है। अपने देष की क्रूर जातिव्यवस्था इसका घृणित उदाहरण है।
हां काका इसका असर सरकारी और व्यावसायिक प्रतिश्ठानों में भी देखने को मिलता है।
क्या कह रहे हो बेटा, सरकारी और व्यावसायिक प्रतिश्ठानों में काम करने वाले लोग तो अच्छे पढे़ लिखे होते है। वहां भी कमजोर आदमी के मर्दन का इन्तजाम ।
हां काका कुछ पिषुन तहकीकात में रहते है।अपने उपर वाले का कान भरते रहते है,अपने मतलब के लिये।
क्या कह रहा है गौतम बेटा ?
कका सोलह आने सच कह रहा हूं। एक अमानुश पिषुन की वजह से मेरी नौकरी खतरे में पड़ी है।
कौन है ये नरपिषाच पिषुन और इसकी वजह से खतरा क्यों बेटा किषुन काका जोर देकर पूछने लगे।
काका जमीदार अंग्रेजो के लिये पिषुन का काम करते थे ।अब पिषुन काले अंगेजो की कररहे है अपने भले के लिये ।पिषुन लोग काले अंग्रेजों की चरणपादुका सिर पर रख कर चलते है।
हां बेटा तू ठीक कह रहे है,दारू का लालच देकर वोट मांगते है,जब चुनाव आता है तो कहते है हम दिल्ली पहुंच गये तो दस-दस लाख एक मतदाता के बैंक एकाउण्ट में आ जाऐगा,जहां दिल्ली पहुंचे ऐसी दुलती मारते है कि आंख फूट जाये।
काका अपने देष में तो सभी तरह के भ्रश्ट्राचारों की जननी वर्णवाद है।चाहे गांव हो या षहर सब जगह जातिवाद का बोलबला है। काका हम भी इसी वर्णवाद की आग में सुलग रहे है।
क्या कह रहा गौतम बेटा ? तू तो मुलाजिम है तुम कैसे सुलग रहे हो किषुन बोले।
काका वही ज्यादा है,कई पिषुन जासूसी में लगे रहते है। जाति जानने लिये उपनाम पूछते है,फिर गोत्र और ना जाने क्या क्या सवाल करते है, जानना और कुछ नही होता किस जाति के हो यही जानना होता है। ऐसे पिषुन कई बार ऐसे घाव दे जाते है कि कभी ना भूले कोई।
क्या हुआ बेटा किषुन बोले ?
काका साल भर पहले मेरा तबादला हुआ था ।
हां टाी तो वही हो।
हां काका वही हूं और वही एक पिषुन की वजह से इतनी तकलीफ उठानी पड़ी कि मैं लफजों में बयान नही कर सकता। दिन का चैन रात कि नींद छिन गयी थी काका।
ऐसा क्या हो गया था बेटा ?
काका मेरा नया रिर्पोटिंग अफसर संकरबीज उत्पादित मि.हुकमकुमार कुण्ठा था। जिस दिन से मैं उसके अधीनस्थ हुआ, उसी दिन से वह मुझमें कमियां ढूढने लगा। ना जाने क्यों उसे ईमानदारी पूर्वक मेरा काम करना पसन्द ना था। जो काम डेढ महीना में होता था वही काम मैं दस दिन में पूरा करने लगा था,फिर भी उसे मुझसे षिकायत होता थी। बात बात पर वह मुझे झटक देता था। कहता तुमको काम नही आता। मेरी षिकायत वरिश्ठ अफसर मि.नन्हकू कुमार से करता,जबकि नन्हकू साहब इससे पहले हमारे रिपोर्टिंग अफसर । नन्हकू साहब कान के बहुत कच्चे चमचागीरी पसन्द थे और जिददी स्वभाव के थे। एक बार ठान लिया कि बर्बाद करना है तो करके दम लेते थे।मि.हुकुम कुमार कुण्ठा को मेरी बर्बादी ही पसन्द थी,मि.नन्हकू साहब मि.हुकुम कुमार कुण्ठा की बातो में आ गये और मेरे विरूद्ध कार्यवाही करने लगे,जबकि मि.नन्हकू साहब मेरे बारे में अच्छी तरह जानते थे। मैं उनकी बहुत इज्जत करता था,पिषुन हुकुम ने मि.नन्हकू कुमार कुटिल को इतना भड़का दिया कि वे मेरी नौकरी खाने की जिद पर अड़ गये अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोडे पर कहते है ना जाको राखो साईंया मार सके ना कोय काका ।
क्या हुआ था बेटा किषुन काका बोले ?
