Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुल्जिम

 

गोपी बहन को विदा कर नौकरी की तलाश में ‘ाहर को कूच कर गया । बहन की विदाई और गोपी के ‘ाहर चले जाने के बाद छोटा भाई दो छोटी बहने और बूढे मां बाप गांव में रह गये । मां बाप गोपी को आंख से ओझल तो नही होना देना चाहते थे पर गरीबी जो चाहे करवा ले। गोपी के जाते ही मां बाप भाई बहनों का रो-रोकर बुरा हाल हो गया । मां जयवन्ती बाप दुखीदादा आंसू पोछते हुए बेटवा को अच्छी नौकरी मिलने की भगवान से प्रार्थना करते रहते ताकि गरीबी का तूफान थम जाये हमेशा के लिये । मां जयवन्ती का तो रो रोकर चेहरा ही नही पूरा ‘ारीर जैसे सूज गया । जयवन्ती की बुरा हाल देखकर दुखीदादा बोले-गोपी की मां अपना चेहरा ऐनक में देखी है क्या ?
जयवन्ती-बुढौती में सठिया गये हो । जब देखने लायक थी तब तो दिखाये नही । बुढौती में ऐनक दिखा रहे हो ।
दुखीदादा-मैं नही तू सठिया गयी है ।रो रोकर तेरा चेहरा सूज गया है । कब तक दाना पानी छोड़कर आंसू बहायेगी ? मैं जानता हूं बेटवा घर परिवार की तरक्की के लिये परदेस गया है । उसकी कमाई से ढह रहा घर संवरेगा । हम बूढेां के तन पर अच्छे अच्छे कपड़े होगे । छोटा बेटा भी आगे की पढाई पूरी कर लेगा । बेटियों का ब्याह गौना रज-गज से होगा । अपनी दयनीय दशा का बच्चों पर परछाई नही पडे़गी । भगवान से बेटवा के कुशलता की कामना करो । रोना-धोना अब बन्द करो । नहीं तो मैं भी रो पडूंगा ।
जयवन्ती-क्या करूं मां का दिल है ना । मानता ही नही है ।
दुखीदादा-ये नन्हका एक लोटा पानी ला बेटवा ।
छोटा बेटा नन्हका लोटा भर लाया । मां के सामने रखकर बोला मां भईया बिना तो सचमुच घर काटने को दौड़ा रहा है पर मां खुशी भी हो रही है ।
जयवन्ती- क्यों ?
नन्हका-देखो लल्लु,कल्लू,भट्ठाबाबू को जब ये लोग ‘ाहर कमाने नही गये थे कैसे थे । फटी बनियाइन और सड़ी लूंगी लपेटे रहते थे अब देखो कितने अच्छे कपड़ें पहनते है । जब ‘ाहर से आते है तो पूरी बस्ती के लोग मिलने जाते है। ‘ाहर से मनिआर्डर भी तो डाकिया इनके घर लेकर आता है । मेरा भइया भी अच्छे-अच्छे कपड़े पहनेगा और हम लोगों को भेजेगा ।हमोर घर भी मनिआर्डर आयेगा । चन्दफूल कक्का की देखो वे तो रिक्शा चलाते है कितने ठाटबाट से रहते है । मां सब कहते है ‘ाहर में सगे लोग भी पराये हो जाते है । ‘ाहर के लोग फरेबी भी बहुत होते है । भगवान मेरे भइया की रक्षा करना ।
दुखीदादा- नन्हका ये सब बात तुमको कैसे मालूम ?
नन्हका- लल्लु,कल्लू,भट्ठाबाबू और चन्दफूल कक्का ये लोग आते है तो बाते नही करते क्या ? अपना लखनवा किसी फरेब में नही फंस गया था क्या ? मां भगवान से भइया की रक्षा की प्रार्थना हम सभी करते रहेगे ।
सुखीकाका-दुखी तुम्हारा नन्हका तो बहुत होशियार हो गया है । कैसी बूढों जैसी बात करता है ।
दुखीदादा-स्कूल जाता है काका ।
भोलु-अरे गोपी भइया का ही तो छोटा भाई है नन्हका ।
डाकिया-अरे वो दुखीदादा घर पर तो हो ।
दुखीदादा-अरे गोपी की मां देखो डाक बाबू आ गये बेटवा की चिट्ठी लेकर ।
जयवन्ती -कहा है चिट्ठी ?
