Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मरते सपने

 

चन्द्रप्रकाश खुली आंखों से ख्वाब देखने वाला व्यक्ति था ।उसे बेरोजगारी और विषमता का अनुभव काफी नदीक से था ।वह शिक्षा भी वह विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करके ही लिया था ।चन्द्रप्रकाश खुली आंखों में ख्वाब और विषमता की मुटठी भर आग में सुलगता हुआ आगे बढने का अथक प्रयास कर रहा था । रात दिन की मेहनत और पेट में भूख लेकर कटुपरिस्थितियों में भी उसने कई विषयों में दक्षता के साथ तकनीकी योग्यता भी हासिल कर लिया पर नौकरी उससे अछूत समझकर दूर भागती रही या भगा दी जाती रही । उम्र के बत्तीस से अधिक बसन्त बित जाने के बाद एक छोटी सी नौकरी तो मिली ।चन्द्रप्रकाश की सामाजिक और आर्थिक दशा दयनीय थी हां ‘ौक्षणिक रूप से तो काफी सुदृढं हो गया था । इसके लिये उसे दिन में मेहनत मजदूरी करनी पड़ी रात में पढाई । उसकी मेहनत कामयाब रही वह काफी उच्च योग्यताये हासिल कर लिया ।छोटे कर्मचारी चन्द्रप्रकाश की उच्च ‘ौक्षणिक योग्यता दम्भियों और तथाकथितश्र्रेष्ठ लोगों के लिये उपहास की विषयवस्तु के अलावा और कुछ न थी । चन्द्रप्रकाश चन्दन के पेड़ की भांति सर्पो के झुण्ड में कर्म उजली सुवास छोड़ने का अथक प्रयास करता पर दम्भी लोग छोटा मानकर धकिया देते । छोटे-बड़े के भेद के चिमटे से मुट्ठी भर आग चन्द्रप्रकाश पर फेंकने से भी तनिकी परहेज नहीं करते ।चन्द्रप्रकाश के हृदय पर से गांव के हादसों की छाप धुली तो नही थी । ‘ाहर मेंे नये घाव मिल रहे थे परन्तु अपनी धुन का पक्का चन्द्रप्रकाश खुली आंखों के सपने सच करने के लिये आगे बढने की कोशिश में बूढा हो रहा था । चन्द्रप्रकाश की धुन में ‘ाामिल था-समता,सद्भाना,परमार्थ बहुजनहिताय और बहुजनसुखाय की सर्वमंगल कामना परन्तु उसकी राह में काटें बिछे हुए थे ‘ादियों से । चन्द्रप्रकाश जीवित आंखों में मरते हुए सपने लेकर आगे बढने को व्याकुल था ।उत्पीड़न,दर्द,अभाव और विषमता के घावों से लहूलुहान चन्द्रप्रकाश की आंखों खुली आंखों का सच साफ साफ झलकता था।
चन्द्रप्रकाश को आंख खुलते ही गरीबी,भेदभाव,शोषण और उत्पीड़न जैसे विरासत में मिल गये थे । उसकी बस्ती के लोग खेतिहर भूमिहीन मजदूर, सामाजिक और आर्थिक रूप से रौंदे हुए थे ।सामाजिक स्थिति कुत्ते बिल्लियों से बुरी थी । तथाकथित सामाजिक रूप से उच्च लोग के घर उनके प्रवेश पर अपवित्र हो जाते थे जिन्हे पानी छिड़ककर पवित्र किया जाता था । इन सारी कुरीतियां भी उसके जीवन पथ में रूकावटे पैदा कर रही थी । घिनौने तेवर दिखाने से बाज भी नही आ रही थी । मानवता विरोधियों द्वारा खड़ी दीवारे उसके बंशजों के अस्तित्व को नस्तानाबूत कर चुकी थी परन्तु चन्द्रप्रकाश शिक्षा के हथियार से खोये हुए अस्तित्व को पाने के लिये ‘ाूल भरी राहों पर गिरगिरकर चल रहा था खुली आंखों में मरते हुए सपनों को लेकर । तथाकथित खुद को श्रेष्ठ कहने वालों को अत्याचर करते देखा अपने मां बाप के साथ । उसके दिल सारी भयवाह यादे बसी हुई थी जो बारबार भूलाने की कोशिश के बाद भी नही भूलती थी ।
