सौम्या और स्वतन्त्र मां बेटे घर के मेन गेट के बिल्कुल सामने खड़े आपसमें बतिया रहे थे। इसी बीच सरदार सन्यासी ना जाने कहां से आ टपके। सन्यासी एक पल सौम्या तो दूसरे पल स्वतन्त्र और तीसरे पल घर को टुकुर-टुकुर निहारे जा रहे थे।
सौम्या-स्वतन्त्र से बोली बेटा फ्रिज पर पैसा है ला सरदारजी को दे दो। लंगर का चन्दा लेने केे लिये खड़े होगे।
स्वतन्त्र-मम्मी पहले भी तो आये थे।
सौम्या-बेटा ये सरदारजी नये लगते है जो पहले आये थे वे तो कई सालों से आ रहे है। तुमको जितना कह रही हूं उतना करो। प्याज का छिलका मत निकालो।
सरदार सन्यासी-बाद में दे देना।
सौम्या-बाबा बैठोगे कुर्सी ला दूं।
सन्यासी-बेटी बैठूंगा नही।
सौम्या-चाय पानी..................
सन्यासी-चाय पानी की तनिक इच्छा नहीं।खड़े-खड़े दो बातें करने का मन हो रहा है।
स्वतन्त्र-बैठ कर बाते करो ना।
सन्यासी-बैठा तुम लोग बड़े संस्कारी लगते हो। आज के दौर में कौन इतनी आत्मीयता दिखाता है।लोग भीखारी समझते है। खैर आम आदमी की भी क्या गलती गलती तो ढ़ोगियों की है तो स्वार्थवश सच्चे साधुओं को भी ‘ांका के घेरे में खड़ा कर दिये है।
सौम्या-बाबा बैठ कर समझाईश देते तो बढ़िया होता।
सन्यासी-वक्त नही है। दो तीन प्रश्न पूछना है बोलो उत्तर दोगी ना।
सौम्या-कैसे प्रश्न बाबा।
सन्यासी-बेटी तुमने प्रश्न करना ‘ुारू कर दिया।तुम तो मुझे ये बताओ तुम्हारे जेठ जेठानी है क्या ?
सौम्या-नहीं बाबा,मैं ही बड़ी हूं।देवर डां.हरेन्द्र और देवरानी सुभौती,जो बच्चा बरामदें में बैठा पढ़ रहा है देवर का बेटा है।
सन्यासी-बेटी झूठ क्यो बोल रही हो ?
सौम्या-कैसा झूठ बाबा ?
सन्यासी-तुम्हारे बड़े ससुर के बेटा-बहू तुम्हारे जेठ-जेठानी नही है। वही तो तुम्हारे सास-ससुर की मेहनत मजदूरी की कमाई पर कुण्डली मारे है। अभी भी उसकी भूख ‘ाान्त नही हुई है।
सौम्या-अब क्या करने वाले है।
सन्यासी-कर चुके है।
सौम्या-क्या..................?
