खत्तूदादा को उनके काका ने अलग कर दिया षहर की नौकरी से रिटायर होकर गांव आते ही । खत्तूदादा के पास कोई आढत भी नही थी जो खेतीबारी थी सब काका मत्तू के नाम ट्रान्स्फर हो गयी थी । दो चार बीसा जो खत्तूदादा के हिस्से आयी थी उससे साल भर के लिये रोटी की भी गुंजाईष नही थी ।खत्तूदादा का परिवार भी बड़ा था चार बेटे एक बेटी छ- महीना के अन्तर वाले । सभी खाने वाले कमाने लायक कोई नही ।खत्तूदादा चिन्ता की चिता में सुलग रहे थे । इसी बीच पुरवा का झोंका खबर लेकर आया कि क्षीर बाबू की विधवा नरमावती देवी अपनी खेती अधिया पर देना चाहती है ।यह खबर खत्तूदादा को सकून दी और वे क्षीर बाबू की की हवेली की ओर दौड़ पड़े ।
खत्तूदादा की हवेली की चहरदीवारी में दस्तक होते ही नरमावती देवी के जेठ विदुर बाबू आगे आये और बोले क्यों रे खत्तुआ खबर लग लगी । तुम्हारे जैसे और भी कई चील की तरह मडरा रहे है ।समझ लेना हमारे खानदान की बात है ।
खत्तूदादा-हां बाबू हम भी चले आये । हमारे पास तो जमीन है नही कि बच्चों का पेट पा लूंगा । बाबू आप तो जानते ही है सब काका ने छिन लिया ।बच्चों को भूखों मरने की नौबत आ गयी है । क्षीर बाबू की जमीन अधिया/बटाई पर मिल जायेगी तो मेरे भी बच्चे पल जायेगे ।
नरमावतीदेवी को देखकर विदुरबाबू बोले मालकिन सामने है बात कर लो ।
नरमावती- खत्तू दालान म आ जाओ .......
खत्तू- मालकिन आया ।
विदुर बाबू-जा खत्तुआ जा मालकिन बुला रही है दालान में ।
खत्तू- हां बाबू मालकिन बुला तो रही है पर आपकी दयादृश्टि बने तब ना ।
विदुर बाबू-अरे जा मालकिन की नजर तुम पर पड़नी चाहिये बस...
खत्तू- बाबू आप भी दया दृश्टि बनाये रखे तब ना गरीब का पेट परदा चल पायेगा वरना काका ने तो कहीं का नही छोड़ा है ।
विदुर बाबू- तू तो नरमावतीदेवी की बात अभी सुन । मेरी बाद में सुन लेना ।
खत्तू-बड़ी कृपा होगी आपकी कहकर दालान की ओर बढा ।
नरमावती-कुछ दूर से ही बैठने का आदेष दी ।
खत्तू बैठते हुए बोला- मालकिन बडी उम्मीद लेकर आया हूं ।
नरमावती-खत्तू खेती तो अधिया पर करवानी है चाहे तुम करो या कोई दूसरा । मैं तो हल जोतने से रही । पति के जीते जी विधवा हो गयी हो । पति साधु हो गये घर परिवार के लोग विधवा कहकर संबोधित करने लगे । मुझे भी लगता है मैं सचमुच की विधवा हो गयी हो । दो बेटियों का बोझ है बस वह उतर जाये तो मैं भी दुनिया से रूख्सत लूं ।
खत्तू- मालकिन मन छोटा ना करो ।अभी तो जिन्दगी बहुत बाकी है । अभी से हार मान रही हो । जमीन जायदाद,धन दौलत को टोंटा भी नही है । आपके सारे फर्ज पूरे हो जायेगे । क्षीरबाबू साहेब को साधु नही होना था इस उम्र में आपको छोड़कर ।
