पिता होना बड़ी जिम्मेदारी
पिता होना बड़ी जिम्मेदारी,
सौभाग्य और खुशी की सौगात भी,
दर्द भी पिता की राह में कम नहीं
सपने सजाने, अंगुलियां जमाने,
पसीने में गीली बनियाइन निचोड़ने
जूते से झांकते अंगूठे को झांकते हुए
एहसास नहीं होता,जूता फटने का,
पिता पीठ पर टांगें बढ़ता है
गृहस्थी के सफर पर पूरा कुनबा,
बच्चों की हर जरुरत का पूर्वानुमान
हो जाता है पिता को,
खुश हो जाता है
बच्चे को सजा संवरा देखकर
बच्चे के सुखद भविष्य का सपना बुनता है
अपनी जरूरतो को ताख में रख देता है पिता
बच्चों की तरक्की में
अपनी तरक्की देखता है पिता
एक सपने सच हो जाते हैं
बहुत खुश होता है पिता
दुःख, दर्द और मुश्किलें सब भूल जाती हैं
ठीक रहता है सब कुछ तो,
भोगे हुए दर्द को धरती का सुख मान लेता है पिता
विपरीत होते ही, खुद को बेजान मान लेता है पिता
बदलते वक्त में जब बेगाना होने लगते हैं अपने
सांस टंगने लगी है महसूस करने लगता है पिता
कई बार तो करवटें बदलते,
तकिया गीली कर लेता है,
अश्रुधार से पिता,
वह अपनी ही छत के नीचे डरा हुआ रहता है पिता
उम्मीद तो पिता को भी होती है
उम्मीद की आक्सीजन से कब तक
चलेगा सोचता है पिता,
अपनों की दूरी मौत लगने लगती है,
आंसू में आंसू मिलाते हैं माता -पिता
एक दिन थके हारे माता पिता
ढूंढने निकल पड़ते हैं वृ़ध्दाश्रम का रास्ता,
या,
अपने ही दिखा देते हैं वृ़ध्दाश्रम का रास्ता
यकीन नहीं तो कर लीजिए
वृ़ध्दाश्रम जाकर तहकीकात
बहुत हुआ नहीं खुले अब वृ़ध्दाश्रम
ना ढूंढे, बूढ़े मां बाप वृ़ध्दाश्रम का पता
नवजवानों माता -पिता का करो आदर-सम्मान
भारत देश की महान परम्परा
संयुक्त परिवार ....का बढ़ाओ मान।
नन्द लाल भारती
०४/११/२०२३
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