Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

पिकनिक

 

शोषितों,कमजोर तबके के पिछडे़पन की जिक्र यदा कदा सुनायी पड़ जाती है । गरीबी,जातिवाद और भूमिहीनता के रिसते जख्म में तड़प रहे वंचितों का दर्द सत्ताधीशों के कान को नही खुजला पाया । मई और जून के महीनों को छोड़कर सभी महीने खेत अपनी सौन्दर्य पर इतराते रहते है । जोत की जमीनो एंव अन्य जमीनों पर सबल वर्ग का एकाधिकार है । अधिकतर शोषित वंचित वर्ग भूमिहीन खेतिहर मजदूर है । जमीदारों के खेत में खून पसीना करके बहाना वंचितों का पेशा है । मील, कारखानेां का अकाल सा पड़ा हुआ है । नतीजन अधिकतर वंचित शोषित समाज के लोग मुर्दाखोर जमीदारों की हवेली से खेत खलिहान तक हाड़ फोड़ने को मजबूर है । गरीबी के प्रेत का इतना आतंक है कि बच्चे आठवीं दसवीं के आगे पढाई कर नही पाते । आजादी के इतने दशकों के बाद भी चैकी गांव की चैखट तक तरक्की नही पहुंच पायी है । भले ही सरकार आंवण्टन का ढिढोरा पीट रही हो पर इस गांव में आवण्टन नही हो सका है । गांव समाज की जमीन ‘ाोषक समाज के कब्जे में है । गांव के शोषित मेहनत मजदूरी के बल पर जिन्दा मात्र है । दुर्भाग्य है कि यह गांव प्रजातन्त्र की नाक के नीचे तरक्की से कोसो दूर है । शोषण,गरीबी,सामाजिक बुराईयों की मुट्ठी भर आग में तड़प तड़प कर जीवन बिताने को मजबूर हैं ।चैकी गांव के शोषितों में सहनशीलता और हाड़फोड ़मेहनत कूट कूट कर भरी हुई है । यही मेहनत की थाती इन्हे जिन्दा रखे हुए है । शोषित वर्ग गरीबी,अशिक्षा,बीमारी,नशाखोरी के चंगुल में भी पूरी तरह फंसा हुआ है । कुछ दसवीं जमात तक पढे लडके दूर ‘ाहर के कल कारखानों में काम करने लगे है । कमाई तो उन्हे अधिक नही हो पाती है पर ‘ाहर में मिल रही इज्जत उन्हे ज्यादा रास आने लगी है । वहीं जमीदारों के खेत में काम करने वालों को तो इज्जत दूर अछूत कहकर दुत्कार तक दिया जाता है । गांव के शोषित वर्ग के मजदूर जमींदारों के क्या कोई दुसरी भी बड़ी जाति के बर्तन नही छू सकते । गांव के शोषित गरीबी से ऐसे जकड़े हुए है कि बच्च्ेा के आठवीं क्लास तक जाते जाते हार जाते है । नतीजन बच्चे की पढाई छूट जाता है । वह भी मां बाप के साथ जमीदारों के खेत में हाड़फोड़ना ‘ाुरू कर देता है । गिने चुन पढे लिखे बेरोजगारी का अभिशाप झेलने को मजबूर हो जाते है । उनके मां बाप कुढते रहते है । मां बाप के बढते बोझ को देखकर ऐसे गरीब भूमिहीन खेतिहर मजदूर मां बाप के लड़के के सपने मर जाते है और वे भी दो जुन की रोटी के लिये मालिको के खेत में हाड़फोड़ने लगते है। दूसरा उनके पास कोई चारा भी नही होता है । राजनेताओं मन्त्रियों के आश्वासन तो थोथा चना बाजे घना को ही चरितार्थ कर रहे है ।
चुनाव के दिनों में मन्त्री और नेता डेरा डाले रहते है । बाकी दिनों में आसपास से निकल जाते है पर गांव की ओर ताकते नही । विकास के नाम पर सड़के और बिजली गांव तक दौड़ तो चुकी है आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान के लिये कोई पुख्ता इन्तजाम नही हो सका है ।