नरमावतीदेवी- हिम्मत तो नही हारी हूं यदि हिम्मत हार गयी होता तो इस हवेली और जमीन जायदाद से कब की बदखल हो गयी होती । पति के साथ बिताये लम्हो की याद में जीवन बिता दूंगी पर हवेली और जमीन जायदाद से बेदखली बर्दाष्त नही करूंगी । बेटियों को उनके पैर पर खड़ा करके ही मरूंगी । हिम्मत हार गयी होती तो खत्तू आज तुम मेरी अधिया पर खेती करने नही आते । मालिक कोई और ही होता ।
खत्तू-सब ओर हड़पने की होड़ मची हुई है मेरे काका न मेरे साथ तो यही किया है ।जब तक षहर में थे तब तक तो जमीन जायदाद का मालिक मै था उनके पूरे परिवार की खान खर्च मै देखता था रिटायर होकर आते ही लात मारकर बेदखल कर दिये ।कहते है तुम्हारा क्या है सब हमारा है षहर में पानी पी-पी कर कमाया हूं अपने बच्चों के लिये कि तुम्हारे लिये ।
नरमावतीदेवी- छोटा हो चाहे बड़ा हिस्सेदार तनिक होषियार है तो हक पर भी कब्जा जमा लेने में संकोच नही कर रहे है । बडी मुष्किल से मैं अभी तक तो काबिज हूं आगे न जाने क्या होगा ? लोग मौके की तलाष में रहते है मौका पाते ही आंख में धूल झोंक देते है खत्तू ।
खत्तू -मालकिन आपका इषारा मैं समझ गया । मेरी नियति कभी नही खोटी होगी ।
नरमावती-विष्वास कभी ना तोड़ना । घर-परिवार हिस्सेदार, भाई-भतीजे सभी तोड़े है पर तुम ना तोड़ना खत्तू ......
खत्तू- विष्वास रखो मालकिन । मेरे भी बाल बच्चे है । मैं बददुआ कभी नही लूंगा । बस मेरे बच्चों को पलने बढने का आसरा दे दो । मेहनत मजदूरी करके आपकी कृपा से बच्चों का पाल लूं । दबंग जैसे हम गरीब नही कर सकते मालकिन कि साल दो साल अधिया पर लेकर चोरी छिपे दूसरे की अपने नाम लिखा ले । ऐसा तो बड़े दबंग और पहुंच वाले कर सकते हैं । हम जैसे गरीब तो सुबह षाम की रोटी की चिन्ता में मर खप जाते है । मालकिन अपने दिल से भय निकाल दो । आपकी जमीन आपकी ही रहेगी । मैं तो बस अधिया पर खेती करूंगा ईमानदारी के साथ । जो खेत में उपजेगा आपके सामने आधा -आधा बट जायेगा । बंटने के बाद सबसे पहले आपके हिस्से का अनाज आपकी गोदाम में जायेगा बाद में मेरी झोपड़ी में । जमीन पर आपका अधिकार रहेगा । मै कभी भी अपनी नियति खोटी नही करूंगा । मालकिन चाहो तो पंचनामा बनवा लो । मुझे कोई एतराज नही है । जहां कहेगी अंगूठा लगा दूंगा ।
खत्तू की ईमानदारी साफ -साफ झलक रही थी उसके चेहरे से उसके तन पर लपटे फटे कपड़े से । नरमावतीदेवी ने अपनी जमीन खत्तू को अधिया पर दे दी ।खत्तू मेहनत से खेत जोतने बोने लगा । खत्तू की मेहनत से अपरम्पार अनाज होने लगा उसी जमीन पर जिस जमीन पर नरमावतीदेवी को साल भर खाने का इन्तजाम नही हो पाता था । खेत से जो गल्ला उपजता खत्तू नरमावती देवी के सामने दो भाग करता और पपहले नरमावती देवी की हवेली खुद और बच्चों के सिर पर लादकर पहुंचवाता । इसके बाद अपना हिस्सा ले जाता । खत्तू की मेहनत से नरमावती देवी के गोदाम में अनाज भरा रहने लगा । इसी जमीन पट्टीदार