डाकिया- ये लो ....
जयवन्ती- मैं क्या करूंगी पढ भी दो बाबू.......
दुखीदादा-पढ दो ना बाबू । बेटवा की पहली चिट्ठी परदेस से आयी है ।
डाकिया ने पत्र पढना ‘ाुरू कर दिया । गोपी मां बा,भाई बहनों ही नही पूरी बस्ती के बडो को चरण स्पर्श छोटो को आर्शीवाद लिखा था । बस्ती के एक - एक बुजुर्ग का नाम लिखकर पालगी @ चरण स्पर्श लिखा था ।बस्ती का हर छोटा बड़ा गोपी को दुआये दे रहा था । गोपी की मां तो चिट्ठी सुनकर तुरन्त डिहबाबा को चल चढाने निकल पड़ी ।
‘ाहर में गेापी को दर-दर की ठोकरी खानी पड़ी । फूटपाथ पर बिकने वाले पुराने कपड़े 25-25 रूपये मे खरीद कर पहना । गोपी मां बाप को बराबर चिट्ठी लिखता रहा । काफी धक्के खाने के बाद काम भी मिल गया । गोपी ने पत के साथ मनिआर्डर भी करना ‘ाुरू कर दिया । इसी बीच ‘ाहर में लखरूदीन से जान-पहचान हो गयी । दोनो साथ रहने लगे । खाना ढाबे में खा लेते और कमरे में सो जाते । लखरूदीन गंवार प्रकृति के साथ उग्र स्वभाव का था अनपढ तो था ही । काम दफतर की गाडी चलाने का करता था । लखरूदीन अक्सर बाहर जाया करता था । एक दिन वह जाने से पहले बोला गोपी कल्लन से बचकर रहना ।
गोपी-क्यों ?
लखरूदीन- पढा लिखा है इसका मतलब तो नही की सब तू ही जानता है । वह ग्वालियर स्टेशन के आसपास के सभी बदमाशोे से जान पहचान है । रेलवे स्टेशन के सामने होटल है होटल के सामने पुलिस चैकी । सभी पुलिस वाले फोकट में खाते है । उससे तू पंगा मत लेना । नही तो जेल तक की हवा खानी पड़ सकती है । हमारा क्या हम तो ठहरे सड़क पर चलने वाले हर तरह के लोग मिलते है ।
गोपी- तू मेरी खुशी में मुट्ठी भर आग क्यो डाल रहा है । क्यों डरा रहा है । मेरी उससे तो कोई दुश्मनी नही है ।
लखरूदीन-मुझसे तो हो गयी है । तू सावधान रहना बस .... मैंने आज उसकी औकात बता दी है ।
गोपी-झगड़ा करके आया है ।
लखरूदीन- बस हो गयी । तू बचकर रहना ।
गोपी ढाबे पर रात को खाना खाने पहुंचा । इतने मे कल्लन सामने खड़ा हो गया और रौब में बोला क्यों लखरूदीन तुम्हारा साथी है ।
गोपी- क्यों क्या हुआ ?
कल्लन-लखरूदीन बदमाश है । साथी भी ‘ाायद वैसा ही हो ।
गोपी-सांप चन्दन को लपेटे रहते है । इसका मतलब तो ये नही कि चन्दन विषैला हो गया । चन्दन तो पूजा के काम आता है ।
कल्लन-लखरूदीन बदमाश और घटिया प्रकृति का है । ‘ाायद तुम भी.....
गोपी-कल्लन तुम खुद को थानेदार और दूसरे का मुलजिम क्यों समझ रहे हो भाई ?
