रामसेवक का बेटा रामगुलाम बी.ए.तक की पढाई पूरी कर गांव से षहर नौकरी की तलाष में जाने की जिद पर अड़ गया रामसेवक के और आगे पढाने की इच्छा के बाद भी । एक दिन रामगुलाम नीम के चबूतरे पर बैठा छोटे छोटे कंकड़ से निषानी साध रहा थे । इसी बी रामसेवक आ गया पर रामगुलाम इससे बेखबर था । वह निषाना साध साधकर कंकड़ से मारे जा रहा था । रामसेवब बेटे की बेचैनी को देखकर बोला बेटा रामगुलाम क्या कर रहे हो ?
रामगुलाम-बापू कुछ तो नही ?
रामसेवक-क्यों बेचैन है बेटा ।क्यों षहर जाने की जिद कर रहा है । बेटा भले ही अनपढ गंवार हूं पर तेरा दर्द समझता हूं । लाख गरीबी में तुमको पाला पोसा । तुमको मैं अभागा कुछ भी तो नही दे सका । जब से होष संभाला है तब से घर परिवार की दरिद्रता ही तो देख रहा है।
रामगुलाम-क्यो दुखी हो रहे हो । ऐसी कोइ्र बात नही है ।
रामसेवक-बेटा तू षहर जाना चाहता है तो बड़े षौक से जा । मेरी एक बात ध्यान में रखना ।
रामगुलाम- कौन सी बात बापू।
रामसेवक-कुछ पैसा हाथ में आते ही पढाई षुरू कर देना ।
ररामगुलाम- हां बापू याद रखूंगा । बापू घर की हालत देखी नही जाती । तुम्हारे धोती में देखो कितनी जगह से फटी है । मां की साड़ी में कितने पेवन लगे है । बापू अब मैं तुम्हारा हाथ बंटाने लायक हो गया हूं विष्वास करो । किस्मत ने साथ दिया तो गरीबी दूर हो जायेगी ।
रामसेवक-भगवान तुम्हारी मनोकामना पूरी करे ।
रामगुलाम- बापू तुमने और मां ने मेरे लिये बहुत तकलीफ सहे है । तुमने अपनी इच्छाओं की हत्या कर दी मुझे पढाने के लिये । मैं षहर जाकर कुछ कमाउूंगा तभी गृहस्थी की गाड़ी आगे सरकेगी बापू ।
रामसेवक- वही षहर की बात ?
रामगुलाम-हां बाबू षहर तो जाना ही होगा । गांव में रहकर तो अपने सुख के दिन कभी नही आएगे ।
रामसेवक-बेटा षहर से तुमको इतनी उम्मीद है तो जाओ तुम्हारी किस्मत संवर जाये इससे अच्छी हमारे लिये क्या होगा । इसी में तो हमारी और हमारे खानदान की भलाई है ।बेटा षहर से बरोबर चिट्ठी देते रहना ।
रामगुलाम- हां बाबू तुमको षिकायत का मौंका नही दूंगा । तुम्हारी उम्मदों पर खरा उतरूंगा ।
रामसेवक-बेटा तुमसे यही उम्मीद है ।
आाखिरकार मां बाप का झोली भर आर्षीवाद लेकर रामगुलाम षहर को कूंच कर गया । षहर में वहे दर -दर भटकने लगा । जहां भी जगह खाली है का बोर्ड लगा देखता वहा जाता पर वहां नौकरी नही मिलता । षैक्षणिक योग्यता की पहली नजर में वह नौकरी पाने का हकदार हो जाता पर जब बात सामाजिक योग्यता याानि जाति की आती तो अयोग्य हो जाता ।