एक बार चन्द्रप्रकाश भैंस चरा रहा था गलती से भैंस जमींदार के खेत की मेड़ पर चली गयी । जमीदार सेटीबाबू ने चन्द्रप्रकाश को जाति सूचक अनेकेां गालियां दी थी। सेटाबाबू की गाली सुनकर चन्द्रप्रकाश के बाप जो पास के खेत में काम कर रहा था बोली बाबू भैंस है मेड़ पर ही तो चढी है । कोइ्र नुकशान तो नही कि क्यों गन्दी गन्दी गाली बेटवा को दे रहे हो । इतना सुनना था कि सेटीबाबू दौडकर अपनी हवेली गये दो हाथ की तलवार लेकर आये और चन्द्रप्रकाश के बाप दयाराम को जान से मारने के लिये दौड़ा लिये थे भला हो आसपास के खेत मे काम करने वाले मजदूरों का जो इक्टठा होकर दयाराम का बचाव किये थे ।सेटीबाबू की आंख में तैरते खून की तस्वीर चन्द्रप्रकाश की आंखों से धुधली भी नही हई थी कि एक भयावह तस्वीर और जुड़ गयी हुआ यों था कि चन्द्रप्रकाश की मां रामरती जमींदार सूरजनाथबाबू का गेंहू मजदूरी पर काटकर ढो रही थी । बोझ सूरजनाथ बाबू के खलिहान ले कर आ रही थी उसका सिर बोझ में घुस गया दिखायी नही पड़ रहा था । बेचारी अभागिन हन्सी जमीदारन के खेत में पड़ गया । दुष्ट हंसी जमीदारन ने रामरती के सिर से बोझ जर्बदस्ती रास्ते पर पटकवायी और जोर जोर से चिल्लाकर अपने लड़को को बुलायी खुद और बच्चों ने मिलकर रामरती को बुरी तरह पीटा। मार मार कर नही भरा तो हन्सी ने मोटी लकड़ी के डण्डे से उसके गर्दन पर ले तेरा गर्दन तोड़ देती हूं न रहेगा गर्दन ना बोझ ढोयगे । बोझ नही ढायेगी तो मेरी खेती भी चैपट नही करेगी कहते हुए जोर से मारी । रामरती के गर्दन की हड्डी चटक गयी। बेचारी रामरती जीवन भर गर्दन के दर्द से उबर नही पायी । आखिरकार कराह कराह कर मर गयी ।
बेचारा चन्द्रप्रकाश मां बाप के कठोर परिश्रम और त्याग के भरोसे पढ लिखकर ‘ाहर गया जहां उसे गांव की रूढियां चैन नही लेने दे रही थी ।नौकरी की राह बार बार जातीयभेद की बिल्ली काट देती । सात बरस की लम्बी बेरोजगारी के विषपान और उत्पीड़न के बाद नन्हे से ओहदे की नौकरी एक कम्पनी में मिल गयी। नौकरी पाते ही उसके मरते सपनों को जैसे जीवनदान मिलने लगा था ।काफी पढा लिखा चन्द्रप्रकाश निष्ठा और वफादारी के साथ काम करता पर जातिवाद का नरपिशाच यहां भी डंस रहा था । उसकी बेहत्तर कार्यशैली और श्रेष्ठ सदाचारपूर्ण व्यवहार में भी दम्भी ‘ाोषकों तनिक रास न आती । चन्द्रप्र्रकाश तथाकथित जातीय श्रेष्ठ और बड़े ओहदेदारों की आंखों का जैसे चैन छिनने लगा था । तथाकथित श्रेष्ठ लोग चन्द्रप्रकाश के बबार्दी के सपने बुनने लगे थे । इस “ाणयन्त्र में श्रेष्ठता का ताज जर्बदस्ती अपने सिर रखने वाला चपरासी रहीस पहली पंक्ति में ‘ाामिल हो गया था । चन्द्रप्रकाश की खुली आंखों के सपनेां पर तलवार लटकने लगी थी । वह खुद को बेबस और अकेला महसूस करने लगा था । उसकी नौकरी पर गिध्द नजरे टिकी हुई थी ।
चन्द्रप्रकाश उदास रहने लगा था । उसकी समस्या का समाधान नही था । किसी ने किसी रूप में भय और आतंक उसका पीछा कर रहे थे । छोटे से बड़ा ओहदेदार उसे उच्चशिक्षित चन््रद्रप्रकाश को मूरख समझता जातीयता की आंधी में बहकर ।चन्द्र्रप्रकाश के सामने यह कहावत झूठी लगने लगी थी कि असफलता अक्सर निराशावादी दृष्टिकोण में पायी जाती है असफल लोगों को काम और दुनिया से शिकायत रहती है परन्तु यहां तो पढे लिखे कर्मठ तथाकथित जातीय छोटे एवं छोटे ओहदे पर काम करने वाले चन्द्रप्रकाश की उपस्थिति बेचैनी का कारण बनी हुई थी। यही कारण चन्द्रप्रकाश की उन्नति के सारे रास्ते अवरूध्द किये हुए थे ।
