Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पर्यावरण

 
कविता : पर्यावरण
हेलो मैं पर्यावरण बोल रहा हूँ
सच तुम आदमी हो ना,
वही आदमी जो प्रकृति को
पूज्य मानते थे
और जीवन का स्वर्ग भी
अब नहीं सच कह रहा हूँ ....?
तुम अब बिल्कुल बदल गए ना
ना अब तुम्हारे लिए पवन देव
ना जल देव ना धरती माता
सब कुछ अब तुम्हारे
उपभोग की वस्तु हो गई है
जमीं से आसमां तक
तुमने झकझोर दिया है
क्यों आदमी झूठ तो नहीं
कह रहा हूँ...........
तुम स्वार्थ मे इतने डूब गए
जीवन को दाव पर लगा दिए
पहाड़ को उलट दिया
पहाड़ हो या जमीं 
तुमने झलनी कर दिया
तुम भूल गए तुम्हारे सिवाय
भू लोक पर और भी
जीव जन्तु रहते हैं
हक छिनने मे इतने बावरे हो गए
समन्दर को भी दूह दिया तुमने........
प्रकृति ने तुम्हें बुध्दि, अपार बुध्दि का,
इनाम बख्शा और तुमने क्या किया ...?
गोले बारूद, अणु परमाणु बम
इतने विनाश के औजारों के बाद भी
नहीं थमे
वायरस की खेती पर उतर आये
काट डालो अपने पैर
बना डालो आने वाली जनरेशन को
अपंग, अपाहिज, बीमार  स्वार्थ के लिए
ये जहर की खेती किस के लिए......
अरे आदमी बहुत हुआ विनाश
तुमने बना दिया, जल को वायु को जहर
जंगल खत्म कर डाले
पंछी,जल और जंगली जीव जन्तु मर रहे
तड़प तड़प कर आदमी आज जैसे
मर रहे कोरोना से
इतना सारा षणयंत्र रचने के बाद
तुम कहाँ सुख चैन से जी रहे हो
खुद के साथ ही नहीं
आने वाली नस्लों के साथ दगा
कर रहे हो..........
तुम को समझ मे आ गया होगा
जिसे तुम तरक्की कह रहे
वह तरक्की नहीं विनाश की खेती है
तुम्हारे  वायरस की खेती ने
क्या  हाल बना दिया है
जमीं और जल तुम्हारी लाशों के
बोझ से दहल चुके है
प्रकृति ने तुम्हें इसलिए नहीं
बनाया है आदमी समझे आदमी
मैं पर्यावरण बोल रहा हूँ
समझ रहे होना आदमी........
तुम टूजी से फोरजी तक कितने 
कत्ल किये हो,
फाइवजी और आगे तक क्या करोगे...?
पर्यावरण का विनाश,
तुम्हारी जीवन विरोधी वायरस की खेती
ये आदमी तुम अपने ही खोदे मौत के कुयें में
तड़पा तड़पा कर मार रहे आदमी
बच भी तुम गए तो कब तक ....?
मत विष बोओ , मत बनाओ विषैला पर्यावरण 
समझ गए होंगे तुम अब तक आदमी
अगर ऐसे ही बोते रहे कोरोना के बीज
पर्यावरण करते रहे विषैला
छिनते रहे दूसरे जीवों के जीने के अधिकार
आसमां थर्रा उठेगा 
एक दिन थक हारकर रिसने लगेगा तेजाब
धरती हो जायेगी ठांठ विरान
जल हो जायेगा जहर
क्या रोक पाओगे जीवन का विनाश
नहीं..... नहीं.... प्रकृति भी नहीं
हेलो सुन रहे हो ना आदमी
मै पर्यावरण बोल रहा हूँ ।
डां नन्द लाल भारती
07/05/2021

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