पिता हूँ
बच्चों को शूट टाई मे देखकर
खुश बहुत खुश होता हूँ
सपना तो यही अपना
बच्चे पढ़लिखकर पैर जमाले
आसमान की उड़ान भर ले
बच्चों के भविष्य के लिए
अपनी और अपनी जरूरतों की
परवाह कहा.....?
क्योंकि मैं एक पिता हूँ..........
बच्चों की तरक्की के लिए
ना खाने की फिक्र ना पहनने की
फटी बनियाइन ना अच्छे पतलून
ना कमीज कोई ढ़ंग की
पनही से छांकते अंगूठे
पत्नी की कही जैसे अनकही
जानबूझकर सब होता ढोंग
याद रहता बस बच्चे और
बच्चों का भविष्य
बस बार-बार यही सोचता हूँ
क्योंकि मैं एक पिता हूँ................
खुद की जरूरत हारती रही
बच्चों की जीतती
बच्चे जितना सीख गए
मैं हारना
बच्चों के सपनों के लिए
हारकर भी खुश हो लेता हूँ
क्योंकि मैं एक पिता हूँ.............
बच्चे सचमुच जीत गए
पांव जम गए उनके
मैं खुशी मे पांव जमीं पर कहांं
यही तो चाह थी
बगिया के सुमन झूम रहे
मैं गुनगुना
फटी बनियाइन, फटे जूते
तंग हालात मे जीये
दिनो की खुशी मना रहा हूँ
क्योंकि मैं एक पिता हूँ..............
बदले हालात मे कुछ नया होता है
बच्चे भी जवान होते हैं
कई बाप बोली लगाते हुए आते हैं
मैं रुख बदल लेता हूँ
मुझे बहू की जरूरत है
कहकर हाथ जोड़ लेता हूँ
मुझे परिवार से प्यार है
परिवार सींचने वाली सुलक्षणा चाहिए
अपनी मां और बाप के समर्पण याद हैं
परिवार के महत्व को जानता हूँ
क्योंकि मैं एक पिता हूँ.........
एक दिन मां बाप बेटी
होंठ पर मुस्कान दिल मे जहर
लिए पधार जाते हैं
मैं और मेरा कुनबा बहू मान लेता है
बहू को बेटी का मान देता है
ये तो ठग की बेटी लोमड़ी
खाल बदलती आदत नहीं
मा बाप और बेटी ने रचकर साजिश
कुनबे की खुशी पर डाका डाल दिया
श्रवण को कंस बना दिया
श्रवण को बंदूक, रिवाल्वर का डर दिखाकर
कुनबे की कामयाबी को लूट लिया
वियोग मे अहकता रहता हू
क्योंकि मैं एक पिता हूँ.............
अत्याचार पर विराम नहीं
नये नये दोष मढ़े जाते हैं
बिना दहेज के ब्याह के बदले
दहेज,बहू उत्पीड़न के केस के नाम पर
डराया धमकाया जाता है
सुलगते दर्द दिए जाते है
जिस परिवार को जोड़ने मे बिखरता
टूटता-जुडता पूरी ताकत से खड़ा रहा
उसी परिवार को बिखरते हुए देखकर
आंसू पीता रहता हूँ
जोड़ने का हर उद्यम जारी
डकैत आंख निकालने वाले
आंख ठेहुना चुराने वाले
कहते अत्याचारी
दर्द की दरिया मे डूबे हुए भी
बच्चों के सुखी जीवन की कामना करता हूँ
क्योंकि मैं एक पिता हूँ..........
भयभीत हूँ तनिक पर हारा हुआ नहीं
दिल मे खंजर उतारने वाले
डकैतों द्वारा रची लहू के बीच
खड़ी दीवार से
परन्तु अपने लहू पर है विश्वास
एक दिन हर दीवार तोड़ देगा एहसास
बच जायेगा कुनबा
ना खड़े होंगे नये चूल्हे् ना डरायेगी मुश्किलें
बच्चे तो हैं समझदार
यही है अपने जीवन का आधार
अपनी जहां मे अपना है साजो सामान
डकैत लूट सकते है
जिनकी कोई इज्जत नहीं
ऐसे आदमियत के दुश्मन
क्या करेंगे अपमान.....?
मैं भी हूँ इंसान
बच्चों की दूरी नहीं होती बर्दाश्त
आंखें रिस जाती हैं
मौके-बेमौको,
सपने लेगें रुप वृहद, जानता हूँ
सुखी और खुशी परिवार के
सपनों मे जीता हूँ
क्योंकि मैं एक पिता हूँ......
डां नन्द लाल भारती
14/05/2021
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