देष की राजधनी में भी उसके साथ कुत्ते बिल्लियों जैसे व्यवहार हुय वह भी एक पढे लिखे देहाती के साथ । छ- साल तक रामगुलाम दिल्ली की खाक छानने के बाद मध्य भारत के इन्दूर षहर पहुंच गया । रामगुलाम को इस नये षहर में भी बहुत दुख उठाना पड़ा । साल भर की बेरोजगारी और भागदौड़ के बाद एक कम्पनी में नौकरी मिल गयी । नौकरी के पहले ही दिन लंच के समय में दफतर का चपरासी आया और बोला मिस्टर रामगुलाम यह तो पता चल गया है कि तुम आजमगढ के हो और तुम मुझे भी जान गये हो कि मैं रहीस अहम खान हूं । कौन से गांव के तुम हो यह भी तो बता दो हो । आजमगढ का तो मैं भी हूं । आजमगढ कोई छोटा मोटा जिला थोड़े ही है देष की षान है अपना आजमगढ ।
रामगुलाम-दुनिया की षान है महापंडित राहुल सांस्कृतायन भी तो वही के थे। खैर मेरा गांव चैकी लालगंज से दस किलोमीटर है । वही का हूं । इतने में साहब की कालबेल बजी वह साहब के कक्ष की ओर दौंड़ पड़ा।
रहीस अहम खान-अच्छा तो चैकी वाले रामगुलाम थोड़ी देर में फिर मिलता हूं और कुछ भी तो जानना है । एक ही विभाग में साठ साल की उम्र तक साथ साथ रहना जो है ।
रामगुलाम-ठीक है ।
चपरासी रहीस अहम खान दूसरे दिन मौंका पाते ही प्रगट हुआ और बोला रामगुलाम तुम देखो मैं तुमसे वरिश्ठ हूं इस दफतर में भले ही चपरासी हूं । एक बात पूछू बताओगे ?
रामगुुलाम- कौन सी ऐसी ना बताने लायक बात पूछने वाले हो रहीस ।
रहीस अहम खान-रहीस नही पूरा नाम रहीस अहम खान हूं मैं । खैर देखने में तो तुम किसी बड़ी जाति के लगते हो पर क्या तुम बताओगे कि असली जाति तुम्हार क्या है ? बहुत से छोटी जाति वाले जाति बदल कर नौकरी करते है और कालोनी में भी जाति छुपाकर किराये का घर लेकर रहते है । तुम्हारी जाति क्या है ।
रामगुलाम-अनुसूचित जाति का हूं ।
रहीस अहम खान-बाप रे चमार को अब चाप पानी पिला पडेगा, उसकी टेबल कुर्सी पोछनी पडेगी रहीस को कहते हो धम से रामगुलाम के सामने कुर्सी पर पसर गया । कुछ मिनट के बाद कालर सीधा करते हुए बोला अपना तो धर्मभ्रश्ट हो गया और जाने लगा ।
रामगुलाम-मि.रहीस दफतर की चाभी दे देना कुछ दिन यही रहूंगा । ए.ए. साहब ने इजाजत दे दी है ।
रहीस अहम खान-तू दफतर में रहेगा । हे भगवान अब तो दफतर के बर्तन भाड़े भी भरभण्ड होगे । साहब से बात कर लूंगा इसके बाद चाभी दूंगा । तुम्हारे कहने से तो दूंगा नही ।
खैर ए.ए.साहब ने रहीस अहम खान को लताड़ दिया । वह मुंह लटकाये आया और रामगुलाम की टेबल पर चाभी पटक दिया और बोल देखो कोई सामान लेकर नही भागना और जब तक रहना दफतर के बर्तनों को उपयोग हरगिज नही करना । रहीस अहम खान ने खुलेआम रामगुलाम को भगाने की मुहिम जैसे छेड़ दिया । दफतर में जातिवाद के कुछ पोशक भी रहीस का साथ अपरोक्ष रूप से देने लगे । उन्हे भी रामगुलाम की उपस्थिति खलने लगी ।
