प्रार्थना
कुलभूषण जिस दिन तुम
अवतरित हुए थे
उस दिन तुम्हारी मां का
पुनर्जन्म हुआ था
वह मरकर मां बनी थी
बहुत खुश थी तुम्हें देखकर
अर्धचेतन मेंं भी
मातृत्व पर वह अपने खुद
गर्वान्वित थी ।
कुनबा पूरा नृत्य कर रहा था
तुम्हारी मां दर्द में कराहकर भी
मुस्कुरा रही थी मंद-मंद
अपार खुश थी जो ।
तुम्हारे पिता तुम्हारे भविष्य के लिए
भगीरथी प्रतिज्ञा ले चुके थे
मां-बाप तुम्हारे लिए हर वो त्याग किए
एक आदमी फर्ज पर कुर्बान होने वाला
जो लाख तकलीफों का विषपान
कर, कर सकता है किए ।
तुम्हें वो ऊंचाइयां दी जो कई
सम्पन्न के लिए एक सपना था
कुलभूषण तुमने क्या किया...
सात फेरे और सात वचन के साथ
तुमने अंगुली छुड़ा कर
दलदल में ढकेल दिया
मां की अर्थी आगे पिता की पीछे पीछे निकल गई
अपने भी पीछे बहुत पीछे छूट गए
वाह रे कलयुग के कुलभूषण
तुम्हें एहसास तक न हुआ
तुम खुश रहो खुदा तुम्हारी हर
तरक्की पक्की करते रहे
तुम्हारे साथ सात फेरे लेने वाली
जैसी नारी किसी को न दे
ताकि बचा रहे ममता-समता
अपनेपन का सोधापन
और ये विश्वास भी
जहां नारी का सम्मान होता है
वह घर मंदिर होता है
और वहां देवता वास करते हैं
हे खुदा इस विश्वास को टूटने मत देना
तुमसे यही प्रार्थना करते हैं।
डां नन्द लाल भारती
11/10/2020
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