अचानक खुशी की बाढ। ऐसे ही खुश रहा करो।अच्छा लगा।श्रमदीन बाबू हमें भी तो बताओ अस्सी की उम्र मे कौन सा रहस्य ढूढ लिए दानदीन बोले।
मुक्ति धाम जाकर स्वयं के दाह संस्कार के खर्च और पांच आदमी के मेहनताने की रकम अग्रिम जमा कर आया।
तू पागल हो गया है क्या श्रमदीन दानदीन बाबू बोले।
नहीं ......अक्ल आ गई है।
वो कैसे ?
मरने के बाद बाइज्ज़त लाश ठिकाने तो लग जाएगी,जो बेटा बहू जीते जी मौत दे दिये हो मरने पर क्या करेंगे....?
प्रापर्टी कहाँ ले जाओगे श्रमदीन बाबू ?
सामाजिक समानता और शिक्षा के क्षेत्र मे काम कर रही संस्था को दान कर जाऊंगा।जीते जी मौत देने वाले बेटा बहू को देने से तो बेहतर होगा न।
वाह यार तुम्हारी मुक्ति और आत्म सुख के तरीक़े का क्या कहना ?
डॉ नन्दलाल भारती
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