पिताजी मरणासन्न हैं
पिताजी का त्याग
हमारा अस्तित्व हैं
दर्द है कि पिताजी की
सास पर पल प्रतिपल
कब्जा किये जा रहा है
पिताजी पल-पल
हम सब से दूर होते जा रहे हैं
पिताजी के बाद की
दुनिया हमें कब से
डरा रही है
पिताजी की सासे रह रह कर
थम जा रही हैं
आवाज फंसने लगी है
स्मृति विस्मृत होने लगी है
पिताश्री को हम याद नहीं
नाम भर याद है,
ये वही पिता हैं जो
हमारे खिलाफ हवा से भी
छाती तान कर खड़े हो जाते थे
वही पिताजी कराह रहे है
हम कुछ भी नहीं कर पा रहे
शायद यही समय है
और हम सब समय के हाथों
कठपुतली.... कठपुतली
आंखों मे आसू सूख रहा है
चित मे पहाड़ जैसी
पिता जी त्याग....
पिताजी सामने हैं
उनकी बूढी स्मृतियां मे
कुछ शेष हैं
परिवारजनो के कुछ नाम
हमें याद हैं
पिताजी का बलिदान
वही हमारा अस्तित्व है
पिताजी कब अनन्त यात्रा पर
निकल जाये कोई नहीं जानता
पिताजी के संघर्ष से कुसुमित
अपनी जहां
स्वर्णिम बनी रहेगी
यही पिताजी का सपना
था,है और रहेगा
पिताजी पहाड़ रहे है
बरसों से खटिया पर पड़े है
शरीर साथ छोड़ चुका है
सास की डोर साथ निभा रही है
हम सबके आंखों मे आंसू हैं
पिताजी की पथराई आंखों मे
उम्मीदें
अब कांपते हाथ उठते हैं तो
आशीष के लिए
लड़खड़ाती आवाज कब साथ
छोड़ दे
टंगती सास कड अलविदा कह दे
यह तो समय जाने
हमें तो अपने भगवान के
चरणों मे ही हमारा
अस्तित्व है
मां दो दशक पहले,
प्रस्थान कर गई
पिताजी की सांसे भर
चल रही हैं
आस्था है हमें अपने भगवान मे
उनकी सजोई जहाँ
कुसुमित रहेगी
यही माताजी और पिताजी की
ख्वाहिश रही है,
पिताजी की ख्वाहिशों
स्थानांतरित होने लगी हैं
अपने हिस्से
हम अपने भगवान की
दुआओं की भरोसे पास कर लेगें
हर इम्तिहान....
हे परम् पिता आपकी शान मे
दण्डवत....... दण्डवत ।
डां नन्द लाल भारती
03/02/2021
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