माधव बेटे निहोरीलाल को बी.ए. तक पढाने में अपने जीवन के बसन्त हवन कर दिया था। माधव जानता था कि बेटा बी.ए.पास कर जायेग तो वह अफसर बन जायेगा और उसका खोया हुआ बसन्त वापस आयेगा दोगुनी खुषी लेकर ।जीवन का सांध्य तो सुख में बित जायेगा । वह दोनो पति-पत्नी रात दिन बेटे की कुषलता के लिये दुआ करते रहते । जीवन चलाने के लिये न बीसा भर खेता था ना ही दूसरा कोई सहारा बस खेत मालिकों के खेत में खून पसीना करना यही तकदीर बन गयी थी भारतीय व्यवस्था में । निहोरीलाल भी पढाई के साथ मेहनत मजदूरी कर लेता था । मां बाप के कामेां में भरपूर मदद करता । खेतीबारी के गुर भी निहोरीलाल सीख गया था । जमीदार की हलवाही के बाप को दस बीसा उसरनुमा खेत जोतने बोने का भार उसके ही उपर था । माधव को तो खेतमालिक के कामों से ही नही फुर्सत मिल पाती थी । दिन भर की मजदूरी सिर्फ दो किलो अनाज मिल पाता था । माधव के छोटे बडे सभी बच्चे भी मजदूरी कर लेते थे । जिससे रोटी का इन्तजाम तो हो ही जाता था पर बाकी सब तो भाग्य भरोसे था ।
निहोरीलाल परदेस तो चला गया । निहोरीलाल के परदेस की राह पकड़ते ही उसकी मां का रो रोकर बुरा हाल हो गया । उसने सप्ताह भर तक तो खाना छोड़ दी थी । उधर षहर में निहोरीलाल को कोई सहारा देने वाला न था । सगे लोग मुंहफेर लेते थे उससको देखते ही । कई बार तो उसे फांके तक करने पड़े । गीली जमीन पर रात गुजारना पड़ा । निहोरीलाल अपनी ततकदीर बदलने के लिये पत्थर तोड़ने तक को तैयार था पर काम मिले तब ना । नौकरी को दूर जाता देख्कार वह सब्जी मण्डी में सेब की टोकरी तक ढोया । कुछ ही दिनों में इस काम से भी उसे हाथ धोना पडा । कुछ दिनों तक इधर उधर पागलों की भांति घूमने के बाद आलपिन बनाने की फैकटरी में तेजाब से आलपिन धोने का काम मिल गया । मरता क्या ना करता निहोरीलाल नौकरी पर लग गया । इस काम में वह कई बार जला और उसका हाथ तो कोढियों जैसे हो गये थे । इतनी दुर्दषा सहकर भी वह काम करता रहा अपने मंा बाप और घर परिवार की दयनीय दषा देखकर ।बुरे वक्त में कोई हौषला तक बढाने वाला नही था । खानदाने के तो कुछ लोगों ने तो ताने तक मारे कि अरे निहोरीलाल बी.ए.तक पढकर आया है षहर में अफसर बनने ।ऐसे दुखद समय में हौषला दिया तो उसके सगे बहनोई रत्नराज ने जो खुद एक फैक्टरी में हेल्पर की नौकरी कर रहे थे जो खुद आर्थिक तंगी से बुरी तरह जूझ रहे थे ।
बुरे वक्त से बुरी तरह झुलसते हुए भी निहोरीलाल ने खुली आंखो से सपने देखना नही छोड़ा । दुर्भाग्य था कि घड़ी भर के लिये उसका साथ नही छोड़ रहा था ।
निहोरीलाल के खून के रिष्तेदार उसकी उपस्थिति को बोझ मानने लगे थे । कुुछ तो बड़े ओहदेदार थे । निहोरीलाल भी लाख कश्ट उठाया पर किसी के सामने हाथ नही फेलाया । तेजाब की फैक्टरी से मिली रू. 425.00 की तनखाह से सबसे पहले वह खुराकी और झुग्गी का किराया रू. 250.00देता । बाप को रू. 100.00 का मनिआर्डर करता बचे 75 रूपये में से पच्चीस रूपये खुद के खर्च के लिये रखता और षेश पच्चास रूपये की मासिक फीस पर टाइप सीखने लगा ।
निहोरीलाल कभी सोचा भी न था कि षहर में खून के और सगे रिष्तेदार इतने कठोर हो जाते है । अपने को पराया समझने लगते है । खैर निहोरीलाल अपनो को अपना मानता रहा और अपने उसूलो से समझौता नही किया। जातीय अयोग्यता उसे नौकरी से दूर ढकेलती जा रही थी ऐसे मुष्किलों की आंधी में भी अपनो का सहारा तक नही मिला । दुर्भाग्य को तकदीर मानकर निहोरीलाल खुद की किस्मत लिखने का दृढ निष्चय कर लिया और अपने मकस्द में सफल भी हो गया एक कम्पनी में अस्थायी बाबूगीरी की नौकरी मिल गयी । निहोरीलाल भगवान का चमत्कार मानकर नौकरीे करने लगा । दुर्भाग्यस भेदभाव की प्रेतछाया ने यहां भी लतियाना षुरू कर दिया । एक अधिकारी ने तो नौकरी से निकालने तक कि सिफारिस कर दिया । कहते है न खुदा मेहरवान तो गदहा पहलवान । भगवान ने निहोरीलाल की नौकरी बचा ली । वक्त ने निहोरीलाल के दिल के जख्म भरने षुरू कर दिये । उसे हजार में तनख्वाह मिलने लगी ।मां बाप के सपने पूरे होने का अवसर उसे यहां दिखाई देने लगा परन्तु मानवीय भेदभाव की ज्वाला रह रहकर भभक ही जाती । साथ में काम करने वाले भी आग में घी डालने का काम करते मुंह पर तो मीठा बोलते पर पीछे शणन्त्र रचते रहते क्योंकि इस जातीय अयोग्य निहोरीलाल की उपस्थिति लोगों को खटकती थी । निहोरीलाल को विद्या की देवी ने खुले हाथो कई उूची उूंची डिग्रियां तक बख्ष दी थी । यही निहोरीलाल की योग्यता कम्पनी में टिकाये हुए थी । इसी योग्यता के भरोसे निहोरीलाल की नौकरी पक्की तो हो गयी थी परन्तु जातिवाद का खुलेआम समर्थन करने वालेां से नौकरी जाने का डर तो बरोबर बना हुआ था । उधर निहोरीलाल के मां बाप को ही नही पूरे गांव को यकीन था की निहोरीलाल बडा़ा साहब जरूर बनेगा । दुर्भाग्य ने यहां भी छल किया निहोरीलाल को नौकरी तो मिली पर ऐसी संस्था में जहां योग्यता का कोई मोल न था । यहां अयोग्यता का बोलबाला था । छोटी बिरादरी का कर्मचारी कितना ही क्यों ना पढा लिखा हो । उसकी तरक्की के रास्ते बन्द थे । हां बस इतना था कि बेरोजगारी का दंष नही झेलना था बस । बाकी षोशण उत्पीड़न वैसा ही था जैसा रियासत काल मे सम्भवत- होता था । इस सब हालातों से बेखबर निहोरीलाल के मां बाप उम्मीद पर कायम थे ।
निहोरीलाल को यह बात बहुत खलती थी कि उससे कम योग्यताधारी धड़ाधड़ उूंचे पदो पर पहुंच रहे थे पर निहोरीलाल को लतियाया जा रहा था अछूत समझकर । निहोरीलाल को ऐसा लगने लगा कि उसकी तकदीर यहां कैद हो गयी है । उसकी तरक्की के सारे रास्तों को रोकने के लिये कदम कदम पर कागों ने जैसे पहरा बैठा दिया हो । अजगरों के बीच नौकरी कब तक बची रहेगी यह तो उपर वाला ही जाने । खैर उपर वाले ने आदमी द्वारा खड़े किये गये सभी व्यवधानों से उबार लिया था पर बाद में क्या होगा कुछ भी नही कहा जा सकता था जंगल राज की तरह ।
कम्पनी के कुछ अधिकारी तो साजिष रचते रहते थे वंचित उत्पीड़ित निहोरी लाल के खिलाफ इसी बीच स्टेट में बड़े साहब ए.पी.साहब नये आ गये । निहोरीलाल को लगा कि उसकी समस्याओं का कुछ तो निराकरण हो जायेगा । नये साहब फिलासफर ही नही पी.एच.डी.होल्डर भी थे ।
एक दिन अचानक मान्यवर ए.पी.साहब ब्रांच आफिस के दौरे पर आ गये । बारी बारी से सभी कर्मचारियों से बात किये सबसे आखिरी में निहोरीलाल को साहब के सामने हाजिर होने का अवसर मिला।
ए.पी.साहब-क्या नाम है तेरा ?
निहोरीलाल सर........
ए.पी.साहब-निहोरीलाल कोटे मे आतेेे हो क्या ?
ब्रांच मैनेजर-कम्पनी में भी आरक्षण लागू हो गया है क्या सर ?
