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फोटो कापी की दुकान

 
फोटो कापी की दुकान/नन्द लाल भारती

रिटायर्ड आदमी जमींरवान
ईमान थी पूंजी जिसकी,श्रम उजली पहचान 
निजी क्षेत्र की कम्पनी से रिटायर्ड
पेंशन नहीं के बराबर,
दवाई का खर्च भी नहीं निकलने वाला
सोचा जमींरवान रिटायर्ड आदमी 
समय भी सकूं का होगा,
होगी कुछ आवक
लगा दिया फोटो कापी की दुकान रिटायर्ड आदमी
आने-जाने लगे लोग, होने लगी फोटो कापी
रहने लगा मगन अपने काम 
पड़ोसवाले दुकानदार को नहीं देखा गया
सकूं भरा जीवन  रिटायर्ड आदमी का
किराना की दुकान, साइकिल की दुकान
कार-बाईक के पंचर बनाने की दुकान
हवा भरने की दुकान,
किस्म किस्म का कारोबार 
लगा लिया फोटो कापी की  दुकान
रिटायर्ड आदमी नहीं हुआ परेशान,
शुभचिंतक बुजुर्ग आण्टी थी हैरान
बोली अब नहीं मिटेगी भूख
झुग्गी -झोपड़ी चाय,कुप्पी भर-भर पानी बेंची
कौवे  जैसे कुटिल की लुगाई
बरसात का पानी भी कुप्पी -कुप्पी बेंच खाई,
अधातुर की भूख अब तक ना मिट पायी
अब मिट पायेगी ना
ईर्ष्या और तृष्णा रक्त के आंसू रुलायेंगे 
रिटायर्ड आदमी की छीन रहा सांस
खोलना था तो पहले खोलता
रिटायर्ड आदमी के विरुद्ध,
खोलकर फोटो कापी की दुकान
कर दिया जंग की ऐलान
रिटायर्ड आदमी बोला नहीं नहीं
कैसा जंग कैसा ऐलान
कैसा कम्पटीशन,
चैलेंज है आण्टी 
अपनी तो पूंजी है श्रम और ईमान
ना तृष्णा ना ईर्ष्या
करना है सेवा का काम
बरक्कत होगी है विश्वास
फोटो कापी की बस दुकान नहीं 
अपने तो स्वस्थ जीवन की आस
फोटो कापी की दुकान
हैं विश्वास अपनी दुकान बनेगी पहचान
ना बैर ना कम्पटीशन का विचार
ना ईर्ष्या ना कोई द्वेष
जीवन के नये प्रवेश द्वार ख़ुश था,
आदमियत पसंद रिटायर्ड आदमी।
नन्द लाल भारती
०२/११/२०२३


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