बंटवारे में विषमता मिली मुझे ,
सोचता हूँ,
विरासत में तुम्हे क्या दूं।
विधान संविधान के पुष्प से ,
कोई सुगंध फ़ैल जाए।
ह्रदय दीप को ,
ज्योतिर्पुंज मिल जाए।
आशा की कली को ,
समानता का मिले उजास।
धन धरती से बेदखल ,
देने को बस ,
सद्भावना का नैवेद्य है ,
मेरे पास।
ग्रहण करो,
बुध्द जीवन वीणा के ,
बने रहे सहारे।
चाहता हूँ
जग को कोई नई ज्योति दो ,
नयन तारे।
तुम्ही बताओ ,
शोषण उत्पीड़न का विष पीकर ,
साधनारत जीवन को ,
आधार क्या दू।
बंटवारे में मिली विषमता मुझे ,
तुम्हे मंगल कामना के ,
अतिरिक्त और क्या दू ,……।
नव वर्ष नव उमंग,नव शिखर
नित नव-नव उत्थान की सद्भावना ,
प्रियवर कबूल करो ,
नव वर्ष की हार्दिक बधाई
और मंगलकामना ……………।
डॉ नन्द लाल भारती
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