माना कि हमारी ज़िन्दगी के भी ,
पन्ने हजारो में हैं ,
वाचन हुआ जिनका
तासीर में उनकी ,
अपनी भेद भरी जहां के दिए ,
शोषण -दोहन ,अत्याचार-अनाचार नाकामयाबी
जातीय उत्पीड़न के दहकते अंगारे मिले है ,
हारे नहीं हम लालायित है
ज़िन्दगी तेरे लिए
ताकि कराहती लकीर के ,
निशान मिटा सके हम
जो दर्द हमें मिला औरो को न मिले ,
यही ख्वाब है बस हमारे
ज़िन्दगी जीने के लिए................
डॉ नन्द लाल भारती
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY