दीदी देखो ना । नन्हकी को न जाने क्या हो गया । आंख उपर नीचे कर रही है । छुट्टी के दिन भी उनको फुर्सत नही है । कह कर गये थे कि जल्दी आ जाउूंगा पर अभी तक आये नही । दीदी कुछ जल्दी करो ना टीलू की आखों से आसूं टपके जा रहे थे ।
पुश्पा-टीलू ,रो ना । अभी अस्पताल लेकर चलते है ।क्यो परेषान हो रही हो । बीटिया रानी को कुछ नही होगा,कहते हुए मिसेज पुश्पा आवाज लगान लगी । अरे सुनो जी नहा लिये क्या । देखो रीता की तबियत खराब हो गयी है । अस्पताल लेकर जाना होगा अभी। वकीलभइया घर पर नही है । जल्दी करो ।
मिसेज पुश्पा की पुकार पर दीनदयाल बाथरूम से बाहर आ गये ।
पुश्पा-अरे ये क्या ? बनियाइन तो पहन लिये होते ।
दीनदयाल-इतनी मोहल्लत तुमने कहां दिया । बनियाइन निकाल कर खूटी पर टांगा ही था कि तुमने आवाज देना षुरू कर दिया । भला इतनी देर में कोई नहा सकता है क्या कि मैं नहा लूंगा । कुछ मोहल्ल तो दे दिया करो,जब देखो तब चढी घोड़ी पर सवार रहती हो । खैर छोड़ो पहले तो बताओ रीता को क्या हो गया ।
पुश्पा-कुर्ता पायजामा पहनों । अब बाद में नहाना । पहले रीता को अस्पताल लेकर चलो । सनडे का दिन है अस्पताल में कोई डाक्टर मिलते है भी कि नही । देखो देर मत करो । टीलू बहुत रो रही है । रीता की आंख उपर नीचे हो रही है । मुझे बहुत डर लग रही है । इतने बरसों के बाद तो एक लडकी पैदा हुई थी वह भी पोलियोग्रस्त । वकील बाबू और टीलू बीटिया को बहुत प्यार करते है । बड़े लाड़प्यार से पाल रहे है । पता नही किसकी नजर लग गयी । कल तो चंगी भली थी आज अचानक न जाने क्या हो गया ?
दीनदयाल- झट से पायजामा कुर्ता पहनता हूं । पहले डाक्टर को रीता को दिखाते है । बाकी काम बाद में होगा ।
पुश्पा-क्या कर रहे हो । कब से पायजामा पहन रहे हो । जल्दी नही पहन सकते क्या ?
दीनदयाल- भागवान कुछ तो समय लगेगा । नाड़ा तो बांध लेने दो ।
पुश्पा- हे भगवान इतनी देर पायजामा पहने में लग रहा है । उधर टीलू जोर जोर से रो रही रही है ।लोग कहेगे कैसे पड़ोसी है । दिखाते तो सगे जैसे पर बीमार लड़की को लेकर डाक्टर के पास तक नही ले जा रहे ।
दीनदयाल-क्यों परेषान हो रही हो । चलो नीचे उतरो । स्कूटर की चाभी मेरे हाथ में है । पांच मिनट में अस्पताल पहुंच जायेगे । रीता को कुछ नही होगा ।
पुश्पा-जब काम पड़ता है तब तुम्हारा स्कूटर जबाब दे जाता है । फेको स्कूटर चलो भाग कर । समय बर्बाद हो रहा है । रीता बेहोष हुए जा रही है ।
दीनदयाल-चलो स्कूटर स्र्टाट हो गया । तुम रीता को लेकर स्कूटर पर बैठो । अस्पताल भर्ती करवा कर टीलू को ले जाउूंगा ।
पुश्पा-टीलू को सान्तवना देते हुए अस्पताल की ओर भागी । टीलू मैडम चिल्ला चिल्ला कर रोये जा रही थी । आनन फानन में दीनदयाल अस्पताल पहुंचे ।
डाक्टर साहब पड़ी फुर्ती से आपरेषन थियेटर की ओर इषारा करते हुए भागे । इषारे से दीनदयाल के हाथपांव फूल गये । डाक्टर साहब तनिक भर में कई मषीने लगा दिये पर सब बेकार। आक्सीजन लगा दिये फिर माथा पकड़कर बैठ गये । दीनदयाल बेसुध पड़ी रीता को निहारे जा रहे थे कि कब रो पड़े ।
डाक्टर-दीनदयालजी आप मरीज को ले जा सकते है । कुछ नही हो सकता अब ।
दीनदयाल-क्या ?