के लोग करवा रहे थे तो खाद पानी का पैसा भी लेते थे और अनाज भी नही मिलता था खद पानी की कीमत के बराबर । खत्तू दादा अपनी कसम पर अटल रहे । खत्तू दादा का बडा बेटा बारहवी पास कर परदेस चला गया । दूसरे नम्बर वाला छठवी के बाद स्कूल जाना छोड दिया तीसरा आठवी पास करके आगे नही पढा चैथा भी स्कूल जाना षुरू कर दिया। सबसे बड़ी बेटी भी अपना घर -परिवार सम्भाल ली । नरमावती देवी की दोनो बेटिया षहर जाकर पढने लगी । नरमावतीदेवी की हवेली में जैसे लक्ष्मी बसने लगी। नरमावती देवी का हर छोटा बड़ा काम खत्तुदादा और उनका परिवार कर देता । खत्तूदादा के दरवाजे पर एक जोड़ी बैल बंध गये मत्तूकाका खत्त्ू दादा के बैल ,भैंस को देखकर कूढते रहते । मौके बेमौके खत्तूदादा से लडा़ई करने भी नही चूकते थे । मत्तू दादा के मन में खोट थी वे रोते पीटते रहते । उल्टे खत्तूदादा और उनका परिवार अपनी कमाई में खुष था उधर नरमावतीदेवी की रोनी सूरत पर चमक आ गयी थी । वे खत्तू पर आंख मूंद कर विष्वास करने लगी थी।
खत्तूदादा समर्पित भाव से अधिया की खेती करने लगे ।खेत खाली होते दस बीघा खेत एक जोड़ी हल से जोत डालते । खुद के घूरे की खाद पूरा परिवार सिर पर लादकर खेत में डालता । जिस जमीन मे ठीक से घास भी नही उगती थी उस जमीन में हर फसल खत्तूदादा पैदा करने लगे ।धान,चना,मटर,गन्ना,आलू और भी ढेर सारी फसले । मइ्र्र की जानलेवा गरमी में भी खत्तू दादा खेत में लगे रहते । मई में गेहू की फसल काटकर, मडाई करने के तुरन्त बाद खेत की जुताई मे लग जाते । बडे़ बड़े जमीदारों तक के कान खड़े होने लगे खत्तूदादा को देखकर ।खत्तूदादा धान की नर्सरी डालने के लिये अलग तरह से खेत तैयार करते । इक्कीस जून के पहले धान की नर्सरी डाल देते । पन्द्रह बीस दिन में उनके धान की नर्सरी रोपने लायक हो जाती थी बडे़ बड़े कास्तकार उनकी नकल करते पर खत्तूदादा जैसी खेती नही कर पाते ।पहली बरसातत के बाद रोपाई षुरू कर देते । खत्तूदादा रासायनिक खादों का प्रयोग कम करते और गोबर की खाद का अधिक । गन्ना बोवाई के दिन बड़ा उखभोज और धान रोपाई के पहले दिन वनगड्डी/ भोज बडा ही करते । खत्तूदादा का परिवा और नरमावतीदेवी भी सूखी रहने लगी ।
कुछ साल बाद जमीदारों के षोशण के खिलाफ बिगुल बजा दिया जब रोाई षुरू ही हुई थी और बरसात भी बहुत तेज हो गयी थी । छोटे बड़े सभी कास्तकारों की रोपाई का काम एक साथ षुरू हो गया था ।