मैं पिषुन मि.हुकुम कुमार कुण्ठा की वजह से बहुत परेषान था।इसी हुकुम की वजह से रोज दिन में चार बार मि.नन्हकू मेरी कार्य कुषलता,मेरी इज्जत का जनाना भरे दफतर में निकालते। मुझे आत्महत्या करने तक उकसाया गया।मेरी तबियत खराब होने लगी। मैं त्याग पत्र देने को तैयार हो गया था । इसी बीच विभाग के उच्चतम् अफसर से मिलने का ख्याल आया। उनसे मिलना बहुत कठिन था। मुलाकात का समय भी मिल गया तो वह भी सिर्फ तीन मिनट का।
उच्चतम अधिकारी से कोई आषा बंधी किषुन काका पूछे ।
जी काका साहब बोले इतना कुछ तुम्हारे साथ हो गया तुमने बताया नही। खैर कोई चिन्ता की बात नही है।तुम निष्चिन्त होकर काम करो,किसी से डरने की जरूरत नही है।काका लेकिन हुआ उल्टा ।
क्या हुआ बेटा ?
काका तुमको पता है मेरे बाप की स्थिति, सालों से बिस्तर पर पड़े है।स्थानान्तरण के लिये हाथ जोडकर विनती किया था पर नही हुआ ।
क्यों नही हुआ ।बाप मरणासन्न अवस्था में पड़ा है,इसके बाद भी कोई सुनवाई नही ।
हां काका,जातिवाद का दंष और समरथ का कोई दोश नही होता,ऐसा भी तो माना जाता है।
माना नही जाता बेटा सच है किषुन काका बोले ।
मानवीय आधार पर स्थानान्तरण के लिये हाथ पांव जोड़ा इसके बाद भी दुत्कार दिय गया।काका पिता इतने दूर पड़े है कि उनको एक गिलास पानी तक नही दे सकता।बहुत बड़ी मुसीबत में फंसा हूं काका।
बेटा भगवान पर यकीन रख वही से ठीक करेगा किषुन काका बोले ।
हां काका सर्वषक्तिमान पर ही भरोसा है,रह रह कर उस पर भी षक होने लगता है।
बेटा तसल्ली रखो,सब ठीक होगा किषुन काका बोले ।
काका क्या ठीक होगा, हुकुम कुमार कण्ठा दिन भर में चार बार मेरी षिकायत नन्हकू कुमार कुटिल से करता है। मि.नन्हकू साहब ने मेरी षिकायत उच्च प्रबन्धन से भी कर दी है।वह कभी भी मेरी नौकरी खा सकते हैं,या मेरा स्थानान्तरण ऐसे जगह कर सकते है जहां से मैं कभी वापस नही आ सकूंगा।
बेटा षुभ षुभ बोलो किषुन काका कहते हुए चल दिये । सप्ताह भर बाद मुलाकात हुई गौतम का सूजा हुआ चेहरा देखकर बोले क्या हुआ बेटा रो रहा था क्या ?
नही काका गोतम बोला ।
बेटा झूठ बोल रहे हो। रो रहे थे। पिताजी की याद आ रही है,बेचारे बिस्तर पर पड़े पड़े दिन काट रहे है,इधर बेटा अलग मुसीबत में फंसा है।
काका स्थानान्तरण हो गया गौतम बोला ।
बधाई बेटा किषुन काका बोले ।
काका स्थानान्तरण उल्टी दिषा में हुआ है।
बेटा फिर ये तो दण्ड हुआ किषुन काका बोले ।
हां काका कमजोर आदमी को कहां न्याय मिलता है।
ऐसी उम्मीद तो नही थी किषुन काका बोले ।
काका नन्हकू कुमार कुण्ठा का प्रमोषन हो गया है। पिषुन हुकुम कुमार कुण्ठा अब कई जोडी जूते सिर पर लेकर नन्हकू कुमार कुटिल के पीछे पीछे चलेगे ।
वाह रे पिषुन यानि चुगुलखोर, तुमने दिखा दी कौआ की मैला खोदने वाली औकात ।
कका हाषिये के लोग अपनी जहां में सिर्फ दर्द में जीने के लिये पैदा हुए है। लोग मदद करने के बजाय खाई में ढकेल देते है।
धत तेरी की दण्ड देने वाले को पुरस्कार,ईमानदारी से काम करने वाले को दण्ड ये कैसा न्याय है किषुन काका आंख मलते हुए बोले ।
डाँ नन्द लाल ’ भारती ’
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