मेरी मुश्किलें बस ये हैं कि
मुझे अपनों से डर लगता है
सच कहूं तो अपनो दिया
घाव,बहुत अखरता है
तलवार के वार कम लगते हैं
अपने के प्रहार आंसू ही नहीं
उम्मीद की सांस भी डंसते हैं।
क्या करें, जिनके लिए फना हुआ
वही बेवफा कहते हैं
दुनिया भी कितनी पराई है
रंग चढते ही लहू खोदकर
लहू पर दाग गढते हैं
चोट खाये लहूलुहान छाती मे
सुलगता दर्द लिए
ये हमारा अंध अपनापन
या कौन ही ख्वाहिश
ख्वाब चटकाने वालों को
अपना कहते हैं ।
डां नन्द लाल भारती
13/09/2020
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