लघुकथा : परित्याग
अंग्रेजों के जमाने की सौतेली मां के आतंक से घबराकर एक दिन सुषमा ने जेल की दीवार फांदकर नानी की गोद मे आ गिरी और नानी मरते मरते अपनी बहुओं की गोद मे डाल दी।नाना की लाडली थी सुषमा । बहुओं और बेटो ने अपना फर्ज निभाया। सुषमा दो बच्चों की मां बन चुकी थी। नाना मृत शैय्या पर थे पर सुषमा को मौंका नहीं, नानाजी मर गए सुषमा को मौंका नहीं तेरहवीं के दिन भी मौंका नहीं।
आखिर मे पता चला कि सुषमा अपने बीमार बाप को अपने घर में रखकर सेवासुश्रुषा मे ननिहाल को भूल गई जिसनें उसे दुनिया के साथ चलने के काबिल बनाया था पर उस बाप को नहीं भूली जिसने उसे गिध्द कौओं के सामने फेंक दिया था सौतेली मां के प्रभाव में आकर ।
सुषमा के ननिहाल के लोगों को जानकर कोई तकलीफ नहीं हुई पर मामियों ने जरूर कहा जिस सुषमा को हमने बेटी का दर्जा दिया,जिनके लिए एक पांव पर खड़े रहे वही सुषमा इतनी बेगानी हो गई कि अपने नानाजी का परित्याग कर दिया काश सुषमा मौत से महीनों जूझते रहे नानाजी के सामने कुछ मिनट के लिए खड़ी हो गईंं होती.........?
डां नन्द लाल भारती
11/05/2021
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