इतने में ढाबा मालिको यादो साहब आ गये और बोले गोपी बाबू ये ससुरा कल्लनवा कम हरामी नही है । मौंका पाते ही सिर धड़ से अलग करने की कूबत रखता है ।
गोपी-यादो साहब ये सब हमें क्यो बता रहे है । आपको तो कल्लन को समझाना चाहिये । आप तो उल्टे मुझे ही धमका रहे है ।
यादोसाहब- नहीं बाबू धमका नही सही कह रहे है । कल्लनवा है बहुत बदमाश । तुम्हारा लखरूवा ससुरा तो और हरामी है । कल्लन से लड़ गया ।
गोपी-मेरी तो आपसे या कल्लन से तो कोई लड़ाई नही हुई तो हमें क्यो बलि का बकरा बना रहे है ।
यादोसाहब-कितना महीना इस ‘ाहर में आये हुआ है तुमको गोपी बाबू......
गोपी-आठ महीना तो हो ही गया है । लखरूवा को समझा देना वरना नवे महीने में और कुछ बुरा हो सकता है । अब खाना खाओ और जाकर सो जाओ । हफते भर बाद लखरूवा तो आ ही जायेगा ।
गोपी-आ जायेगा । नौकरी तो इसी ‘ाहर की है। भले ही दौरे पर आना जाना बना रहे ।
यादो साहब ढाबा मालिक-खाना खाओ रात ज्यादा हो गयी है । कल भी तो आओगे ।
गोपी-खाना खाये बिना कैसे काम चलेगा ?
यादो साहब-मेरे ही होटल में खाना होगा । नही तो.....
गोपी-नही तो क्या ? यादो साहब ।
यादो-सामने देखो वो जवान जो टकटकी लगाये इधर देख रहे है ना सभी इसी होटल की रोटी पर पलते है ।
गोपी-पुलिस चैकी के जवानों की बात कर रहे है ?
यादो- हां और क्या उन भीखारियों की जो सूखी रोटी के लिये गिड़गिडा रहे है ।
दूसरे दिन नियत समय पर गोपी दोपहर में यादो भोजनालय पहुंचा । उसे देखकर होटल मालिक यादो साहब नमस्कार किये और बैठने का आग्रह किये । गोपी यादो साहब के समाने बैठ गया तब यादो साहब बोले गोपी बाबू माफ करना कल कुछ ज्यादा बोल गया था । इसके बाद कल्लन को बुलाये और बोले कल्लन गोपी बाबू से माफी मांग ले । तुम्हारा विवाद तो लखरूदीन से हुआ है गोपी बाबू से नही ना ।
कल्लन- हां ।
यादोसाहब-गोपी बाबू जाओ खाना खाओ ।
कल्लन-चल भाई गोपी खाना खा और जा । मालिक यही कह रहे है ना । मुंह क्यो ताक रहे हो ।
गोपी-कल से मैं बाहर जा रहा हूं मेरे बाकी पैसे वापस कर दो ।
कल्लन-मालिक सुनो गोपी पैसा मांग रहा है । कह रहा है कल से दुबई जा रहा है ।
यादो-कैसा पैसा ? वापस आकर खाना खा लेना बस । इतनी सहूलियत कम है ।
इतने में कल्लन आया आगे धक्का दिया फिर खींच लिया फिर धक्का दिया और पीछे खींच लिया । इस खींचा खांची में गापी का स्वेटर फट गया । इसके लिये फिर यादो साहब ने माफी मांग ली । गोपी वापस कमरे पर आ गया । संयोगबस लखरूदीन भी उसी दिन रात में देर से वापस आ गया ।गोपी सारी आप बीती बताया और इस सब का जिम्मेदार लखरूदीन को ठहराया । लखरूदीन बोला चल रात ढेर हो गयी है । कल दोपहर में खाना भी खायेगे होटल मालिक यादो से बात भी कर लेगे । तू चिन्ता ना कर । अब सो जा उस कल्लन ससुर से कल निपट लूंगा ।
