लोकतांत्रिक होने के मायने
समता-सद्भावना की ,
सकूँ भरी साँसे
लोकंमैत्री की निश्छल बहारे ,
बिसर जाए दर्द के
एहसास भयावह सारे
ना आये याद कभी वो
कारी राते ,
हो स्वर्णिम उजियारा
संविधान का
अपनी जहाँ में
चौखट -चौखट नया सबेरा
तन -मन में नई उमंगें
सपने सजे हजार
आदमियत की छाये बहार
स्वर्णिम रंग में रंग जाए
शोषितो का हो जाए उध्दार
संविधान राष्ट्र -धर्म ग्रन्थ का
पा जाए मान
हर मन में हो
राष्ट्र का सम्मान
भेद-भाव से दूर
सद्भावना से दीक्षित
हर मन हो जाए चेतन
मिट जाए जाए
जाति -क्षेत्र की हर खाईं
आतंकवाद -नक्सलवाद की ना
डँसे परछाईं
मान्य ना हो जाति भेद का समर
लोकतांत्रिक होने के असली मायने
बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय
सर्वधर्म -समभाव
राष्ट्र-हित सर्वोपरि यही है सार
ना गैर ना बैर कोई
हर भारतवासी
करे संविधान की जय जयकार
लोकतांत्रिक होने के
असली मायने अपने
पी रहा रहा हूँ विष
जी रहा हूँ
लोकतंत्र के सपने लिए
--------डॉ नन्द लाल भारती
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