मजदूर दिवस
गुमान तो न होगा
हमारी छाती पर खड़ा
तुम्हारा महल रुतबा बढा रहा होगा
तुम्हारी हर तरक्की मे
हमारा हिस्सा दबा है
तुम लदे हो चल अचल दौलत से
तुम्हारी आलमारी कपड़ों से
भरी ठसाठस भरी होगी
लग जाता होगा
घण्टों का वक्त सिर्फ
आज क्या पहनना है....?
हमारे तन पर हजार छेद वाली
बनियान
एक चड्ढी उसमें भी कई सुराग तो हैं
पर हमने पुराने गमछे से छिपा रखा है
भूख और ख्वाहिशों की तरह
फर्क है हम मे तुम मालिक हम मजदूर
तुम सदियों से निचोड़ रहे हो
हमारा हक छिन कर
हमारी छाती पर राज कर रहे हो
और मै मजदूरी
तुम छिनते रहे हक जल जंगल जमीन
मै बहाता रहा पसीना अपने हक पर
तुम्हारा मानकर
चन्द खनकते सिक्को के लिए
ताकि सूखी काया मे सांस का
प्रवाह बना रहे
आज कोरोना ने वह भी छिन
तीन पत्थर का चूल्हा
कर रहा है इंतजार
गेहूं के आटे का गोला
गोल रोटी की शक्ल मे पडे
पेट दबाए बच्चे खिलखिला उठे
हम कह उठे मजदूर की शुभकामना ।
डां नन्द लाल भारती
01/05/2020
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