रामगुलाम ईमानदारी से नौकरी करने में लग गया । रहीस की साजिष को नजरअंदाज करते हुए । बडे अधिकारी ए.ए.साहब परोक्ष रूप से तो नही अपरोक्ष रूप सपोर्ट भी करने । अपने से उुंचे अधिकारियों से भी रामगुलाम का तारीफ करने से नही चूकते थे । रामगुलाम था भी तारीफ लायक । जब तक काम पूरा नही होता था उसे छोड़ता नही था । बीमारी की हालत में काम करता था पूरी लगन के साथ । उड़ीसा के भाई चन्द्रमनि ने रामगुलाम कुछ कुछ सपोर्ट किया और आत्मबल भी बढाया । ए.ए.साहब के सपोर्ट को देखकर रामगुलाम को लगने लगा था कि इस कम्पनी में उसका भविश्य सुरक्षित है पर रहीस था कि मुट्ठी भर भर आग बोने से बाज नही आ रहा था ।
रहीस की करतूत को रामगुलाम नजरअंदाज कर देता पर वह हमेषा ही खार खाये रहता । दफतर के सभी लोग उसकी इस हरकत से परिचित हो गये थे । कुछ आग में घी भी डालने लगे थे ।
एक दिन यादो बाई आई जो दफतर के साफ सफाई के साथ लैट्रिन बाथरूम भी साफ करती थी । वह काम निपटा कर जाने लगी । इतने में रहीस चपरासी आया और बोला क्यो यादो बाई तुम कहां की हो ।
यादो बाई चिढते हुए बोली उत्तर प्रदेष के रायबरेली की हूं कब तक तुमको बताती रहूंगी । सात साल से मैं इस दफतर का काम कर रही हूं । तुम्हारा गंदा किया लैट्रिन बाथरूम धो रही हूं । बार बता चुकी हूं क्यों बार बार आजकल पूछते हो ।
रहीस अहम खान-क्यों बताने में तकलीफ हो रही है क्या?
यादो बाई- और कुछ तुमको पूछना है ।
रहीस अहम खान- तुम यादों हो या नही पर मैं मान गया हूं कि तुम यादो हो और उ.प्र.की हो । ये तुम्हारे सामने कुर्सी पर बैठा रामगुलाम भी तो उ.प्र. का ही है । क्यो रामगुलाम? यादो बाई एक बात पूछनी है तुमसे कई दिनों से मन में थी आज पूछ ही लेता हूं । उत्तर दे तो दोगी ना ?
रहीस अहम खान -तुम्हारे धर्म में सबसे छोटी कौन सी जाति होती है । जिसको छुने से भी आदमी अपवित्र हो जाता है ।
यादोबाई-आदमी के छुने से आदमी कैसे अपवित्र होगा ।
रहीस अहम खान-अच्छा तो तू भी छोटी ही जाति की है । खैर छोड़ सबसे छोटी जाति कौन सी होती है तुम्हारे धर्म में ।
यादोबाई-धोबी....
रहीस अहम खान-क्या यादोबाई इतना भी मालूम नही । अरे चमार सबसे छोटी जाति होती है।रामगुलाम की तरफ इषारा करके बोले जा रहा था । रहीस चपरासी की बात सुनकर रामगुलाम का खून तो खैल रहा था पर अभी नौकरी में महीना भी नही बिता था । अपमान का जहर पी कर चुप रहा ।
इतने में बडे साहब के कक्ष की कालबेल बजी रहीस चपरासी दौड़ा दौड़ा गया और उल्टे पांव बाहर आया और बोला अरे वो रामगुलाम साहब तुमको बुला रहे है । जा याद रखना मेरी षिकायत ना करना वरना बहुतबुरा होगा ।
रामगुलाम-ए.ए. साहब के सामने हाजिर हुआ ।
ए.ए. साहब-पत्र टाइप हो गये ।
रामगुलाम-येस सर ।ये है सातो पत्र कहते हुए साहब के सामने रख दिया ।
ए.ए.साहब-वेरी गुड। एक्सीलेण्ट जाब....