सन्यासी-मौत की तामिल।
सौम्या-क्या कह रहे हो बाबा।
सन्यासी-सच कर रहा हूं। तुमने एक और घर बनवाया है।
सौम्या-नहीं बाबा छोटी सी तनख्वाह में और घर कैसये बनवा सकती हूं। बच्चों की पढ़ाई का खर्च,सास-ससुर,देवर-देवरानी और उसके बच्चों का खर्च।
सन्यासी-बेटी गांव में घर बनवायी है ना।
सौम्या-उसी को बनवाने में तो जेठ-जेठानी ने कोर्ट कचहरी तक कर दिये थे। उनके भाड़े के गुण्डे हरेन्द्र को मारने के लिये आया करते थे पर भगवान बचाते रहे। खून के रिश्ते खातिर हम लोगों ने सब कुछ भुला दिये।
सन्यासी-उसी मकान के दक्खिन वाले घर के मध्य में तुम्हारी सात पीढ़ियों तक के मौत की तामिल हो चुकी है।
सौम्या-बाबा ये क्या कह रहे हो ।
सन्यासी-सच कह रहा हूं,तम्हारी सास की मौत के लिये भी यही जिम्मदेार है।सोचो तुम्हारी सास को क्या हुआ था। कुछ नही ठीक-ठाक थी। एकदम से बेहोश हुई और फिर चल बसी।जल्दी करो मौत की तामिल की सबूत उखाड़ फेको।
सौम्या-हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी नही है कौन ऐसा करेगा।
सन्यासी-जमीन का मोह,कुछ भी करवा सकता है। सुनो दक्खिन वाले घर में एक मटके में गणन्त किया गया है,जिसमें सात सुई,नाव की कीलें,श्मशान की राख,आदमी की हड्डी,साही के कांटे,सिन्धूर,लौंग और भी ढेर सारा तान्त्रिक पूजन सामग्री जो तुम्हारी सात पीढ़ियों तक बेमौत-मौत देने की साजिश है। बेटा कोई और अनहोनी हो जल्दी करना कहते हुए सन्यासी कुछ कदम जाने के बाद अदृश्य हो गये।
देर रात लालबाबू दफतर से आये,सौम्या ने सन्यासी की कही एक एक बात को बतायी।लालबाबू को यकीन होने में देर ना लगी क्योंकि उनकी दादी किस्सा सुनाती थी कि उसके मायके में किसी से उसकी दुश्मनी थी। उसने तान्त्रिक से बाण मरवाया था जिसमें वही सामान थे जो सन्यासी ने बताये थे और वह आदमी मर गया था।यह बाण जादू विद्या से संचालित होता था जिसका निशाना सटीक होता था,जिसके नाम से जादू का बाण मारा जाता था उसकी जान जरूर जाती थी। दीदी कहती थी कि सुई और नाव की कील व्यक्ति के कलेजे को छलनी कर देती थी कुछ ही देर में व्यक्ति मर जाता था।जादू विद्या खत्म नही हुई है,जादू के साधक आज भी है,जो चन्द रूपयों के लिये किसी बेकसूर की जिन्दगी लेने में कसर नही छोड़ते।सोच-सोच कर लालबाबू करवटें बदलते रहे। सुबह उठते ही भाई हरेन्द्र को फोन लगाया और सारी दास्तान कह सुनाया । हरेन्द्र मानने को तैयार ना था वह बोला भईया ये कैसे हो सकता है जिस दिन नींव खुदी थी उस रात मांता-पिता और मैं पूरी रात वही बैठे रहे सुबह चार बजे सोने गये थे।
लालबाबू-जिसको जान लेवा जादू-टोना करना था हो सकता है,वह भी तुम्हारी तरहे बैठे रहे हो और तुम्हारे जाते है गणन्त कर दिया हो।शंका की बात तो है,मां की मौत इस मौत की तामिली को और भय पैदा करती है।तुम मौलवी बाबा के पास जाओ और उनको सारी दास्तान बताओ। कोई मुसीबत आये उसके पहले निराकरण हो जाये।
हरेन्द्र डर के मारे कांपने लगा ।वह बोला ठीक है भईया में अभी मौलवी बाबा के पास जा रहा हूं। वह मौलवी बाबा के पास गया। मौलवी बाबा तो वैसे थे तो मुसलमान पर तान्त्रिक विद्या की उन्हें अच्छी समझ थी।सुबह किरन फूटते ही हरेन्द्र मौलवी बाबा के घर पहुंच गया। बाबा बोले डां.बाबू सुबह-सुबह कैसे आना हुआ। हमारे यहा तो सब ठीक है।
हरेन्द्र-बाबा एक जानलेवा ‘ांका के घेरे में हमारा परिवार है।भईया ने आपके पास भेजा है।
मौलवी-भईया इंदौर से आये है क्या ?