डाक्टर-हां । बेबी मर चुकी है ।
अस्पताल पास में होने की वजह से पडो़़सियों की भीड़ लग गयी । दीनदयाल षव लेकर चल पड़े । दीनदयाल के पीछे भीड़, रोती बिलखती टीलू मैंडम और उन्हे सम्भालते आंसू बहाते हुए पुश्पा । टीलू मैडम तो पागल सी हो गयी । इकलौती सन्तान काफी मान मनौती के बाद पैदा हुई थी षादी के काफी वर्शेा के बाद पोलियोग्रस्त । वह भी वल बसी । रीता की परवरिष टीलू और वकील भइया बड़े लाड़ प्यार से कर रहे थे ।उन्हे इस अपंग बीटिया पर बड़ा नाज था । रीता गर्दन तो उठा नही पाती थी पर आसपास के लोगों को अच्छी तरह से पहचानती थी । मिसेज पुश्पा को देखकर वह करवटे बदलने लगती थी । हाथ पांव पटकने लगती थी । उसके भाव को देखकर मिसेज पुश्पा समझ जाती थी कि वह गोद में उठाने को कह रही है । गोद में उठाते ही वह मुंह पर एकटक देखती रहती थी । मिसेज पुश्पा के भी आंसू नही बन्द हो रहे थे । उनकी आंख के सामने रीता का चेहरा बार बार उभर रहा था । मिसेज पुश्पा छाती पर पत्थर रखकर टीलू को समझाने का अथक प्रयत्न कर रही थी । टीलू थी की बयान कर-कर दहाड़ मार-मार कर रोये जा रही थी । मिसेज पुश्पा टीलू की देखरेख में लगी हुई थी और दीनदयाल क्रियाकर्म करने की तैयारी में । दीनदयाल वकील भइया के परिचितों को अपने बच्चों को भेजकर बुलवाया दूर के परिचितों को किसी दूसरेां का हाथ जोड़ जोड़ कर बुलवाये । वकील भइया को बुलाने के लिये एक आदमी को दौड़ाये ।खुद अन्तिम संस्कार का इन्तजाम करने के लिये एक दो को साथ लेकर करने में जुट गये । कुछ देर में काफी लोग जुट गये पर वकील भइया के दूर के परिचित ड्राइवर प्रसाद ने तो सारी हदे पार कर दी । दीनदयाल की बीटिया काजल को डांटकर भगा दिये । काजल से बोले तेरा बाप कितना बेवकूफ है ना जान ना पहचान तू मेरा मेहमान हर ऐरे गैरे के काम के लिये बुलावा भेज देता है । अरे उसकी अपाहिज बीटिया मर गयी तो कौन सी दुनिया उजड़ गयी । अच्छा हुआ । दुनिया में ना जाने कितने रोज मरते है । वकील की अपाहिज बेटी मर गयी तो कौन सा पहाड़ टूट गया । मेरी कोई जान पहचान वकील से नही है । मेरे और भी काम है । जा कह देना अपने बेवकूफ बाप से । अरे खुद मुसीबत में डूब रहा है । दूसरों की मुसीबत में क्या जरूरत है कूदने की । बड़ा भला मानुश बनता है । घर में खाने का इन्तजाम नही चला है नेकी करने । खुद की घरवाली का दुख दर्द ठीक से देख नही पा रहा है । समाज को बदलने का जैसे ठेका ले लिया है । भाड़ में जाये ऐसी जनसेवा । बेचारी काजल रोते हुए वापस आ गयी । वकील भइया की बीटिया रीता की मय्यत में ड्राइवर प्रसाद नही सरीख हुआ । कही घूमने चला गय । खैर प्रसाद नही आया । वकील भइया की मृत बेटी को दफना दिया गया ।