गांव को वंचितों के नाम महकू राम ,धनकू राम,दुखीराम, कड़कु राम, महंगू राम, तनकू राम, जोखनराम पर दशरथ पुत्र श्रीराम से तनिक भी नजदीकी नही । वंचितों के नाम के साथ जुड़ा राम का नाम छोटी जाति का प्रतीक हो गया है । देश को आजाद हुए कई दशक तो बित चुके है पर चैकी गांव के वंचितों को न सामाजिक और न ही आर्थिक उत्थान हुआ है । सामाजिक बुराईयों ,जातीय भेदभाव और आर्थिक मुश्किलों के दलदल में वंचित ध्ंासे जा रहे है । राजनैतिक चेतना का अलख जगा तो है पर आािर्थक ,सामाजिक,शैक्षणिक जागृति अभी भी कोसो दूर है इस गांव से । गांव और गंाव के से कोसो दूर तक उद्योग धन्धे नदारत है । खेती की जमीन भी नही है जबकि वंचितों को पुश्तैनी धंध खेतीबारी है । जमीन का मालिकाना हक जमीदारों के पास है । वंचितों के पास आजीविका का कोई साधन नही है । पूरी बस्ती के लो खेतिहर भूमिहीन मजदूर है । सरकार भले ही पूरी तरह आवण्टन हो गया है का ढिढोरा पीट ले पर इस चैकी गांव के वंचितों को आवण्टन का लाभ नही मिला है । सरकारी एवं गांव समाज की भूमि पर दबंगों का कब्जा है । कहीं घूर के नाम पर कही खलिहान के नाम पर कहीं हरियाली के नाम पर कही तालाब के नाम पर तो कही कुएं के नाम पर या और किसी नाम पर । यदि आंवण्टन हुआ भी है तो बस खानापूर्ति हुई है । दबंगों के कब्जे मजबूत में है ।
गांव आवश्यक चिकित्सीय सुविधाओं से वंचित है । खेत मालिक और पैसे वाले तो ‘ाहर जाकर इलाज करवा लेते हैं परन्तु गरीब शोषित वंचित नीम हकीमों के जाल में और ओछाई सोखाई के चक्रव्यूह में फंस जाते है । बदलतते वक्त में भी चैकी गांव के वंचितों का उध्दार नही हुआ है । आजादी के बाद पहली बार इस गांव का प्रधान वंचित समुदाय का तो बना है पर वह भी दबंगो का गोबर उठाने में अपनी ‘ाान समझता है । वंचित आवण्टन की बात करते है तो कहता है आवण्टन तो हो गया है । तीन भूमिहीनों को दो-दो बीसा जमीन मिली है । कई एकड़ जमीन दबंगों के कब्जे में है । इतनी जमीन में तो चैकी गांव के पच्चीसों परिवार के पास इतना खेत हो जाये कि सभी कमा खा ले पर प्रधन तो उल्टे डांट देता है यह कहकर कि कहां जमीन खाली है । आवण्टन का लाभ चाहने वाले जमीन बताते है तो वह कहता है कि फला बाबू का कब्जा है । कौन जायेगा रार लेने । पानी में रहकर अजगर से कौन बैर लेगा । कब होगा आवण्टन । कब कटेगा भूमिहीनता का अभिशाप । बेचारे वंचित बाट जोह रहे है तरक्की की परन्तु तरक्की उनकी चैखट तक नही पहुंच सकी है । हां राजनीति की घुसपैठ जरूर हो चुकी है पर चालाक किस्म के लोग उनका भरपूर फायदा उठा लेते है । शोषित वंचित मुंह ताकते रह जाते है, जातिवाद,भेदभाव गरीबी और अभाव की वेदना से कराहते हुए । वर्तमान समय में शोषितों की बस्ती के कुये का पानी अपवित्र है । वंचित लोग तनिक तनिक बातों में लडने मरने को तैयार हो जाते है । हुक्का पानी बन्द होना आम बात होती है । राजनीति की बिसात पर भी वंचित समुदाय तरक्की से दूर फेंका जा रहा है । हां इंच इंच भर जमीन के लिये इनकी अगुवाई करने वाले चतुर लोग इन्हे लड़ाते रहते है अपना उल्लू सीधा करने के लिये । कई कई बार तो ये भोले लोग अपना भारी नुकशान तक कर बैठते है । जन जागरण की बयार गांवों से काफी दूर है । ‘ादियों से सताये गये लोगों की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नही हो पा रही है । शोषित लोग आंसू में रूखी सूखी रोटी गीली कर बसर करने को विवस है ।
