लघुकथा ;
:नफरत के बीज
अम्मा तुम्हारी जाति क्या है।
यादव ।
झूठ..... यादव नहीं अहीर ।
तुम्हारा धर्म क्या है ।
हिन्दू हूँ अभी तक ।
धर्म परिवर्तन करने वाली हो क्या ।
आज तू ये सब क्यों पूछ रहा है।उस दिन क्यों नहीं पूछा, जब मैं अपने घर से रोटी लाकर खिलाती थी।अपने पुराने कपड़े की गदरी सिलकर तुम्हें और बिपिन को दी। बिपिन तो नेकी गाता है, मेरा नमक खाकर तू नमक हरामी कर रहा है। हाय रे आदमियत के दुश्मन ।
चुप भंग्गन।
भंगी तो तू भी है,मैं भी हूँ । भूल गया वह दिन जब बड़े साहब और उनकी बीबी बच्चों के कपड़ें धोता था,भुसलखाना साफ करता था,हमारे सामने बैठकर रोता था ।स्थायी चपरासी बन गया तो पठान बन गया। अरे पठान मर जायेगा पर इतना नहीं गिरेगा नहीं बेवफाई करेगा...... दोगला कहीं का। मैं झाड़ू पोंछा का काम करती हूँ। चोरी बेईमानी नहीं करती,ना नफरत के बीज बोती तुम्हारी तरह ।
अम्मा की दो टूक बात सुनकर रहीस चारोखाने चित,बूढ़ी अम्मा झाड़ू तलवार की तरह हवा मे घुमाते हुई उठी और चल पड़ी दूसरे घर की ओर ।
डां नन्द लाल भारती
12/09/2021
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY