आज़ादी की सांस सुखद
बसंत सा एहसास निराला ,
कैसे दीवाने आज़ादी के अपने
जीये बस वे हमारे सपने
खुद विषपान किये ,
थमा गए हमें अमृत प्याला……………
दीवाने कुछ पाये नाम ,
अनेको अनाम,अनजान शहीद कहाये
सोचो ज़रा क्या हम
दीवानो की कुर्बानी का मान दे पाये……………
स्वार्थ की नईया में हुए सवार
लोकतंत्र के पहरेदारो को भाता ,
जातिवाद -नफ़रत का पासा
और भ्रष्ट्राचार .............
दायित्व हमारा भी करे फुफकार ,
ना सहेगे जातिवाद -नफ़रत और
भ्रष्ट्राचार का बोझ ,
लोकहित में बदल देगे अपनी सोच ………
लोकतंत्र के पहरेदारो सावधान
तुम राष्ट्रवादी-विकासवादी -समतावादी
भय- भ्रष्ट्राचार मुक्त शासन- प्रशासन दो
खून देने का वक्त नहीं अब
ना बहायेंगे ना बहने देगे
हम तुम्हे मत देगे .............
यही असली आज़ादी और
आज़ादी के दिवानो को
पुष्पांजलि होगी
अमर होगा लोकतंन्त्र ,
लोकतंत्र के पहरेदारो तुम्हारी भी तो
जय-जयकार होगी ................
डॉ नन्द लाल भारती
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