चन्द्रप्रकाश के साथ कम्पनी ज्वाइन किये लोग बडे़ बडे़ अफसर बन गये थे परन्तु चन्द्रप्रकाश वहीं घिस रहा था जहां ज्वाइन किया था । शिक्षित पढें लिखेां और खुद को श्रेष्ठ समझने वालों के उत्पीड़न से चन्द्रप्रकाश का चैन छिनने लगा था । कभी कभी तो उसके ख्वाबों में भयाह साजिशों की तस्वीरे उभर आती वह नींद में बचाओ बचाओ चिल्ला उठता था । उसकी पत्नी कर्मावती झकझोर कर जगाती । उसके माथे का पसीना पोछते हुए पोछती क्या हुआ क्यों घबराये हुए हो । कोई बुरा सपना देखा है क्या ? वह कहता भागवान ख्वाब देखने भर तो अपनी चलती है । ख्वाबों में ही तो जी रहे है पर वे भी अब मरने लगे है ।लगता है खुली आंखों के ख्वाब आसूंओं में बह जायेगे ।
चन्द्रप्रकाश के विचार सर्वमंगलकारी थे वह कहता अच्छे विचारों से हम खुद पर उपकार करते है ।जब अच्छे विचारों को जेहन में जगह मिलती है तो तकदीर संवर उठती है । आत्म विश्वास बढता है और जीवन संवर जाता है परन्तु उसके जीवन में तो बेअसर साबित हो रहा है था । हां उसके जीवन में मुश्किलें बढ रही थी जातिवाद और सामा्राज्यवाद @ सामन्तवाद की फुफकार से ।
चन्द्रप्रकाश में एक जिद थी सच्चाई कहने की । वह बेधड़क सच्चाई कह देता था ईमानदारी के साथ ।वह कहता जातिवाद मनोवैज्ञाानिक,सांस्कृतिक और आर्थि यथर्थ है न कि कोई अमूर्त परिघटना । जातिवाद ‘ाोषित पीड़ित जनता के खिलाफ एक युध्द है जिसका उद्देश्य कमजोर वर्ग को डरा धमाकर अपने अधीन बनाये रखना है ।कमजोर वर्ग को आदमी होने के सुख से वंचित करना है । चन्द्रप्रकाश कर्म में विश्वास और आदमियत को श्रेष्ठ धर्म मानता था परन्तु सामाजिक विषमता के पोषको को यह तनिक भी पसन्द न था । सामाजिक विषमता के पोषक कर्म को पूजा और आदमियत को धर्म मानकर जीवन पथ पर चलने वालों की राह में गाड़ने से तनिक भी नही हिचकिचाते । आज के युग में भी जातिवाद और सामन्तवाद @ साम्राज्यवाद कमजोर वर्ग की उन्न्ति में बाधक है पर विषमता के पोषक मानते ही नहीं ।जातिपांति की कैद में प्रतिभाये दम तोडती नजर आती तो है पर झूठी ‘ाान में डूबा विषमतावादी आदमी दोष कमजोर के माथे ही मढता है । निश्चित रूप से समता के पुजारियों द्वारा बनाये गये सामाजिक उत्थान और बदलाव के कार्यक्रम चुनौतियों पर आधारित होते है जिनका विरोध जातीयता के पोषक करते है । परिणामस्वरूप सामाजिक समानता कुचली जा रही है। ‘ाोषित पीड़ित व्यक्ति खुली आंखों से मरते हुए सपनों को देखकर आतंकित हैं । श्रे्रष्ठता के दम्भ में डूबे हुए लोग ‘ाोषित जनों की मुट्ठी में उत्पीड़न की आग ‘ाान के साथ जाति की तगाड़ी से भर रहे है । यही आग वंचितों को दे रही है सामजिक और आर्थिक तबाही ।