हरेन्द्र-नहीं, उनका फोन भोर में आया था।बाबा तीसरा नेत्र खोलो और मेरे नये वाले मकान के दक्खिन वाले घर को देखो।
मौलवी बाबा-कुछ देर मौन रहे फिर एक सुई पाकेट में से निकाले स्वयं की जांघ में धंसाये खून जमीन पर टपकाये।पल भर में वे अरे बाप रे कहते हुए कूद पड़े। हे खुदा ऐसी कैसी दुश्मनी। कुछ देर बाद सामान्य हुए हरेन्द्र से बोले बेटा लालबाबू ने जो कुछ बताया है। वह सही है लेकिन उन्हें इतनी दूर बैठकर कैसे आभास हुआ।
हरेन्द्र-बाबा कोई सन्यासी आये थे भौजी को बताकर कुछ कदम जाने के बाद अदृश्य हो गये थे।
मौलवीबाबा-सन्यासी के रूप में हरेन्द्र बाबू वे भगवान थे। दक्खिन वाले घर में इतनी जर्बदस्ती राक्षसी ‘ाक्तियों को बिठाया गया है कि जमीन से खून का उबाल फूट रहा है। ये राक्षसी ‘ाक्तियां एक-एक कर पूरा खानदान खत्म करने की साजिश है।इनको जल्दी से जल्दी निकालना फेंकना होगा। हरेन्द्र ने बाबा की बात सौम्याऔर लालबाबू से मोबाइल पर करवा। बाबा ने सान्तवना दी बेटा मेरे रहते अब कोई बाल बांका नही कर सकता तुम जल्दी आ जाओ।
लालबाबू-अगले सप्ताह आता हूं ‘ानिवार को चलकर रविवार को गांव पहुंच आउंगा।
मौलवी बाबा- ठीक है,पूजा सामग्री की सूची डांक्टर बाबू को दे देता हूं,गणन्त निकालने की तिथि काल गणना के अनुसार मौलवीबाबा मंगलवार की दे दिये ।मौलवी बाबा हरेन्द्र से बोले बेटा पांच दस मानिन्द गांव वालों को भी बुला लेना। गांव वालों की उपस्थिति भी जरूरी है।
निर्धारित तिथि को मौलवी बाबा पहुंच गये। हरेन्द्र ने पूजा सामग्री पहले ही ला चुका था। मौलवी बाबा एक-एक चीज की सुक्ष्मता से पड़ताल किये।सुखवन्त हरेन्द्र के बाप से बोले पहलवान तुम नहा धोकर तैयार हो जाओ।
सुखवन्त बोले क्यों मौलवीबाबा बलि का बकरा बन रहे हो क्या ? खैर कोई चिन्ता नही बच्चों के भविष्य के लिये यह भी करने को तैयार हूं।
मौलवीबाबा-पहलवानजी क्यों डर रहे हो वे रखे सात छउवा कोहड़ो की ओर इशारा करते हुए बोले। वे आगे बोले पहलवान जी छउवा कोहड़ा बहुत उपयोगी होता है। इससे जिससे बड़ी और पेठा बनाया जाता है पूजा में बलि के स्थान पर इसकी बलि दी जाती है।इसी की बलि तुम्हारे हाथों से दी जावेगी। ‘ाुभ मुहुर्त बस आधा घण्टे बाद ‘ाुरू होगा,इसी बीच तुम नहा धोकर नया वस्त्र धारण कर लो। हरेन्द्र बाबू प्रधानजी को बुलाये हो ना । इतने में प्रधान आ गये और बोले बाबा आ गया तनिक बिलम्ब हो गया माफ करना।
मौलवी बाबा-बिल्कुल सही समय पर पधारे है प्रधान जी।मुहुर्त ‘ाुरू होने वाला है। सारी पूजा सामग्री गणन्त के पास रखने का आदेश बाबा दिये बाकी लोगों को बिल्कुल चैंकना रहने का आदेश देकर मौलवी बाबा तान्त्रिक कर्म में लग गये।आधा घण्टे की पूजा अर्चना के बाद मौलवीबाबा गांव के एक घुली मुस्टण्ड की ओर इशारा करते हुए बोले उठा लो फावड़ा और गणन्त के स्थान पर इशारा करते हुए बोले ‘ाुरू हो जाओ।