दूसरे दिन दोपहर में यादो होटल पर खाना खाने गोपी और लखरूदीन साथ गये । लखरूदीन कुर्सी पर बैठते ही कल्लन को बुलाया और बोला क्यों कल्लन गोपी से क्यो भीड़ गया तू मेरी कहासुनी तुमसे हुई । पढे-लिखे इंसान को तू धक्का दिया और सुइटर भी फाड़ दिया ।
कल्लन -साले तेरी मजाल तू मुझे धमका रहा है । पानी का जग उठाकर लखरूदीन के सिर पर दे मारा ।इतने में होटल में हडकम मच गयी । इतने में पुलिस आ धमकी लखरूदीन को पड़ाव थाने ले जाकर 305,307 और भी कई धाराये लगाकर बन्द कर दिया। । गोपी जीप के पीछे पीछे दौड़ने लगा । इतने में गोपी को बुलाने के लिये होटल माालिक ने एक बैरे को दौड़ाया और खुद भी आवाज देने लगा गोपी भइया कह-कहकर । गोपी लौट जीप के पीछे पीछे कहां तक दौड़ता ।होटल मालिक यादो ने गोपी को दमाद की तरह बिठाया खाना लगवाया । दोस्त के साथ हुई चोट के एहसास से गोपी के गले से रोटी नही उतरी । इतने में तनिक जाना से आदमी सामने से गुजरा तो गोपी ने उसे आवाज दी वह रूक गया । उसकी लूना पर बैठकर गोपी पड़ाव थाने पहुंचा । गोपी को देखकर कल्लन चिल्लाया देखो दरोगाजी दूसरा गुण्डा भी आ गया । पड़ाव पुलिस ने गोपी पर बिल्ली की तरह झपटा मारा और जेल में ठूस दिया ।गोपी लखरूदीन के साथ अन्दर हो गया । कोई खोज खबर लेना वाला नही ।निरपराध गोपी की आंखो से तर-तर आंसू बह रहे थे ।
गोपी को रोता देखकर लखरूदीन बोला-क्यों बे तू क्यो आ गया भाग जाना था ना ?
गोपी-भागकर कहां जाता । दोस्ती खातिर आ गया । मैने तो यह सोचा ही नही कि मैं भी अन्दर हो जाउूंगा ।
लखरूदीन-बाहर रहता तो मुझे तो छुड़वा लेता । अब तो गावड़े तू भी अन्दर हो गया । अब तो तू भी मुलजिम हो गया ना ?इतने में एक बदमाश बोला आना ही था तो मर्डर करके आता । मै तो साले के पेट में तलवार आरपार करके आया हूं । इस तरह सभी मुलजिम अपने अपराध को बढाचढा कर ‘ाान के साथ बताये जा रहे थे । बदमाशों की बाते सुनकर गोपी के तो पेशाब सूख गये । पड़ाव थाने दो बजे दोपहर से बन्द गोपी को चक्कर आने लगा । लखरूदीन कहता हौशला गोपी मैं तो कई बार जेल जा चुका हूं मुझे आदत है । अब तू मेरा दोस्त है आदत डाल ले । आधी रात के बाद एक पुलिसवाला आया और बोला मुलजिम गोपी और लखरूदीन कौन है आगे आ जाये । इतना सुनते ही गोपी कठघरे के दरवाजे पर आ गया । दोनो को कठघरे से बाहर निकाला गया और आतंकवादियों की भांति पुलिस के पहरे में टी.आई. के पास लाया गया । बडी सी पगड़ी बड़ी बड़ी दाढी मूछ वाले टी.आई. साहब बोले तुम दोनेां में से गोपी कौन है ।
लखरूदीन-गोपी को आगे करता हुआ बोला ये है गोपी ।
टी.आई. अच्छा तो लखरूदीन तू है ।
लखरूदीन-हां साहब ।
टी.आई.- अपने गुनाह की सजा जानते हो ।
लखरूदीन-अपराध ही नहीं किया तो सजा कैसी ?
