श्री सुरेश जी शर्मा
जीवन काल-6 मई 1938 से 12 अप्रैल 2015
श्री सुरेश जी शर्मा का अपनी जहां को अलविदा कहना,हमारे दिलों को बेचैन और पलकों को नम करता रहेगा। साहित्य जगत उनकी स्मृति से कभी नही विस्मृत होगा। उनका साहित्यिक अवदान नवोदित लेखकों के लिये ही नही समर्थ रचनाकारों के लिये भी प्रेरणास्रोत साबित होगा। व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सम्पन्न श्री शर्माजी थे ही ऐसे,जो एक बार मिल लिया उनका हो गया। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। वैसे तो कई साहित्यिक कार्यक्रमों में श्री सुरेश जी शर्मा यकीनन मुलाकात हुई होगी जान पहचान न थी। स्व.वरि.लघुकथाकार श्री कालीचरण प्रेमी,गाजियाबाद ने मेरी मुलाकात को जीवन्तता प्रदान किया। लघुकथा लेखन के क्षेत्र में श्री पे्रमी का नाम अनभिज्ञ नहीं है।श्री प्रेमी जी से दूरभाश पर अक्सर चर्चा होती रहती थी। काफी वर्श पहले श्री कालीचरण प्रेमी ने मुझे शर्मा जी के बारे विस्तृत जानकारी देते हुए उनसे एक बार मिलने को कहा और मैं शर्मा जी के तत्कालीन क्लर्क कालोनी,इंदौर निवास पर पहली बार व्यक्तिगत् रूप से मिला था। मेरी श्री शर्मा जी से पहली मुलाकात थी पर ऐसा नही लगा कि हम पहली बार मिल रहे है। श्री शर्मा जी तो हमारी लेखनी पर अपने विचार रखने लगे थे जैसे वे मेरे बारे में बहुत कुछ जानते थे। पहली बार मुझे शर्मा जी के अपनत्व का आभास हुआ जो निरन्तर जारी रहा,उनका आषीश मिलता रहा। मेरे अनुरोध पर शर्माजी इंडियन सोसायटी आफ आथर्स के आजीवन सदस्य बने,पदाधिकारी नामित किये गये। इंसा परिवार ,इंदौर उन्हें पाकर कृतज्ञ था पर अचानक उनका चला जाना दुखदायी लगता है। खैर नियति को यही मंजूर था परन्तु वे अपनी साहित्यिक विरासत कि वजह से अविस्मरणीय बने रहेंगे। आज श्री सुरेश शर्मा हमारे बीच नही हैं पर उनकी कृतियां उनके होने का एहसास कराती रहेगी।वे साहित्य और लेखन के महत्व को बचपन से समझते थे,युवावस्था में ही उन्होंने लेखनी को थाम लिया था,सन् 1980 में छोटे लोग,सन् 1985 में षोभा सन् 1989 में थके पांव,कहानी संग्रह लिखकर उन्होने अपनी साहित्यिक दूरदृश्टि का एहसास करा दिया। उनका लेखन कर्म निरन्तर चलता रहा। पच्चास से अधिक लघुकथा संग्रहों में उनकी लघुकथायें संकलित है। अन्र्तजाल पर भी उनकी लघुकथायें पढ़ी और सराही जा रही है। उनका लघुकथा संग्रह-बुजुर्ग जीवन की लघुकथायें,साहित्य जगत में खूब सराहा जा रहा है,पाठकों भी खूब पसन्द आ रहा है।श्री सुरेश शर्मा जी की लघुकथायें आसपास की जीवन्त दास्तान लगती है,इसका जीवन्त उदाहरण है-बुजुर्ग जीवन की लघुकथायें और हाल ही में प्रकाषित लघुकथा संग्रह अंधे बहरे लोग।
विगत् वर्श अंधे बहरे लोग,लघुकथा संग्रह लोकार्पित हुआ जिसे पाठकों का खूब प्रतिसाद मिल रहा है। इसके अतिरिक्त अनेक पुस्तक समीक्षाये,लेख,परिचर्चाओं साहित आकाशवाणी से कहानियां प्रसारित होती रही है। श्री सुरेश शर्मा सम्पादन के क्षेत्र में सक्रीय थे अपने कहानी और कहानी के सम्पादन के साथ समान्तर,क्षितिज और संयोग साहित्य को निरन्तर सम्पादन सहयोग प्रदान कर रहे। श्री सुरेश जी शर्मा के साहित्यिक अवदान को देखते हुए कई संस्थायें सम्मानित कर गौरान्वित हुई है। ऐसे थे समय के पुत्र श्री सुरेश जी शर्मा उनका सानिध्य पाकर कौन नहीं गौरान्वित होता।यह सौभाग्य हमें भी प्राप्त होता रहा,हमारी लेखनी को धार देने में श्री शर्माजी अहम् भूमिका निभाते रहे। श्री सुरेश जी शर्मा का अपना जहां से बिछुड़ जाना दुखदायी है। श्री सुरेश शर्मा की रिक्तता को पूर्ण किया जाना सम्भव नही है परन्तु उनकी साहित्यिक विरासत से साहित्य और समाज को ज्योति मिलती रहेगी।श्री सुरेश जी शर्मा ने साहित्यिक संस्था कथामंच की भी स्थापना किये परन्तु वे कथामंच के पदाधिकारी कभी नहीं बने, हां बतौर महासचिव मैंने अवष्य काम किया। कथामंच के तत्वाधान में पुस्तक विमोचन साहित्य कई कार्यक्रम श्री सुरेश शर्मा जी के सानिध्य में आयोजित हुए। सच है, रचनाकार कभी नही मरता ,भले ही वह सशरीर नही होता है पर उसका कृतित्व उसके होने का एहसास करता है। श्री सुरेश जी शर्मा अपनी जहां में न होकर भी अपने साहित्यिक अवदानों के माध्यम से जीवित रहेंगे,उनकी यह अपरोक्श जीवन्तता प्रेरणादायी बनी रहेगी। श्री सुरेशजी शर्मा का जन्म 6 मई 1938 ,इंदौर ।मध्य प्रदेश। में हुआ था। षासकीय सेवारत् रहते हुए भी वे हिन्दी साहित्य की सेवा जुड़े रहे। उपयन्त्री पद से सेवानिवृत के बाद हिन्दी साहित्य के प्रति समर्पितभाव से आजीवन स्वतन्त्र लेखन करते रहे। अन्ततः 12 अप्रैल 2015 को अपनी जहां को अलविदा कह स्वर्गवासी हो गये। इंसा परिवार मृतक आजीवन सदस्य श्री सुरेश जी शर्मा की आत्मा की षान्ति एवं उनके परिवार के सुखद् भविश्य की कामना करता है। अन्त में,
श्री सुरेश जी शर्मा आप चले गये उस देश,जहां से ना आती चिट्ठियां नांहीं संदेश।
गीली पलकें,सूना अपनी जहां का परिवेश,अमिट आपका समता संग जीने का संदेश।।
समय के पुत्र स्वर्गीय श्री सुरेश जी शर्मा को शत्-शत् नमन्............विनम्र श्रद्धांजलि ।
डां.नन्दलाल भारती
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