पहलवान अब तो तबियत हरी है। सुना है अपने गांव की षान आया है।अफसर बाबू घर पर है या गांव की परिक्रमा करने निकले है स्वामी बाबा बोले।
रात में ग्यारह बजे तो आये है। सोते-सोते दो बज गयी,वो तो पांच बजे ही जाग गये पहलवान बोले।
यही तो एक गांव का इकलौता अफसर बाबू है जो षहर से आते ही पूरे गांव की परिक्रमा करता है, हर गांव वाले का हालचाल पूछता है। बाकी आते है पता ही नहीं चलता,घर में घुसे रहते है। किसी से ना सलाम ना दुआ ना जयभीम। ना जाने षहर जाकर संस्कार क्यो भूल जाते है।संस्कार से मान बढता है। हाथ जोड़कर जयभीम बोल तो सीना दोगुना हो जाता है। अफसर बाबू की देखो गांव के सबसे अधिक पढ़े लिखे है। अच्छे विभाग में सेवा भी दे रहे है,पर बड़े बूढो का चरणस्पर्ष करते है। इसीलिये तो अफसर बाबू गांव की षान है स्वामी बोले।
कुसुम को आवाज देते हुए पहलवान बोले अपने मामा को बुला दे,कह दे स्वामी नाना आये है।
नाना मामा घर में नही है।मिस्त्री नाना के घर गये है। मामी ने फोन कर दिया है आ रहे है।
सुना पहलवान मिस्त्री के घर गये है अफसर बाबू स्वामी बोले।
मैं तो खटिया पर पड़ा हूं,मेरा दैनिक क्रिया-क्रम बहू के सहारे हो रहा है, खटिया से उठ नही सकता। उसका द्वार करने तो मैं जा नही सकता,बुढ़िया भी उपर वाले को प्यार हो गयी। सेवकबुद्ध को ही षहर से लेकर गांव तक की रीति रिवाज निभाना है। इतने में गीतू आ गयी स्वामी का पांव छूते हो पूछी बाबा कैसे है।
बेटी जी रहा है तुम बच्चों को देखकर,इतने में सेवकबुद्ध भी आ गया वह भी स्वामी बाबा का चरण स्पर्ष किया । बाबा खूब आर्षीवाद दिया।
सेवकबुद्ध बाबा तबियत ठीक है।
अफसर बाबू हम तो पके आम की तरह है कब गिर जाये कोई भरोसा नही,पर तुम बच्चों को देखकर उम्र भी बढ जाती है।
बाबा आप लोग तो परिवार के लिये टाटी है।मां बाप बच्चों के लिये पहाड़ सरीखे होते है जो हर तूफान रोक लेते है बच्चों तक पहुंचने नही देते।
अफसर बाबू तुम तो मां बाप को घरती का भगवान कहते हो,मैं तुम्हारा संदेष जहां-जहां जाता हूं,सुनाता जाता है।
बाबा माफ करना अफसर बाबू नहीं मैं सेवकबुद्ध हूं। अपने घर-गांव आया हूं अपनों के बीच आया हूं,अफसर कैसा।अफसर तो विभाग में हूं,घर गांव में तो परिवार का सदस्य।
सेवकबाबू अफसरबाबू बोलने से मेरी छाती छप्पन इंच की हो जाती है।
गीतू बाबा के लिये कुछ नाष्ता का इन्तजाम करो।
पोहा बन रहा है,पोहा के बाद चाय है,जलेबी तो मिलेगी नहीं सबेरे -सबेरे गांव में गीतू बोली।
बेटी यहां भी षहर जैसे सब कुछ मिलता है,विदेषी सामान की दुकानें गांव की बाजार में मिल रही है।जलेबी की बात कर रही हो पर जलेबी षाम को मिलेगी।कहां जलेबी मं फंस गया। बेटा बच्चे तो ठीक है।
हां बाबा सब ठीक है,बेटी अपने घर है,सबसे छोटा बेटा पढ़ रहा है ,बड़ा बेटा नौकरी में है।नेताजी का बेटा भी नौकरी में हो गया है।
अच्छा किया बेटा तुमने अपने बच्चों के साथ भाई के बच्चें का भविश्य बना दिया वरना आज के मतलबी जमाने में कौन भाई और उसके बच्चों का बोझा उठाता है।