टी.आई- बिना अपराध के जेल में बन्द हो । अपराध तो किया है । कल्लन का सिर फोड़ा । अन्दरूनी चोट लगी है उसे । बेहोश है अभी । आजीवन जेल की सजा हो सकती है । इस अपराध के लिये तुम दोनो को ।गोपी ‘ारीफ लगता है । यह सरकारी गवाह बन जाये तो बरी हो सकता है । गोपी के बारे में पूर्व कमिश्नर साहब ने बता दिया है । मालूम है लखरूदीन गोपी की वजह से तुमको भी जमानत मिल गयी है । यह जमानत पूर्व कमिश्नर साहब के दमाद बी.आर.सिसोदिया ने ली है। गोपी अपराधी नही हो सकता है । गोपी बेटा दोस्ती के नाम पर इतनी कुर्बानी ठीक नही है । चार छ- साल कचहरी के चक्कर लगाओ । लखरूदीन दो हजार रूपये लगेगे रिहाई के । याद रखना कमिश्नर साहब के कानों तक यह बात नही पहुंचनी चाहिये ।
लखरूदीन गोपी के कान में बोला गोपी दफतर वाले तो काम नही आयेगे घर खबर पहंचने में पन्द्रह दिन लग जायेगे । मेरे पास पैसे नही है तू सिसोदिया साहब से दिलवा दे मैं वापस कर दूंगा ।
ठतने में टी.आई.सहब रोटी के बदले झूठा केस कायम करने वाले एस.आई.को बुलाने के लिये एक प्रहरी को बुलाये । प्रहरी बोला वे तो जा चुके है । टी.आई.साहब अपने पी.ए.को बुलावे और एस.आई.गलाघोटू के खिलाफ चारशीट तैयार करने का हुक्म दिये । इतने में सिसोदिया साहब भी आ गया । गोपी,सिसोदिया साहब से पैसे की व्यवस्था करने की बात कही । सिसोदियाजी ने दो हजार गोपी के हाथ पर रख दिये और गोपी ने टी.आई. के । टी.आई. ने अपनी जेब के हवाला किया और गोपी और लखरूदीन को जमानत पर छोड दिया ।सिसेादिया जी अपनी कार में बैठाकर दोनो को कमरे पर छोड़कर चले गये । लखरूदीन कमरे पर पहुंचते ही घोड़ा बेचकर सो गया पर गोपी की आंखों से नींद कोसो दूर भाग चुकी थी । सुबह कोर्ट मे पेशी का डर भी तो था ।बड़ी मुश्किल से रात बीती । सुबह निश्चित समय पर गोपी सिसोदियाजी के साथ केर्ट पहुंच गया । भलमानुष सिसोदिया जी के दो गवाह और गवाही के लिये कोर्ट पहुंचे गये और लखरूदीन पुकार पड़ने लगी तब आया ।
गोपी-अरे लखरूदीन इतनी देर क्यों कर दी । सिसोदिया भाई साहब दो आदमी के साथ तुमसे पहले आ गये तुम्हारी जमानत करवाने के लिये जबकि तुम्हारे ससुराल वालों ने मना कर दिया था तुम्हारी जमानत लेने से ।
लखरूदीन-ये सब छोड़ काम तो सब निपट गया ।
गोपी-इसीलिये देर से आया है कि पैसे न देने पड़े । भाई पांच सौ रूपये खर्च हो गये है । कोर्ट के काम करवाने में ।
लखरूदीन-पाई-पाई दे दूंगा चिन्ता ना कर । काम तो हो जाने दे ।
गोपी-क्यो न चिन्ता करूं । मेरे बूढे मां बाप मनिआर्डर की इन्तजार कर रहे होगे । रोज डाकिया से पूछ रहे होगे । मै तुम्हारे उपर पैसा खर्च कर रहा हूं । तुम्हारे किये की सजा भुगत रहा हूं ।मुर्दाखोर क्यो बन रहे हो, अरे आदमियत भी कोई चीज होती है कि नही । तुमने मुझे मुलजिम बना दिया । मुझे बबेवूफ समझ कर मुझ गरीब का पैसा भी खर्च करवा रहा है ।
लखरूदीन-चल पुकार पड़ गयी ।
कोर्ट से जमान तो हो गयी पर मुकदमा कई सालो चला । मुकदमें को खीचता देखकर गोपी परिवहन का काम करने वाले कमलसिंह से मिला । वे भलेमानुष मदद के सुलहा करवाने का वादा किये । उनके हस्तक्षेप के तुरन्त बाद होटल मालिक यादो और कल्लन हाथ जोड़कर माफी मांगने लगे और तुरन्त सुलहा को तैयार हो गये। सप्ताह भर में कमलसिंह ने सुलहनामा पेश करवा दिया । सुलह हो गयी । पच्चीस साल निकाल गये लखरूदीन सुपुर्द-ए-खाक हो गया पर गोपी को पैसा नही दिया पर आदमियत के राही गोपी को मिला जीवन भर के लिये मुलजिम का दर्द ।

 

 


डां.नन्दलाल भारती

 

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