ए.पी.साहब -नही हुआ है तो हो जायेगा ।नेताओं को वोट चाहिये की नही ? खैर छोड़ो । निहोरी लाल क्या काम करते हो
निहोरीलाल के पैर के नीचे की धरती हिल गयी जैसे। वह सम्भलते हुए बोला टाइपिंग का काम,डिस्पैच एवं डाक रीसिविंग का काम आफिस के खर्चे का काम सहित और भी बहुत सारे काम कर लेता हूं ।
ए.पी.साहब-दो लेटर टाइप करने के बदले तुम्हे इतनी तनख्वाह मिलती है?
ए.पी.साहब-मुझसे क्या चाहते हो ?
निहोरीला- सर योग्यतानुसार पद में बदलाव ।
ए.पी.साहब-वह तो मैं नही करवा सकता । बडें पद की ख्वाहिष है तो तुम्हारे साहब से कह कर तख्ती बनवा देता हूं ,तुम गले में डाले रहना । अपनी जात वालो को देखा है । आज भी भूखे नंगे दिन भर पसीना बहाते रहते है ।पता है कितनी मजदूरी मिलती है ? तुमको नौकरी मिल गयी तो अब बड़ा अफसर बनने का सपना देख रहे हो । अरे इतनी बडी कम्पनी में तुमको नौकरी मिल गयी है क्या किसी बड़ा ततरक्की से कम है ?
निहोरीलाल-सर मुझसे कम षैक्षणिक योग्यता वालों के पद में बदलाव हुए है । वे अधिकारी बन गये है । मेरे साथ के आये लोग बड़े अधिकारी हो गये है । मैं जहां का तहां ही पड़ा हूं ।
ए.पी.साहब-जो बडे़ अधिकारी हो गये है उनकी तकदीर में लिखा था । तुम्हारी तकदीर मे नही लिखा हैं तो नही बन सकते कितनी भी डिग्री हासिल कर लो ।
निहोरीलाल- सर तकदीर में जो आदमी कर रहा है वह तो कतई नही भगवान ने लिखा होगा । यहां तो लोग कमजोर की तकदीर पर कुण्डली मार कर बैठे हुए है ।
ए.पी.साहब-क्या कह रहे हो । वकालत की पढाई भी तुमने कर ली है क्या ?
निहोरीलाल-येस सर एण्ड अदर्स मोर लाइक मैनेजमेण्ट,सोषलवर्क............
ए.पी.साहब-वो आई सी यू आर हाइली क्वालीफाईड सफरर....... स्टेट में किस किस से षिकायत है ।
निहोरीलाल- व्यक्तिगत् तौर पर से तो किसी से नही पर........
ए.पी.साहब- पर मीन्स.....
निहोरीलाल-पक्षपात करने वाले लोगो से जाति के नाम पर दुत्कार करने वाले लोगों से अधिकार से वंचित रखने वाले लोगों से सपने को बेमौत मारने वाले लोगों से ।
ए.पी.साहब-इसके अलावा और भी कुछ षिकायत है क्या ?
निहोरीलाल-मेरा कोई काम समय पर नही होता । चाहे मेरे स्कूटर का लोन रहा हो,एल.टी.सी का भुगतान रहा हो चाहे मेरी घरवाली के जीवन-मौत का संघर्श रहा हो, रात रात तक काम के बदले ओवरटाइम के भुगतान पर रोक रही हो । पसीना बहाने के बदले आंसू मिले है मुझे । मुझे न्याय की दरकार है ।
ए.पी.साहब-क्या ?
निहोरीलाल- जी सर........
ए.पी.साहब-कौन कौन से तुम्हारे पेण्डिग काम है । तुम लोग बड़े लोगो की बराबरी भी तो करते हो । अपनी औकात में तो रहते नही । खैर स्टेट आफिस पहुंचकर तहकीकात करवाता हूं क्या सच्चाई है और कुछ कहना है क्या ?
निहोरीलाल-षैक्षणिक योग्यता के अनुसार पद ...