खत्तूदादा के खेत में भी नर्सरी तैयार थी वह भी रोपाई के काम में जुट गया था । जमीदार लोग दूसरे गांवों से के मजदूरों को दस गुना अधिक मजदूरी देकर रोपाइ्र करवाने को तैयार थे पर गांव के षोशित मजदूरों को चुटकी भर अधिक देने को तैयार न थे क्योंकि वे अपने गांव के मजदूरों को अपनी प्रजा समझते थे । वे चाहते थे कि ये मजदूर पेट पर पट्टी बांधकर उनके खेतो में काम करे । इधर मजदूरो ने भी कमर कस लिये । जुल्म के खिलाफ मुंहतोड जबाब देने की हिम्मत गांव के मजदूरो मेभी आने लगी थी । वे मजदूरी बढवाने के मुद्दे पर अटल थे और जमीदार लोग न बढाने की जिद पर । वे मजदूरो में आई क्रान्ति को कूचल देना चाहते थे । वे मजदूरो से कहते तुम्हारे पुरखे इतनी मजदूरी पर काम करते आये है तुम लोग क्यो नही करोगे । अपने पुरखों का आत्माओ चैन छिनोगे । अनेक तरह से भ्रमित करने पर जमीदार लोग जुटे हुए थे । खत्तू तो खुद मजदूर था अपनी रोपाई के कामो में परिवार के साथ लगा हुआ था । जमीदारों की कागदृश्टि खत्तू पर पड़ं गयी । दबंग जमीदार लोग आपस में रायमषविरा कर खत्तू की रोपाई बन्द करवा दिये । बेचारे खत्तू और उसके पेट जमीदारों मुट्ठी भर भर आग का प्रहार करना षुरू कर दिया । खुद के खेत बिहारी मजदूरों और दूर के गांवों के मजदूरों को लाकर धड़ले से रोपवाने लगेे अधिक मजदूरी देकर ।बस्ती के मजदूर मजदूरी बढाने की अनुरोध करते रहे पर गांव के जमींदारों ने अपनी पंचायत बुलाकर मजदूरी न बढाने का और मजदूरों के दमन का प्रस्ताव पारित करवा लिया । जमीदारों का प्रस्ताव पारित होेते ही बस्ती के मजदूरों का घर से निकलना कठिन होगा । टट्टी पेषाब के लिये बस्ती के मजदूरों के लिये कोई जगह न थी । जो थी भी गांव समाज की जमीन थी सब पर जमीदारों को कब्जा था । बस्ती से कुछ दूर सड़क के किनारे की जगह थी । सड़के किनारे बैठना उचित तो था नही पर मजबूरी में बस्ती के लोग जाये कहां यही तो सहारा था । सड़क तक जाना भी जोखिम भरा काम था । दबंगो का भय नरपिषाच की तरह पीछा कर रहा था ।
मजदूरों के सामने फांके की स्थिति निर्मित हो गयी थी पर वे भी आपस में रायमषविरा कर हड़ताल जारी रखने का ऐलान कर दिया । षोशण,उत्पीड़न से मुक्ति का षायद सही कदम यही था बस्ती के मजदूरों के लिये । चारों ओर रोपाई का काम जोरों पर चल रहा था । बाहर के मजदूर भी रंग बदलने लगे । बाहर के मजदूरों के बदलते तेवर को देखकर गांव के जीमदारों ने जफल्म तेज कर दिया ताकि बस्ती के मजदूर हार मानकर पेट ममें भूख लिये जमींदारों के खेत में अपना खून पसीना कर बहाते रहे । बस्ती के मजदूर बाबू साहब लोगों के जुल्म के आगे झुके नही । मजदूरों को हार न मानता हुआ देखकर जमीदारों ने मजदूरों में फूट डालना षुरू कर दिया पर वे सफल नही हुए । अब जमीदारों की नजर खत्तूदादा के उपर आ टिकी । वह भी तो बस्ती का ही मजदूर था नरमावाती देवी की खेती अधिया पर कर रहा था । नरमावतीदेवी तो जमीदारन ही थी अब क्या खत्तूदादा की रोपाई बन्द करवा दी मुष्किल से दस बीसा रोप पाये थे खत्तूदादा ।