गांव के अधिकतर शोषित लोग अपने पिछड़ेपन का दोष रूढिवादी व्यवस्था को ठहराते है,जिसकी कोख से ही उपजी है सारी मुश्किले चाहे छूआछूत हो निरक्षता हो । गरीबी हो या कोई अन्य तरक्की की बाधायें । शोषित भूमिहीन खेतिहर मजदूर किसी कृषि विशेषज्ञ से कम नही है परन्तु वे अपने ज्ञान का उपयोग खेत मालिकों के लिये करते है हाड़फोड़ मेहनत और माथे झुर्रियों के बदले मिलती हैं बस अभाव भरी जिन्दगी । यदि इन मजदूरों के पास कुछ जोत की जमीन होती तो ये लोग अच्छी पैदावार लेकर अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छी तरह से कर सकते है। सरकारी कानून होने के बाद भी पूरी तरह से आवण्टन का लाभ चैकी गांव के भूमिहीनों को तो नही मिल पाया है । इस तरह की लीपा-पोती शोषितों की जड़ खोदने पर लगी हुई है ।
चैकी गांव के शोषितो को देखकर उनकी बेबसी का अन्दाजा लगाया जा सकता है । सरकारी सुविधाओं के लाभ से शोषित समाज वंचित है । चुनाव आते ही सभी पार्टियां बडे बड़े वादा करती है इनके कल्याण का पर चुनाव जीतते ही सब भाूल जाते है। सरकार लाख आरक्षण की ढोल पीटे पर इस बस्ती का ‘ाायद ही कोई आदमी सरकारी नौकरी मे हो । पढे लिखे शोषित युवक चारो आोर से निराश लौट आते है । नौकरी पाने के लिये जरूरी योग्यता के बाद भी नौकरी नही मिल पाती है क्योंकि इनकी इतनी पहुंच भी नही होती है और इनका खिस्सा भी तो तार तार होता है । प्राइवेट क्षेत्र इस वर्ग को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार मुहैया करा दे तो यह वर्ग भी चैन का जीवन जी सकता है पर प्राइवेट क्षेत्र में इनकी पहुंच सुनिश्चित हो तब ना । आज भी तो कई क्षेत्र है ऐसे है जहां जाति के नाम पर प्रवेश वर्जित है । सामाजिक उत्थान के लिये काम कर रही स्वयं सेवी संस्थायें शोषितों के लिये आशा की किरण साबित हो सकती है पर संस्थायें जाति-भेद से उपर उठकर काम करे तब ना ।
देश के दूसरो प्रतिभावानों की तरह चैकी के बस्ती के शोषितों में भी प्रतिभाये छिपी हुई है पर कोई निखारने वाला नही मिल रहा है । दंबग लोग तो दुत्कार के अलावा कुछ कर भी नही सकते । उन्हे तो बस अपने एकाधिकार से मतलब है । दबंग लोग अपना हित शोषितों के ‘ाोषण में सुरक्षित पाते हैं । विज्ञान के इस युग में दुनिया जातिवाद की बुराई जान चुकी है ।इसके बाद भी जातिवाद को बढावा दिया जा रहा है । धर्म के ठेकेदार भी अपना सिंहासन इसी में सुरक्षित देखते है ।
देश का संविधान बदलने की साजिश तो रची जा रही है । रूढिवादी व्यवस्था में बदलाव की कोई बात ही नही उठ रही है जबकि जातिवाद की महामारी ने तो आदमी को खण्ड खण्ड कर दिया है । सामाजिक समानता दम तोड़ चुकी है । जातिवाद का विषधर फुफकार रहा है । काश जातिवाद का विषध खत्म हो जाता तो चैकी गांव ही नही पूरे देश में समानता का साम्राज्य स्थापित हो जाता । शोषित समाज को सम्मान से जीने का हक मिल जाता । वह भी चहुंमुखी विकास की धारा से जुड़ जाता । काश ऐसा हो जाता जीवन बाबू तो मैं उतना खुश होता जितना पंखविहीन पंक्षी पंख पाने पर ।
जीवन बाबू -ठीक कह रहे हो दीनू दादा मूलभूत अधिकार की रक्षा के लिये हमें खुद के बलिदान के लिये तैयार होना होगा तभी विषमता की मुट्ठी भर आग ‘ाान्त हो सकेगी ।
दीनूदादा-सामाजिक समानता और न्याय के लिये हमें एक होकर उठ खड़ा होना होगा तभी अधिकार की जंग जीत सकेगे ।
जीवन बाबू - बदलते युग की समय की मांग है,चलो सभी शोषित जंग का ऐलान कर दें ताकि शोषित मुर्दाखोरांे के चंगुल से छूट सके और विकास की मुख्य धारा से जुड़ सके ।

 

 

डां.नन्दलाल भारती

 

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