इतने में चन्दमनिजी आ गये ।साहब ने उनहे बैठने का इषारा किया । साहब ने सभी पत्र चन्द्रमनिजी के सामने रख दिये और बोले देखो चन्द्रमनि कितना हार्ड वर्कर है रामगुलाम । ऐसा ही रहा तो बहुत आगे जायेगा । अच्छा पढा लिखा भी है ।
चन्द्रमनिजी- जी सर । काम करना तो कोई रामगुलाम से सीखे । सर कुछ लोग रामगुलाम की खिलाफत कर रहे है । तरह तरह के सवाल कर रहे है।
ए.ए.साहब- वे लोग सच्चे इंसान नही है । जातिवाद तो देष की सबसे घातक बीमारी है । अफसोस है कुछ पढे लिखे और उूंचे ओहदे पर रहकर भी जातिवाद को बढावा दे रहे है । चन्द्रमनिबाबू मैं जान गया हूं सब कुछ । रामगुलाम के धैर्य को भी पहचान गया हूं देखना जो लोग खिलाफत कर रहे है एक गिड़गिडायेगे रामगुलाम के सामने ।
चन्द्रमनि-रामगुलाम कितना अच्छा काम कर रहा है । कोई मीनमेख इसके काम में निकालने लायक नही होती । इसके बाद भी चपरासी रहीस विनोदबाबू और कुछ लोग उत्पीड़ित कर रहे है जाति बिरादरी के नाम पर । विनोदबाबू तो कई बार तो बिना काम के दस्तावेज रामगुलाम को टाइप करने को दे देते है । बेचारा नया आदमी है इतना परेषान क्यों किया जा रहा है । ऐसा भी नही है कि कुछ पैसे ज्यादा दिये जा रहे हो । सबसे कम तनख्वाह पाने वाला रामगुलाम ही है । काम सबसे ज्यादा करता है पढाई लिखाई में बीस ही बैठेगा । गंवारो की तो बात छोड़ो यहां तो पढे लिखे लोग षोशण कर रहे है । अन्याय हो रहा है साहब रामगुलाम के साथ ।रामगुलाम चुपचाप सुनता रहा ।
ए.ए.साहब-चन्द्रमनिबाबू हाथी चलता है तो कुत्ते बहुत भौकते है जब वह पीछे मुड़ता है तो सब अपनी अपनी मांद की ओर भागते है ।रामगुलाम तुम ऐसा नही करना अभी क्योकि तुमको बहुत दूर तक जाना है ।
रामगुलाम-समझ गया सर ।
चन्द्रमनि-सर आजकल लोग आदमी की पहचान करने में भी मतलब तलाषते है । भले ही आदमी कितना ही ई्रमानदार,वफादार,हार्डवर्कर क्यों न रहे यदि वह चापलूस नही है तो सबसे निकम्मा है । सर आप जैसे लोग बिरले ही होते है जो आदमी की प्रतिभा को तराषते है ।
ए.ए.साहब-चन्द्रमनिबाबू काम प्यारा होना चाहिये । हम सभी संस्था के लिये काम करते है । ईमानदारी से संस्थाहित में काम करना चाहिये । इसी में समाज और देष की भलाई भी है । जाति धर्म के झगड़े में पड़कर आदमी अपना अहित तो करता ही है, देष समाज का भी कर बैठता है । दुनिया में बद्नामी भी होती है । आदमी को आदमियत के प्रति अपना फर्ज नही भूलना चाहिये ।आदमी आज है कल नही है । ईमानदारी से किया गया काम ही तो याद रहता है । देखो रामगुलाम जिस लगन से तुम काम कर रहे हो करते रहो जरूर एक दिन अपने मकसद को हासिल कर लोगो ।
चन्द्रमनि-हां रामगुलाम बाधाओ से नही घबराना । बोने दो जी विश बो रहे है । एक दिन यही विश उनके सांसों में घुलेगी । लगन से काम करो । भगवान तुम्हारी मदद करेगा ।