चन्द्र्रप्रकाश को सामाजिक बाधाये चैन से रहने नही देती । जातिवंश ने देश और समाज को बांटा है । जातिवंश में बिखण्डितों का पानी का रूप धारक लेना चाहिये । यही एकता नवयुग निर्माण का ‘ंाखनाद होगी परन्तु खुली आखों का सच ये है कि भेदभाव को धर्म मान बैठे हैं ।जातीय बिखराव दबे कुचले समाज को अवन्नति की ओर धकियाता जा रहा है । चन्द्रप्रकाश अफसर की योग्यता रखने के बाद भी अदना सा कर्मचारी था । इस साजिश में जातिवाद पूरी तरह से शामिल था । उसके बार बार के प्रयास को रौद दिया जाता । कुछ दम्भी अधिकरी तो यहां तक कहते सुने गये कि नीचों को उपर उठाना खुद के पांव कुल्हाड़ी मारना है । जहां तक हो सके अपने बचाव करते हुए छोटों लोगो का मुट्ठी भर आग परोसते रहना चाहिये।इसी में श्रेष्ठसमाज का भला है और उनकी उन्न्ति निहित है ।
चन्द्रप्रकाश जिस कम्पनी में नौकरी कर रहा था मरते हुए सपनों की सम्भावना की आक्सीजन देते हुए उसी कम्पनी द्वारा खाली पदों के लिये आवेदन आमन्त्रित किये गये ।चन्द्रप्रकाश को उसकी सम्भावनाये आकार लेती हुई दिखने लगी । वह आवेदन किया परन्तु ह सारी योग्यताओं के बाद भी फेल हो गया श्रेष्ठकुल और बडी़ पहुंच के आग उसके सपने दम तोड़ दिये ।कम्पनी में जितने भी मौके आये सारे मौके चन्द्रप्रकाश गंवा बैठा सिर्फ जातीय अयोग्यता के कारण । एक साक्षात्कार में खूबश्रेष्ठा साहब ने तो यहां तक कह दिया कि तुम इस कम्पनी में आ कैसे गये ।
चन्द्रप्रकाश के सिर से उच्च ‘ौक्षणिक योग्यताओं के बाद भी अयोग्यता का अभिशाप उतर नही रहा था । वह बेचैन रहने लगा था । एक दिन दफ्तर से तिरस्कार गहरी चोट लेकर घर आते ही धड़ाम से गिर पड़ा । चन्द्रप्रकाश की पत्नी गीतादेवी घबरा गयी । फूट फूट कर रोते हुए आंचल से हवा करने लगी ।चन्द्रप्रकाश के मुंह से स्वर ही नही फूट रहे थे । चन्द्रपकाश की दशा देखकर गीतादेवी बोली -क्यों दुनिया भर के दर्द पी जाते हो ।अरे दफ्तर मंे तुम्हारी कोई सुनने वाला नही है तेा घर में बाते कर मन हल्का कर लेते । कागल पर लिखकर मन को हल्का कर लेते पर नही तुम सारे गम पीने के आदी हो गये हो । अरे चिन्ता की लपटों में क्यों झुलसते रहते हो । गम पीना खतरनाक साबित हो सकता है । मैं समझती हूं तुम सोचते हो कि दफ्तर की बातों से घरवाले परेशान होगे । नहीं इससे तुम्हारा मन हल्का होगा । दिल पर से चिन्ता का बोझ कम होगा ।
गीतादेवी की बाते सुनकर चन्द्रप्रकाश की आंखे भरभरा आयीं। चन्द्रप्रकाश की आंखों से बहते आंसूओं को देखकर गीतादेवी का मानो सब्र का बांध टूट गया ।वह अपनी और बच्चों की कसम देकर सारी बात चन्दप्रकाश से उगलवाने की कोशिश करने लगी ।
चन्द्रप्रकाश-भागवान मै रिटायर होने की कंगार पर आ पहुंचा हूं पर मेरी तरक्की नही हुई । मेरे ही साथ में कम्पनी में आये लोग बड़े बड़े पद पर पहुंच गये है जातीय योग्यता की सीढी से । मै जहां से चला था वही पड़ा हुआ हूं । उपर से प्रताडना का शिकार हो रहा हूं । छोटे मैनेजर राजदरवेश साहब,कुटिलनाथ ने तो जातिवाद के नाम अपशब्द कहे,साजिशें रचे ,एस.धोखावत अपशब्द आर्थिक नुकशान पहुंचाने के साथ मेरी ईमानदारी पर अंगुली भी उठाये । प्रदेश के सबसे बड़े मैनेजर डां.ए.पी.साहब ने तो आज यहां तक कह दिया कि तुम जैसे छोटे आदमी को बड़ा अफसर बनने की इतनी लालसा है तो गले में बड़े अफसर की नेमप्लेट लटका ले । अरे अपनी बिरादरी की हालत क्यों नही देखता । तुम्हारे लोग क्या कर रहे है । अन्न वस्त्र को तरस रहे है । तुमको तो भर पेट रोटी मिल रही है दफतर में बैठ रहे हो । क्या इतनी तरक्की कम है तुम जैसे छोटे आदमी के लिये ?