नरमवातीदेवी को भी जमीदारों की यह करतूत रास नही आ रही थी । वह भी घायल सांप की तरह फूफकराने तो लगी पर कामयाब नही हो सकी । जमीदार लोग खत्तूदादा को हथियार बनाकर हड़ताल खत्म करवाने पर उतारू हो गये वह भी बिना मजदूरी बढाये । कुछ जमीदारों की रोपाई का काम तो षुरू था आठ गुना अधिक मजदूरी देकर पर कुछ हड़ताल खत्म होने का इंतजार कर रहे थे जिनकी नर्सरी देर से पड़ी थी। छल बल,दण्ड-भेद सब नुस्खे अपना लेने के बाद भी हड़ताल नही खत्म हो रही थी । जमींदारों द्वारा पग-पग पर बिछाई जा रही मुट्ठी भर -भर आग बस्ती के मजदूरों को नही डिगा पा रही थी ।
जमीदारों ने पैतरा बदला और जमीदार विदुर बाबूसाहब सहित दो चार और जमीदार लोग सामूहिक रूप से अपनी अपनी भैंसे नरमावतीदेवी के खेत में खत्तूदादा द्वारा डाली गयी धान की नर्सरी चरने को छोड़ दिये ताकि खत्त्ूादादा टूूटकर परिवार सहित जमीदारों का और अपना भी थेाड़-थोड़ा रोपना षुरू कर दे । इससे जमीदार लोग एक तीर से दो षिकार कर ले । हड़ताल भी खत्म हो जाये और मजदूरी भी न बढे । इस बार भी जमीदार मुंह के बल गिरे । हड़ताल जारी रही । जमीदार भी कहां हार मानने वाले खत्तूदादा द्वारा नरमावतीदेवी के बीघा भर गन्ने के खेत से जमीदार लोग सामूहिक रूप से गन्ना काट-काटकर अपने अपने जानवरों को चारे के रूप में खिलाने लगे । खत्तूदादा अन्याय के खिलाफ कमर कसकर नरमावतीदेवी के जेठ विदुरसाहब जो मेड़ पर खड़े होकर गन्ना चारे के लिये कटवा रहे थे । गन्ना काटने वाले के हाथ से हसिया छिन लिया और हिम्मत करके बोला बाबूसाहब अब एक भी गन्ना कटा तो पेट फाड़ दूंगा ।
खत्तूदादा की हिम्म्त को देखकर विदुरसाहब बोले-खत्तुआ न तो तेरा गन्ना बचेगा और नही दूसरी फसलें खैर अभी तो मैं जा रहा हूं । बाद में तुमको देख लूंगा देखता हूं तू कितने जमींदारों का पेट फाड़ता है ।
खत्तूदादा-क्या ?
विदुरबाबूसाहब- हां खत्तुआ ।
इतने में और दबंग जमीदार जुट गये । कोई गन्ना तो काई धान की नर्सरी तो कोई रोपे दस बीसा धान को तहस नहस करने में जुट गया । खत्तूदादा के दिल पर जमीदारों के जुल्म का ऐसा प्रतिघात हुआ कि होष खो बैठे। बस्ती के मजदूरों और खत्त्ूदादा पर ढाहे गये जुल्म से उपजी आका्रेष की पीड़ा से बचने के लिये जमींदारों ने मजदूरी बढाने की आपस में रायमषविरा करने लगे । खत्तूदादा के प्रतिघात के दर्द का एहसास जमीदारों के दिल दिमाग और कान पर हथौड़े जैसे चोट करने लगे । बाहर के मजदूरों ने भी हाथ खड़े कर दिये । वही जमींदार जो मजदूरों का घर से बाहर निकलना दूभरकिये हुए थे वही मजदूरी बढाने पर राजी हो गये। मजदूरी भी बढी और हड़ताल भी खत्म हो गयी लेकिन खत्तूदादा प्रतिघात से नही उबर पाये । मुर्दाखोर जमींदारों के मुंह पर कालिख पोतकर हमेषा के लिये सो गये दिल पर प्रतिघात का दर्द लिये हुए।
डां.नन्दलाल भारती
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