दीनदयाल वैसे ही मिसेज पुश्पा की असाध्य बीमारी,खुद की बीमारी और आर्थिक तंगी से त्रस्त थे। दवा का इन्तजाम भी बडी मुष्किल से हो रहा था । बच्चे कपड़े लते को रतस रहे थे ।गांव में परिवार के लोग नाराज थे क्योंकि मनिआर्डर नही कर पा रहे थे । सार कमाई दवाई पर स्वाहा हो रही थी । दीनदयाल के पिताजी पूरी बस्ती वालों के सामने कहते बेटवा ससुरा षहर में मजा कर रहा है । गांव में हम सुर्ती बीड़ी के लिये नस्तवान हो रहे है । बीबी बच्चों को साथ में रखा है भला इस गांव में उसका कौन है । क्यों करेगा मनिआर्डर । जबकि दीनदयाल जो कुछ हो जाता जरूर भेजते थे । दीनदयाल अपनी दयनीय दषा को वैसे ही उजागर नही होने देते थे जैसे नवयौवना अपने तन के तार-तार वस्त्र से अपने अंग को ढकती हो । दीनदयाल खुद के परिवार का खर्च उठाने में दिक्कत महसूस कर रहे थे । इसी बीच वकीलभइया के परिवार का भार आ गया । आने जाने वालेां के चाय नाष्ता,भोजन तक की इन्तजाम करना पड़ता । वकील भइया के मुसीबत को अपनी मुसीबत मानकर दीनदयाल और पुश्पा सारा भार वहन कर रहे थे । बीटिया के मरते ही टीलू तो पागल जैसी हो गयी थी । पड़ोस में एक लड़की पैछा हुआ उसे अपनी बीटिया का पुर्नजन्म मानकर उसे लेने दौड पड़ती । तंगी के बोझ तले दबे दीनदयाल हिम्मत नही हारे पूरी तरह से मदद किये । वकील के परिवार का खाना दीनदयाल के घर ही बनता । पुश्पा और दीनदयाल ने सगों से बढकर वकीलभइया के बुरे वक्त काम आये । दीन दयाल खुद इतने दुखी थे कि दूसरों के दुख में काम आना उनकी कमर टूटने जैसा था । दीनदयाल की इनकम अधिक न थी । वे एक कम्पनी में मामूली से मुलाजिम थे । छोटी सी तनख्वाह थी। पत्नी के चार चार आपरेषन का दर्द भोग चुके थे। इसी बीच बाप का आपरेषन, इसके बाद वकील भइया की मुसीबत दीनदयाल के लिये किसी सुनामी से कम न थी । घर में खाने के लिये अन्न की कमी उपर से एक और परिवार का खर्च पर अपनी दिक्कतों का एहसास तनिक भी वकीलभइया को नही होने दिया । वकील भइया मानसिक रूप से परेषान रहने लगे वे षहर छोड़ने का फैसला कर लिये । पड़ोसियो के ,दीनदयाल और पुश्पा के लाख समझाने के बाद भी मानने को तैयार न थे । दीनदयाल और वकीलभइया में दूर दूर तक कोई रिष्ता नही था । दीनदयाल और पुश्पा को देवदूत कहते वकीलभइया और टीलू न थकते थे । वकीलभइया और दीनदयाल जाति बिरादरी से भी एक ना थे । दीदयाल इंसानियत के पुजारी थे । इंसानियत का धर्म निभाना दीनदयाल को अच्छी तरह से आता था । वकील साहब दूसरे षहर चले तो गये पर उन्हे नया षहर रास नही आया । वे वापस आ गये कुछ महीनों के। दीनदयाल खुद किराये के घर में रहते थे । घर बहुत छोटा था इसके बाद भी आश्रय दिये । दो दिन में वकीलभइया के लिये किराये का घर ढूढ लिये । वकील भइया टीलू के साथ अपने किराये के घर में रहने लगे । यह घर वकील भइया के लिये भाग्यषाली साबित हुआ । उनका काम चल पड़ा । वे तरक्की की राह पर दौड़ पड़े । कामयाबी पर टीलू मैडम को गुमान होने लगा । दीनदयाल और उनका परिवार जो साल भर पहले उनके के लिये देवता समान था । अब उन्हे उनमें खोट लगाने लगी । वे टीलू मैडम की नजर में छोटे हो गये । दीनदयाल की नेकी का टीलू मैडम के लिये कोई मोल न रहा ।
टीलू मैडम के लिये ड्राइवर प्रसाद उनका परिवार,ढकोसलबाज तेगवहादुर और उसकी घरवाली मंथरा प्रिय हो गये । ये वही प्रसाद थे जो टीलू मैडम की बेटी रीता के जनाजे में षामिल होने से मना कर दिये थे । टीलू मैडम प्रसाद की घरवाली ललिता की बातों पर कुछ अधिक विष्वास करने लगी । प्रसाद और ललिता दूसरेां के अच्छे रिष्ते उन्हे पसन्द नही थे । वे हर हाल में बिगाड़ने का शणयन्त्र रचते अन्तत- कामयाब भी हो जाते । हां बाद में भले ही लोग उनके मुंह पर थूक दे उसकी तनिक परवाह न करते । ललिता जब वे दूसरों के अच्छे सम्बन्ध में दरार डालने में कामयाब नहीं हो पाती तो राखी बांधकर रूर बिलगाव पैदा कर देती । खुद अच्छी और दो परिवार को एक दूसरे का दुष्मन बना देती । उसके व्यवहार में दिखावा कूटकूट कर भरा हुआ था । ललिता के शणयन्त्र का षिकार होकर टीलू मैडम दीनदयाल के नेकी को बिसार कर नेकी में खोट खोजने लगी । जहां दो चार औरते इक्ट्ठा होती देवता समान दीनदयाल और उनकी पत्नी पुश्पा की बुराई करने में तनिक भी न चूकती । वकील भइया ने भी आना जाना बन्द कर दिया । पुश्पा महीने भर अस्पताल में मौत से संघर्शरत् थी पर टीलू मैडम, न वकील भइया ,न ललिता और न प्रसाद देखने भर को तो न हुए । हां विपत्ति के दिनों में भी दीनदयाल की राह में मुट्ठी भर-भर आग बिछाने से न चूके । एक दिन राह चलते टीलू मैडम से मिसेज कल्यानी की मुलाकात हो गयी । टीलू मैडम मिसेज कल्यानी को देखकर बोली कहां से आ रही हो भाभी बड़ी जल्दी जल्दी । क्या बात है बहुत जल्दी में हो ?
मिसेज कल्यानी - अस्पताल से आ रही हूं पुश्पा को देखकर महीने भर से अस्पताल में पड़ी है । दीनदयाल भइया बड़ी मुसीबत में हैं ।
टीलू मैडम- मर तो नही रही है ना ?
मिसेज-कल्यानी क्या कह रही हो टीलू ?
टीलू मैडम-ठीक कह रही हूं । मेरे उपर उसका बहुत एहसान है ना ?