रामगुलाम-मै अपने फर्ज को नही भूलूंगा । पूरी निश्ठा और ईमानदारी से काम करता रहूंगा आप लोगों के मार्गदर्षन में ।
ए.ए.साहब-ऐसे ही लगे रहो तरक्की तक तुमको नही जाना होगा । देखना एक दिन तरक्की तुम्हारे पास चलकर आयेगी ।
चन्द्रमणि-साहब अपने तजुरबे के आधार पर कह रहे है रामगुलाम ।
रामगुलाम ईमानदारी से अपनी डयूटी करता पर आठवी फेल चपरासी रहीस साजिष रचने से बाज नही आता । अपनी साजिष में चपरासी,रहीस विनोदबाबू जैसे और जातिवाद को बढावा देने वालो को षामिल करता और रामगुलाम को परेषान करता ताकि वह नौकरी छोड़कर भाग जाये । रामगुलाम रहीस के शणयन्त्र को समझ गया था । इन इंसानियत के दुष्मनों से बचकर रहता लेकिन ये दुष्मन कहा मानने वाले विश तो बोते ही रहते थे । कुछ साल के बाद ए.ए.साहब का स्थानान्तरण हो गया ।धीरे धीरे दषक बित गया पर रहीस का जहर उगलना कम नही हुआ । अब रामगुलाम को ईष्वर का ही भरोसा था । इसी बीच चपरासी रहीस ने अपना स्थानान्तरण बनारस करवा लिया । बनारस में चपरासी रहीस की अपनी औकात का पता चल गया । दिल्ली में बैठे बड़े अधिकारी के सर्पोट से वह रामगुलाम के खिलाफ आग उगलता रहता था । उन्ही अधिकारी के सहयोग से बनारस ट्रान्सफर करवाया था और छ- महीने में फिर वापस भी आ गया और पहले से अधिक रामगुलाम का विरोध करने लगा । चाय पानी तक देना बन्द कर दिया बोलता कब तक अछूत को चाय पानी पीलाउूंगा । इसके लिये रामगुलाम को लड़ाई भी लड़ना खैर जीता रामगुलाम ही । बहुत बड़े सामन्तवादी अधिकारी का सिर पर हाथ होने की वजह से रहीस चपरासी जातिवाद का कट्टर समर्थक थ ाऔर बनारस से वापस आने के बाद तो बबर षेर हो गया था । वह रामगुलाम के खिलाफ कुछ और अधिकारियों को मिलाकर दुष्प्रचार करना लगा कि रामगुलाम चमार है अपनी जाति का सहारा लेकर हम उच्च धर्म और जाति वालो की खिलाफत करता है । शणयन्त्र के तहत् यह झूठी षिकायत उपर तक पहुंच गयी । बड़े सामन्तवादी अधिकारी ने काले पानी की सजा दे दी ।
रामगुलाम के सिर ऐसा इल्जाम पर मढना षुरू हुआ कि फिर यह सिलसिला कभी न ही रूका और उसकी सारी योग्यतायें धरी की धरी रह गयी। सम्भवत- इसीलिये कि एक बड़ी कम्पनी के दफतर में वह तथाकथित इकलौता छोटी जाति का था । इतने भयावह विरोध के बाद भी रामगुलाम अपने कर्म और फर्ज को ईमानदारी के साथ समर्पित रहा । वह ऐस भयावह विरोध के तूफान में फंसा रहकर भी बड़ी-बड़ी षैक्षणिक डिग्रियां भी हासिल कर लिया परन्तु रामगुलाम का आवेदन जातिवाद के पोशकों ने आगे नही बढने दिया । उल्टे ऐसे ऐस हादषे निर्मित किये गये की रामगुलाम नौकरी तक छोड़ दे लेकिन रामगुलाम बूढे मां बाप के आंखों के आसू और परिवार के भविश्य के लिये षोशण उत्पीड़न का जहर पीता