Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पाद प्रछालन

 

 

।कन्या उत्थान को समर्पित।
कैसे जंगली लोग है। इनको परम्परा भी निभाने नहीं आता। इसी जंगली गांव की लड़की चमक बाबू के नसीब में लिखी थी। रिष्ता एक दिन का तो होता नहीं। रिष्ता तय करने से पहले सब ठोंक बजा लेना चाहिये था। दमक बाबू आंख बन्द करके रिष्ता तय कर दिये। लड़़की वाले तो पहली परीक्षा में फेल हो गये। कनक बाबू को लाल-पीला होते देखकर ज्ञानबाबू बोले क्यों नाराज हो रहे हो।थोड़ा आराम करो थक गये होंगे खड़े-खड़े।
हां काका वह तो है,दो घण्टा जंगल में खड़ा रहना पड़ा तकलीफ तो हुई कनक बाबू बोले।
ज्ञानबाबू बोले -बस खराब हो गयी तो बेचारे दमक बाबू का क्या कसूर ?
काका बस का खराब होना तो अनहोनी थी परन्तु दुख तो लड़की वालों की तमीज को देखकर हो रहा है।
तमीज को देखकर दुख क्यों तमीजदारी और खातिरदारी तो खुषी की बात है,बारातियों को और क्या चाहिये ज्ञानबाबू बोले।
काका तुमतो व्यंग ना कसो कनक बाबू गुस्से में बोले ?
कोई गलत बात कह दिया क्या बेटा ?
काका लड़की वाले तो पाद प्रछालन कर ही नही रहे है खातिरदारी क्या करेंगे कनकबाबू गुस्से में और जोर से बोले ।
पाद प्रछालन की क्या जरूरत हैण्डपाइप से पानी लो पांव,हाथ मुंह का प्रछालन कर लो,बेचारे लड़की वालों का इन्तजार क्यों ?
काका तुमको पता नहीं है,तुम तो परदेसी ठहरे। हमारे यहां परम्परा है पाद प्रछालन की कनक बाबू तनिक ठण्डें दिमाग से बोले।
कनक बाबू- दुनिया बदल रही है,तुम पाद प्रछालन के पीछे पड़े हो, लड़की वालों के पास हजार काम होंगे। अपनी लड़की दे रहे है कम है क्या ?
काका हमने भी अपनी बहन का ब्याह दमक बाबू से किया है। पूरी बारात का पांव हमने और हमारे बाप ने धोया था थाली में । यहां तो कोई पानी का छींटा तक मारने को आगे नही बढ़ा कोई। यह तो बारात का अपमान है।
बेटा एक बाप अपनी लड़की दे रहा है कितना बड़ा त्याग ही नहीं पुण्य का काम कर रहा है,ऐसे महान दाता से पांद प्रछालन करवाना पापकर्म नही लगता ।
काक तुम षहरी लोग गांव की परम्पराओ को क्या जानो।
बेटा हम भी गांव के ही है। हमारे गांव में बारात आती है तो बाल्टी में पानी भरकर रख देते है, जिसको पाद प्रछालन करना होता है, वह खुद कर लेता है। हां एक परम्परा हमारे यहां भी है बारात आती है तो घरात वाले बारात के स्वागत करने के लिये लाइन से खडे़ हो जाते है,एक -एक बाराती को,पुश्प माला पहनाते है,गले मिलते है,फिर द्वारपूजा लगता है,दूल्हे की आरती होती है,इसको बाद जलपान कराया जाता है। जलपान में कम से कम पांच किस्म की मिश्ठान होती है।
काका जो आदमी लोटा भर पानी नहीं दे सकता,पानी का छीटां तक नही मार सकता,वह इतना बड़ा खर्च कैसे उठा सकता है,पाद प्रछालन का मतलब ये तो नही है कि वह एक एक बाराती का पाव धोये। अरे एक लोटा में पानी लेकर छींटे तो मार सकता था पर वह भी नहीं किया। छप्पनभेाग क्या खिलायेगा। परम्पराओं का निर्वहन तो ढंग से कर लेते,बारात का मान रख लेते।
क्या कह रहे हो कनक बाबू अब कैसी मान चाहते हो,बेचारा बाप कन्यादान कर रहा है,अपने कलेजे के टुकड़े को दे रहा है, इससे बड़ी और क्या मान रखेगा कोई लड़की का बाप। रही बात पाद प्र्रछालन की तो आज के वक्त मंें इसकी जरूरत तो नही होनी चाहिये।
क्या काका तुम भी परम्पराओं के नाष पर जुटेे हो कनक बाबू तनिक गुस्से में बोले ।
कनक बाबू बात ऐसी है,बारात तो आई पर कार और बस से। इस पाद प्रछालन परम्परा का तब महत्व रहा होगा जब लोग कोसो पैदल चलकर पहुंचते थे। इस पैदल यात्रा में थककर चूर जाते थे। बारात पहुंचते ही पाद प्रछालन की व्यवस्था हो गयी तो तब सचमुच तबियत हरि हो जाती थी।
काका परम्पराओ का तो पालन होना चाहिये की नही।
कनक बाबू ऐसी परम्परा का क्या मतलब ।
काका मतलब है ना।
बेटा तुम नई पीढी के हो इसके बाद भी चाहते हो कि एक लड़की का बाप और गिरे,तुम्हारा पाद प्रछालन करे,क्या बेटी का बाप होना कोई गुनाह तो नही।
काका मैं भी एक बेटी का बाप हूं पर पुरखों ने परम्पराएं बनायी है उसका तो निर्वहन होना चाहिये कि नही।
मतलब तुम पुरखों की बनायी परम्पराओं को निभाने के लिये आज भी बेटी के बाप की पगड़ी पांव पर रखवाना चाहते हो।