मिसेज कल्यानी-एहसान है तो बेचारी महीने से अस्पताल में पड़ी है । बच्चे भूखे प्यास दिन काट रहे है । जाकर अस्पताल देख आती । बच्चेां की देखभाल कर लेती । अगर इतनी एहसानमन्द है तो ।
टीलू मैडम-भाभी ये सब मुझे नही करना है ।
मिसेज कल्यानी-मुसीबत में तो अपने ही काम आते है । तुम्हारी मुसीबत में तो दीनदयाल भइया और उनका परिवार जी जान लगा दिया था ।तुम तो कभी अस्पताल में नही दिखी।
टीलूमैडम- भाभी हमे तो इन्तजार है उस दिन का ।
मिसेजकल्यानी-कौन से दिन का इन्तजार कर रही हो ।
टीलूमैडम- जिस दिन उसका बेटा मरे और मै उसके काम आउूं । पूरी कालोनी जान गयी है ना उसने मेरे साथ बहुत एहसान किये है । एहसान चुकाने का मौका तो मिले । मेरी बीटिया मरी थी तो एहसान की थी ना । मैं एहसान कर पूरे षहर को बता देना चाहतीहूं । पहले वो ना उसका बेटा मरे ताकि देख तो ले मेरे एहसान को ।
मिसेज कल्यानी- टीलू होष में तो हो । तुम नेकी पर बदनेकी की आग डाल रही हो । अरे भगवान से तो डरो । मैं जानती हूं दीनदयाल भइया ने तुम्हारे लिये क्या किया है। मैं भी पड़ोस में ही रहती हूं । कोई दूर नही रहती । खुद तकलीफ उठाये पर तुमको तकलीफ नही पड़ने दिये अपने बच्चों का निवाला तुम्हे दिया । असाध्य रोग से पीड़ित पुश्पा बहन ने रात दिन एक कर दिया । तुम्हारे खून के रिष्तेदार तो एक दिन भी नही दिखे,महीने भर पूरा परिवार एक पांव पर खड़ा था । बेचारे दीनदयाल भइया की नेकी भूल कर बुरे की सोच रही हो । पुश्पा के बेटे की मौत की कामना में जुटी हो । जो दूसरे का बुरा सोचते है उनका बुरा पहले होता है । तुमको पता है कि नही टीलू ?
टीलूमैडम- क्या ?
मिसेज कल्यानी-सत्य कभी नही हारता भले ही परेषान हो जाये । तुम्हारी मुसीबत में जो कुछ दीनदयाल भइया और पुश्पा भाभी ने किया है । उसके बदले तुमसे उन्हे कोई चाह न थी । वे तो हर किसी के दुख को अपना दुख मानकर आगे आ जाते है । उनके खिलाफ जो जहर तुम बो रही हूं वह तुम्हारे लिये घातक होगा । इसके लिये तुम्हे भगवान भी माफ नही करेगा । हां दीनदयाल भइया जरूर माफ कर देगे । मेरी बात गठिया लो । एक दिन तुम जरूर दीनदयाल भइया के चैखट पर माथा पटकोगी । अरे किसी की नेकी के बदले नेकी नही कर सकती तो बुराई की मुट्ठी भर भर आग क्यों । नेकी के बदले ऐसा सिला क्यूं टीलू ? दीनदयाल भइया तो कहते है नेकी करो पर नेकी के बदले को चाह न रखो । आज के जमाने में जब लोगो को आग बोने से फुर्सत नही है ,दीनदयाल भइया जैसा कोई आदमी तो है नेकी की राह पर चलने वाला । दूसरों के दुख में काम आने वाला ।
टीलू मैडम- क्या ?
मिसेजकल्यानी- हां । मानवता की राह पर चलने वालों की राहो में फूल बिछाने चाहिये मुट्ठी भर भर आग नही । किसी की नेकी बिसारना महापाप है ।
टीलू मैडम-मै ललिता और मंथरा भाभी के बहकावे में आ गयी थी। मुर्दाखोर मंथरा दीदी कहती थी छोटे लोगों के जीवन में जितनी आग होगी,उंचे लोग उतने सुखी रहंेगे ।
मिसेजकल्यानी- क्या ? दीनदयाल भइया इतना बड़ा आदमी तो तुम्हें इस जन्म में तो नही मिलेगा। अरे आदमी पद दौलत और जाति से बड़ा नही होता ।आदमी तो सद्कर्म और नेक हौषले से बड़ा होता है। दीनदयाल भइया भले ही जाति से छोटे हो पद और दौलत से छोटे हो पर वे बहुत बड़े आदमी है टीलू । आदमी को समझना सीखो ।मुर्दाखोरों की बातों में आकर नेक आदमी को बुराई के तराजू पर ना मापो ।
टीलूमैडम-गलती का एहसास हो गया है मुझे दीदी। मैं नेकी के बदले दिये दर्द का प्रायष्चित करूंगी। भइया और भाभी का पांव पकड़कर माफी मांगूगी कहते हुए अस्पताल की ओर भागीं जहां पुश्पा मौत से युध्दरत् थी।
डां.नन्दलाल भारती
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