बाबा सब परमात्मा की कृपा है।बाबू पिछली बार जब आया था तब कुछ राग दरबारी के बारे में बात कर रहे थे। बाबा फिर से बता सकते है।
राग दरबारी की अपनी कोई औकात नहीं होती चाटुकार होते है स्वामी बोले।
क्या कह रहे हो बाबा सेवकबुद्ध बोला।
हां बेटा सही कह रहा हूं। राजा को खुष करने के लिये,वीर रस,श्रृंगार रस में कुछ कह देना ताकि राजा खुष होकर कुछ इनाम दे दे यही राग दरबारी का काम होता है,जहां तक मैंने सुना है। मैं कभी राग दरबारी तो था नही।
बाबा राग दरबारी का काम बस राजा को खुष कर इनाम हासिल करना भर ही था।
देखो बेटा सच कहूं जो सच्चा कवि होगा,साहित्यकार होगा,वह कभी चाटुकारिता के लिये नही लिखेगा, नहीं गीत कविता गाकर सुनायेगा।मैं नहीं कहता कि सभी राग दरबारी एक जैसे होते होगे,पर अधिकतर तो राजा को खुष करने के सारे उद्यम करते थे।
बाबा चाटुकारिता का मतलब चापलूसी तो नहीं।
हां सेवकबाबू ।
बाबा ऐसा तो आज भी होता है।
होना ही है बेटा,देष के राजा आपसी वैमनस्यता में जूझे रहते थे,देष का साम्राज्य मुस्लिम षासकों ने हथिया लिया फिर अंग्रेजो ने। अब देष की बागडोर काले अंग्रेजो के हाथ में हैं। देखो कब तक रहती है।
बाबा आजादी पर आंच तो नहीं आयेगी पर काले अंग्रेज गोरे अंग्रेजो से आगे तो है,यह बात तो माननी पड़ेगी।
सेवकबाबू तुम खुद काले अंग्रेजो के षिकार हो।
कैसे बाबा ?
तुम्हारे बाप जो पहलवान है अब नाम भर के कभी पहलवान थे। साल भर से मृज षैय्या पर पडे़ है।माताजी तुम्हारी तरक्की की बांट जोहती चल बसी,रिटायर होने को आ गये हो तब जाकर अफसर की पदोन्नति हुई है,वह भी स्थानान्तरण की षर्त पर।
बाबा बात तो सौ टके सही कह रहे है।
बेटा तुम बड़े बड़े काले अंग्रेजो के सामने दुखड़ा रोये लिखित अनुरोध किये पर कुछ नही हुआ,बाप मृतषैय्या पर पड़ा दिन गिन रहा है।बहू अल्यिानगरी में अपने दुख की वजह से तुम्हारे साथ भी नहीं रह पा रही है। क्या हैं बेटा यह तो दण्ड ही तो है ना ?
हां बाबा बहुत कोषिष कर लिया पर कहीं सुनवाई नहीं विभाग के मुखिया का कहना है कि नौकरी चुन लो या परिवार। मैं परिवार चुनने को तैयार था पर पिताजी नहीं चाहते।
बेटा एक बाप कैसे चाहेगा कि उसका बेटा नौकरी छोड़। मां बाप के जीवन का तो यही सपना होता है।
बाबा पहले विभाग के मुखिया पक्ष में थे मेरे दर्द को समझाा भी था पर एक जातिवादी पक्षपाती अफसर ने उनका भी कान भर दिया।
ये पक्षपाती अफसर राजा जैसे है क्या ?
हां बाबा ये साहब कहते है काम तो कोई कर लेता है।काम की चिन्ता मत करना।राजा जैसे दरबार लगाना इनको भाता है। दो महिला अफसरों के आजू बाजू में बैठा लेगे,पुरूश सामने बैठ जायेगे बस राग दरबारी की तर्ज पर बखान षुरू और इन साहब को यही पसन्द है। काम करने वाले मुझे जैसे दण्डित होते है,कामचोर,बेवफादार,कहते जाते है,उपर से अत्याचार,षोशण होता है। यदि इन साहब को पता चल गया कि अगला छोटी बिरादरी का है तो समझो भविश्य खराब।
क्या कह रहे हो बेटा,दफतर में भी जातिवाद?
बाबा जातिवाद का षिकार ना हुआ होता तो आज निरंकुष साहब के बराबर होता पर जातिवाद खा गया। बाबा अब तक मुझे जातिवादी अफसर ही मिले है। रिटायर होने को आ गया हूं ऐसे समय में तो जर्बदस्त षोश्ण अत्याचार,पुलिसिया व्यवहार,जातिवाद का षिकार हूं।
ये कौन से साहब है जो आज के युग में भी नरपिषाच बने हुए है।
बाबा नरपिषाच ही है।हमारी सी.आर तक खराब कर दिये है।
मतलब पहले भी ऐसा ही कुछ हो रहा था।
हां बाबा इसलिये प्रमोषन से वंचित रहा।इतनी लम्बी सेवा के बाद प्रमोषन हुआ भी जो अब दड सिाबित हो रहा है।
ऐसा क्यों बेटा ?
बाबा कहते है ना एक तो करेला दूसरे नीम का डाल पर।
कहने का मतलब क्या है बेटा ?
बाबा एक तो छोटी कौम का दूसरे अधिक पढालिखा तीसरे राग दरबारी का सुर मुझे अलापने नही आता बस इसी का दण्ड मिल रहा है।
ये तो सम्मान की बात होनी चाहिये थी। मुर्दाखोर दण्ड दे रहे है।
ळां बाबा निरंकुष साहब के दरबार में चमड़े का सिक्का चलता है,जन और देषहित में काम करने वालों का दमन होता है।दुर्भाग्यवष हमारे जैसा कोई निरंकुष साहब से ज्यादा पढा लिखा आ गया तो खैर नही । बदकिस्मती से आरक्षित वर्ग का निकला गया तो दमन और दफन दोनों की तैयारी,जबकि हमारे विभाग में आरक्षण लागू नहीं है।सामान्य कैटेगरी के लोगों को प्राथमिकता दी जाती है। आरक्षित वर्ग को अछूत ही समझाा जाता है। निरंकुष साहब को बस अपने सम्मान में सुनना पसन्द है।सुबह षाम जब देखों चाटुकार राग दरबारी किस्म के लोग निरकुंष साहब को खुष करने के लिये नाना प्रकार के उद्यम करते रहते है। झूठी तारीफों से निरंकुष साहब कंस हुए जा रहे है।
ये तो आजादी और देष के संविधान के खिलाफ है।
बाबा ऐसे अफसर तो जब से मैंने विभाग ज्वाइन किया है तब से मिलें है,चाहे वे विजय प्रताप,रहे,चाहे देवेन्द्रप्रताप रहे चाहे,चाहे अवध प्रताप रहे,चाहे राजेन्द्र रहे चाहे द्वारिका रहे,और अब सेवानिवृति के पहने दीनू,हिकमत,और निरंकुष साहब,जिनकाी निगाहों में मेरी पढाई लिखाई फर्जी है,मैं नौकरी के योग्य नही हूं,नाना प्रकार के आरोप लगाते है बाबा सिर्फ जातीय अयोग्यता की वजह से। आज भी मैं निरंकुष साहब बहुत बड़े अफसर है और मैं बहुत छोटा हूं इसके बाद भी षैक्षणिक योग्यता उनसे बहुत ज्यादा है मेरे पास । बाबा अफसोस तो है तरक्की नहीं हो,पायी पर नन्ही सी खुषी भी है कि ऐसे मुर्दाखोरों के बीच नौकरी बची हुई है,ये भी बहुत बड़ी बात है हमारे लिये।
इतने में नगेन्द्र के बाप जो मृतषैय्या पर पड़े पर उनकी आवाज में दम था दमदार आवाज में बोले बेटा मेरी वजह से कोई अनुचित फैसला ना लेना,परिवार का एकमात्र सहारा तुम ही हो।मेरा सांस कब तक चलेगी उपर वाले जाने ।बेटा तुम हिम्मत नही हारना तुम्हारी रक्षा अब तक भगवान करते आये है आगे वही करेंगे।तुम दुनिया में नामरोषन करोगे सेवक बेटा।
हां बाबू तुम भले ही स्कूल नहीं जा पाये पर तुमने मुझे इतना पढ़ा दिया कि आज भी गांव में मेरे इतना पढा कोई नही है,तुम्ही मेरे आदर्ष हो बाबू।मैं चाटुकारिता का सहारा नहीं लूंगा वचन देता हूं।ना चमडा़ के सिक्का चलाने वाले योग्यता के दुष्मन अफसरों का राग दरबारी बनूंगा ।
षाबाष अफसर बाबू षाबाष । देष को भ्रश्ट चाटुकारो की जरूरत नही है। बेटा पक्षपाती,जातिवादी और योग्यता के दुष्मनों का चाटुकार राग दरबारी नहीं बनना स्वामी बाबा बोले।
डां.नन्दलाल भारती
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