काका इसमें हर्ज क्या है कनक बाबू बोले ।
बेटा हर्ज है,आज तुम लोग पढे लिखे हो पुरखे अनपढ़ थे वे सुनी सुनाई बातों की गांठ बांध लेते थे और कोल्हू के बैल जैसे चलते जाते थे। आज आदमी चांद पर बस्ती बसाने की सोच रहा है तुम हो कि बेटी के बाप से पाद प्रछालन करवाना चाहते हो।
काका युगो से ये परम्परा है,नई नही है।
बेटा परम्पराये तोडने के लिये होती है।
क्या काका तुम भी कौन से युग में रह रहे हो।
बेटा सोचो वह भी वक्त था जब कुछ गिने चुने के बच्चे स्कूल जा पाते थे बाकी को परछाई भी नहीं नसीब थी। यह परम्परा टूटी तो सभी के लिये स्कूल के दरवाजे खुले नतीजा तुम्हारे सामने है। इसके लिये तुम चाहो तो लार्ड मैकाले को धन्यवाद तो दे सकते हो।
काका स्कूल और सामाजिक परम्पराओं में अन्तर है।
बेटा अन्तर ही तो मिटाना तुम युवापीढी का काम है। मालूम है पहले गांवों में मेहमान आते थे तो उनका भी पाद प्रछालन होता था। पति थका मांदा आता था पत्नी भी पाद प्रछालन करती थी,समय के साथ इसकी जरूरत भी नहीं रही। गांडी से आज लोग आते-जाते है घण्टों का काम मिनटों में हो जाता है,थकायी तो कोसों दूर का मामला हो जाता है कनक बाबू। ना जाने क्यों पाद प्रछालन की रट लगा बैठे हो। रूढिवादी परम्पराओं से छुटकारा पाओ,यही अच्छा है।
काका सिर दर्द में पत्नी को जरा सिर पर तेल रखने को बोल नही सकते,पाद प्रछालन तो सपने की बात है। तनिक देर में महिला उत्पीड़न का केस बन जायेगा। काका परम्पराये तो निवर्हन के लिये ही बनी है।षादी तो जिन्दगी में एक बार ही होती है,परम्परागत् तरीके से हो तो अच्छा है ना।
बेटा परम्परायें समय के साथ बदलनी चाहिये,रूढिवादी परम्पराओं का त्याग जल्दी से जल्दी कर देना चाहिये।पाद प्रछालन बेटी के बाप को बौना साबित करने की परम्परा नही है क्या ? एक दाता के साथ ऐसा सलूक क्यों ?
काका तुम अब बारातियों का पाद प्रछालन भी रूढिवादी परम्परा का हिस्सा मान बैठे ।
बिल्कुल सही कह रहे हो कनक बेटा।
काका पूरी बारात का नही तो कम से कम पांच लोगों का पाद प्रछालन तो लड़की के बाप को करना चाहिये।
बेटा ऐसा क्यों करना चाहिये?
काका बेटी का बाप जो है।
बेटा कनक लड़की के बाप का दर्जा अब लड़के के बाप से उपर होना चाहिये। वह दाता है।
काका अब तो तुम दुनिया बदल दोगे।
बेटा कनक मैं तो नही बदल पाउंगा पर चाहता हूं कि आदमी विरोधी रूढिवादी परम्पराओं के बदलने में सभ्य समाज का हित है।
जैसे काका कनक बाबू बोले।
बेटी-बेटा को समान दर्जा,भ्रू्रण हत्या,दहेज दानव से मुक्ति,कन्या षिक्षा को प्रांेत्साहन,जातिमुक्त मानव समाज का निर्माण।
पाद प्रछालन को भूल गये काका।
नहीं बेटा पाद प्रछालन को देखा जाये तो वर्तमान में उचित नही है। बेटी के मां-बाप कन्यादान के पहले दमाद का पाद प्रछालन कर पाद पूजा करते है,पाद प्रछालन का पानी बतौर परसाद ग्रहण है। इसके बाद कन्यादान होता है। तुम्ही बताओं कनक बेटा क्या बेटी के बाप को यह दण्ड नही लगता है।
काका ये परम्पराये सदियों से चली आ रही है।
बेटा अब मत चलाओ, अपने स्तर पर विरोध करो,बुराईयों से मुक्ति पाओ। बेटी के बाप का दर्जा बेटे के बाप से उंचा होना चाहिये।
क्यों काक कनक बोला ।
बेटा बेटी का बाप दाता होता है,देने वाले का दर्जा तो उंचा ही होता है। जरा बेटी के त्याग पर तो गौर करो ।
ये बात तो ठीक कह रहे हो काका लड़की बहुत बड़ा त्याग करती है,दो परिवार को जोड़ती है सेतु की तरह,लाख दुख सहती है पर ससुराल की षिकायत कभी नही करती,बेटी मायके आती है तो सिर्फ जड़े सींचने कनक बाबू। बेटी जिसके आने से जीवन में बहार आती है,ऐसी कल्याणकारी, सृजनकारी बेटी के मां-बाप से पाद प्रछालन करवाना पाप नहीं क्या ? बेटी के बाप से दहेज मांगना क्या हत्या जैसा जघन्य आपराध नहीं।
कनक बोला काका तुम्हारी बात समझ में आ गयी,बेटे का ब्याह मैं बिना दहेज बिना पाद प्रछालन के करूंगा,आज मै ंभरी बारात के समाने कसम खाता हूं। कनक की देखा-देखी में पूरी बारात ही नहीं पूरे गांव ने बेटी बचाओ-बेटी पढाओं के नारे के साथ रूढ़िवादी परम्पराओ,दहेज और पाद प्रछालन के परित्याग की कसम ले लिया।

 

 


डां.नन्दलाल भारती

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