ए.पी.साहब-मतलब अब तुम अपने काम को छोटा समझने लगे हो । देखो मि.निहोरीलाल जिस पद पर तुम काम कर रहे हो और जिस काम के बदले में तुमको इतनी तनख्वाह मिलती है उससे कम में तुमसे ज्यादा योग्य कम तनख्वाह में करने को तैयार है । तुमको पता है देष मे कितनी बेरोजगगारी है । तुम मेहनत मजदूरी करने वाले छोटे लोगो की ख्वाहिषे इतनी बढ जायेगी तो उूचे लोगो के भविश्य का क्या होगा ? तुम चाहो तो नौकरी छोड़ दो तुम्हारे साथ अन्याय हो रहा है तो ।स्टेट अधिकारी तो तुम इस कम्पनी में बन नही सकते ।
निहोरीलाल-षैक्षणिक योग्यता का कोई मोल नही कम्पनी में जातीय योग्यता के आगे ।
ए.पी.साहब-मैनेजमेण्ट चाहे तो चपरासी को प्रमोट कर अधिकारी बना दे और चाहे तो तुम्हारे जैसे के प्रमोषन के सारे रास्ते बन्द कर दे । नौकरी करना है तो करो नेतागीरी मत करो । तुम्हारी नेतागीरी मैनेजमेण्ट बर्दाष्त नही कर पायेगा ।
निहोरीलाल-भविश्य के सपने देखना नेतागीरी है ।आप बताईये आपके अधीनस्थ काम करने वालेकौन से अधिकारी में मुझसे अधिक षैक्षणिक योग्यता है कि मैं लतियाया जा रहा हूं ।
ए.पी.साहब-कोई नकोई कमी तो जरूर है ।
निहोरीलाल-जातीय योग्यता यही ना .......हमारे लिये तो यह योग्यता रिसते जख्म पर तेजाब डालने जैसी हो गयी है ।
ए.पी.साहब-देखो अब मैं तुमसे बहस नही करना चाहता । आई अण्डरस्टैण्ड यू आर हाइलीक्वालीफाईड । यू में गो नाउ.............
स्टेट आफिसर और निहोरीलाल की बाते अधखुले दरवाजे से दफतर के लोगो के कानों को सकून दे रही थी । कुछ तो यहां तक कहते सुने गये कि साहब निहोरीलाल को वैसे ही तोड़ रहे है जैसे मुर्गी को बिल्ली । निहोरीलाल साहब के कक्ष से जहर का घूट पीकर बाहर निकलते ही ए.पी.साहब ब्रांच आफिसर को कठोर बने रहने का आदेष देते हुए बोले सुने क्या कह रहा था निहोरिया । अरे तुम्हारी कुर्सी हथियाने की सोच रहा है ।खैर उसकी तकदीर में कहां । इस कम्पनी में तो तकदीर षीर्श पर बैठे उूचे लोगो द्वारा लिखी जाती है । इस निहोरी को तो इस कम्पनी में होना ही नही था । कैसे आ गया ?सभी अफसरों ने इसके साथ खूब सख्ती बरती है मुझे पता है । केषावत साहब ने भी इसे खून के आंसू दिये है । आज भी केषावत की गिध्द दृश्टि निहोरी पर टिकी है । नौकरी इसकी भले ही बची रहे पर अधिकारी तो नही बन पायेगा । इस बात को तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं ।
ब््रांाचहेड-क्या सर लेकर बैठ गये । छोटे लोग है । सत्ता किसके हाथ मे है हम सामन्तवादियों के हाथ मे ना । ये लोग ढटपटाते रहे पिजड़े के षेर की तरह । क्या बिगाड़ लेगे ? इसके साथ कुछ तो अच्छा होना चाहिये ?
ए.पी.साहब-होगा । जहां है वही सडेगा । यही इस निहोरी के लिये ठीक होगा । अरे पढ लिख गया है तो क्या हमारी बराबरी करेगा । कुचला जायेगा । निहोरी जैसे लोगो को आसू देकर की अच्छा काम कराया जा सकता है । इसी में हमारा फायदा है और हमोर साम्राज्य का भविश्य भी । हो सकते तो कभी कभी मीठा बोल दो पर जहर मिश्रित । दफतर के कुछ लोगो के लिये तो आज का दिन जष्न सरीखे हो गया था । ए.पी.साहब और ब्रांचहेड के बीच हो रही बातें निहोरी के कानो में जैसे पिघला षीषा डाल रही थी और पुराने जख्म में धधकता हुआ कोयला । उससे रहा नही गया कमान से छुटे तीर की तरह कमरे के अन्दर चला गया और बोला-साहब कब तक झूठे अभिमान के बल पर षोशितों वंचितों का दमन करोगे ? कब तक पुराने घाव को ताजा करने के लिये धधकता कोयला डालते रहोगे ? अरे वंचितों के हाथ मेे भी षिक्षा का हथियार आ गया है । विज्ञान का युग है रूढीवादी हथियार भोथरे हो गये है । मुर्दाखोर भेदभाव की अमानीय व्यवस्था ने देष और समाज को बिखण्डित किया है । देखना साहब इस देष में मानवीय समानता,सद्भावना और राश्ट्रीय एकता का साम्राज्य होकर रहेगा । हम कानून और सूचना के अधिकार का सहारा लेगे । हर जुल्म के खिलाफ संघर्श करेगे । ए.पी.साहब खिसिया कर कक्ष से बाहर निकले और सफेद कार मेे बैठ गये । ड्राइवर ने कार को गति दे दी । कार तूफान की तरह दौड़ पडी धूल और धुआं छोड़ते हुए ।
डां.नन्दलाल भारती
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