घुली घुटने के बराबर खोदकर हांफने लगा। बाबा बोले कोई और भी है जो फावड़ा थाम सके तब क्या लाइन लग गयी। कमर तक गड्ढा खुद गया। इतने में गड्ढे में तान्त्रिक मौलवी बाबा को कुछ दिखा वे खोदने वाले से बोले जल्दी दूर हट जाओ।वह थर्र-थर्र कांपता हुआ कमरे बाह निकल गया। इतने में गडढे में से कुछ लाल रंग का दिखाई पड़ गया आसपास खड़े लोग दूर भागने लगे।मौलवी बाबा लुंगी खुटियाने लगे इतने में गडढे से खून के छींटे फूट पड़े और मौलवी बाबा एकदम से कूद पड़े पर क्या भीभत्स अटहास के साथ कमरा धुयें से भर गया। लोग कुछ देर के लिये जैसे अंधे हो गये पर मौलवी बाबा को घनघोर धुयें में भी साफ साफ दिखाई पड़ रहा था। वे नाम ले-लेकर सभी को निर्देशित किये जा रहे थे। वे बोले पहलवानजी तलवार उठा लो और एक कोहड़ा के दो फांक कर दो। सुखवन्त पहलवान ने ऐसा ही किया। इसके बाद बाबा बोले दोनों फांक पर सिन्धूर लगाओ और दोनों फांको के बीच दारू डालोे। इसी तरह सभी कोहड़ों की बलि दी गयी यानि सात जान दी गयी और दारू चढ़ाया गया। इसके बाद धुआं तो कुछ कम हुआ पर धुआं के कम होते ही जो नजारा दिखा उससे तो कईयों के होश उड़ गये।मौलवी बाबा खुद धुयें में उभरी दैत्य की आकृति देखकर पसीने-पसीने हो गये। एक बार फिर अफरा-तफरी मच गयी।दैत्य आकृति लालबाबू या हरेन्द्र को निशाना बनाये इसके पहले मौलवी बाबा सुखवन्त के हाथ से तलवर खींच धुयें में उभरी आकृति पर दनादन प्रहार करने लगे। इसके बाद वह आकृति कई खण्डों में बंट गयी और धीरे-धीरे धुंआ कम हुआ।धुआं कम होते ही मौलवी बाबा ने गढडें को लाल कपड़े से ढंक दिये। मन्त्र पढ़-पढ़कर पानी के छींटे मारने लगे। काफी देर बाद कमरे में कुछ सामान्य स्थिति बनी पर दैत्य आत्मायें फिर उग्र हो गयी गढ्डे से लहू छींटे रह-रहकर उठने लगे।मौलवी बाबा चिल्लाकर बोले तुमको क्या चाहिये..?
वहां उपस्थित लोगों को लगा कि गढडे से आवाज आयी खून ।
मौलवीबाबा बोले खून।
फिर ऐसे लगा जैसे गढडे से आवाजा आयी खून रे खून ।
मौलवी बाबा बोले सात खून तो दे दिये और कितने खून पीओगे कहते हुए चाकू की नोंक खुद की जांघ में घुसेड़ दिये और बोले लो पीओ खून और यहां से सदा के लिये चले जाओ।
जैसे कमरे से आवाज गूंजी कहां जाये। हमें तो सात पीढ़ियों के खून पीने के लिये यहां बैठाया गया था।
मौलवी बाबा-तुम जहां से आये हो वहा जाओ या कहीं और पर मेरे बरूवा का घर छोड़ दो। आज के दिन से तुम लोगों की वजह से मेरे बरूवा का सिर तक नहीं दुखना चाहिये।
फिर हवा में आकृति उभरी और मौलवी बाबा दनादन लौंग और नीबू काटने लगे। इसके बाद कमरे में बवण्डर उठा रोशनदान से होते हुए बाहर निकल गया।
