माना कि अपनी जहां में ,
छल -भेद के क्रूर हाथों
कुचले हुए पुष्प हैं यारों ,
पर क्या ………?
ये कम है ,
हरे -खड़े सुगन्धित कर्म ,
सारे जहां में।
डॉ नन्द लाल भारती
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माना कि अपनी जहां में ,
छल -भेद के क्रूर हाथों
कुचले हुए पुष्प हैं यारों ,
पर क्या ………?
ये कम है ,
हरे -खड़े सुगन्धित कर्म ,
सारे जहां में।
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