गीतादेवी-क्या ....? इतने बड़े मैनेजर के मुंह से ऐसी घटिया बात । यह तो उच्च ‘ौक्षणिक योग्यता के साथ अन्याय और इंसानियत का कत्ल है । अच्छा तो आज आपकी बेचैनी का राज खुला है । दम्भी अफसरों के उत्पीड़न से परेशान रहते हो । अच्छा पढा लिखा होने के बाद भी कम्पनी में आपकी उन्नति नही हो रही है । उपर से नौकरी से भगााने की भी साजिश रची जाती रहती है । उत्पीड़न और साजिश से परेशान होकर से आप एक बार बेहोश होकर गिरे भी थे पर आपने झूठ बोला था कि एकदम उठकर चलने से ऐसा हुआ था । वाह रे उच्च ओहदे पर बैठे अमानुष लोग कर्म को नही जाति को प्रधान मानते है ।
चन्द्रप्रकाश-यही खुली आंखों का सच है । मै जान सुनकर उत्पीड़न का जहर पी रही है ताकि मेरे बच्चे आगे निकल सके ।
गीतादेवी- मैं समझ गयी हूं अपने भविष्य के मरते सपनों और आंखों में आंसू लिये परिवार के लिये सम्भावनाये तलाश रहे हो । बहुत बड़ी तपस्या कर रहे हो परिवार के लिये ।बहुत उत्पीड़न सह लिया डंटकर मैनेजमेण्ट के आगे अपनी बात रखो । क्या होगा नौकरी से निकाल देगे ना। मेहनत मजदूरी और सिलाई पुराई कर परिवार पाल लेगे ।
चन्द्रप्रकाश-भागवान कई बार अपनी बात रख चुका हूं पर कौन सुनेगा । सभी तो नाग की तरह फुफकारते रहते है ।कई बार अपमानित कर भगा दिया गया । मेरे भी मन में विचार आया था कि रिजाइन कर दूं पर बच्चेां का मुंह देखकर हिम्मत नही़ पड़ी । हमने दृढ प्रतिज्ञा कर लिया है कि देखता हूं ये अमानुष कितना घाव देते है । आज के युग में अमानुषता हमारी कम्पनी के जातिवाद के पोषक कुछ अफसरों में देखी जा सकती है । जिनसे नित नया चोट मुझे मिलता रहता है । बच्चों का भविष्य उज्जवल बने कराह कर आगे बढने की कोशिश कर रहा हूं ।
गीता-बच्चों को एहसास भी नहीं होने देते हो अपने दर्द का यही ना ।
चन्द्रप्रकाश-कोशिश तो यही करता हूं पर नाकाम हो जाता हूं अब क्योकि हमारे बच्चे अब समझदार हो गये है । आज की पीढी रूढियों का दहन कर सामाजिक समानता कायम करने में कामयाब हो यही कामना हो ताकि हर दबे कुचले को तरक्की का भरपूर अवसर मिल सके।
गीता-तुम्हारी बीमारी को देखकर गगन ज्योति ही नही नन्ही कंचन भी समझने लगा है कि पापा के साथ कहीं ना कहीं बुरा हो रहा है पर पापा भनक तक नही लगने देते ।
चन्द्रप्रकाश -जानता हूं फिर उसकी सांस सदा के लिये थम गयी। उसकी खुली आंखों के ख्वाब रूकी हुई धड़कनों में थम गये थे ।
चन्द्रप्रकाश के मौत की खबर दूर दूर तक फैल गयी । मुर्दाखोरों जातिवाद के नाम जहर बोने वालों के कानों को यह खबर भी सकून दे रही थी एक योग्य ,कर्म को पूजा मानने और मरते सपनों में भी सम्भावनायें तलाशने वाले के साथ नाइंसाफी कर । जीते जी चन्द्रप्रकाश का जनाजा मुर्दाखोरो ने तो कई बार निकाला था पर आज मरने के बाद निकल रहा था । यह जनाजा जमाने की खुली आंखों के लिये भयावह सच तो था परन्तु विषमतावादी ‘ाूल बरसा रहे थे और अपनों की आखों से बरस रहे थे आसूं........चन्द्रप्रकाश के बूढे मां बाप गम के समन्दर में डूबेे मुर्दाखोर विषमतावादी समाज से सवाल कर रहे थे - अरे जातिवाद की मुट्ठी भर आग से करोड़ों वंचितों के सपनों का दहन कब तक करते रहोगे ?

 

 

 

। डां.नन्दलाल भारती

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