मौलवीबाबा गढडे में से गगरी निकाले और एक-एक सामान निकाल कर लाल कपड़े पर रखने लगे जिसमें सात छः-छः इंच की कीले,सात नौ से दस इंच की सुईंया,नाव की कीलें,साही के कांटे,पच्चास ग्राम के आसपास ‘मशान की राख,छः इंच के आस पास इंसान की हड्डी,दैत्य की फोटो और ढेर सारे जादू टोना का सामान जिसको देखकर गांव वालो को होश उड़ गये। मौलवी बाबा बोले इतना बड़ा गणन्त यानि पूरे परिवार के मौत की तामिल का जादू टोना सुखवन्त पहलवान की जमीन के सात पीढ़ी के वारिसों को खत्म करने के लिये किया गया था।खैर बला खत्म हो गयी पहलवानजी अब तुम्हारे परिवार का सुख चैन राक्षसी प्रवृति के लोग छीन तो नही सकते हां परेशान कर सकते है।मौलवी बाबा बोले पहलवानजी एक सलाह दूं।
सुखवन्त-बाबा एक नही जितनी चाहे सलाह दें मैं और मेरा परिवार पालन करेगा,काश बुढ़िया आज होती।
मौलवीबाबा-उसके लिये तो मैं कुछ नही कर सकता जो है उनकी खैर मनाओ। हो सके तो पांच पंच का हाथ धुला देना।
लालबाबू-बाबा आपके सलाह सिरोधार्य है।
तभी सेवकदास- आगे बढ़कर आये और बोले बाबा नाम मालूम हो सकता है।
बाबा-क्या करोगे नाम जानकर।
सेवकदास-बाबा इस जघन्य जानलेवा साजिश की सजा तो भगवान जरूर देगा पर हम तो जाति-समाज से बन्द तो करवा ही सकते है।
बाबा-छोड़ो सेवक दास मरो को क्या मारोगे छोड़ भगवान के उपर।
इतने में जोर -जोर से रोने की आवाज सुखवन्त के भतीजे धूर्तराज के घर से आने लगी। गांव वाले धूर्तराज के घर की और दौड़ वहां का नजारा देखकर लोगों के होश उड़ गये धूर्तराज और उसकी घरवाली जीरिया अचेत पड़े हुये थी। जमीन पर नाक रंगडने से खून निकल चुका था। बहुयें रो-रोकर कह रहीं थी अम्माजी मान जाती तो दुनिया तो ना थूकती ना। गांव वालों की जबान पर बस एकही ‘ाब्द गूज रहा था वाह रे ‘ौतान जमीन के लिये अपने परिवार की सात पीढ़ियों की मौत की तामिल कर दिया था।सुखवन्त धूर्तराज और उसकी घरवाली जीरिया की हाल जानकर बैचेन हो गये और बोले मौलवी बाबा बचा लो।
सेवकदास बोले किसको बचा रहे हो,जो तुम्हारी सात पीढ़ियों के नाश पर तूले हुए थे।
सुखवन्त-गलती इंसान से होती है,लालच में आकर ये सब किया पर दुनिया तो जान गया। बाबा बचा लो।
मौलवी बाबा-एक गिलास में पानी फंूक कर देते हुए बोले ले जाओ दोनो के मुंह पर छींटे मार दो उठ खड़े होगे पर जमाने के सामने हमेशा मरे हुए रहेगे।वही हुआ पानी के छींटे पड़ते ही दोनो उठ बैठे और सुखवन्त के पैर पकड़ कर बोले मौत की तामिल उलटी पड़ गयी।सेवक दास बोले ये तो सुखवन्त है कि बचा लिये मेरे जैसे आदमी होता तो तुम्हारे मौत की तामिल तुम्हारी छाती में वही तलवार घुसाकर कर देता जिस तलवार से सुखवन्त ने सात कोहड़ों के मौत की तामिल की है बस्ती वालों के सामने। वाह रे नरपिशाच तामिल तो तेरी मौत की होनी थी पर क्या बचाने वाला सुखवन्त और उसके बेटे लालबाबू और हरेन्द्र तुम्हारे लिये आज भगवान सावित हुआ है।कभी फन ना उठाना वरना तेरे मौत की तामिल बस्ती वाले करा देगे।
डां.नन्दलाल भारती
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