रहा । इस जहर ने तो उसे तो उसे तरक्की नही दी पर डायबिटीज जैसी बीमारी जरूर दे दी । रामगुलाम जब बहुत दुखी होता तो भगवान के आगे षिकायत भरे लहजे में कहता भगवान दूसरों की तकदीरे कैद करने वालों को सदबुध्दि दो । दूसरा उपाय भी तो नही बस इनसे छूटकारा पाने का तरीका नौकरी छोड़ना ही था । ऐसा रामगुलाम कर भी नही सकता था क्योकि उसे बूढे मां के आंसू पोछने थे और परिवार को भी तो षिक्षित करना था । इसलिये वह षोशण अत्याचार सह रहा था तपस्या मानकर । वह अपने मन की भड़ास भगवान के सामने निकाल लेता कभी कभी-क्योकि विशमतावादी समाज में कमजोर का तो कोई सुनने वाला नही होता । सब कमजोर के जीवन में मुट्ठी भर-भर आग भरने का ही तो भरसक प्रयास करते है ताकि वे दबे-कुचले रहे सिर उठाकर चलना ना सीख सके और बने रहे गुुलाम ।
रामगुलाम का अपने फर्ज के प्रति समर्पण वक्त के कैनवास पर चिन्ह छोड़ने षुरू कर दिये जिससे उसकी उजली पहचान तो उभरने लगी पर उसके दिल के जख्म ताजे कर देते भेदभाव के षोले उगलने वाले । एक नौकरी में तो रामगुलाम को तरक्की नही मिली पर वह समाज सेवा के क्षेत्र में एक मुकाम हासिल कर लिये ।सामाजिक बुराईयों से निपटने के विचार उसके मन में चलते रहते । रामगुलाम सुर्ख आखों और माथे पर चिन्ता की मोटी मोटी लकीरे लिये उधेड-बुन में उलझा हुआ था इसी बीच सत्यनारायण बाबू आ गये । उसकी दषा देखकर बोले क्यों रामगुलाम खुद को मिटा दोगे क्या ?
रामगुलाम-हां बाबू मानवीय समानता के लिये ।
सत्यनारायण-क्या ?
रामगुलाम-हां बाबू मानवीय भेद के आसू कब तक बेमौत मारते रहेगे ? जातीय भेदभाव और रहीस जैसे चपरासी का जुल्म कब तक ढोना होगा । बाबू ऐसे जुर्मो ने ही तो दबे कुचलो के अस्तित्व को रौंद रखा है । षदियों से षोशितों को सम्मान और भरपूर तरक्की का मौका चाहिये की नही ।
सत्यनारायण-क्यों नही ?तुम जैसे निरापद लोग कब तक जुल्म सहते रहेगे । जातीय भेद भाव खत्म होना चाहिये । कब तक यह दैत्य सामाजिक आर्थिक रूप से वंचितों की हक छिन कर कब तक खून के आंसू रूलाता रहेगा । कब तक रामगुलाम तुम जैसी प्रतिभाओं का दमन करता रहेगा । अब तो भेदभाव देष के लिये नासूर बन गया है। इसके इलाज में ही देष और समाज की तन्दुरूस्ती है ।
रामगुलाम-सत्यनाराणबाबू विशमतावादी समाज में पैदा हुआ जातिवाद के पोशक स्वधर्मी ही नही मुर्दाखोर गैरधर्मी रहीस जैसे चपरासी तक का जख्म पाया हूं। सत्यनारायण बाबू मुर्दाखोरों का दिया जख्म तो इस जीवन में नही भर सकता पर सकून जरूर मिल सकता है ।
सत्यनाराण-वह कैसे ?
रामगुलााम-समतावादी समाज की गोद में मरकर ।
सत्यनाराण- क्या दे पायेगा षोशितों वंचितों को बिखण्डित समाज ........ ?
डां.नन्दलाल भारती
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