जमीन पर अवतरित होते ही ,
बंद मिठिया भी भींच जाती हैं ,
रुदन के साथ ,
गूंज उठता है संगीत ,
जमीन पर अवतरित होते ही।
आँख खुलते ,होश में आते,
मौत का डर बैठ जाता है ,
वह भी ढ़ीठ जुट जाती है ,
मकसद में।
जीवन भर रखती है ,
डर में ,
स्वपन में भी ,
भय पभारी रहता है ,
हर मोढ़ पर खड़ी रहती है
मौके की तलाश में।
ढीठ पीछा करती है ,
भागे-भागे ,
आदमी चाहता है ,
निकलना आगे
भूल जाता है,
पीछे लगी है मौत ,
अभिमान सिर होता है
दौलत का ,
रुतबे की आग में कमजोर को
जलाने की जिद भी।
अंततः खुले हाथ समा जाता है ,
मौत के मुंह में,
छोड़ जाता है ,
नफ़रत से सना खुद का नाम।
कुछ लोग जीवन-मरन के
पार उतर जाते हैं
आदमी से देवता बन जाते है ,
दरिद्रनारायण की सेवा कर।
मौत सच्चाई है ,
अगर अमर है होना ,
ये जग वालो ,
नेकी के बीज ही होगा बोना।
डॉ नन्द लाल भारती
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY